किस्सा हूर मेनका

विश्वामित्र की बढ़ती तपस्या से इन्द्र देव डर गया तो वह ऋषि की तपस्या खंडित करना चाहता है। इसके पश्चातत इन्द्रदेव अपने दरबार की मनोंरजन करने वाली अति सुन्दरी मेनका का सहारा लेता है। इन्द्रदेव ने मेनका को बुलावा भेजा और साजिश की सलाह करने लगा। पहले तो मेनका विश्वामित्र के सम्भावित गुस्से से डर गई, परन्तु मजबूर करने पर हॉं कर ली और बात आगे बढ़ाई। मेनका ने कहा इस कार्य में पवन देवता और काम देवता का सहयोग अवश्य चाहिएगा। कवि ने वर्णन किया है-

मृत्यु लोक में करै तपस्या
विश्वामित्र एक परण की,
देवताओं तक का भय नहीं मानैं
सलाह करी तनैं दुखी करण की।।टेक।।

भजन तपस्या शुद्ध मन चित से
सिर के ऊपर ताज करैगा,
ब्रह्मा, विष्णु, शिवजी तक की
वो कोन्या कती लिहाज करैगा,
रोक टोक ना दाब मानता खुद
अपणा सिद्ध काज करैगा,
तेरी इंद्र पदवी नै ले ले
और इंद्रलोक का राज करैगा,
तनै बणादे दास
और इंद्राणी नै दास चरण की।।

ना आंख खोलता नहीं बोलता
लगी समाधि वन मैं,
अरसा बहुत बीत लिया उसके
दीमक चढ़ग्यी तन मैं,
जै कोए तप खण्डत करै
उसको भस्म करै एक छन मैं,
देख तपस्या ऋषि देव की
मेरै लागी आग बदन मैं,
आयु के दिन बढ़ा लिए
मुश्किल सै घड़ी मरण की।।

देख तपस्वी के तप नै
भयभीत हुआ मैं डर लिया,
जब मुनि देव की लगी समाधि मैं
चौगरदे कै फिर लिया,
उसनै इन्द्री पदवी लेण का ढंग
भजन भाव से कर लिया,
तजे पदार्थ आनन्द भोग के
ध्यान भजन मैं धर लिया,
योग के बल से शक्ति होगी
हालै चूल धरण की।।

जिसा तनै वो दीखै सै
तू घाट देखिए मतना,
इसा बणा ले यत्नद ऋषि की
आंट देखिए मतना,
तू इन्द्रपुरी का भूपति सै
डांट देखिए मतना,
नहीं बणै तै विधि राज की
बाट देखिए मतना,
लखमीचन्द कहै बात सोच ले
परले पार तरण की।।

अब इन्द्र देवता नारद जी से क्या कहते हैं-

सब तै ऊंचा ज्ञान तेरा सै,
सब जगह आदरमान तेरा सै,
ऋषि नारद कै ध्यान तेरा सै,
कहो इस बारे मैं।।टेक।।

बात का कदे फूटज्या भरम,
फेर आवैगी कितनी शर्म,
ना था कर्म लोटने लायक,
सै तेरा ज्ञान ओटने लायक,
उसकी दहक ओटने लायक
ना श्रद्धा म्हारे मैं।।

विश्वामित्र जन्मजती,
दया धर्म का रहै सै पति,
ना सै बात कती फोड़न की,
कई-कई बात सही जोड़न की,
ऋषि देव का सत तोड़न की
हिम्मत थारे में।।

करै भक्ति बेतोल गहर की,
झाल ना डटती प्रेम लहर की,
बात बैर की उस तै करज्या,
तै किस तरियां पेटा भरज्यां,
कहर नजर कर दी तै मरज्यां,
मैं एक इशारे में।।

मानसिंह गुरु करो आनन्द,
काट दयो दुख विपता के फन्द,
लखमीचन्द रासा छिड़ज्यागा,
सभा में मान मेरा झड़ ज्यागा,
देवताओं में रूक्का पड़ज्यागा,
लागे चौभ नंगारे में।।

नारद जी इन्द्र देवता को क्या जवाब देते हैं-

और विधि कोए सुझै कोन्यां,
सोची रात ठिकाणा करकै,
हूर मेनका सत तोड़ैगी
परियां केसा बाणा करकै।।टेक।।

सज-धज कै केला-सी हालै,
दो नयना मैं स्याही घालैं,
ध्यान डिगावण खातिर चालै,
कुटि पै नाच और गाणा करकै।।

करदे तुरंत हिमाकत इतनी,
उटती नहीं नजाकत इतनी,
त्रिया में हो ताकत इतनी,
तोड़ै सण धिंगताणा करकै।।

आज वो मौके पै पा ज्यागी,
तेरी इज्जत के रंग ला ज्यागी,
तनै के मतलब खुद आ ज्यागी,
अपणा आप उल्हाणा करकै।।

लखमीचन्द तै शिक्षा पा लेगी,
दे दिए हुक्म नहीं टालैगी,
एक मिनट में भरमा लेगी,
छोडै कोन्या स्याणा करकै।।

नारद मुनि की बात सुनकर इंद्र देवता ने अपने मंत्री को बुलाया और कहा मेनका को बुलाओ। उसे जाकर कहो कि इन्द्र महाराज ने यह कहा है-

बिगड़ै सै आज बात मेनका,
तू राखगी जात मेनका,
न्यूं कह दिए चल साथ मेनका,
काम जरूरी सै।।टेक।।

तू स्याणी सै मेनका घर की,
चलकै पाग रख दे सिर की,
तू इंद्र की पत राखैगी,
बिगड़े सै इज्जत राखैगी,
इन्द्र लोक में सत राखैगी,
सत की पूरी सै।।

जी नै मोटी राड़ छिड़ी,
आज भंवर में नाव पड़ी,
घड़ी ना सै आराम करण की,
सारे दिन सुबह-शाम करण की,
मिलज्यागी तनै काम करण की
जो मजदूरी सै।।

तेरा सब करतब काम सही सै,
ज्यांतै आज कही सै,
आस नहीं सै एक सांस की,
चाहना सै आज खास-खास की,
चाले पाड़ दे बेल नाश की
घर में बूरही सै।।

लखमीचन्द जगत् मैं बस कै,
रहणा चाहिए हंस-हंस कै,
ना तै किस के आगै दुख रोया जा सै,
रोए तै कोन्या खोया जा,
ना चाली तै जंग झोया जा
बात अधूरी सै।।

मेनका को आने में थोड़ी देर हो गई तो इन्द्र देवता ने उसे बुलाने के लिए दूसरा सेवक भेजा। उस सेवक ने जाकर मेनका से क्या कहा-

चलै नै मेनका हूर हे तू याद करी सै महाराज नै।।टेक।।

अपणे करे प्रण पै डटिए,
सब तै न्यारी अफसर छंटिए,
मतना हटिए भूप से दूर,
मरण हो अपनी शर्म लिहाज नै।।

तेरा नाम सुमर राख्या सै,
ध्यान तेरे पै धर राख्या सै,
इन्द्र कर राख्या सै मज़बूर,
जैसे कोए चिड़ी पकड़ ली हो बाज नै।।

राजा गैल सजै सेना की,
रंगत सै मीठे बैना की,
मार कै दो नैना की घूर,
तू सिद्ध कर जाणै सै काज नै।।

गुरु मानसिंह करो आनन्द,
काट दे दुख विपता के फन्द,
कहै लखमीचन्द भरपूर
तू संग ले चल अपणे साज नै।।

हूर मेनका क्या कहती है-

मैं चालूगी सिर के ताण, उजर नहीं करती।।टेक।।

काया इन्द्र जी के नाम की,
चाहे ले जूती बणा चाम की,
पर ना पाटी काम की जाण,
न्यू करकै डरती।।

मैं राजा तै मिलणा चाहूं,
कहे हुक्म। की टहल बजाऊं,
मैं लाऊं ना घणी हाण
झटपट सिंगरती।।

इन्द्र याद करै न्यूं कब-कब,
उसकी मैं ठोक मानती दब-दब,
मैं सब कर जाणूं सूं काण,
हां चाखण की भरती।।

लखमीचन्द बात की हाणी,
पूरी करूं भूप की बाणी,
दयूं दूध और पाणी छाण,
चुचकारी धरती।।

मेनका इंद्र महाराज के पास जाकर क्या कहती है-

साची बात खोल कै धरदे इसमैं नही बुराई हो राजा,
कौण मुसीबत पड़ी आण कै, किस कारण बुलवाई हो राजा।।टेक।।

अपनी तेरी एक मसौरे में करकै बात रही सूं,
एक मिन्टी ना न्यारी पाटी कर हाजिर गात रही सूं,
आज्ञा का पालन करकै जोड़े हाथ रही सूं,
जन्म लिया जिस दिन तै उस दिन तै साथ रही सूं,
साच बता किस रंज में घिरग्या, करूं तेरी मन चाही हो राजा।।

के किसे बैरी दुश्मन के तू घिरग्या सै घेरे में,
के धिंगताणा करकै ठाली चीज तेरे डेरे तै,
के कोए नौकर परी नाटगी कहे हुकम तेरे तै,
हे राजन कर माफ खोट कुछ बणग्या हो मेरे तै,
मैं दासी चरणों की तुम प्रकट करो सच्चाई हो राजा।।

किसे चुगलखोर नै चुगली करी खोटी कार सुणी के,
के किते लड़ना मरना सै बता जंग की तेग तणी के,
कहो हकीकत अपणे मुख से थोड़ी और घणी के,
सही-सही बतलानी चाहिए डर की बात बणी के,
उस रंज नै मैं दूर करूंगी तन पै ओट तवाई हो राजा।।

क्यूं गुम होगे फिकर मान कै फिकर करो मत मन में,
रंज फिकर को छोड़ एकदम करो चांदणा तन में,
स्वीकार से हुक्म आपका पूरा करूं वचन में,
जुणसा काम मेरे लायक मैं कर दूंगी एक छन मैं,
लखमीचन्द कहै तुरंत करूंगी, मैं जाणूं इसी दवाई हो राजा।।

इन्द्र महाराज क्या कहते हैं-

के कर लेगी हूर मेनका ऋषि जब
राज स्वोर्ग का ले लेगा।।टेक।।

डण्ड हो सै कर्म किए हुए का,
काम सिद्ध आसरा लिए हुए का,
औरों के दुख दिए हुए का,
इन्द्र कष्ट गात पै खे लेगा।।

राड़ बुरी हो सै आपस की,
तू कती भेदी सै नस-नस की,
फेर ना बात रहैगी बस की,
मुनि जब चित भक्ति में ले लेगा।।

तूं ना सै किसे रोक टोक में,
काम बणैगा तेरी झोंक मैं,
इसा तपस्वी मृतलोक में
इंद्र पदवी पै घेरा दे लेगा।।

काम तेरा आज का याद रहैगा,
जब जाकै मनै स्वाद रहैगा,
लुट पिट कै बरबाद रहैगा,
लखमीचन्द बता फेर के कर लेगा।।

इन्द्र ने मेनका से कहा कि धरती पर ऋषि विश्वामित्र तपस्या कर रहा है। यदि उसकी तपस्या पूरी हो गई तो वह मेरी इन्द्र की पदवी छीन लेगा। मुझे तुम पर ही भरोसा है, तुम पृथ्वी लोक में जाकर किसी तरह उसकी तपस्या भंग कर दो। इस काम के बदले में तुम्हें मुंह मांगा धन दूंगा, इस पर हूर मेनका क्या कहती है-

करदयूं काम उजर ना सै
मनै तू बेहूदी कर देगा।।टेक।।

ऋषि भक्ति कररया बेतोल,
न्यूं मन होग्या डामांडोल,
तेरा बोल मुलाम कालजे घा सै
तू कितका जर देगा।।

कदे मनै डोबै कालर कोरै,
ऋषि का तप बादल ज्यूं घोरै,
धोरै ना कोए गाम जंगल मैं
एकली की नाड़ कतर देगा।।

इस तरियां तेरा काम चलैगा,
जब तेरे मन का फूल खिलैगा,
यो मिलैगा इनाम पाप के जा सै,
काट कै सिर नै धर देगा।।

लखमीचन्द भजन कर हर का,
भजन तै भेद पाटज्या धुर का,
सतगुरु का नाम रटे जा भा से
वो तनै गावण का वर देगा।।

इन्द्र देवता क्या कहता है-

फिकर करण का काम नहीं सुण हूर मेनका प्यारी,
भीड़ पड़ी मैं तान बजादे मेट मुसीबत सारी।।टेक।।

मृत लोक में जाणा होगा बात जरा सी तेरी,
और घणा दुख होज्यागा जै घणी करी तै देरी,
एक मुनि नै मेरी गेल्यांट कर राखी हथफेरी,
भगती करकै लेण नै होरया इन्द्र पदवी मेरी,
विश्वामित्र नाम बताया तप कररया तपधारी।।

इसा महाघोर तपस्वी बैठया आंख नहीं खोलै सै,
मगन भजन में सुरती सै उसकी, कती नहीं बोलै सै,
मुनि की तपस्या तेज कर्द सी हिरदे नै छोले सै,
उसके तप के कारण आज मेरा सिंहासन डोलै सै,
कोए-कोए माणस समझ सकै सै वजन भजन में भारी।।

ऊँची पदवी तक जा लेगा कर्म काण्ड का योगी,
तजे पदार्थ सब दुनियां के ना भोग भोगता भोगी,
शुभ कर्मा मैं विघ्नं डाल कै रोग फलावै रोगी,
अखण्ड तप का खण्डन करदे जब मेरै सीलक होगी,
मृतलोक में जाण की खातिर करै न तावली त्यारी।।

भजन छूटज्या गृहस्थ धर्म में ध्यान लगादे उसका,
तू इन्द्र सभा की पातर करत्यस दूर बगादे उसका,
चोट मार दो नैनां की कामदेव जगादे उसका,
मन मोहिनी बण सुन्दर रूप से ध्यान डिगादे उसका,
लखमीचन्द कै चैन पड़ै जब कहण मान ले म्हारी।।

मेनका क्या कहती है-

जै मैं गई मुनि के धोरै,
वो मेरे देगा फूक शरीर नै।।टेक।।

जोत चसा दी अन्धेरे में,
मुश्किल जाणा उस डेरे में,
इतनी शक्ति ना मेरे मैं,
ल्यूं ओट ज्ञान भजन के तीर नैं।।

पहररया वो ज्ञान रूप का चोगा,
घोर तपस्या से सुख भोगया,
जाणैं के कष्ट भुगतणा होगा,
जै दे दिया श्राप मुझ बीर नैं।।

बणी बात ना उधेड़या करते,
विघ्नै की खिड़की ना भेडया करते,
रहाणदे राजा ना छेड़या करते,
तप करते किसे सन्त फकीर नै।।

लखमीचन्द कहै छुप कररया सै,
अपणे आपै जप करया सै,
मन से भजन और तप कररया सै,
के फूकैगा तेरी जागीर नै।।

मेनका ने इंद्र महाराज से कहा कि मैं चली तो जाऊंगी पर मेरे साथ पवन देवता, मेघमाला और कामदेव का जाना भी बहुत जरूरी है। इन्द्र महाराज ने पूछा वह क्यों ? मेनका ने कहा कि जब मैं सजधज कर चलूंगी तो पवन देवता मेरा चीर हिलाएगा, मेघमाला मौसम को सुहावना बनाकर हल्की-हल्की वर्षा करेगी, कामदेव ऋषि के मन में प्रेम को जगाएगा तब कहीं ऋषि समाधि खोलकर मुझ पर आशिक होगा। इस प्रकार उसका तप निष्फल हो सकेगा। अब इन्द्र मेनका को क्या कहता है-

अरै जब सिंगरण लागी हूर मेनका प्यारी।।टेक।।

गहणे का उठाया डिब्बा, जेवर भरया कीमतदार,
पहरण खातिर बाहर काढया, मन में करणे लगी विचार,
एक-एक न्यारी-न्यारी चीजों की लगा दी लार,
हाथ के मैं शीशा लिया चेहरे की सफाई देखी,
मोटी-मोटी आंख्यां के मैं घाल कै नै स्याही देखी,
रोली टीका और बिन्दी माथे ऊपर लाई देखी,
किल्फ सुनहरी साहर बोरला अदा बणायी न्यारी।।

हंसली जुगनी कंठी माला छाती ऊपर गेरया हार,
सोने की हमेल भारी एक मिनट में करी त्यार,
करण फूल जोड़े वाली घूघरवां की झनकार,
बोडी लाकै चोली पहनी, छाती पै कढे थे फूल,
सिर पै चुन्नी रेशमी थी, जिसका बूकल रहा खुल,
सतरह अठारह साल की थी मद जोबन में रही थी टूल,
रूप इसा खिलता आवै जसे रुत पै केशर क्यारी।।

छन कंगण और छन पच्छेली बाजुबन्द हाथ में,
जितणी अपणी सारी टूम सजाली सब गात में,
पायल और पाजेब पहनली त्यार हुई एक स्यात में,
घाघरे की घूम लागै सांथल ऊपर बाजै नाड़ा,
नैनों के इशारे ऐसे आदमी कै लादे झाड़ा,
मुनि का डिगाकै ध्यान इंद्र जी का मेटै राड़ा,
इसी चली सजधज कै मेनका जाणू लेरया हंस उडारी।।

केले केसी गोभ हिली पन्द्रह सेर का तोल इसा,
कालजे नै चूट रहया मीठा-मीठा बोल इसा,
कहीं-कहीं पै पैर धरै पंछी रहा डोल इसा,
छम-छम छननन चाल इसी जाणूं जल के मैं मुरगाई,
इन्द्रलोक से चली परी मृत्यु लोक की सुरती लाई,
घड़ी स्यात बीते नहीं मुनि जी के धोरै आई,
लखमीचन्द कहै नाचण लागी पर मन में दहशत भारी।।

अब हूर मेनका ऋषि विश्वामित्र के पास पहुंच तो गई, लेकिन डरी-डरी सी उसे भय था कि कहीं ऋषि उसे क्रूर दृष्टि से न देख लें। दूसरी ओर उसे वापस आने में भी इन्द्र महाराज की नाराजगी का खतरा था। इसलिए उसने हिम्मत करके अपना काम शुरू कर दिया और क्या कहने लगी-

ऊंच नीच का ज्ञान करै,
जब ध्यान करै थी मन में,
इसा बिघ्ना ना गेरया करते
ऋषियों के भजन मैं।।टेक।।

इसा अखण्ड तप करया सै
किसा बादल की ज्यूं घोरै,
ज्ञान भजन से वृद्ध शरीर
न्यू बन्ध्या धर्म के डोरै,
मुश्किल जाणा दीखै से
मनै इसे सन्त के धोरै,
एकड़वासी बैठया ना
किसे शहर गाम के गोरै,
योग साधना तप कररया सै लगी समाधि बण मैं।।

मन माया और इन्द्री जीती
उसकी ही जीत बतावैं,
सच्चे भगत और परमात्मा की
सच्ची प्रीत बतावैं,
हो सच्चा विश्वास प्रेम से
जब वाहे प्रीत बतावैं,
राजा, योगी, अग्नि, जल की
उल्टी रीत बतावैं,
इनतै बचकै नहीं रहे तै चाला करदे दिन मैं।।

इसी समाधि मुश्किल टूटै,
जो इतणे दिन से लागी,
इन्द्रलोक मैं मजे करूं थी,
कित मृतलोक में आगी,
मनैं देख कै जै ऋषि देव कै
नहीं तृष्णाल जागी,
बिन सोचे समझे त्यार हुई मैं
भूल में धोखा खागी,
इसे तपस्वी नै छेड़या ना करते जाणैं हो किसे मथन का।।

और का मन काबू में करणा
अपणे हाथ नहीं सै,
ऊंच नीच होगी तै फिर
रहती जात जमात नहीं सै,
जो करै बुरा फिर चाहवै
भला के यो अपघात नहीं सै,
करै तपस्या भंग करणी
कोए आच्छी बात नहीं सै,
लखमीचन्द कहै कामदेव बड़ी मुश्किल जागया तन मैं।।

अब मेनका अपने मन में क्या सोचती है-

धोरै गए बिना के उठै सै तन मैं झाल मुनि कै,
एक मिनट में कर दूंगी मैं चलकै ख्याल मुनि कै।।टेक।।

तपधारी का तप तोडूंगी मनै याहे बात बिचारी,
त्रिया रूप देख कै न ऋषि सोचैगा विधि सारी,
होज्या मोहित अदा देख कै लागै गात कटारी,
दो नैना के चलै इशारे घलज्याग घाल मुनि कै।।

नाच और गाणा देखै सुणैं जब मन में ध्यान करैगा,
आशिक हो कै मेरे रूप पै हाजिर ज्यान करैगा,
कामदेव जब तन में घुसज्या दिल बेईमान करैगा,
तोड़ समाधि भजन छोड़कै खोटा ध्यान धरैगा,
इश्क करण का बहम आज करदूं तत्काल मुनि कै।।

उस इन्द्र राजा के दिल का डर दूर हटा में धरदूं,
उसकी ताबेदार रहूं सूं मैं भीड़ पड़ी में सिर दूं,
विश्वामित्र का सत तोडूं मैं सारा खोल जिकर दूं,
करी तपस्या भंग हो ज्यागी दो धेले का कर दूं,
विषय वासना जगा कै कोए जणदूं लाल मुनि कै।।

मेघमाला तू बून्द गेर कै मौसम सर्द बणादे,
पवन देवता पीछे तै मेरा दखणी चीर हलादे,
कामदेव तूं मुनि के तन में अग्नि तुरत जगादे,
मैं नाचूं और गाऊंगी फेर कौण मनै बिसरादे,
लखमीचन्द कहै आज दिखादयूं फन्दा डाल मुनि कै।।

कवि क्या कहता है-

ऊँचे सुर गावण लागी नाच कै ताल बजादी,
छननन छननन न्यू होण लगी जाणूं आग फूंस में लादी।।टेक।।

विश्वानमित्र धोरै आकै नाच दिखावण लागी,
कभी इधर और कभी उधर फिरती भागी-भागी,
तीन देवता रक्षा करते बदन में तृष्णा जागी,
धूमधाम से चटक-मटक कै मुनि के स्यामी आगी,
सन्नाटा-सा गया गात में एक इसी भैरवी गादी।।

मुरगाई की ढाल तिरै इसी छम-छम करती चालै,
दो नैना के तीर मारकै कत्लै करण की सालै,
मारै एड़ दलकती धरती इसे दम-दम पां डाले,
कामदेव नै जोर करया ऋषि बैठया बैठया हालै,
त्रिया रूप दिखाकै नै झाल गात में ठादी।।

त्रिया चलत्तर इसा फैला दिया तिरछा घूघंट करकै,
नाचै गावै कूदै मटकै खूब प्रेम में भरकै,
विश्वामित्र कामदेव के मोह में बैठया घिरकै,
जाण पटी जब आंख खुली इसी लागी चोट जिगर कै,
कामदेव नै जोर करया जब उठया खोल समाधि।।

लखमीचन्द कहै हुया बावला जागी झाल बदन मैं,
अपणे बस की बात रही ना जोश फैलग्या तन मैं,
सोचण लाग्या दूर कौण इसे घोर अन्धेरे बण मैं,
चन्द्रमा सा रूप इसा रही चमक बिजली घन मैं,
राम नाम गया भूल हाथ माला दूर बगादी।।

विश्वामित्र मेनका को क्या कहता है-

धन सै माता-पिता नै पाली,
सुथरी श्यान उमर की बाली,
कौण देश तै आवै चाली,
आगै कित जा सै।।टेक।।

खोटी हो सै टुक इज्जत की,
कदे ना नाव डूबज्या सत की,
कौण किसकी मनैं नहीं पिछाणी,
मुख तै बोलै मीठी बाणी,
के इन्द्राणी के ब्रह्माणी, लज्जा तै ना सै।।

चमकै किसा रंगधूप तेरा है,
कुण मालिक पति भूप तेरा,
पार्वती केसा रूप तेरा सै, गणेश की मां सै।।

आवैंगे सुख याद पहले
तन पै दारूण दुखड़ा सहले,
कहले जो कहती हो तै,
चलती जा दुख सहती हो तै,
इस बणखण्ड में रहती हो तै, के भोजन खा सै।।

गुरु मानसिंह करो आनन्द,
आज यो काट विपत के फन्द,
लखमीचन्द यो किसा विघन सै,
टूम ठेकरी धौरे धन सै,
आगै घोर अन्धेरा बण सै, के चालण का राह सै।।

हूर मेनका क्या कहती है-

धक्के खाती फिरती फिरती बण में आयी मैं,
मेरे कैसी और दुखी ना दुनियादारी मैं।।टेक।।

रंज फिकर में यो ढंग होरया स मेरे शरीर का,
जाणै के-के जा बीत पता ना हो तकदीर का,
मेरै निशाना लागया सै दुख के तीर का,
मर्द बिना ना उठया करता धेला बीर का,
के बूझैगा ऋषि देव कर्मां की हारी मैं।।

और किसे का नहीं सहारा एक कुदरती है,
मारी-मारी इस जंगल में एकली फिरती है,
घर तै बाहर लिकड़ कै बीर तवाई भरती है,
अम्बर नै गेरी थी और नीचे धरती है,
मेरे दर्द की कौण सुण सै सूं दुखीयारी मैं।।

अपणे दुख नै खुद जाणूं सू नहीं और नै बेरा,
एकली का जी लागै कोन्या बण में घोर अन्धेरा,
तू मतना बात करै मेरे तै जी राजी ना मेरा,
भेद बता दे मनै ऋषि जी के मतलब से तेरा,
जो थारे मन की व्याधा सै वा खोल सुणादूं सारी में।।

रस्ता चलती क्यूं टोकी तू मतलब कहदे सारा,
एक ब बोल कै चुपका होग्या यो के सौण विचारा,
शरमावण का काम नहीं सै कोण इरादा थारा,
लखमीचन्द सफल हो सेवा बसा दयो गुरुद्वारा,
जाण बूझ कै ना फिरती मैं, फिरी लाचारी में।।

विश्वामित्र क्या कहता है-

बैठज्या कुटी पै आज्या सोला रासी हूर,
तप करते नै मारगी तेरी दो नैना की घूर।।टेक।।

नाच और गाणा इसा करया तनै ला दिए रंग ठाठ,
तेरे हुश्न नै देख कै मेरा गया कालजा पाट,
तेरे बहम मैं छुटग्या मेरा भजन भाव का ठाठ,
रूप बड़ा अनमोल बोल न कोयल तै कुछ घाट,
स्याहमी बलता दीख गया मनै अग्नि केसा पूर।।

बियाबान मैं आण कै तनै रोप दिया चाला,
कामदेव नै बान्ध लिया परी मेरे गात में पाला,
इसी बीर के दर्श करैं जो हो भागां आला,
कड़ै ज्ञान और कड़ै ध्यान और कड़ै गई माला,
इश्क मैं पागल हो कै अलफी पाड़ बगादी दूर।।

मेरे जीते जी झगड़ा दूर तमाम हो ज्यागा,
तन-मन-धन से हाजिर मेरा चाम हो ज्यागा,
जै मेरे धोरै रहगी तै पूरा काम हो ज्यागा,
दोनों बखत मनैं भोजन का आराम हो ज्यागा,
मेरे जिगर मैं खटके सै तेरा बिजली केसा नूर।।

और नहीं कोए काम बैठी हर के गुण गाइए,
मन की तृष्णा पूरी होज्या हंस कै बतलाइए,
एक कदम ना बाहर कुटी तै हूर कदे जाइए,
हाजिर सै मेरी ज्यान बता तनै और के चाहिए,
लखमीचन्द के धोरै तनै इब ठहरणा जरूर।।

हूर मेनका ऋषि को क्या जवाब देती है-

के रहा देख चोगरदै फिरकै,
कामदेव में बैठया घिर कै,
अपणा मतलब पूरा करकै कदे तड़कै ताह दे।।टेक।।

कामदेव से हस्ती खूनी,
काया रंज फिकर नै भूनी,
दूणी चिन्ता हो जीवण की,
दिल पै चोट नहीं सिवण की,
ओडा लेकै खावण-पीवण की कदे चोरी सिर ला दे।।

पाप उघड़गे कौण कर्म के,
करणे चाहिए काम शर्म के,
ज्ञान भ्रम के खोले ताले,
कदे ले बान्ध बैर के पाले,
आशिक इश्क कमाणे वाले, जाणैं ना कदे कायदे।।

आड़ै ना कोए मेरा हिमाती,
कदे फिर दुख मैं धड़कै छाती,
साथी रहिए गेल प्रेम का,
भूखा हो तै टहल प्रेम का,
बण्या बणाया महल प्रेम का, कदे आगै सी ढाह दे।।

लखमीचन्द बिजली-सी घन मैं,
मेरे जगादी लौर बदन मैं,
कदे इस बण में छोड डिगरज्या,
जब तेरा पेटा सारा भरज्या,
गोरी तड़प-तड़फ कै मरज्या, इसमें ना फायदे।।

विश्वामित्र क्या कहता है-

सोहणी सोहणी भोली-भाली सूरत सै प्यारी,
बेमाता नै श्यान घड़ी सै दुनिया तै न्यारी।।टेक।।

फिरै एकली भरमती ना और कोए संग में,
सारा हाल बतादे हांडै से कौण से रंग में,
तेरे रूप नै सब तरियां तै कर राख्या तंग में,
केले केसी लरज पड़ैं सैं गोरे-गोरे अंग मैं,
छोड़ दिया घरबार तनै, बता के सै लाचारी।।

आगै और जाण का बता दे किसा इरादा सै,
छोड़ कुटी नै जाण का बता कौणसा फायदा सै,
मनै छोड़ कै जागी तै दुख भोगगी भारी।।

छमछम छननन चाल रही मुरगाई ताल की,
कोन्या डटती झोक मेरे तै बैरण झाल की,
बियाबान में आकै करदी बात कमाल की,
करी तपस्या भंग करदी मेरी कितने साल की,
नहीं डटती तै श्राप तनै दयूं फिरै मारी-मारी।।

एक ठिकाणा होया करै जो दिल नै थाम ले,
बखत पड़े पे धर्म समझ कै सर्दी घाम ले,
कर विश्राम उमर कटज्या मत जाण का नाम ले,
इतनी सुथरी बीर कौण घर का काम ले,
लखमीचन्द कहै बैठ परी कर तबीयत खुश म्हारी।।

ऋषि विश्वामित्र मेनका के प्रेम-जाल में फंस गए। उनकी तपस्या भंग हो गई। दोनों को कुटिया में इकट्ठे रहते हुए कुछ दिन बीत गये तो मेनका गर्भवती हो गई। गर्भवती होने पर वह अपने मन में क्या सोचती है-

इन्द्र के कहै तै किसी मरकै बैठगी,
चालण का ढंग नहीं रहा न्यू फिरकै बैठग्यी।।टेक।।

अपणे घर बिन गैर का ठिकाणा ठीक नहीं,
भलाई करकै बुराई का उल्हाणा ठीक नहीं,
जो जाणबूझ कै दुख भोगै इसा गाणा ठीक नहीं,
आशाबन्द लुगाई का किते जाणा ठीक नहीं,
कदे सुण ले बोल ऋषि जी न्यू डर कै बैठगी।।

मनैं देवलोक तै आकै गाल खाई दुनिया की,
आप कपट लिया ओट करी मनचाही दुनिया की,
जिन्दगी भर दुख देगी इसी भलाई दुनिया की,
आखिरकार मिलज्या बुरी बुराई दुनिया की,
मन में आवै ख्याल सबर-सा करकै बैठगी।।

सभा में ऊंची आंख कर किस ढाल तणूंगी,
दोष जबर ले जन्म दूसरा के जूणी बणूंगी,
लागै बोली तन में, मैं सब के ताने सुणूंगी,
संकट में फंस ऋषि की सन्तान जणूंगी,
चाल भी पडूं तै बालक धर कै बैठगी।।

मैं देवलोक से आई हुक्म चल्या इन्द्र का,
मेरा फीका चेहरा फूल खिल्या इन्द्र का,
तारण खातिर पार बणी मल्लाह इन्द्र का,
मेरी तै बुराई होगी और भला इन्द्र का,
लखमीचन्द कहै छोह-सा तन में करकै बैठगी।।

मेनका को उदास बैठी देखकर विश्वामित्र ने उसके दुख का कारण पूछा तो वह कहने लगी मुझे अपनी होने वाली सन्तान की चिन्ता है। यह सुनकर विश्वामित्र मेनका को क्या कहता है-

अरै क्यूं बैठी सै दूर फिकर मैं,
बूझया चाहूं ठीक जिकर मैं,
कौण चीज का तोड़ा घर में
क्यूकर दुख पाई।।टेक।।

चन्द्रमा ज्यूं गहण लागरी,
फन्दे के मैं फहण लागरी,
आंसू पड़ते बहण लागरी आंख्यां की स्याही।।

एक-एक बात जिगर की लहूं,
अपणे मन की बात कहूं,
जिन्दगी भर तेरे साथ रहूं,
दुख-सुख सब तेरे साथ सहूं,
तू जो कहदे करूं एक स्यात मैं तेरे मन की चाही।।

तू दई किन बात नै सता,
अपणे दिल का जहर बता,
सची बात बता मेरी माया,
सारा भेद बूझणा चाहया,
स्वर्ण बरगी सै तेरी काया, क्यूकर कुमलाई।।

लखमीचन्द कह कुछ मन की,
क्यूकर घटगी कला बदन की,
घणे दिन की कुछ थमा थमी,
ना कदे होण दी मनै गमी,
ना खाण पीण की कोए कमी फेर भी दुख पाई।।

मेनका कहने लगी, गर्भवती होने के कारण उदासी है। बाकी चिन्ता की कोई बात नहीं। इसी प्रकार रहते-रहते मेनका के नौ महीने बीत गए एक खूबसूरत कन्या को जन्म दिया। इस अवसर पर वह क्या कहने लगी-

जिन्दगी भर का गाला होग्या,
सब तरियां मुंह काला होग्या,
लड़की हो गई चाला होग्या के करणा चाहिए।।टेक।।

काम करया था खूब खुशी तै,
लिकड़ना चाहिए आड़ै फंसी तै,
लगा ऋषि तै बैर सकूं ना,
झेल गात पै कहर सकूं ना,
इब इस बण में ठहर सकूं ना, के करणा चाहिए।।

किसतै कहदूं भेद जिगर का,
कलंक लगा लिया जिन्दगी भरका,
इब इन्द्र का कारज सरज्या
क रूक्का तीन लोक में गिरज्या,
छोड़ चली जां तै कन्या मरज्या, इब के करणा चाहिए।।

बैठ के सांस सबर के घालूं,
मैं मरज्यां आड़े तै ना हालूं,
चालू तै हो बेहोशी जा,
सकल आत्मा न्यू मोशी जा,
लड़की कैसे पाली पोशी जा, इब के करणा चाहिए।।

लखमीचन्द बदलग्या ख्याल,
भूप का पूरा हुआ सवाल,
एक साल तक दुखड़ा ओट्या,
मनै कर्म लिखा लिया खोटा,
सिर पै धर लिया पाप भरोटा, इब के करणा चाहिए।।

मेनका लड़की को जंगल में एकली छोड़कर इन्द्रलोक में आ गई और इन्द्र को सारा हाल किस प्रकार सुनाने लगी-

किसे बात की कसर रही ना
पूरा कर दिया काम,
तेरा पूरा कर दिया काम
आई सू सत तोड़ कै।।टेक।।

कर दिया जो कुछ गई थी कहकै,
मुनि के भरे प्रेम में रहकै,
एक साल तक तन पै सहकै,
गर्मी सर्दी घाम,
मनै दाग लगा लिया अपणी खोड़ कै।।

तनै एक ओला काम कहा था,
तू अधम्बर में लटक रहा था,
चलती बरियां तो तनैं कहा था,
मेनका दूंगा तनै इनाम,
इब खड़ा हुआ क्यूं मुख मोड़ कै।।

मैं मछली ज्यूं रही लोच कै,
धोरै बैठी कर्म पोच कै,
देणा हो सै आप सोच कै,
राजा दे दे नै कुछ दाम,
क्यूं बैठया हाथ सकोड़ कै।।

लखमीचन्द मन चाहे करदूं,
ड्योढे और सवाए करदूं,
खा पी के नै आए करदूं,
कदे भी कोन्या करूं हराम,
बात कहूं सू कर जोड़ कै।।

विश्वामित्र कुटी में आया तो वहां उसे मेनका नहीं मिली। उसे इस बात की बड़ी चिन्ता हुई। वह क्या कहने लगा-

मैं के उसनै दुख दयूं था
क्यूं बेमतलब बेकार चली गई,
किसे दीन का ना छोड्या मैं,
धरती कै मनै मार चली गई।।टेक।।

रही कुटी में बड़े प्रेम के आदर भाव करया करती,
देखूं था सीलक हो थी आंख्यां आगै फिरया करती,
मुरगाई की ढाल ताल में चलती बार तिरया करती,
हंस कै बोलणा रोज खेलणा छोह में नहीं भया करती,
आज मनै आख्यां नहीं दीखती एक साल कर प्यार चली गई।।

मैं हरी भजन में बैठया था, मेरा ध्यान डिगाया आकर के,
मेरा मन मोह लिया हूर परी नै नाच और गाणा गाकर के,
हंसी खुशी से प्रेम करया मेरे तन में इश्क जगाकर के,
इतने दिन मैं के सोची मनै चली गई दूर बगाकर के,
एक कन्या दई छोड़ बिलखती सिर पै धरकै भार चली गई।।

क्यूंद आई थी, क्यूं चली गई, एक साल में के लेगी,
नौ महीने तक बोझ मरी कष्ट गात पै खुद खेगी,
न्यू के करणा चाहिए था मेरा आंसू तै पल्ला भेगी,
आप ऐश में चली गई मनैं दिन रात रोवणा देगी,
मैं मारया और आप मरी और मन में खोटी धार चली गई।।

लखमीचन्द कह कै आई मेरे जी नै चाला करग्यी,
हाय मेनका हाय मेनका ज्यान का गाला करग्यी,
होश रहा ना पागल होज्यां मनै तिबाला करगी,
भजन भाव सब नष्ट हुआ और रेत में माला करगी,
बिन तेगे और बिन हथियार, बिन खोट सिर तार चली गई।।

विश्वामित्र आगे क्या कहने लगे-

हूर परी का मारया बण में रोवता फिरूं,
कित तै मिलैगी फेर दोबारा टोहवता फिरूं।।टेक।।

सच्चे नेम प्रण की खातिर
जन्म लिया दुख भरण की खातिर,
जीऊं कोन्या मरण की खातिर जिन्दगी खोवता फिरू।।

लगी चोट दुखती पांसू,
इब मैं जीवण जोगा ना सूं,
आंसू तै अपणे मुंह नै धोवता फिरूं।।

गया प्रेम का फूट गुबारा,
आज मैं धरती कै दे मारा,
प्रेम हूर परी का मारया, जंग झोंवता फिरूं।।

यो लखमीचन्द का गाणा,
मैं इब किसनै दूंगा उल्हाणा,
सिर अपणा और बोझ बिराणा ढोंवता फिरूं।।

मेनका लड़की को जन्म देकर ऋषि की कुटिया के पास लावारिस छोड़कर चली गई। ईश्वर की दया से शकुन्त पक्षी ने आकर अपने पंखों से उस लड़की की रक्षा की। कणव ऋषि घूमते-घूमते उसी स्थान पर जा पहुंचे। उन्होंने लड़की को उठा कर छाती से लगा लिया और क्या कहने लगे-

माता बणकै बेटी जणकै बण में गेर गई,
पत्थर केसा दिल करकै नै तज बेटी की मेर गई।।टेक।।

नौ महीने तक बोझ मरी और पेट पाड़ कै जाई,
लहू की बून्द गेर दी बण में शर्म तलक न आई,
न्यारी पाट चली बेटी से करली मन की चाही,
पता चल्या न इसी डाण का गई कौणसी राही,
ऊँच नीच का ख्याल करया ना धर्म कर्म कर ढेर गई।।

लड़की का के खोट गर्भ से लेणा था जन्म जरूरी,
नौ महीने में पैदा हुई और कोन्या उमर अधूरी,
इसी मां के होणा था जो बेअक्कल की कमसहूरी,
या जीवै जागै सफल रहै भगवान उमर दे पूरी,
जननी बणकै बेटी सेती किस तरियां मुंह फेर गई।।

मनै ज्यान तै प्यारी लागै पालन पोषण करूं इसका,
कती नहीं तकलीफ होण दयूं पेटा ठीक भरूं इसका,
पुत्री भाव नेक नीति बण आज्ञाकार फिरूं इसका,
शकुन्त पक्षी का पहरा सै तै शकुन्तला नाम धरूं इसका,
लखमीचन्द कहै दया नहीं आई दिन में कर अन्धेर गई।।

कणव ऋषि उस लड़की को उठाकर अपने आश्रम में ले गया शकुन्त पक्षी द्वारा रक्षा की जाने के कारण उसका नाम ऋषि ने शकुन्तला रखा, जवान होकर यही शकुन्तला राजा दुष्यंत की पत्नी तथा भरत की मां बनी, जिसके नाम पर हमारा देश भारत कहलाया।

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