किस्सा जानी चोर
जानी चोर और नर सुलतान दोनों दोस्त अपनी मुंहबोली बहन मरवण के यह नरवर गढ़ में भात भरने के लिए जा रहे थे। दोनों उसमे नहाने लगे। नहाते-नहाते दोनों को एक तख्ती बहती हुयी मिली जिस पर लिखा था कि मुझे अदालिखां पठान ने कैद कर रखा है। मैं एक हिन्दू क्षत्राणी हूँ। अगर कोई हिन्दू वीर है तो मुझे उसकी कैद से छुड़ा कर ले जाये नहीं तो वह मुझे अपनी बेगम बना लेगा और निचे मजमून लिखने वाली का नाम लिखा था-महकदे। कवि ने सारे हाल का वर्णन किया है-
तख्ती का मज़बून पढ़या मनैं सोच सै बड़ी,
एक नार महकदे अदलीखां की कैद में पड़ी।।टेक।।
कला हिन्दू धर्म की घटती,
म्हारी प्राचीन मर्यादा मिटती,
धार आसूं की ना डटती लागरी नैनां तै झड़ी।।
रोवै सै अपणे धर्म की मारी,
तख्ती पै लिखी हकीकत सारी,
एक हिन्दू की नारी मुसलमान नै हड़ी।।
उठै सौ-सौ मण की झाल,
उसका पूरा करैं सवाल,
पढ़ कै सारा हाल बदन में आग सी छिड़ी।।
गुरु मानसिंह छन्द नै गावै,
न्यूं लखमीचन्द शीश निवावै,
उसकी कैद नै छुटावै, ना तै वा रोवैगी खड़ी।।
तख्ती को पढ़ कर जानी सुलतान को क्या कहता है-
तखती मिली जवाबी रै जब तै दिल घबराग्या मेरा।।टेक।।
नहीं मिटैं कर्म के लेख,
ईश्वर राखै सब की टेक,
मैं लूंगा देख नवाबी रै,
करदूं दीवे तलै अन्धेरा।।
तू भजन करै नै दरिया में नहाकै,
मैं नहीं बैठूंगा गम खाकै,
जाकै दयूं रोप खराबी रै,
उसका उजड़ कर दयूं डेरा।।
महकदे नै दुख दे रहया सै घणा,
यूं फसग्या खूंड में चणा
यो कितका बणा हिसाबी रै,
पटादूं जाकै उसनै बेरा।।
लखमीचन्द शीले ताते में,
वा दे राखी गढ हाथे में,
मेरी नाते में लागै भाभी रै,
कह सै ल्या ब्याह करवा दयूं तेरा।।
सुलतान कहता है कि पहले भात भरेगें फिर महकदे को भी छुडा लेगें। जानी चोर कहने लगा कि पहले महकदे को छुडाएंगे, फिर कोई और काम करेंगे। सुलतान जानी को क्या कहता है-
कोए दुखी कोए सुखी जगत में,
किस किस के दुख निरवालैंगे,
और काम करैं पाछै,
पहलम भात भरण चालैंगे।।टेक।।
नार महकदे भी आज्यागी जै किते गात समाई हो तै,
तू सुलतान हौण दे कोन्या जै कितै भलाई हो तै,
ब्याह में देखै बाट बहाण जै अपणा भाई हो तै,
बेशक करदे टाल भात की जै खुद मां जाई हो तै,
धर्म बाहण सै मरवण ना कदे वचनां तै हालैंगे।।
जो कही बात का ख्याल करै ना, वो अपणा साथी कोन्या।
बुरे बखत पै काम नहीं दे, वो शक्स हिमाती कोन्या,
कुणसे मुंह तै नाटै सै इब शर्म तनै आती कोन्या,
अगड़ पड़ौसण कहैं मरवण तै हे के तेरै भाती कोन्या,
जिसी होगी उसी मान करैंगे, कुछ थाली में घालैंगे।।
पहलम अपणा हो सै, पाछै काम बिराणा चाहिए सै,
इज्जतबन्द बणने की खातिर खुद दुख ठाणा चाहिए सै,
बदनामी का ढोल बाजज्या ना तै परण पुगाणा चाहिए सै,
और काम छोड़ कै पहले मरवण कै जाणा चाहिए सै,
मां जाई केसा मोह करकै हम ठीक धर्म नैं पालैंगे।।
रस्ते के में चलते-चलते या के सूझी आल तनैं,
और ढाल की बात करै के आज मारी सै बाल तनैं,
उड़ै मरवण खड़ी लखावैगी जै करी भात की टाल तनै,
कहै लखमीचन्द इतनै जीवै रोज मिलैंगी गाल तनैं,
भात भरे पाछै हम उसका कष्ट दूर कर डालैंगे।।
सुलतान की बात जानी को चुभ गई। वह सुलतान से कहने लगा तुम नरवरगढ भात भरने जाओ और मैं महकदे को छुडाने जाता हूँ। अब सुलतान मरवण के घर भात भरने चला जाता है और जानी चोर महकदे को छुडाने के लिये चल पडता है। रास्ते में जानी चोर को 4 भील मिल जाते हैं। वे जानी से क्या कहते हैं-
तार कै नै धरदे सारे लते चाल,
बोल बाला पकड़ा दे जो लेरया सै धनमाल।।टेक।।
हमनैं नहीं बात का बेरा,
बता दे कितना नामां लेरया,
खोसैंगे सामान तेरा मूल करैं ना टाल।।
कही बात नै ना मुंह मोडै,
लाठी मार गात नै तोडैं,
हाथ पैर सिर फोडैं,
जै तनै घणी करी तै आल।।
आवै भतेरे मंगल के मां,
ठाठ रहैं मारै जंगल के मैं,
हम भील लुटेरे दंगल के मैं,
इसा गेरदें जाल।।
लखमीचन्द नया रंग छांटै,
समझणियां के दिल नै डाटै,
जो सामान देण तै नाटै
सै उस आदमी का काल।।
भील कहने लगे जो कुछ तुम्हारे पास है यहां निकाल कर रखदो, नहीं तो तुम्हे को मार देगें। जानी कहने लगा तुम मुझे नहीं जानते। मैं चोर गढी का रहने वाला हूँ। भूरमेव का बेटा जानी चोर हूँ। जानी चोर नाम सुनते ही भील उसके पैरो में गिर गये। कुछ दूर चलने पर चार दरवेश मिलते हैं। आपस में झगड़ रहे थे। उनके गुरु की मृत्यु के बाद चार चीजें बांटने पर झगड़ा था। जानी ने उनको बेवकूफ बणाया और चारों चीजों को लेकर चम्पत हुआ। ये चार चीजें थी – 1. खडाऊँ 2. ज्ञान गुदड़ी 3. जड़ी 4. सोटा। चारों चीजें गुरु का नाम लेने से अपना पूरा काम करती थी। ये सामान दैव बल का था। अब जानी अदालि खां के शहर में पहुच जाता है और अदली खां के दरवाजे पर लिख कर लगा दिया कि मैं जानी आ गया हूँ। और तेरी मूछ दाड़ी काटकर महकदे को कैद से छुड़वाउंगा। और जानी ने परवाने में क्या लिख दिया-
भूर मेव का बेटा चोर गढी गाम सै मेरा,
भूलै मतन्या अदली जानी नाम सै मेरा।।टेक।।
नहीं परणा तै न्याारा पाटूं,
गुण अवगुण तेरे सारे छांटू,
तेरी मूछं और दाढी काटूं,
योहे काम सै मेरा।।
ओछी मन्दी तन पै खेज्यां,
दुख तनै सब तरियां तै देज्याद,
नार महकदे लेज्यां,
ऐलान सरेआम सै मेरा।।
गरीबां सेती ना भिडने का,
काम मेरा ठाडया तै अडने का,
और किसे तै लडने का,
कलाम सै मेरा।।
लखमीचन्द इसी रचदूं माया,
जानी शहर थारे मैं आया,
लिख परवाना डयोढी पै लाया,
अदली सलाम सै मेरा।।
सवेरे जब अदली खां सैर के लिये जाता है तो परवाना देखता है तो क्या कहता है-
डयोढ़ी ऊपर नजर गई हुआ अदलीखां खड्या।
बांच कै परवाना तन मैं सांप-सा लड़या।।टेक।।
चोर गढी का चोर खास लिखाई जानी की,
शहर के मैं होरयी खूब अवाई जानी की,
हरगिज भी ना होण दयूं मनचाही जानी की,
मेरे हाथां त देखो स्यामत आई जानी की,
मौत के मुंह में आण क वो आप तै बड़या।।
दरवाजे पै लिख लादी एक दरखास जानी नै,
करणा चाहया मेरा सत्यनाश जानी नै,
दो दिन भीतर करल्यूंगा तलाश जानी नै,
इतणा दुख दे दूं के ना आवै सांस जानी नै,
आधा गात गडादूं उसका खोद कै खढा।।
फौरन काढूं खोज उस बेईमान जानी का,
विद्या और बल देखूं उस शैतान जानी का,
बांच लिया परवाना धरकै ध्यान जानी का,
महकदे नै लेज्या यो ऐलान जानी का,
किते जूती लत्ते ठाए सै ना मरदां तै भिड़या।।
दो-चार दिन में अपणे आप थ्यावैगा जानी,
किते ना किते म्हारे शहर में पावैगा जानी,
लखमीचन्द फेर कडै भाजकै जावैगा ज्याानी,
मजा चखादूं जब मेरे स्याहमी आवैगा जानी,
दिखा दूंगा दाणा दलता कैद में पड़या।।
अदली खां ने भरे दरबार में नंगी तलवार और पान का बीड़ा रख दिया और कहा बोलो कौन बहादुर है जो नंगी तलवार और पान का बीड़ा उठाएगा और जानी चोर को बन्दी बनाएगा। धम्मल सुनार ने पान का बीड़ा उठा लिया और कहा कि मैं उसे कल रात तक गिरफ्तार कर लूंगा। धम्माल सुनार क्या कहता है-
जानी के बारे मैं बीड़ा खा लिया पान का,
नंगी तेग हाथ में सिर काटू बेईमान का।।टेक।।
विघन के बोल इसे ताणैं सै,
न्यू देखूंगा किस बाणै सै,
अपणे मन में वो जाणे सै,
ना कोए मेरी श्यान का।।
उसनै कड़ै ठिकाणा टोह लिया,
सहम का झगड़ा झो लिया,
उस जानी नै हो लिया,
खतरा अपणी ज्यान का।।
फिकर मैं ना टुकड़ा भाया करता,
भला ना रोग जगाया करता,
चोर कदे ना पाया करता,
मर्द मदान का।।
शहर का सहम करया मन खाटा,
खुलज्या तुरंत कान का डाटा,
लखमीचन्द के धौरेना सै घाटा
ज्ञान का।।
उधर जानी चोर परवाना लगाकर शहर से बाहर निकल गया। चलते-चलते उसे एक सुंदर बाग दिखाई दिया। वह बाग में पहुंच गया और उस बाग की सुंदरता को देखकर क्या कहने लगा-
ठण्डी-ठण्डी हवा चलै, सर सब्ज बाग लहरावै,
चार घड़ी आराम करै आडैं नींद जोर की आवै।।टेक।।
कितना सुंदर बाग लगाया माली की चतुराई,
बिरवे बूटे खूब लागरे बणी बीच मैं राही,
लम्बा चौड़ा बाग बड़ा सै करल्यो खूब घुमाई,
जिसा ठिकाणा चाहूं था, उसी होग्यी मन की चाही,
जानी चोर बाग में बड़कै चारों तरफ लखावै।।
एक ओड़ नै रूख खड़े एक ओड़ नै केशर क्यारी,
तरां-तरां के फूल खिले किसी महक दूर तक जारी,
छोटी-छोटी फुलवाड़ी जो हवा की गैल लहरारी,
इसा बाग किते देख्या ना मेरी उमर बीतगी सारी,
इसा ठिकाणा टोहे तै दुनिया में मुश्किल पावै।।
जय दुर्गें जय देवी माई तेरा विश्वास करूंगा,
बिगड़ी बात बणावण आली तेरीए आश करूंगा,
मैं अदलीखां के खानदान का सत्यनाश करूंगा,
नार महकदे ल्यावण का कोई ढंग तलाश करूंगा,
छत्राणी की कैद छुटज्याव जब अन्न-पाणी भावै।।
इसे-इसे काम बहुत कर राखे यो कोए काम नया ना,
अदली केसे बहुत देख लिए हट कै कदे गया ना,
न्यू सोचै सै पृथ्वी पै कोए छत्री जाम रहया ना,
गरीब आदमी फेटै सै कदे ठाड़ा गैल फहया ना,
लखमीचन्द इस मजा चखादूं ना किसे तै नजर मिलावै।।
जानी चोर इतना सुन्दर बाग़ देख कर उसे निहारता ही रह जाता है। कवि ने कैसे वर्णन किया है-
लड़का देखै था बाग मैं, फुलवाड़ी खूब खिली थी।।टेक।।
बाग के चौगरदे खड़ी जामणां की लार दीखै,
निम्बू और अमरूद लागरे लोवै सी अनार दीखै,
फूल चमेली और केवड़ा सन्तरा मजेदार दीखै,
आडू और आंवले देखे पेड़ सिरस के काले भाई,
आम ससोली खट्टे मिटठे बड़े प्यार तै पाले भाई,
छोटी-छोटी कमरख देखी खिरणी कररी चाले भाई,
नारंगी ज्यों शरबत की लाग मैं, अंगूर मिश्री की डली थी।।
खट्टे गुलर, अंजीर, शहतूत खूब रस मैं भररे थे,
किशमिश दाख बदाम खड़े अखरोट टूटकै गिररे थे,
पिण्ड खजूर छुआरे देखे सेब सजावट कररे थे,
मोतिया गुलाब चमेली लोकाटां की डाल देखी,
तोरी घीया टिण्डसी तीनों करकै ख्याल देखी,
जड़ मैं पेड़ करावले का सेम की कमाल देखी,
एक भी नहीं आ रही दाग मैं, इसी केले की फली थी।।
पिस्ते और चिरोंजी देखी गोलचे चिकनाई पै ,
काजू और किरमाणी देखी तिलगोजे कुछ स्याही पै,
आलू और टमाटर देखे हल्दी थी जरदाई पै,
अरण्ड व खरबूजा देख्या मूंगफली कै मैं लो राखी,
धनियां जीरा लस्सण प्यौध गण्ठे की भी बो राखी,
गाजर गोभी शलगम मूली और अरबी भी धो राखी,
शकरकन्दी भूनण जोगी आग मैं, ककड़ी की नादान कली थी।।
बीच पान का तमाखू देख्या सीताफल की बेल रही,
सरदे और करेले देख कुछ खीरा की गैल रही,
छोटी-छोटी बेल तरबूज की कुछ कचरां की फैल रही,
मरुआ और पदीना देख्या महक बाग मै उठण लागी,
बैंगण और कचालू देखे सुखी भिण्डी टूटण लागी,
कुल्फा और चुलाई देखी मोरणी भी चूंटन लागीं,
पालक स्वाद दिखादे साग मैं, हवा चल कै मिर्च हिली थी।।
इलाची और पानड़ी देखी खजूर पै थी हरियाली,
छैल छलेरा दो चन्दन देखे एक धौला एक पै लाली,
छोटी मोटी लौंग देखी ज्यादा मेर करै माली,
फूल और फूलां की कहीं इसी देखी और फुलवाड़ी ना,
सारे मीठे बेर देखे इन बागां केसी झाड़ी ना,
मुआसीनाथ की सुरती लोगो छन्द धरण मैं माड़ी ना,
गुरु मानसिंह आनन्द नित राग मैं लखमीचन्द विप्त झिली थी।।
ठण्डी ठण्डी हवा चल रही थी, जानी बहुत थका हुआ था, उसे वहां नींद आ गई। बाग की देखरेख करती मालिन भी वहां पहुंच गई। उसने जानी को वहां सोते देखकर उस पर कोड़े बरसाने शुरू और कर दिये क्या कहने लगी-
बुरा बदी नै त्यागै कोन्यां,
सौ बै कहली तेरै लागै कोन्यां,
रूक्के दे लिए जागै कोन्यां,
तू कौण मुसाफिर सै।।टेक।।
मनै करली बहुत समाई,
इब तू ऊठ खड्या हो भाई
कांटे राही के मैं बोग्या,
तू गलतान नींद में होग्या,
इस तरियां आड़ै पड कै सोग्या,
जाणूं अपणाए घर सै।।
इब तू ऊठ चलया जा घर नै,
मैं ना डाट सकूं किसे नर नैं,
ना तै तेरे सिर नै तरवादूंगी,
तेरे पायां बेड़ी भरवा दूंगी,
हवालात में गिरवा दूंगी,
उड़ै दुख जिन्दगी भर सै।।
के तू सोग्या कर कै नशा,
दिखायूंगी फन्द के बीच फंसा,
के बसा लिया आड़ै घरवासा,
हिलता नहीं रती भर माशा,
तनै छोड़ दई जीवण की आशा,
तू किसा नर सै।।
तेरे सब छुटग्ये ऐश आनन्द,
गल में घल्या विपत का फन्द,
लखमीचन्द जुल्म कर डाल्या,
बोलूं सूं ना तिल भर हाल्या,
सोवै सै किसा ताण दुशाला,
होणी तेरे सिर सै।।
कोड़े की मार पड़ने से जानी उठकर बैठ हो जाता है-
चमन में खुश्बोई का काम,
मस्ती पै चढ़ै चमेली केवड़ा।।टेक।।
नारंगी सरबत की ढाल घुली,
अंगूर पकरे जाणूं मिश्री की डली,
केले की फली जो तमाम, खाण जोगी,
नरम पतेवड़ा।।
कदे नेत्र खोलै कदे मीचै,
ना देखै था आगै पीछै,
कुटे-टीसे बर पीछै, दोनों मूंज गुलाम,
बांट कै चाहे नरम बणालो जेवड़ा।।
ना इधर उधर डोलण का,
ना दिल का भेद किसे तै खोलण का,
बोलण का करै था कलाम,बैठग्या बुत बणया,
भजन करै ज्यों सेवड़ा।।
नाचणां गांणा काम शुरू का,
या परजा सै खेत बरू का,
मानसिंह गुरु का बासौदी गाम,
ढाई कोस न्यून सी नै खेवड़ा।।
अब जानी जवाब देता है-
ईज्जत नै क्यूं तारै सै री, समय ना बिचारै सै री,
परदेशी कै मारै सै री, के पागल करदी राम नै।।टेक।।
मैं सोंउ़ं था अपनी मौज,
सिर पै क्यूं धरया पाप का बोझ,
रोज-रोज ना आया करता,
कद सी सूता पाया करता,
कदे लाडू भी ना खाया करता,
के सूंघू था तेरे आम नै।।
बदलगी तोते केसा त्यौर,
जै मेरा होता बाग में जोर,
तोहमन्द और कोए ला देता,
कड़वा बणकै धमका देता,
पीट थोबड़ा ताह देता, तेरे जिसी गुलाम नै।।
या जिन्दगानी दिन दस की,
फेर कोए बात रहै ना बस की,
न्यूं बता किसकी छोरी सै री,
जीभ की चठोरी सै री,
पलकै सांडणी सी होरी सै री,
मैं बूझूं तेरे घर गाम नै।।
करया कर राम नाम का भजन,
सदा ना रहणा माया धन,
कुछ दिन में या खोड़ छोड़ दे,
सब क्यांहे की लोड़ छोड़े दे,
लखमीचन्द मरोड़ छोड़ दे,
सतगुरु जी के सामनै।।
आगे जानी अब क्या कहता है-
री हटज्या नैं दूर पापण,
क्यूं सोवते के सिर पै चढ़गी।।टेक।।
घास चरली हो तै केशर बोदूं,
चीज तेरी एक गई हो तै दो दूं,
खोदूं गरूर बडापण,
जै कोए मुंह तैं खोटी कढ़गी।।
लोटग्या आनन्दी सी छागी,
तेरे बागां मै सीली छाया पागी,
तू लागी कमशूहर थापण,
तू कितका स्कूल पढ़गी।।
सेज कदे सोई ना साखां की,
बरतै तरहां नालायकां की,
तेरी आंख्यां की घूर सांपण,
लाठी तै भी डयोढी बढ़गी।।
के समझाऊं मति मन्द नै,
न्यूं सोची ब्राह्मण लखमीचन्द नै,
छन्द नै लगे भरपूर छापण,
जाणूं तूरां की कीली गड़गी।।
जानी और क्या कहता-
क्यों सिर पै चढ़गी डाण,
परे नै मरले नै, कित तै आगी।।टेक।।
क्यूं सिर पै खड़ी खड़ी टाडै सै,
गर्दन बिन तेगे बाड़ै सै,
किसी काडै सै आंख कसाण,
के मनैं खागी।।
आदमी में देखण जोगा खरया,
डाण तनै शीशा दुनामा धरया,
ले यो बाग तेरा अन्याण,
सिर पै धरले नै, क्यों मारण लागी।।
मन में घूंट सबर की भरियो,
डाण तेरे भाई भतीजे मरियो,
तनै करियो रोग बिरान,
बदी तै डरले नै, ना निरबंस जागी।।
बाग में सोग्या नींद आनन्द की,
फांसी घली विपत के फंद की,
लखमीचंद की उमर नादान,
देख आगला घर ले नै नर मंदभागी।।
अब जानी मालिन से क्या कहता है-
तेरा किसनै बणा दिया बाग, हत्था माणस काटण का।।टेक।।
मैं सोउं था अंखियां मींच,
तू लिकड़ी सौ नीचां की नींच,
पल्ला खींच कहण लगी जाग,
दर्द ना आया चादर पाटण का।।
किसे भाग्यवान नै धन घणा दे,
वो धर्मशाला कुआ प्याऊ चिणांदे,
बणादे भाग्यवान के लाग,
ठिकाणा आए गए डाटण का।।
तनै ले लिया मालण का पेशा,
बाग मैं डट भी जा जै मेरे केसा,
री तू देशां की निरभाग,
तेरा के हक था नाटण का।।
लखमीचन्द नै चार कली जड़ी,
ना हक परदेशी तै अड़ी,
तू लड़ी, भिड़ी, खड़ी गेर कै झाग,
पता ना गुण अवगुण छांटण का।।
जानी कहने लगा कि मालण मैं बहुत दूर से चलता चलता यहां तक आया हूँ। मेरे थक कर पैर टूट गए आपके बगीचे को हरा भरा देखकर थोड़ी देर के लिए यहां आराम करने के लिए बैठ गया तो मैंने कोई बुराई नहीं की। और मैं कोई गैर आदमी भी नहीं हूँ। मेरी यहां पर रिश्तेदारी है। इसलिए मैं यहां आया हूँ। अब जानी मालण को क्या कहता है-
मालण लई भुगत भतेरी बाट री,
मेरे गोडे टूट लिये हार कै।।टेक।।
हम नहीं किसे कै आते जाते,
कर्म करे फल पाते,
ना चाहते तोश्क तकिये खाट री,
न्यूये बैठग्या जगहां बुहार कै।।
तेरे बाग मैं ठहर कै पछताए,
तनै धिंगताणै आण सताए,
तेरे खाये ना सन्तरे लोकाट री,
न्यूये छिक लिया जगह निहार कै।।
क्यों जुल्म करै हत्यारी,
जो मेरी होती जननी महतारी,
ला देती सब बातां के ठाठ री,
जड़ में बिठा लेती पुचकार कै।।
इब सच्चे हर का शरणा सै,
ध्यान बस उसकाये धरणा सै,
लखमीचन्द उतरणा सै ओघट घाट री,
बात करयाकर सोच विचार कै।।
मालण पूछने लगी कि यहां पर तेरी क्या रिश्तेदारी है? तूने किसी से पूछा भी नहीं और बाग में आकर सो गया। यहां पर कोई भी गैर आदमी नहीं आ सकता। जानी नथिया को अपनी मौसी बना लेता है। अब गोधू को लेकर मालिन माली से मिलाती है। गोधू ने जब अपना मौसा देखा तो गोधू उसकी क्या बड़ाई करता है-
मौसा बैरी बारयां मैं काट रहया चाला री,
सहम गया मैं दूर खड़ा।।टेक।।
लहशुन और प्याज देखे, अजमाइन की क्यारी भरी,
धणियां जीरा लोंग इलायची, सोंप खड़ी हरी भरी
दाल मूंग मोठ उड़द, मिश्री और हरड़ निरी,
गाजर मूली और शलगम, शकरकन्दी पै चाला कटा,
आलू और रितालू अरबी, कचालू का भाव पटा,
मुंगफली और जिमिकन्द पै, आदमी का दिल डटा,
जड़ में बैरी एक करेला आला री,
सोवै था बैरी पड़ा ए पड़ा।।
छोटे बड़े आम, जामुन, नीबू, खट्टा और बड़बेर,
चकोतरा, अनार, आडू, अमरूदां, के लागे ढेर
अरंडी, केला, नारंगी, संतरे सेबां का फेर,
नाशपति कली गैन्दा बसन्ती गुलाब खिला,
कनेर और चमेली सूरजमुखी पर ध्यान चला,
बादाम छवारे और गोले अंगूरा पै नूर ढला,
बोझ तलै झुक रहा मेवा का डाला री,
समय पै फल आण झड़ा।।
खरबूजे, तरबूज, काकड़ी सीताफल बड़ा भारी,
खीरे और मतीरे कदू घिया की बणैं तरकारी,
आम्बी, टिन्डसी, कचरी, और कचरे पै गजब की धारी,
सेम की फली और तोरी गोभी का खिला था फूल,
मिर्च और भीण्डी बैंगन पौधां पै रहे थे झूल,
सूवा, पालक, कुलुफा, और मेथी बथवे कै लागै ना धूल,
सब तै पदीने का ढंग निराला री,
न्यारां के भी सडैं थे सिड़ा।।
पिश्ते, खिरणी, शिलाजीत छोटी बड़ी हरड़ खड़ी,
कदम, शाल, शीशम, तुण मरले की लगी थी झड़ी,
बड़, पीपल, नीम, चन्दन बिड़े मैं खश्बोई बड़ी,
मुलहटी, सुपारी, पोश्त, कलौंजी कई रंग के पान,
आख, ढाक, जाल, फांस, बांस पै बेलों के तान,
लखमीचन्द छन्द कथै जिनकी बालक उमर नादान,
करावले की जड़ में सरस देसी काला री,
कसौन्धी और हींस का बिडा़।।
जानी अब मालिन को क्या कहता है-
जब ठहरूंगा तेरे पास मैं,
मनैं लुहकमा बात बतादे।।टेक।।
किसे तै ना कहूं आण लई खींच,
कहूं तै सौ नीचा का नीच,
जो गुस्सा भरया तन के बीच,
साराए जहर रितादे।।
मैं तनै बूझू बारम्बार,
साची बात में के तकरार,
सै धम्मल का परिवार,
उसका आच्छी ढाल पता दे।।
रात नै के बीते उत्पात,
जाणा दीखै उठ प्रभात,
जुणसी नहीं कहण की बात,
उसनै साफ-साफ जता दे।।
लखमीचंद नै छन्द का ज्ञान,
गुरु बचन लिए सही मान,
कै लिकड़ी हो गलत जबान,
सारिए कर माफ खता दे।।
इधर धम्मन सुनार की एक पुत्री थी जिसका पति बहुत पहले उसे छोड़ कर चला गया था। जानी को जन ये बात पता चली तो पंडित का भेष बनाया और धम्मन सुनार के घर पहुँच गया। पण्डित जी को देखकर सुनारी क्या कहती है-
हुए सुख कम कसरे, पायां मैं पसरे सुण दादसरे,
या बात कहण की ना।।टेक।।
बेटी धन माल पराए किसके,
प्याले पीणें दीखैं विष के,
चाहे जिसके कहे तै, कष्ट सहे तै, आये गए तै,
मैं मूल फहण की ना।।
ब्याह करया था लगा कै रंग रास,
मनैं थी जमाई मिलण की आश,
दो बदमाश गिणा गया, कुछ कहा ना सुण्या गया, किला चणया गया,
कोए बुर्ज ढहण की ना।।
मेरी बेटी सै गरीब गऊ,
इसनै देख जलै मेरा लहू,
हो बहू गेल्यां बर की, शोभा घर की, सिल पाथर की,
पाणी पै बहण की ना।।
ये चार कली लखमीचन्द नैं घड़ी,
मैं दादा तेरे पाया में पड़ी,
खड़ी हुई बणकै ढेठी, पाया मैं लेटी, बाप कै बेटी,
सदा रहण की ना।।
अब जानी जो ज्योतिषी है, सुनार को अपने गुण बताता है-
राशी जन्म बखाणू सूं री,
दूध और पाणी छाणूं सूं री,
टीप बणानी जाणूं सूं री, ज्योतिष आले ज्ञान में।।टेक।।
पिंगल पढ़ी छन्दी की शोध,
व्याकरण से हो अक्षर का बोध,
तज कै क्रोध शरीर का री, मर्म ज्ञान के तीर का री,
दर्द मर्द चाहे बीर का री, काटूं एक जबान में।।
सुरती गुरु चरण में लागी,
सेवा करकै विद्या पागी,
त्यागी कर्म निषेधां की री, जन्म-कर्म के खेदा की री,
करी पढ़ाई वेदां की री, सब किमैं जचग्यां ध्यान मैं।।
लग्नर मुहरत तिथि पहर,
हो सै नक्षत्रों की लहर
बहुत से लुच्चे कहर तोलज्यां सै री,
मंगते लोग डोलज्यां सै री, इतनी झूठ बोलज्यां सै री,
धरती ना अस्मान में।।
लखमीचन्द छन्द नए सीखै,
भतेरी दुनियां देखें झीखै,
दीखै जो कुछ कहणा सै री, आगै अप अपणा लहणा सै री,
करया भोग कै रहना सै री, ले कै जन्म जिहान मैं।।
अब जानी कहता है-
देख ली पत्रे की बाणी, तार चाले करड़ाई नै।।टेक।।
अरी निरभाग कर्म की हेठी,
सिर पै धरी पाप की पेटी,
सुणी सै ब्याह पीछै बेटी, जै होज्या पीहर में स्याणी,
यो दुख बुरा लुगाई नै।।
अरी तू चोखी समझण जोगी स्याणी,
तनै इब लुग ना बात पिछाणी,
गेर दी दिन-दिन की हाणी, तेरे बदमाश जमाई नै।।
मेरे मै ब्राह्मण पणे की शक्ति,
बात कहूंगा में हर लगती,
सार जिन्हें भगती की जाणी, धारगे वै सील समाई नै।।
लखमीचन्द धर्म की घूंटी,
देज्यांगा थारे मरज की बूटी,
जै बात लिकड़ज्या झूठी,
कमाई कर-कर कै खाणी, छोड दूंगा मिश्राई नैं।।
धम्मन सुनार की बेटी ज्योतिषी से ज्या कहती है-
ओ किमैं भरी जवानी,
कुछ कलयुग का काम दादा डटा ना जा।।टेक।।
बहुत सी बीर बर दिन में मरले,
पति कै शीश दुनामां धरले,
कर ले सौ-सौ बेईमानी,
वै गुलाम, उनमें छटां ना जा।।
कद मौत आवैगी मेरे नां की,
मुश्किल मिलैगी दवाई घा की,
सुणयां मनैं मेरी माँ की जबानी,
हम कर दिए बदनाम, न्यारी पटया ना जा।।
मैं रह री सूं सबर शान्ती खे कै,
दादा जाईए मरज की दवाई दे कै,
हो ले कै कोतर-खानी,
जी करज्या सुबह शाम,
आप तै कटा ना जा।।
बकलो चाहे लखमीचन्द नै गाली,
कहैगा जिसी आंख्या देखी भाली,
ओ में लाला आली निशानी,
दादा अब उठते ना दाम,
कायदे तै घटया ना जा।।
अब जानी क्या कहता है-
पत्रा खोल लिया दिल साफ तै,
ल्या तनै जतन बतायूंगा।।टेक।।
बुरी करणी से डरया कर,
हर का भजन करया कर,
खुश रहया कर जप जाप तै,
ल्या तनै एक मंत्र सिखा दूंगा।।
तनै 12 साल तक दुख ओट लिए भारे,
हम झूठा पोथी पतरा ना ठाहरे,
थारे आपस के मेल मिलाप तै,
मैं अपणी विधि दिखादूंगा।।
उसका नहीं कितै धर धौरा,
हाथ तै गया छूट धर्म का डोरा,
ओ दुखी होरया तेरे सताप तै,
करड़ाई दूर हटा दूंगा।।
छन्द लखमीचन्द गाग्या,
मैं भूल कै धोखा खाग्या,
कै तै तेरा बालम आग्या,
आप तै ना तड़कै टोहकै ल्यादूंगा।।
अब जानी ने यह तीसरा रूप धारण किया है। पहले तो गोधू माली का लड़का बना, दूसरी बार ज्योतिषी बनकर शहर में गया और अब तीसरी बार उसनै बटेऊ बनने की सोच ली और सुनारी के पास ठीक रात के बारह बजे पहुंचता है-
लिया रूप तीसरा धार,
बणग्या सुनरे का छोरा।।टेक।।
पहलम बणग्या गोधू माली, दुजै बण ब्राह्मण ज्योतिष ठाली,
तीजै जमाई बणन की साली,
घूमै था बीच बाजार, यानी ऊत घणां कोरा।।
मुख से राम नाम भाख्या सै, अमृत रस करकै चाख्या सै,
धम्मल कै घरां ला राख्या सै,
विषयर बणकै ल्यूं महकार, एक चन्दन का पोरा।।
कोन्या फर्क बात म्हारी मैं, घर पाया ना गली सारी में,
धम्मल सुनरे की हारी मैं,
दबरया बिध्न रूप अंगार, माणस फुकण नै होरा।।
कदे होज्या ना मेरी हार, जानी मन में करै था विचार,
लाल रूखसार गजब की मार,
गोल मुंह बटवा सा गोरा।।
लखमीचन्द दुख दर्द सहण की, या छोरी के थी घरां रहण की,
नैन किसे बणे खाण्डे की धार,
छूट रहा स्याही का डोरा।।
कवि ने और वर्णन किया है-
नक्शा नया तार कै चाल्या,
कान्धै दुशाला डार कै चाल्या,
जानी चोर धार कै चाल्या,
भेष जमाई का।।टेक।।
मैं सेवक सू बालकपण का,
धोरै घाटा कोन्या धन का,
मन का फूल कमल खिलरया सै,
काबू आज मेरा चलरया सै,
जानी सूं मनैं वर मिलरया सै, देबी माई का।।
आपै सहम ठा लिया मुख,
राख्या ना ज्ञान ध्यान मैं रूख,
धम्मल नै दुख ज्यादा कर लिया,
इनाम लेण का इरादा कर लिया,
सवा रुपए का फायदा कर लिया, टोटा ढाई का।।
पहर कै कमीज बदल लिया त्यौर,
नया साफा गज-गज पै मोहर,
चालै नहीं जोर हर आगै,
तावला करै कदम धरै आगै,
पहुंच्या धम्मल के घर आगै, था भेदी राही का।।
धोती कुर्ता कोट था काला,
छैल बटेऊ बण्या निराला,
चाला करदूं रचकै माया,
लखमीचन्द का भाग सवाया,
देखूं डण्ड क्यूं बीड़ा ठाया, मेरी बुराई का।।
और जानी पंडित जी के बताये हुए समय पर धम्मन सुनार के घर के बहार पहुँच जाता है-
उड़ै जानी आग्या धमल कै बाहर,
स्याहमी दीवा चमकै।।टेक।।
ओ किसा पैर धरै था डर डर,
चालै ह्रदय में रट रट कै हर हर,
वो घर चौकस पाग्या, जड़ै बसते सुनार,
न्यू झांकण लाग्या रै थमकै।।
इब देखैंगे नई बाल भूख कै,
नहीं करैंगे काम चूक कै
उक कै ना खाली जागा रै छलिया का वार,
चेहरा दूणा दमकै।।
इब नहीं जांगे दूर दूर कै,
देखेंगे एक जाल पूर कै,
हूर कै न्यूं बीझण लाग्या हुए छेक हजार,
लकड़ी ज्यूं गलगी खमकै।।
कद काटै ईश्वर दुख के फन्द नै,
जाणै कद भोगैगे एश आनन्द नै,
लखमीचन्द छन्द न गाग्या बणकै ताबेदार,
सतगुर सेवा में जमकै।।
जानी महल के पास इधर-उधर डोलने लग जाता है। जैसे ही कोई बहुत दिन में आये और रास्ता व घर भूल जाए। धम्मल सुनार की लड़की जाग रही थी, उसने जानी को देख लिया और वह अपनी मां से क्या कहने लगी-
हे मां बाहर बटेऊ की ढाल,
कूण पैर धरै सै ठहर कै।।टेक।।
माया मिलै रात जागे नै,
खड़या देखूं थी कोलै लागे नै,
कदे आगे नै चाल्या जा दूसरी गाल,
भूल्या फिरैं था बीच शहर कै।।
जब यू पैर धरै डट डट कै,
सच्चे राम नाम नै रट कै,
जाणूं दई हटकै टूम उजाल,
चालू मैं जब ओढ़ पहर कै।।
मैं ओढ़ पहर कै ना चटक मटकती,
इस मरजाणें की चाल मेरै खटकती,
लटकती दो जुल्फ मर्द का काल,
काली नागिन भरी ज्यों जहर कै।।
लखमीचन्द बात ना मोह बिन,
जोड़ी सजती कोन्यां दो बिन,
मेरे मद जोबन का खाल,
पाणी ढलै ज्यों बीच नहर कै।।
सुनारी जानी को बटेऊ समझकर अंदर बुला लेती है और क्या कहती है-
कितै कुए में डूब क्यों ना मरा,
इब दीखी सुसराड़, के राह भूल कै आग्या।।टेक।।
माली ना हो बाग बगीचै, फेर कौण पेड़ नै सींचै,
ना ब्यााह पीछै उल्टा फिरया, झूठे उत लिबाड़,
यू घर फेर क्यूं पाग्या।।
मर्द बिन बीर की के बोर, सामण केसी उठैं लौर,
तेरा खेत ढोर चरगे हरया, बिना खसम किसी बाड़,
पाछै सोवता जाग्या।।
लखमीचन्द बताग्या कोए ओली, मेरी बेटी थी सादी भोली,
होली में साक्या करया, म्हारे होगी गल का झाड़,
सब कै पाप सा छाग्या।।
लखमीचन्द के सोवै सै जाग, बदी का रस्ता दे त्याग,
अरै भाग जोर करग्या तेरा,
काले भसंड मराड, तू मुंह हूर कै लाग्या।।
अब सोना दे जानी से क्या कहती है-
कितने दिन तनै हो लिए हो मरज्याने बैरी,
एकली मैं पीहर में छोड़ी।।टेक।।
रात दिनां फिरी रोवंती धोंवती,
फिकर में एक घड़ी नहीं सोवती,
मोती ना लड़ में पो लिए,
तील नहीं रेशम की पहरी,
चली ना कदे खिणवाकै ठोडी।।
सखी खेलै थी फाग सुहाग,
मैं तेरै ब्याह दी भोडे मेरे भाग,
राग नै आश्क सारे मोह लिए ,
महिफल जिनकी थी गहरी,
नाचती मै मुड़ तुड़ कै कोडी।।
कित हांडै था मारया-मारया,
फिकर करै था कुणबा थारा,
12 बर्ष हम रो लिए, हो बाकी ना रहरी
चुन्दड़ी नहीं कदे चाले की ओढ़ी।।
लखमीचंद इसे छन्द विचारै,
इब के मुंह ले कै आग्या म्हारै,
तारै क्यूं बातां के छोलिये,जले मै मै मैं अप बीती कहरी,
पड़ै मेरा सबर बणै तू कोढ़ी।।
जानी उन्हें बताता है की वह इतने दिन कहा रहा-
चाल्या मैं तीर्थ करण गया था,
तू मेरै याद नहीं आई।।टेक।।
हरिद्वार गया पोड़ियां हर की,
कनखल ज्वाला सैर करी घर-घर की,
लक्षमण झूले नील कंठ मन्दिर की,
जड़े कै लिकड़ै गंगेमाई।।
बाबा जी की कुटी पै ठहरया, गया जब मैं हार,
मेरे तै बहुत करया था प्यार,
मनैं न्यू कहण लगा पुचकार,
छोरे तनै छोड़ दई क्यों ब्याही।।
मनै बहुत घणा दुख खेया,
दिल शान्ति जल में भेया,
घरके न्यूं बोले बोहड़िया नै ले आ,
मनैं लाठी धोती ठाई।।
लखमीचन्द भजन में लाग्या,
सुणते दिल पै आनन्द सा छाग्या,
चलकै थारे घर पै आग्या,
आड़ै तू लड़ती पाई।।
सोना दे क्या कहती है-
तेरे बिन माली हो, यो तेरा साराए बाग उजड़ग्या।।टेक।।
जब तै पिया प्रदेश गए, मैं रही आत्मा मोस,
जुणसी तील मेरे पहरण की, मेरी मां नै धरली खोस,
धरे कंघ घोटे आली हो, भरया ठाडा संदूक बिगड़ग्या।।
मीन, पपीहया, करते दोनों मींह बरसण की आश,
मैं फण पटकूं एकली मेरा नाग नहीं था पास,
मैं नागण काली हो, तू जोड़े तै नाग बिछुड़ग्या।।
धरती पै वे ना रहे जो थे धन के जोड़णिंया,
इब फुरसत में आग्या तू कित तै माहल तोड़िणयां,
तलै करले थाली हो तेरा रेते में शहत निचूड़ग्या।।
लखमीचंद न्यूं कहैं इब टाल करै नैं ठहरण की,
म्हारे घरक्यां नै धरदी ठाकै जो टूम मेरे पहरण की,
सारी उमर बकूंगी गाली हो, तू मेरे मूर्ख पल्लै पड़ग्या।।
अब सोना दे क्या कहती है-
आज तै मैं लडूंगी घणी, आया घणे हो दिन में।।टेक।।
सजन तनै रोज रटूं थी सुबह श्याम,
मर्द बिन बीर बता किस काम,
या मेरे राम के बणी, रहैगी मन की मन मैं।।
चान्दी पूरी धड़ी तोल की,
तील बढ़िया धरी घणे मोल की,
मारैं सखी बोल की अणी, रहै के बाकी तन में।।
बहुत समान धरया नए सन का,
सजन बता के जीणां सै उनका,
जिनका रूसया धणी, दुख हो जवानीपन में।।
लखमीचन्द भजन मैं लाग,
जाण कै क्यूं फोड़े थे मेरे भाग,
नाग तेरे माथे की मणी, राखी क्यूं ना फण में।।
जानी सोना दे को क्या कहता है-
अरै मेरै दो मुट्ठी भरदे, हारग्या में चल कै नै आया।।टेक।।
मैं दुख दरदां नैं सहग्या,
करूं के मेरा जी फन्दे में फहग्या,
धरया छींके पै रहग्या, रै, चुरमा बन्धया बन्धाया।।
दिखे सच्चा करूं जिकर मैं,
झूठा करता नहीं मक्कर में,
रै सुनार की तेरे फिकर में, काल तै ना भोजन खाया।।
रात नै मैं घरा सोलूंगा,
तेरे मन तन की टोहलूंगा,
हाथ पैर मुख धो लूंगा, तू करदे नै नीर निवाया।।
लखमीचन्द कहो बात जड़ की नै,
देख लूंगा छाती धड़की नैं,
रै सुनरे की लड़की नैं, झाड़ कै नैं पलंग बिछाया।।
सोना दे जानी को कहती है-
हो तेरे मरण जीण का, हो मनैं बेरा ना पाटया।।टेक।
हो तू लिकड़या मूढ अनाड़ी,
जो तेरे केसी सोच जाती माड़ी,
हो साजन, के था बीरां नैं मरदां का घाटा।।
तू दोष शीश पै धरग्या,
मरै था तै उस दिन क्यों ना मरग्या,
जले तनै फेरे लिए थे, उस दिन क्यों ना नाटया।।
मेरे परमार्थ में सिर दे,
जले मेरे केसी कुण करदे,
राम किसे नै ना इसा वर दे, भरी जवानी हो जल्या जोबन डाटया।।
तनै दे दिया दुख दारूण, इब के लाग्या बात विचारण,
लखमीचन्द तेरे कारण हो, जिन्दगी का सांटा सान्ठया।।
उस रात जानी धम्मन के घर का सारा सोना लूट कर भाग जाता है। जब धुम्मल सुनार को सारी घटना का पता चला तो वह समझ गया कि जानी चोर का काम है। उसने नंगी तलवार अदली खां को वापस कर दी और कहा जानी को पकड़ना मेरे बस की बात नहीं। इस पर शहर के एक दारोगा ने जानी को पकड़ने का बीड़ा उठाया और कहा कि आठ पहर के अन्दर-अन्दर मैं उसे हथकड़ी पहना ढूंगा। जब जानी को इस बात का पता लगा तो एक सुन्दर औरत का रूप बनाकर वह आधी रात शहर में घुसा। रास्ते में उसे वही दरोगा मिल गया। सुन्दरी को देखकर दरोगा क्या कहने लगा-
बेवारिश की ढाल फिरै, कौण कड़े तै आगी,
चालण आली अदा निराली, काट कालजा खागी।।टेक।।
मैं बूझूं तेरे तै गोरी, कौण कड़े तै आई,
छम-छम छन-छन करती चालै, ज्यूं जल पर कै मुरगाई,
एक आधी बै आँख चिलकज्या, दो आँख्यां में स्याही,
थाली मैं के लेरी बतादे, किस की खातिर ल्याई,
गोल कलाई बणी हूर की किसी हंस कै नाड़ हिलागी।।
आधी रात शिखर तै ढलगी, इब कूण खिड़कै खोलै सै,
बेवारिश की ढाल फिरै, क्यूं नर्म जिगर छोलै सै,
भौं की तेग भरी गुप्ती, क्यूं नर्म जिगर छोलै सै,
सौ-सौ रूक्के मार लिए, पर एक बर ना बोलै सै,
घूंघट ताण खड़ी होग्यी, किसी चालण तै नरमाग्यी।।
बेवारिश की ढाल फिरै दुनियां बीच भरमती,
इधर-उधर नै डोल रही, ना एक जगह पै जमती,
तेरी पायल का खुड़का होरया ना मींह बरसण तै कमती,
घोड़ी लक्ष्मी और लुगाई बिना मर्द ना थमती,
आशिक ढक लिया तेरे रूप नै किसी घटा चान्द पै छागी।।
बदमाशां पै पहरा लगरया, हुकम नहीं आने का,
थाणेदार मैं फिरूं गश्त पै अदली के थाणे का,
औरत सै तै के ढंग देख्या, तनै राह रस्ता, पाणे का,
सारे शहर में रूक्का पडरया, जानी के आणे का,
लखमीचन्द नै आगा घेरया तू चाल कड़े कै जागी।।
दरोगा उस औरत के सिंगार को देख कर मन में क्या सोचता है-
छलिया बणया छबीली सी नार, चाला कटण लगा।।टेक।।
टूम ठेकरी गहणा वस्त्र सब आभूषण धारे,
मुट्ठी भर-भर फेंक रहया आश्कों की तरफ इशारे,
अरै जैसे ब्याह चाले का खांड कसार, घर-घर बटण लगा।।
कड़े-छड़े रमझोल पहर लिए और बाजणी पाती,
रिम-झिम करता चाल्या ज्यों चलै घूमकै हाथी,
एक मद जोबन की छुटै थी उलाहर,
बरस कै ज्यों बादल पटण लगा।।
हंसली कंठी गल के अन्दर पहरी मोहन माला,
आश्क बन्दा रहै ना जीवता कटया रूप का चाला,
करकै चाला 16 सिंगार जोबन का रंग छटण लगा।।
लखमीचन्द जिनै भजन करया उनका दुखड़ा सब टलग्या,
पूजा करण को चाल पड़ी घी का दीवा बलग्या,
अरै आगै मिलग्या थानेदार, जानी उल्टा हटण लगा।।
अब जानी औरत के भेष में थानेदार को क्या कहता है-
उसनै भो कोए तकले जिसकै माणस मरज्या सै।।टेक।।
रात नैं राजा नल भी छोड़ गया था,
दमयन्ती नैं दुख दर्द सहया था,
चन्देरी में जा अपणा कष्ट कहा था,
मनै बेटी कर रखले, सभाऊ राजा से तरज्यां सै।।
मैं न्यू सोचूं सूं मन में, दुखड़ा भारी होग्या तन में,
जले तू दो दिन में छिकले, तेरे केसे छोड़ डिगरज्यां सैं।।
जी फन्दे कै ना बीच फहै था, न्यू दिन रात का फिकर रहै था,
कीचक भी द्रोपद नैं न्यूं बात कहै था,
तू मेरी कर पकले, घणखरे, न्यूए डंड भरज्यां सै।।
एक थी भीमसैन की जाई, पारधी नै घणी सताई,
कह था मेरे पड़दे नै ढकले, दुष्टजन पास सिर धरज्यां सै।।
खोल कै बात कहूंगी सारी, तन पै विपता औटै भारी,
वा हो सै पतिभर्ता नारी, जो पती के गुण-अवगुण ढकले
लखमीचन्द छन्द धरज्या सै।।
थानेदार अब औरत को क्या कहता है-
तनै जगह बतावै थानेदार काट में रोकण की।।टेक।।
बूंट और पट्टी तार दी मैनें सिर का सेल्या तारया,
काट बीच रोकण का तनैं भेद बतादूं सारा,
ताली ले हाथ पसार, पेच कै में ठोकण की।।
तेरी मेरी जोड़ी खूब मिली सै तड़कै बटैंगी बधाई,
कट्ठा होज्या भाई चारा गावैंगी गीत लुगाई,
तनैं विधि बतादेंगी नार, देवते धौकण की।।
तेरी केसी और सैं मनैं मतना समझै अकेला,
सोच समझ कै चालिए दो दिन का दर्शन मेला,
कदे थारी रोज रहै तकरार मार बुरी शोकण की।।
बीर मरद की जोड़ी मिलज्या आनन्द खूब करैंगे,
लखमीचन्द करणी करी नै अपणे आप भरैंगें,
टहल में दो बान्दी ताबेदार काम नै ना टोकण की।।
दारोगा औरत से कहता है कि शहर में जानी चोर आया हुआ है और मैं उसे पकड़ने के लिए ही यह पर पहरा दे रहा हूँ। तो औरत के भेष में जानी दरोगा से पूछता है की आप उसे कैसे पकड़ोगे? तो दरोगा औरत को काठ के पास ले जाता है। वह कहती है, इसमें जानी कैसे बन्द होगा तो उसे दिखाने के दारोगा खुद काठ में बन्द हो जाता है-
अकल दरोगा की मारी कपड़े तार काठ में बड़ग्या।।टेक।।
जब तै बण रहया था फूलझड़ी,
तनै मेरी बुद्धी खूब हड़ी,
जब मूछं और दाड़ी नजर पड़ी,
झट काया का सांस लिकड़ग्या रै।।
तेरे परमार्थ मै सिर दूंगा,
ल्या तेरे मुट्ठी तक भर दूंगा,
तेरी इसी गती कर दूंगा,
जाणूं रोटी पर तैं टींट गिरड़ग्या रै।।
क्यों बदलै तोते बरगा त्यौर,
तू झूठी मारै था बौर,
जब देख्या जानी चोर,
सांप सा लड़ग्या रै।।
लखमीचन्द कर्मां की हाणी,
बोलै था तू मीठी-मीठी बाणी,
जब तै तू बणरया था सेठाणी,
न्यूं चेहरे का नक्शा झडग्याग है।।
अब औरत थानेदार को क्या कहती है-
तनै मेरा धर्म बिगाड़ा रै तेरा होइयो बुरा।।टेक।।
फर्क पड़ज्याता दिन और रात तै,
तू राजी होरया था अपणी बात तै,
उत क्यों दाबै अपणे हाथ तै,
मेरे हाथ का मुरा।।
अपणे मन आनन्द छावै था,
तन पै दुख का बोझा ठावै था,
जब तै मेरी छाती में लावै था
तू डंडे का ठुरा।।
तेरे केसी कोए जणनी मात जणैं,
आते सारे सुख हो ज्यांगे तनैं,
जब तू न्यूं कहै था मनै,
टुक उरै रै उरा।।
लखमीचन्द कह कुछ होश नहीं सै,
काया के मैं जोश नहीं सै,
मेरा तै कुछ दोष नहीं सै,
तू चाल्या था कुरा।।
जानी काठ को ताला लगाकर क्या कहता है-
भेष जनाना देख लिया मैं समझया तनै लुगाई,
दिया काठ मैं ठोक दरोगा, जानी तेरा जमाई।।टेक।।
हाथ जोड़ चाहे पैर जोड़ ना खाना माफ तेरा सै,
जिसी करी उसी आपे भरली सिर पै पाप धरया सै,
तू मनैं पकड़न आया था, मनैं खुद इन्साफ करया सै,
बात करण का के मतलब था तू आकै आप मरया सै,
तनै रोक लिया मैं टोक दिया जारया था राही-राही।।
तू किसा दरोगा करै आशिकी कितै डूब मर जाइए,
जानी नै तेरा के बिगाड़या तनैं इसी ना चाहिए,
भोजन तैयार करूं तेरा तू बैठ प्रेम तै खाइए,
मेरी कितनी कैद करैगा, तू अपणी खैर मनाईए,
मेरे पकड़न खातिर क्यूं तनै नंगी तेग उठाई।।
इसे ऊत नै क्यूं छेड़ै तनै इतना ज्ञान नहीं सै,
तनै आपा देख्या और ना देख्या तू इंसान नहीं सै,
के अदलीखां के बारे में तनै प्यारी ज्यान नहीं सै,
तनै न्यूं सोची होगी मेरे केसा कोए बलवान नहीं सै,
एक सरडै लिया भाज तनै ना देख्यां खंदक खाई।।
इसे दरोगा बहुत मिलैं सैं, परवा करता कोन्या,
सै देवी का वरदान मनै न्यूंए फिरता कोन्या,
तीन सौ साठ फिरैं इसे अदली मैं उसतै डरता कोन्या,
छत्रीपण के काम करयां बिन खुद मनैं सरता कोन्या,
लखमीचन्द कहै महकदे की मैं आया करण रिहाई।।
दरोगा का हाल देख कर अदली खां खुद जानी को पकड़ने के लिए चल पड़ता है। उसे एक बुढ़िया चक्की पीसती हुयी मिलती है। अदालि खां बुढिया से जानी के बारे में पूछता है तो बुढिया बताती है कि जानी यह काफी आता जाता है। तुम यहाँ बुढिया के भेष में चक्की पीसने बैठ जाओ और जब जानी चोर आये तो उसे पकड़ लेना की। बुढिया बातों में आकर अदालि खां उसके कपड़े पहनकर चक्की पीसने लग जाता है और जानी उसके कपड़े पहन कर अदलीखां के महल से महकदे को ले आता है और क्या कहता है-
तेरी मूछ और डाढी काटली अदली,
ले चल्या महकदे नारी नै।।टेक।।
धम्मल का सारा धन नशा दिया,
काठ मैं थाणेदार फंसा दिया।,
तू साले चाक्की पीसण लगा दिया,
इब ले देख मेरी होशियारी नै।।
मैं बचना तै नहीं फिरया था,
यार के कारण कष्ट भरया था,
मेरे तै खुद सवाल करया था,
नर सुलतान यार की यारी नै।।
तेरी नगरी में समय लिया थोड़ा,
तेरी इज्जत का कर दिया झोड़ा,
जै तनै म्हारे कान्हीं मुंह मोड्या,
इबकै ठाल्यूंगा बेगम थारी नै।।
यो छन्द लखमीचन्द नै गाया,
इसी दी फला शहर में माया,
किसे साले कै कोन्या थ्याया,
बेरा था नगरी सारी नै।।