प्रसिद्ध व्यक्ति

आजाद कवि मुंशी राम आज़ाद कवि चौधरी मुंशी राम का जन्म 26 मार्च 1915 को गांव जंडली (छोटी जांडली), जिला फतेहाबाद (जो उस समय जिला हिसार में था) में एक किसान चौधरी धारी राम के घर हुआ। उनकी माता श्री का नाम शान्ति देवी था। उनकी प्रारम्भिक स्तर की शिक्षा उन्ही के पैतृक गाँव मे बाबा पंचमगिरी धाम के अन्दर हुयी। यहाँ उन्होंने चौथी कक्षा तक उर्दू की पढ़ाई की। गांव व दूर-दराज़ के क्षेत्र में कोई शिक्षण संस्थान ना […]

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दादा बस्तीराम दादा बस्तीराम का जन्म 1842 के आस-पास खेड़ी सुल्तान गांव में हुआ था जो अब हरियाणा के तहसील और जिला झज्जर में है। इनके पिता श्री पं . रामलाल प्रसिद्ध कर्मकांडी थे। छः वर्ष की अवस्था में इन्हें निकटवर्ती गांव माछरौली के पं . हरसुखजी के यहाँ हिन्दी-संस्कृत पढ़ने के लिए भेजा गया। अपने अध्ययन के दौरान इन्होंने होड़ा चक्र, विष्णु सहस्र नाम, लघु सिद्धान्त कौमुदी आदि ग्रन्थ कंठस्थ किये। वे भजन, कीर्तन, रुक्मणी मंगल आदि बड़े भावपूर्ण

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पं. हरिकेश पटवारी आशु कवि पं हरिकेश पटवारी का जन्म 7 अगस्त 1898 को गांव धनौरी, तहसील नरवाना, जिला जींद (हरियाणा) में हुआ। धनौरी गांव नरवाना-पतरन राजमार्ग पर दाता सिंह वाला से 5 किलोमीटर की दुरी पर है। इनके पिता का नाम उमाशंकर व माता का नाम बसन्ती देवी था। उस समय धनौरी पटियाला रियासत में पड़ता था। पं हरिकेश ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव धनौरी से ग्रहण की। आगे की पढाई के लिए आस-पास में साधन न होने के

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पं. सुल्तान (रोहद) गंधर्व कवि प. लख्मीचंद की आँखों का तारा व उनके सांगीत बेड़े में उम्र भर आहुति देने वाले सांग-सम्राट पं. सुल्तान का जन्म 1918 ई॰ को गांव- रोहद, जिला-झज्जर (हरियाणा) के एक मध्यम वर्गीय ‘चौरासिया ब्राह्मण’ परिवार मे हुआ। इनके पिता का नाम पं. जोखिराम शर्मा व माता का नाम हंसकौर था। उनका विवाह कस्तूरी देवी, गाँव सरूरपुर कलां, जिला बागपत-उत्तर प्रदेश के साथ हुआ। पंडित सुल्तान शैक्षिक तौर पर बिल्कुल ही अनपढ़ थे, परन्तु गीत-संगीत की

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बाजे भगत बाजेराम, जिसे जनमानस बाजे भगत कहकर पुकारता है, का जन्म जिला सोनीपत के गांव सिसाणा में 16 जुलाई, 1898 ( विक्रमी सम्वत 1955 में श्रावण मास की शिवरात्रि ) को हुआ। उनके पिता का नाम बदलू राम व माता का नाम बादमो देवी था। चार बहन-भाईयो में बाजेराम तीसरे नंबर पे थे, जिसमे उनकी बड़ी बहन हरकौर, भाई शिवधन व छोटी बहन धन्नो थी। उनका विवाह कासंडी निवासी श्री सुंडूराम की पुत्री पण्मेश्वरी देवी से हुआ था, जिनसे

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जाट मेहर सिंह एक अनुमान के अनुसार उनका जन्म 15 फरवरी 1918 को बरोणा तहसील-खरखौदा (जिला-सोनीपत) हरियाणा में नंदराम के घर हुआ। चार भाइयों भूप सिंह, मांगेराम, कंवर सिंह व एक बहन सहजो में वह सबसे बड़े थे। परिवार की माली हालत के चलते पढऩे में होशियार होने के बावजूद वे तीसरी जमात से आगे नहीं पढ़ सके। पढ़ाई छूट जाने के कारण वे पशु चराने व कृषि कार्यों में हाथ बंटाने लगे। घर में रागनी पर पाबंदी होने के

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पं॰ मांगे राम पंडित मांगे राम का जन्म सिसाना (रोहतक) जो की अब सोनीपत जिले के अंतर्गत आता है, में 1905 हुआ। इनके पिता का नाम अमर सिंह व माता का नाम धरमो देवी था। पंडित मांगे राम के चार भाई–टीकाराम, हुकमचंद चंदरभान और रामचंद्र तथा दो बहने-नौरंगदे (गोंधा) और चन्द्रपति थी। पंडित मांगे राम अपने भाई बहनो में सबसे बड़े थे। मांगे राम के नाना पंडित उदमीराम गॉंव पाणची (सोनीपत) अच्छी जमीन-जायदाद के मालिक थे। परन्तु उनकी कोई संतान

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किस्से

किस्सा चन्द्रगुप्त-धर्ममालकी चन्द्रगुप्त को मनसा सेठ के यह रहते-सहते 12 साल हो गये थे और अब वह 18 साल का हो जाता है। एक दिन की बात है मनसा सेठ ने चन्द्रगुप्त को अपने पास बुलाया और कहा बेटा तुम्हे तो पता हमारा रूई का व्यापार है। अब समय आ गया तुम अपनी जिम्मेवारी संभालो। इस बार तुम रूई का जहाज लेकर सिंगल द्वीप मे जाओ। यह सुन कर चन्द्रगुप्त मनसा सेठ को क्या कहता है- के सै मेरै गोचरी

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किस्से

किस्सा चंदकिरण एक समय की बात है कि मदनपुर शहर में राजा मदन सेन राज करते थे। उनकी धर्मपत्नी का नाम नागदे था। महाराज अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए वेश बदलकर शहर में घूमा करते थे। एक दिन दुकान पर राजा ने एक बहुत ही सुंदर स्त्री का फोटो देखा। इतनी सुंदर स्त्री राजा ने कभी नहीं देखी थी। परिणाम स्वरूप राजा उसके ऊपर मोहित हो गया और दुकानदार जो की एक बुढिया थी उससे क्या पूछता है-

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किस्से

किस्सा कीचक वध (महाभारत) कौरवों से जुए में हारने के बाद शर्त के अनुसार पांडवों को 12 साल का वनवास और एक साल का अज्ञातवास बिताना था। अगर कौरव अज्ञातवास के दौरान उन्हें दूंढ लेते हैं तो पांडवों को पुनः 12 साल का वनवास और एक साल का अज्ञातवास बिताना होगा। वनवास के 12 साल ख़त्म होने को आये तो युधिष्ठिर को चिंता होने लगी क्योंकि भीम और अर्जुन जैसे योद्धाओं का छुप कर रहना असंभव था। काफी सोच-विचार करने

कीचक वध (महाभारत)​-पं. लख्मीचंद और पढ़णा सै...

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