किस्सा धर्मकौर-रघुबीर

एक समय की बात है गांव धनोरा उत्तर प्रदेश में एक संपन्न गुर्जर परिवार था। चौधरी हरी सिंह परिवार का मुखिया था। हजारों बीघे जमीन थी और कई गांवों का जागीरदार था। उसकी दो शादीयां हुई थीं। चौधरी के बुढ़ापे में एक लड़का हुआ जिसका नाम रघबीर था। जब रघबीर 5 साल का हुआ उसकी माता की मृत्यु बिमारी के कारण हो गई। पत्नी के वियोग में चौधरी की भी मृत्यु हो गई।

अब मौसी और 5 साल का लड़का रघबीर परिवार में रह गए। मौसी ने लड़के की और जागीर की देखभाल और रक्षा के लिए अपने अविवाहित भाई नत्थू को अपने पास रहने के लिए बुला लिया। रघबीर की जवान होने पर मे शादी हो गई।
जब रघुबीर अपनी पत्नी धर्मकौर का डोला ले कर घर आता है तो अपनी मौसी से क्या कहता है-

मौसी लावै नै बोहडिया नै तार,
कद की बहार खड़ी डोले मैं।।टेक।।

री ध्यान हरी का घर लिए,
कुछ बदी करण ते डर लिए,
पिछे कर लिए घर की कार,
कड़े फसंगी धन्धे रौले में।।

अरी तेरे पै राजी परमेश्वर,
बहू तेरी कस्तूरी केसर,
पहर री बेसर कीमत दार,
जो बणी थी पूरी पांच तोले में।।

अरी तेरे साची बात ना जर री,
ये पड़ोसन भी आगे पिछै फिर री,
यह भी कर री हार सिंगार,
नफा के रस में विष घोले में।।

री मौसी भौगै नै ऐश आनन्द,
तेरे कटगे दिलदर फन्द,
लखमी चंद कली धरै चार,
ज्यूं खूंटी गाड़ दई कोले में।।

धर्मकौर ने डोले से उतर कर सास का आदर किया व सासू की मान की-

हो जब हाथ जोड़ के चाली, झट नेग,
समझ के पांया के महां आण पड़ी ।।टेक।।

दुखी करी राह नै,
सब चाहवें से अप अपणे दा नै,
एक मा नै तै घर तै घाली,
मा तैं बत्ती, आगे मिलगी सास खड़ी।।

काम करूं ना छल का,
जिसतै हो माजना हलका,
मेरी अक्कल का पालड़ा खाली,
तू सासू तुलमां एक धड़ी।।

याद करूं कर्म हेठे नै,
सास मरी जण जेठे नै,
अरी इब में तेरे बेटे नै ब्याहली,
मैं भी बेमाता नै ठाली बैठ घड़ी।।

नहीं मिली

बहु के प्रति मौसी का व्यवहार सौतेली माँ जैसा ही रहा। रहते-रहते मौसी और बहु में मन मुटाव हो गया। रोज-रोज कहा-सुनी होने लगी। झगडा तक हो जाता था। मौसी सोने बैठने पर भी ताने कसने लगी। किस तरह से-

बैठी हो ले हे बहू के सोवै सै।।टेक।।

मैं राखूं दिल साफ नै,
कद की कहरी खड़ी आप नै,
के अपणे भाई बाप नै रोवै सै।।

तू निरभाग पेट की काली,
टांट में दे री 60 दिवाली,
मेरे होते इस घर की ताली क्यों टोहवें सैं।।

पल्ला रहा आसूं तै भीज,
तू कड़े के मनावैगी दिवाली तीज,
क्यों बीज पाप का बोवै सै।।

लखमीचंद बहू तेरी नालाकी,
इन बातां में घटज्या साखी,
पाप रूप की चाकी क्यों झोवै सै।।

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