किस्से

किस्सा चीर पर्व (महाभारत) दुर्योधन,शकुनी और दुशाशन मिल कर पांडवों को जुए में हराने की योजना बनाते हैं- आपस के बैर विवाद से कोये नफा किसी को है ना।।टेक।। पुत्र पिता का बैर था भाई,राम नाम से हुई थी लड़ाई,नरसिंह बण कै ज्यान खपाई,हिरण्याकश्यप घटे प्रहलाद से,पड़ा नाम हरि का लेना।। सिन्थ उपसिन्थ मां जाये बीर थे,त्रिया कारण हुये आखिर थे,कुरू वंश में शुभ कर्म सीर थे,जिनका मेल कई बुनियाद से,पड़ा रवि शशि ज्यूं गहना।। चकुवे बैन हुए बलकारी,जिसनै जा […]

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किस्से

किस्सा चापसिंह मारवाड के गढ नौ महले में राजपूत जसवंत सिंह हुए, जो शाहजहां बादशाह के दरबार में सेनापति के पद पर कार्य कर रहे थे, उनके लड़के का नाम चापसिंह था। चापसिंह का रिश्ता श्रीनगर की राजकुमारी सोमवती के साथ हुआ। जब चापसिंह का विवाह हुआ तो उसी समय राजपूत जसवंतसिंह व उनकी पत्नी दोनों स्वर्ग सिधार गए। चापसिंह अपने पिता की जगह शाहजहां बादशाह के दरबार में कार्य करने लग गऐ। एक दिन चापसिंह के पास सोमवती के

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प्रसिद्ध व्यक्ति

पं. नन्दलाल पाथरआली पं. नन्दलाल का जन्म गाँव पाथरआली, जिला भिवानी मे 29 अक्टूबर 1913 को हुआ था। इनके पिता जी केशवराम भी अपने समय मे उच्चकोटि के लोककवि व लोकगायक थे। नन्दलाल जी 5 भाई व 6 बहनों मे 10 वे नम्बर के थे। पांचो भाईयो मे भगवाना राम जो कि जवान अवस्था मे स्वर्ग सिधार गए थे। दुसरे नम्बर पर कुंदनलाल, तीसरे नम्बर पर बनवारी लाल, चौथे नम्बर पर नन्दलाल तथा पांचवे नंबर बेगराज थे। इनको बचपन से

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पं. जगन्नाथ समचाना पं जगन्नाथ का जन्म 24 जुलाई, सन् 1939 को गांव समचाना, जिला रोहतक हरियाणा में हुआ। यह तीजों के त्योहार का दिन था। जिस समय तीज मनाई जा रही थी, औरतें पींघ झूल रही थी और गीत गा रही थी। एक तरह से जब उन्होने इस धरा पर अपने नन्हे कदम रखे तो प्रकृति का पूरा वातावरण संगीतमय था। अतः यही कारण है कि उनका संगीत से लगाव बचपन से ही रहा। पं जगन्नाथ की प्रथम शिक्षा

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आजाद कवि मुंशी राम आज़ाद कवि चौधरी मुंशी राम का जन्म 26 मार्च 1915 को गांव जंडली (छोटी जांडली), जिला फतेहाबाद (जो उस समय जिला हिसार में था) में एक किसान चौधरी धारी राम के घर हुआ। उनकी माता श्री का नाम शान्ति देवी था। उनकी प्रारम्भिक स्तर की शिक्षा उन्ही के पैतृक गाँव मे बाबा पंचमगिरी धाम के अन्दर हुयी। यहाँ उन्होंने चौथी कक्षा तक उर्दू की पढ़ाई की। गांव व दूर-दराज़ के क्षेत्र में कोई शिक्षण संस्थान ना

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दादा बस्तीराम दादा बस्तीराम का जन्म 1842 के आस-पास खेड़ी सुल्तान गांव में हुआ था जो अब हरियाणा के तहसील और जिला झज्जर में है। इनके पिता श्री पं . रामलाल प्रसिद्ध कर्मकांडी थे। छः वर्ष की अवस्था में इन्हें निकटवर्ती गांव माछरौली के पं . हरसुखजी के यहाँ हिन्दी-संस्कृत पढ़ने के लिए भेजा गया। अपने अध्ययन के दौरान इन्होंने होड़ा चक्र, विष्णु सहस्र नाम, लघु सिद्धान्त कौमुदी आदि ग्रन्थ कंठस्थ किये। वे भजन, कीर्तन, रुक्मणी मंगल आदि बड़े भावपूर्ण

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पं. हरिकेश पटवारी आशु कवि पं हरिकेश पटवारी का जन्म 7 अगस्त 1898 को गांव धनौरी, तहसील नरवाना, जिला जींद (हरियाणा) में हुआ। धनौरी गांव नरवाना-पतरन राजमार्ग पर दाता सिंह वाला से 5 किलोमीटर की दुरी पर है। इनके पिता का नाम उमाशंकर व माता का नाम बसन्ती देवी था। उस समय धनौरी पटियाला रियासत में पड़ता था। पं हरिकेश ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव धनौरी से ग्रहण की। आगे की पढाई के लिए आस-पास में साधन न होने के

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पं. सुल्तान (रोहद) गंधर्व कवि प. लख्मीचंद की आँखों का तारा व उनके सांगीत बेड़े में उम्र भर आहुति देने वाले सांग-सम्राट पं. सुल्तान का जन्म 1918 ई॰ को गांव- रोहद, जिला-झज्जर (हरियाणा) के एक मध्यम वर्गीय ‘चौरासिया ब्राह्मण’ परिवार मे हुआ। इनके पिता का नाम पं. जोखिराम शर्मा व माता का नाम हंसकौर था। उनका विवाह कस्तूरी देवी, गाँव सरूरपुर कलां, जिला बागपत-उत्तर प्रदेश के साथ हुआ। पंडित सुल्तान शैक्षिक तौर पर बिल्कुल ही अनपढ़ थे, परन्तु गीत-संगीत की

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बाजे भगत बाजेराम, जिसे जनमानस बाजे भगत कहकर पुकारता है, का जन्म जिला सोनीपत के गांव सिसाणा में 16 जुलाई, 1898 ( विक्रमी सम्वत 1955 में श्रावण मास की शिवरात्रि ) को हुआ। उनके पिता का नाम बदलू राम व माता का नाम बादमो देवी था। चार बहन-भाईयो में बाजेराम तीसरे नंबर पे थे, जिसमे उनकी बड़ी बहन हरकौर, भाई शिवधन व छोटी बहन धन्नो थी। उनका विवाह कासंडी निवासी श्री सुंडूराम की पुत्री पण्मेश्वरी देवी से हुआ था, जिनसे

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जाट मेहर सिंह एक अनुमान के अनुसार उनका जन्म 15 फरवरी 1918 को बरोणा तहसील-खरखौदा (जिला-सोनीपत) हरियाणा में नंदराम के घर हुआ। चार भाइयों भूप सिंह, मांगेराम, कंवर सिंह व एक बहन सहजो में वह सबसे बड़े थे। परिवार की माली हालत के चलते पढऩे में होशियार होने के बावजूद वे तीसरी जमात से आगे नहीं पढ़ सके। पढ़ाई छूट जाने के कारण वे पशु चराने व कृषि कार्यों में हाथ बंटाने लगे। घर में रागनी पर पाबंदी होने के

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