किस्सा मीरा बाई
जोधपुर रियासत में राजा मिड़त हुए हैं। उनकी एक लड़की मीरा थी। बचपन से ही उसका भक्ति में रुख था। छोटी उम्र में ही एक शादी की बारात देखकर अपनी मां से पूछती है कि मेरे पति कौन हैं। मां ने बताया कि तेरे पति कृष्ण हैं। बस क्या था, कृष्ण को दूध पिलाना कीर्तन करना, सेवा में लगे रहना, मीरा का काम हो गया। फलस्वरुप सांसारिक पदार्थों से मोह भंग हो गया। कवि ने वर्णन किया है-
एक सति का ब्यान करूं ध्यान करियो,
ज्ञान के सुणनियां कुछ कान करियो।।टेक।।
भक्ति काम सै नेम प्रण का,
फांसा कटज्या जन्म मरण का,
चरणामृत हरि के चरण का जलपान करियो,
उस गंगा केसी धार में अस्नान करियो।।
सच्चे मात-पिता की पढ़ाई,
जैसे पढ़गी थी वो मीराबाई,
कोई सती सी लुगाई, ऐसी श्यान करियो,
गैर चलन के काम का हटान करियो।।
शाम धाम हो कै जो कोए शक्स,
हरि नै रटले तै गुना दे बखस,
सच्चे राम जी के लक्ष्य की रिठान करियो,
आत्मा तीर ज्ञान की कमान करियो।।
जो नर भक्ति रंग में फहया,
उसनै कष्ट कदे ना रहया
सेवक लखमीचन्द का कहया मेरी ज्यान करियो,
समझणियां पै दया भगवान करियो।।
एक दिन रानी भगवान की पूजा को चली तो अपनी बेटी को कहने लगी कि बेटी मैं मन्दिर में जा रही हूं। भगवान की पूजा करके अभी आ जाती हूं। तुम तब तक घर पर ही रहना। इस बात को सुनकर मीराबाई ने क्या कहा-
मैं भी चलूंगी तेरे साथ मैं री मेरी मां,
श्री ठाकुर जी के पूजणे का री चा।।टेक।।
मेरा भी भगवान मै री मोह सै,
ह्रदय मैं चसी ज्ञान की री लौ सै,
भक्ति तै हो सै भगवान की लागें ता।।
भक्ति इसा प्रेम का रस हो,
हरी कीर्तन करे तै री जस हो,
मन भी बस हो तै आवागमन मिटज्या।।
भक्ति करकै दाग नै री धोल्यू,
ज्ञान रूप का रास्ता री टोहल्यूं,
राजी होल्यूं श्री कृष्ण के री गुण गा।।
लखमीचन्द नै सहज समझादो,
गुरु की घूंटी ज्ञान की प्यादो,
बली तै लगादो, डोलै अधम में म्हारी नावै।।
मीरा कहती है कि अब तो मैं भी भगवान की भक्ति ही करूंगी। मीरा अपनी मां से क्या जानना चाहती हैं-
न्यू तै बतादे माता मेरी री,
हमारे पति कौन हुए।।टेक।।
मैं भजन करूं दिन निस के,
प्याले पीऊंगी भक्ति रस के,
मैं किसके चरण की चेरी री,
हमारे पति कौन हुए।।
कृष्ण की भक्ति में आनन्द,
कटज्यां जन्म-मरण के फन्द
एक बर बन्द करी फेर टेरी री,
हमारे पति कौन हुए।।
मनै ना कायदे तै घटणा सै,
मेरा दिल एक जगह डटणा सै,
हरी रटणा से शाम सवेरी,
हमारे पति कौन हुए।।
लखमीचन्द कहै और गति के,
लक्षण चाहिए जती-सती के,
कैसे बिना पति के या बेटी तेरी री,
हमारे पति कौन हुए।।
मीरा फिर प्रार्थना करती है-
बन्धन काट मुरारी यम के,
बन्धन काट मुरारी।।टेक।।
गज और ग्राह लडै जल भीतर,
लड़त-लड़त गज हारी,
गज के कारण प्रभु पैदल धाए छोड़ गरूड़ असवारी।।
तुम्हीं तो मेरे वैध धनन्तर,
तुम्हीं हो मूल पनसारी,
तुम्हें छोड़कर कहां चली जां किसे दिखाऊं नारि*।।
मोहे विषय जो आन सताए,
देत महा दुख भारी,
या वेदन प्रभू मिटती नाहीं बिना जी दया तुम्हारी।।
सब सन्तन मिल करैं आरती,
लिजो खबर हमारी
मीरां दास चरण कवल की हरी चरणों बलिहारी।।
(नारि:-नाड़ी)
अब अपनी बेटी की जिद देखकर माता ने सोचा कि भगवान श्रीकृष्ण तो सब के ही पति हैं वही तुम्हारे पति हैं। अब मीराबाई भगवान श्रीकृष्ण को ही अपना पति मानकर उनकी आरती उतारती है-
मीराबाई प्रभु जी थारे प्रेम मैं आनन्द,
हे गोबिन्द श्री गोबिन्द आनन्द कन्द हे गोबिन्द।।टेक।।
वृन्दावन में धेनु चरैया,
कालीदेह मै नाग नथैया,
प्रभू बंशी के बजैया कन्हैया, थारी चाल मन्द-मन्द।।
मैं थारे गुणों की कब तक करूं बड़ाई,
भामासुर पै करी थी चढ़ाई,
तनै गोपनी छुटाई जो थी कैद के मैं बन्द।।
थारे गुण गावैं ध्यावैं ऋषि मुनि,
वे पार गए जिनकी थारे चरणन में धुनि,
तनै द्रोपदी की टेर सुनी काट दिये फन्द।।
लखमीचन्द प्रभु दास तिहारे,
गवाल बाल गोकुल के सारे,
वे ओरै धोरै तारे तुम हो बीच के मै चन्द।।
सुबह-सुबह मीरा बाई भजन करती है-
उठो उठो हे सखी लगो हरी के भजन में।।टेक।।
जिन नै ईश्वर की माला टेरी,
उन बन्दा नै मोक्ष भतेरी,
दोनू बखता शाम सवेरी एक बार दिन मैं।।
भगती का ढंग निराला,
सखी उन बंदा का मुंह काला
जिनके हाथ के मैं माला और पाप रहै मन में।।
सखी भगती सै चीज इसी,
पार हुए जिनके मन बसी,
जैसे सप्त ऋषि चमकै गगन मैं।।
सखी क्यों डूबो सो पढ गुण कै,
फिर पछताओगी सिर धुण कै,
लखमीचन्द साज नै सुण कै उठैं लोर सी बदन मैं।।
दोनों मां बेटी भगवान की पूजा पाठ करके अपने घर आ जाती हैं। अब मीरां नित्य नियम से मन्दिर में जाने लग गई। एक बनडा जिसकी शादी थी मन्दिर में घुड़चढ़ी के समय गया तब वहां की जो औरत थी वह उस लड़के के साथ गीत गाती हुई चल रही थी। उन औरतों का क्या गीत था-
आइयो री लुगाइयो गाइयो गीत,
आज महारै घुड़चढ़ी रतनकवार की।।टेक।।
मैं आई सूं तुम्हें बुलाणे,
कदे फेर देती फिरो उल्हाणे,
हो सै धर्म पुरणे की जीत,
जो चाली आवै चाल संसार की।।
करणा चाहिए कदीमी जो कर्म,
बरतों रीत धार कै शर्म,
घटज्यां धर्म तजे तै प्रीत,
इज्जत कम होज्या नर नार की।।
कंवर बोलै जब फूल झड़ैं सैं,
जुल्फ नागिन की तरह लड़ै सैं,
सारी पड़ैं सैं बरतणी हे रीत,
जो दुनिया दीन व्यवहार की।।
लखमीचन्द बात कहै सही,
बीतैगा कर्म लिखा सो वही,
थोड़ी रही घणी गई बीत,
भक्ति करलो नै कृष्ण मुरार की।।
जिस समय लड़के को सेहरा बान्धा गया तो औरतों ने सेहरे के समय क्या गीत गाया-
तेरी सूरत पै कुर्बान हो,
नारंगी सेहरे वाले।।टेक।।
सखी गावैं बाजा बाजै,
सिर पै स्वर्ण छत्र विराजै,
सिर साजै ध्वजा निशान हो,
हुशियार बछेरे वाले।।
आगै दोस्त प्यारे चारू लक के,
जितने साथी तुम्हारे संग के.
सुण बांके छैल जवान हो,
उजले चिकने चेहरे वाले।।
रूप सुथरा वर्णन करूं कैसे,
काली जुल्फ लटक री ऐसे,
जैसे खेल रहे फन तान हो,
काले नाग सपेरे वाले।।
ये छन्द लखमीचन्द नै धरे,
हम तनै देख प्रेम में भरे,
तेरे मुख मै देसी पान हो,
परिवार घनेरे वाले।।
मीरा प्रार्थना में क्या कहती है-
कृष्ण मुरारी म्हारी बेदना नै मेट,
अर्ज करूं सूं थारे पायां के मैं लेट।।टेक।।
बिन्धयाा भौमासुर बुरे ध्यान मैं,
भिनक पड़ी थी कन्हैया के कान मैं,
राखदी जिहान मैं, मकान के मै फेट।।
एक ब्राह्मण होता फिरै था खवार,
सौंप दिये माया के भण्डार,
सुदामा जी के यार और मिश्रानी जी के जेठ।।
श्याम सुन्दर काला बनकै,
लगो मेरे हृदय में माला बनकै,
पाण्डवां का रखवाला बनकै मेट दे अलसेट।।
कहै लखमीचन्द थारे गुण गाऊं,
प्रभु जी दमदम पै रोज मनाउं,
तुमनै और के दिखाऊं अपना पाड़ कै नै पेट।।
मीराबाई की सखी चम्पा थी। उसकी शादी हो गई थी वह अपनी सुसराल गई थी। जब वह नौ-दस महीने के बाद वापिस अपनी मां के घर आई तो अपनी सखी मीराबाई से मिलने गई। दोनों प्रेम से मिली। चम्पा से मीराबाई क्या कहने लगी-
सासरै गई थी हे चम्पा,
सासू न के काम लिया,
पांच सात दस महीने हो लिये,
आवण का ना नाम लिया।।टेक।।
आड़ै सौ-सौ सुख झेल्या करती,
आपस मैं मन मेल्या करती,
सब सखियां मैं खेल्या करती,
उड़ै क्यूकर दिल थाम लिया।।
आई सै घणें दिनां में पीहर में,
के तेरी लग्न लगी सही वर में,
हे सासू के घर में रह कै,
के बेटा बेटी जाम लिया।।
आई बहुत दिनां में चलकै,
बोलै फूल कंवल ज्यूं खिलकै,
साजन के जोड़े मैं मिलकै,
कितना कै भोग आराम लिया।।
लखमीचन्द कह करूं के जिकर मैं,
उल्टा चढ़ग्या सांस शिखर मैं,
सब सखियां नै तेरे फिकर मैं,
फूक बदन का चाम लिया।।
मीराबाई की बात सुनकर चम्पा ने क्या जवाब दिया-
आया करती याद जब थी पिया जी के देश,
हे मीरां तेरे नाम नै मैं रटूं थी हमेश।।टेक।।
तेरे बारे में बहुत लड़ी मैं,
बाबत आवण के झगड़ी मैं,
मिल लेती दो चार घड़ी मैं,
मेरी एक चली ना पेश।।
तू सै अकलमन्द घणी चातर,
बणी जाणूं इन्द्र सभा की पातर,
मीरा तेरे मिलन की खातिर,
तन मैं ओटे घणे कलेश।।
मैं बस करदी कर्म गती नै,
एक जगह पै जमा मति नै,
मनैं आनन्द लिया प्याया दूध पति नै,
करकै हूरां कैसा भेष।।
लखमीचन्द रट रही सुबह शाम नै,
समझ पति श्री गंगा किसे धाम नै,
म्हारा जोड़ा मिला दिया राम नै,
जैसे पार्वती और महेश।।
मीरा कहती है-
मेरा ध्यान पती, मेरी ज्यान पति, भगवान पति,
थारी रटन मेरे मन मैं।।टेक।।
पति तेरा ध्यान प्रेम तैं धरया,
मेरा सब तरियां मन भरया,
निराकार पति, घरां बहार पति,
करया प्यार पति, तेरा सुण कै पल छन मैं।।
मैं कायदे तै ना घटूं,
परण तै हरगिज भी ना हटूं,
रटूं नाम पति, स्वर्ग धाम पति,
सुबह शाम पति, हजार बार दिन में।।
सब झगड़े कर दिए बन्द,
काट दो जन्म-मरण के फन्द,
नन्द लाल पति, गोपाल पति,
फिलहाल पति, तेरी जोत मेरे तन में।।
लखमीचन्द हरी गुण गाओ,
सदा सतगुरू के दर्शन पाओ,
आओ चलो पति, मत टलो पति,
न्यू मिलो पति, जैसे ध्रुव नै मिले थे बण मैं।।
मीरा कहने लगी कि बहन चम्पा तुमने ये बात क्या कही कि मैं प्याया करती दूध पति नै। चम्पा की बात सुनकर मीरां भी कृष्ण को दूध पिलाया करती एक दिन राजा मीरां से पूछने लगे कि क्या भगवान तुम्हारा दूध स्वीकार करते हैं। मीरां ने कहा कि मैं तो रोजाना पिलाकर आती हूं तो राजा ने कहा कि आज मुझे भी देखना है। भगवान रोजाना मीरां का दूध स्वीकार किया करते, परन्तु उस दिन वह दूध ज्यों का त्यों ही रखा रहा। तब मीरा भगवान के सामने कैसे स्तुति करती है-
थारे रटे तै इस दुनिया के पाप नष्ट हों सारे,
दया करो मुझ दासी पै तुम दूध पीओ पिया प्यारे।।टेक।।
चित की चिन्ता मन की ममता अलग छांटने वाले,
लगी लोलता लहर प्रेम की झाल डाटने वाले,
पति का प्यार प्रेम से करती पाप काटने वाले,
भाव से भजन करूं भय भन्जन आनन्द बांटने वाले,
ब्रह्मा रूप विश्व के करता थारे रट कै पां चुचकारे।।
साजन संशय दूर करो सुबह-शाम सूं दासी तेरी,
दिलबर दया करो दिल से रहूं प्राण पति की चेरी,
प्राणनाथ करो नजर मेहर की आत्म तत्व से टेरी,
चित की चून्दड़ी तार चमकती थारे चरणां मै गेरी,
सर्वव्यापक साकार ब्रह्मा निराकार जगत से न्यारे।।
पृथ्वी, जल और पवन अग्न में साकार दरसाये,
सूर्य चन्द्रमा गगन बिजली में ज्योति ब्रह्मा बताये,
चक्षु ग्रहण सरोत्र बाणी रस शुद्ध ब्रह्मा कहाये,
16 कला सतलोक प्राणपति निराकार गुण गाये,
मिलो तै मोक्ष हुए, नहीं तो ऋषि मुनि, लाख जतन कर हारे।।
दंस उंगल ब्रह्माण्ड दिशा दस खण्ड और द्वीप पति जी,
सुक्ष्म और अस्थूल कार्य कारण रूप पति जी,
स्वर्ग अंतरिक्ष नरक अन्धेरा छाया धूप पति जी,
एक मानसिंह का दास थारा सेवक बेकूफ पति जी,
गुरु लखमीचन्द की भी टेर सुनो, प्रभु बड़े-बड़े पापी तारे।।
राजा मिड़त के देखते ही देखते दूध का पता नहीं चला कि कहां चला गया। राजा ने सोचा कि मेरी बेटी का सच्चा ध्यान और सही लग्न लगी हुई और क्या कहने लगे-
एक ठिकाणैं मनचित करकै,
बेटी का विश्वास देख्या,
मन्दिर में नहीं दिवा बाती,
ईश्वर का प्रकाश देख्या।।टेक।।
कित तै आया कितै गया ना,
इतना आनन्द कदे भी सहया ना,
कुछ बीर मर्द मै भेद रहया ना,
करकै खूब तलाश देख्या।।
सच्चा परमपरे केसा धाम,
जिसका दुनियां रटती नाम
सत-चित-आनन्द श्याम आज,
नजर से खास देख्या।।
सच्चा तेज मय रंग छाया,
हे ईश्वर तेरी अदभुत माया,
फेर बेटी की तरफ लखाया,
भक्त ब्रह्मा का दास देख्या।।
लखमीचन्द नै के बेरा था सगत का,
दर्शन होणां था अगम अगत का,
वो सच्चा सर्जनहार जगत का,
खास आश के पास देख्या।।
मीरा बाई अपनी सखियों के साथ तालाब पर नहाने जाती है-
जितणी सखी सब प्रेम की प्यारी,
कोए ब्याही और कोए कवारी
सवा पहर के तड़कै सारी,
नाहण तला पै जाया करती।।टेक।।
भजन करण में सबका फायदा,
जाणै ऊंच नीच का कायदा,
राधा कृष्ण के नाम गिणा कै,
औम की भक्ति ठीक जणा कै,
हरे हरे कीटेक बणाकै,
गोबिन्द के गुण गाया करती।।
जम रही एक ठिकाणै नीत,
सबकी बड़ी प्रेम की प्रीत
गावैं गीत रेल सी देकै,
प्रेम के जल में तबीयत भेकै,
गंगा जमना का ना ले कै,
मलमल गोते लाया करती।।
करकै भंडारे का बर्त,
मावस पूर्णमासी की शर्त,
नेम टेम से ब्रत कमाकै,
अपना दिल कपटी समझाकै,
गऊ, ब्राह्मण संत जिमाकै,
पाछै भोजन खाया करती।।
सुबह स्नान करण के टेम,
पीछै तिलक चढावै नित नेम,
लखमीचन्द कह प्रेम जगा कै,
गुरु चरणों की तरफ निघां कै,
आपस मैं समान मंगा कै,
हंस-हंस भोग लगाया करती।।
अब मन्दिर से बाहर निकली तो मीरा ने देखा कि तला के दूसरे किनारे पर शिकारी बैठे हैं और दूसरी तरफ मृग जल पी रहे हैं तो मीरां उन शिकारियों को क्या कहती है-
कौण मृग मारण नै रे त्यार,
आडै हुक्म नहीं मेरे बाप का जी।।टेक।।
या सै मेरे पिता की शिक्षा,
मिलै मंगते भूख्या नै भिक्षा,
जीव की रक्षा चित मैं धारै,
जब फन्द कटैगा, तीनूं ताप का जी।।
जले कड़वी नजर लखाओ मत,
चिल्ले पै तीर चढाओ मत,
पाणी पीवती नै सताओ मत डार,
ना तै दंड मिलैगा इस पाप का जी।।
या ईश्वर की चीज रूखाली,
बड़ी दया दृष्टि करकै पाली,
गाली खावोगे दो चार,
कौण नगर घर आप का जी।।
लखमीचन्द यम के दूत पकड़ करैं आगै,
बता इनके आगे तै कित भागै,
लागै तेरै यमदूतां की मार,
कोण रूक्का सुणैगा विलाप का जी।।
जब शिकारियों ने मीरा की आवाज सुनी तो वह अपनी सुध बुध भूल गए तथा हाथों से हथियार झूटकर नीचे गिर गए। वे मीरा को ही देखते रहे-
भूलगे हथियार दोनों मीरां कान्हीं देखण लागे,
देखकै रूप उसका शिकारी दहका खागे।।टेक।।
शान्ति मैं चन्द्रमा केसी श्यान,
तेजी मैं सुबह-शाम केसा भान,
और दिनां न्यून लिकडै थे सूरज भगवान,
आज चाणचक न्यून आगे।।
ज्ञानी पुरुष ज्ञान करैं थे,
सब कृष्ण का ध्यान करैं थे,
एक ओड़ नै अस्नान करैं थे,
साधू सन्त और मोड़े नागे।।
सखी तला के ऊपर कै फिरती,
जाणूं जल पै मुरगाई तरती,
जिसके घर में बासा करती,
उस माणस के भाग जागे।।
लखमीचन्द गुरु चरण गहेंगे,
इब हम चुपके नहीं रहेंगे,
जाकै अपणे राजा तै कहैंगे,
चलो उदयपुर भागे-भागे।।
वह शिकारी उदयपुर के राणा के शिकारी थे। उन्होंने जाकर राणा के सामने सभी समाचार कह सुनाया-
दो नयनों के तीर चलैं थे,
एक निशाना खाली कोन्या,
यहां तक आ लिये गिरते पड़ते,
सोधी तलक सम्भाली कोन्या।।टेक।।
म्हारी थारे चरण बीच गुजर सै,
रचने वाला अजर अमर सै,
ईब तलक वाहे सकल नजर सै,
एक तिल पर भी हाली कोन्या।।
ताखड़ी नीवैं ज्यूं बोझ तोलण की,
इसी लचक पडै थी डोलण की,
मिश्री भरी जबां बोलण की,
अमृत तै कम प्याली कोन्या।।
बिसर ना था चाल चलण मै,
मन मोह लिया नजर मिलन मैं,
कसर ना देखी चमन खिलण मैं,
पास बाग का माली कोन्या।।
लखमीचन्द नै आश दर्श की,
सबसे ज्यादा बात हर्ष की,
राजा मिड़क कै बेटी 18 वर्ष की,
ब्याही सगाई और घाली कोन्या।।
राणा मीरा के पिता को पत्र लिखता है-
जिसकै बेटी घरां श्याणी,
उसनै नीदं किसी आणी,
चाहिये रोटी भी ना खाणी,
रानी डूबगी कती।।टेक।।
शिकारी नै हूर तला पै फेटी,
भूप नै रीत जगत की मेटी,
बेटी किसकै भरोसै जाई,
तनै या इब तक कोन्या ब्याही,
मीराबाई जिसी लुगाई,
बताई जोर की सती।।
इस लड़की नै ब्यादे मेरै,
और के या द्रव कमावैगी तेरै,
गेरै इज्जत मै मल मूत्र,
मतना दिए बात का उत्तर,
करकै म्हारे गेल्यां सुत्र
पुत्र जन्मैगी जती।।
इसा ना सूं मैं गाली बकदूं,
सहम मै ओछी मन्दी तकदूं,
लिखदूं चिटठी लेकै जाईये,
राजा पाछै भोजन खाइये,
कुछ पुण्य मैं पैसा लाइये,
चाहिये टोहवणा पति।।
या भोगैगी ऐश आनन्द नै,
ओढैगी ब्याह शादी के कन्ध नै,
माला लखमीचन्द नै टेरी,
अर्जी चिट्ठी मैं लिख गेरी,
लागै धर्मराज घर फेरी,
तेरी होगी के गति।।
दूसरी चिट्ठी राजा मृतभूप के नाम लिखता है। उस चिट्ठी का मजबून क्या था-
श्याणी बेटी घरां कंवारी
तेरे कुल कै लाणा होगा,
मात-पिता सिर भार चढै
फेर कडै ठिकाणा होगा।।टेक।।
श्याणी बेटी घरां राखरा
ध्यान कडै फिररा सै,
इतना भारी घडा पाप का
क्यों ठाडा भररया सै,
पाप रूप का बान्ध भरोटा
क्यों सिर पै धररया सै,
घर वर टोहकै ब्याह देणी थी
क्यों जिवता मररया सै,
भाईयां की पंचायत जुडै उडै तनै शरमाणा होगा।।
इसनै जन्म लिया गर्भ तै
या खुद भगवान नहीं सै,
समय पै आकै कुकर्म रचदे
क्यूं बेईमान नहीं सै,
साधू मोडे़ घरां पड़े रहै
तनै कुछ पहचान नहीं सै,
टुकड़े खा-खा पेट पालता
तनै पूर्ण ज्ञान नहीं सै,
कराण फैसला धर्मराज घर सबनै जाणा होगा।।
बड़े-2 ऋषि भागगे
डरकै विषय काम तै,
ये जब चाहवैं चाहे जिसनै खोदें
त्रिया घर और गाम तै,
सब रजपूति भय मानै
मेरे उदयपुरी नाम तै,
इस लड़की नै ब्याहदे मेरै
और के मिलैगा राम तै,
चिट्ठी देकै ब्राह्मण भेज्या तू समझाणा होगा।।
लखमीचन्द जैसा लिखा कलम से
वैसा पास करूंगा,
कन्यादान दे राजी हो कै
मैं पूर्ण आश करूंगा,
नहीं तै तेरा गढ़ तोड़ण का
कोए ढंग तलाश करूंगा,
तेरे गाम किले गढ़ कोठयां का
एक छन्न मैं नाश करूंगा,
कै तै डोला दे राजी तै, ना फेर धिंगताणां होगा।।
एक ब्राह्मण को बुलाकर चिट्ठी देकर सब समझा दिया तथा उस ब्राह्मण ने वह चिट्ठी जाकर मृतभूप को दे दी। चिटठी पढ़कर राजा अपनी रानी से क्या कहता है-
उदयपुर तै चिट्ठी आगी बात कहण की ना,
महारे मैं श्रद्धा इसे बोल सहण की ना।।टेक।।
श्याणी बेटी घरां राख कै सिल छाती पै धरली,
मीराबाई मेरी बेटी तू होतेयें क्यों ना मरगी,
ईब बज्जर केसी छाती करली खैर रहण की ना।।
बेटी के सत्संग योग का न्यूं दुख भरणा होगा,
और जतन ना ठाकुर जी बस थाराए शरणा होगा,
इब स्याहमी होकै मरणा होगा टाल फहण की ना।।
जब तै सुणी सै डोला दे दे जां मरया शरमां,
पर धन ऊपर जी ललचावै सौदे अब अपने कर्मां,
एक चकोर के भटके तै चन्द्रमा की कोर गहण की ना।।
लखमीचन्द सदा बस रहते सतगुर जी के ज्ञान कै,
मेरे मन में न्यू आवै लिख भेजूं बेशक लड़ले आण कै,
शर्म ल्याहज उस बेईमान कै किसे की बेटी बाहण की ना।।
अब राजा की बात सुनकर रानी क्या कहती है-
कुछ डर ना सै पिया जगत का ब्योहार,
मैं तै अपणी बेटी नै सूं ब्याोहण नै त्या र।।टेक।।
चाहिए बात धर्म की कहणी,
चाहे पडो तन पै विपता सहणी,
श्याएणी बेटी कंवारी रहणी,
बडे शर्म की कार।।
दुनियां न्यूं बेटी नै ब्याहती,
बेटी पिता का शुकर मनाती,
जैसे स्वर्ग मै गए थे ययाति,
जिसकै धेवते थे चार।।
ऋषि जुरतकार घूमता फिरया,
उसनै ध्याान अपने पितरों का धरया,
नागनी जुरतकारी को वरया,
बेडा आस्तिक नै करया,
मामा नाना जी का पार।।
सच्ची कार करे तै सती,
पिता पति सुत बिन दुख हो अती,
स्त्री की गति
हो सै पति के आधार।।
लखमीचन्द ज्ञान की टक्कर,
बीर न तै कुछ ना चाहता मक्कर,
यो तै लगरया सै चक्कर,
आवागमन का संसार।।
रानी राजा को क्या कहती है-
मीरा का भी कुछ ध्यान सै हो सुण साजन मेरे,
या होरी सै ब्यावण जोग।।टेक।।
मैं बोलू सू बणकै ढेठी,
मनै तै एक जन्मी थी जेटी,
क्यों तनै रीत जगत की मेटी,
जिनकै बेटी घरां जवान सै, न्यूं कहैं बड़े बडेरे
रहै माणस मरे केसा सोग।।
सजन मेरे क्यों डूबै, गुण पढ़कै,
बात मै ना कहती बढ चढ कै,
जगत में कन्यादान से बढ़कै,
और नहीं पुण्यदान सै, दे बेटी नै फेरे
ना तै हसैंगे जगत के लोग।।
पीले भक्ति रस का प्याला,
रटले हरी नाम की माला,
जुणसा धर्म गृहस्थी आला,
जो ना समझै के इंसान सै,
ना तै फेर पशु भतेरे,
तू रहा आन्नदी भोग।।
मानसिंह गुरू प्रेम की बाणी,
लखमीचन्द तनै कोन्या जाणी,
न्यूं बतलावै थे राजा रानी,
जिनकै सच्चे गुरू का ज्ञान सै,
उनके दूर होवैं अन्धेंरे,
कटैं पाप नष्ट सब रोग।।
राजा रानी से क्या कहता है-
बीरां आला चाल चलण ना,
याहे बात एक खोटी देखी,
हाथ के मै माला,
साधू बाणे के मैं लोटी देखी।।टेक।।
मुख से रटन लगी हरी हर की,
जमीं पै कुशा जगांह बिस्तर की,
तोल में केवल 15 सर की,
आंख दो मोटी-मोटी देखी,
पिंडी पै पडै थी झोल सवा गज की चोटी देखी।।
गुण भक्ति की बात चल री थी,
शब्द में एक आवाज मिल री थी,
इकतारे में घलरी थी हरे बांस की सोटी देखी,
भूरी-भूरी आंगली ढाई इंच से भी छोटी देखी।।
साधु सन्त पड़े थे सारे,
सखियां के भी फिरै थे लंगारे,
तुम्बे और इकतारे साधु सन्ता की लंगोटी देखी,
खुलरे थे भंडारे हलवा-पुरियां की रोटी देखी।।
लखमीचन्द कह प्रेम जाग रहया,
मन पक्षी की तरह भाग रहा,
चीते की ज्यों लंक लाग रहा, मर्दां आली पोटी देखी,
दुनियां के पदार्थां तै करड़ी घीटी-घोटी देखी।।
अब मीरा की सखियां मीरा को क्या कहती है-
मीरा आज्या बान बैठले
पिया जी की प्यारी होज्या,
सब बात की जाण पटै जब
सासरे की त्यारी होज्या।।टेक।।
के फायदे फैल करे तै,
जाण तनै पटैगी सैल करे तै,
अपने पिया की टहल करे तै,
क्यूकर धर्म की हारी होज्या,
पति की आत्मा शुद्ध करण नै,
तू गंगाजल की झारी होज्या।।
कदे खोलै कदे नेत्र बोचै,
एकली तरहां मीन की लोचै,
इब तै मीरा न्यूं सोचै सै,
सब झगड़े तै न्यारी होज्या,
हवा बुरी सै अकल बिगड़ज्या,
नूण बराबर खारी होज्या।।
अपने पति के संग रहणा,
आनन्द सभी तरहां का सहणा,
लाड करूं ले पहर ले गहणा,
अब तू साथण म्हारी होज्या,
सासु के पायां में पड़े तै,
सफल जिन्दगी सारी होज्या।।
लखमीचन्द शर्म पै जमज्या,
सच्चे नेम कर्म पै जमज्या,
जो पुरुष स्त्री धर्म पै जमज्या,
मुक्ति का अधिकारी होज्या,
योगी केसी गति सति की,
जो सत से पति की पुजारी होज्या।।
मीरा की सखियां और क्या कहती हैं-
मीराबाई ब्याह करवाले
बान तेल में नहाया करिये,
पांच सात दिन ब्याह के रहज्यां
हंस बनवाड़े खाया करिये।।टेक।।
हो कै सच्ची नार पति की,
रहकै आज्ञाकार पति की,
बण ताबेदार पती की,
दिन और रात हंसाया करिए।।
बरतिए सब धन मेवा करकै,
पार लगाईये खेवा करकै,
सास नणद की सेवा करकै,
सुती भी ना ठाया करिये।।
आडै रह जमीं पै लेटी,
तनै क्यूं रीत जगत की मेटी,
जण साजन घर बेटा-बेटी,
गोदी बीच खिलाया करिये।।
कहे की ले मान अकल की खोई,
ना माचज्यागी बिदगाई,
करकै पति की रोज रसोई,
पंखा ढोल जिमाया करिये।।
माईचन्द कहैं हंस खिलकै,
इब तू जाइए सजन घर चलकै,
बीरां की टोली में मिलकै,
गीत उमंग के गाया करिये।।
अब मीरा अपनी मां को क्या कहती है-
ब्याह शादी की नहीं जरुरत परम शान्ति मन मैं,
तेरी बेटी की ज्ञान ध्यान से ल्य हुई हरि भजन मैं।।टेक।।
कर्म करया माणस का हरगिज नही टलैगा,
पाप पुन करया बन्दे की हरदम साथ चलैगा,
बिन सतसंग उपदेश धर्म बिन गल में झाड़ घलैगा,
ज्ञान रूप की अग्नि बिन ना कर्म का ढेर जलैगा,
भजन करे तै राम मिलैगा घरां रहो चाहे बन मैं।।
हरि भक्त की रक्षा तै खुद कृष्ण मुरारी करै सैं,
जो सच्चे दिल से रटा करैं सै पूर्ण प्यार करै सैं,
काम,क्रोध,मद,लोभ की आशा सब नर नार करैं सैं,
मनै सब तरियां मन मार लिया इब के तकरार करैं सैं,
छोड़ दिया दुनियां का धन्धा हुआ ज्ञान चान्दना तन में।।
पुरुष स्त्री एक भाव करें, जब एक आत्मा जरजया,
विषय वासना उन बन्दां की, सौ-सौ कोस डिगरज्या,
धर्म और ज्ञान चलैं जिन्दगी संग, के ल्याया के धरज्याद,
मनै तजदिये हार सिंगार उपाधि, सब तरियां मन भरज्या,
भूल कै माणस फंसैं जाल में फूल कै माया धन मैं।।
मनुष्य पशु पक्षी कीड़े मैं, वो एक आत्मा रखते,
कुत्ते काग चण्डाल वृक्ष में ऋषि महात्मा लखते,
वृद्ध तरण और जन्म मरण, कदे नहीं खात्मा तकते,
पवन अग्न जल धरण गगन, फल फूल पात मैं पकते,
कहैं लखमीचन्द कृष्ण जगत मैं, जगत श्री कृष्ण मैं।।
रागनी-
मीराबाई नाम हूर का,
वा भजनां की लाड़ी देखी,
शीशे बरगा गात चमकणा,
तन पै भगमा साड़ी देखी॥टेक।।
हूर के मोटे मोटे नयना,
तुलसी की माला नित का गहना,
पिंजरे के मैं रुकरी मैंना,
दोनों बन्द किवाड़ी देखी,
खोलण आला पास नहीं,
न्यूं कर्मां की माड़ी देखी।।
पार्वती आला भेष नहीं था,
धोरै उड़ै महेश नहीं था,
हाली का उड़ै लेश नहीं था,
सन्नी सांटा नाड़ी देखी,
कात पछेला और पणिहारी,
धोरै धरी कुल्हाड़ी देखी।।
लिखणे आला अजर अमर था,
लिखणिंया मैं सही गुमर था,
कोहणियां तक का पीताम्बर था,
दोनों भुजा उघाड़ी देखी,
ओम नाम नैं रट रही थी,
एक माला धरी अगाड़ी देखी।।
दुनिया में दस दिन का मेला,
फेर उड़ज्यागा हंस अकेला,
गुरु मानसिह का लखमीचन्द चेला,
खिली हुई फुलवाड़ी देखी,
गाणा बजाणा आता कोन्यां,
घणी दुनिया मुहं पाडी देखी।।
अब मीरा क्या कहती है-
मात पिता नै धर्म छोड़ दिया महाराणां तै डर कै,
पति का प्रेम भुलावण लागे क्यों धिंगताणा करकै।।टेक।।
मैं संग थी मेरी माता के मेरी पूजा बीच निगाह थी,
एक बनड़ा आया मन्दिर पूजण बारात सजी संग जा थी,
मैं बोली यो कौण कित जा समझावणियां मां थी,
वा बोली यू बनड़ी ब्याहवै जिसनै पति की चाह थी,
मैं बोली मेरा कौण पति झट हाथ लगाया गिरधर कै।।
ब्राह्मण,क्षत्री,वैश्य,शुद्र नै कर्म जाणना चाहिए,
कर्म तै न्यारी चाल चलै तै भ्रम जाणना चाहिए
अपणा कूढा हो ठाडा हो तै, नरम जाणना चाहिए,
आदमदेह मैं जन्म धार कै धर्म जाणना चाहिए
ना तै कलू बीच मैं पछताओगे खुले मुखेरे चरकै।।
धर्म छुटाणा चाहो तै के यमपुर का गौरा सै,
लेह-देह लेह-देह मार पीट हो जब कित धर धोरा सै,
महाराणा नैं हांगा करकै धन गरीबां का चोरया सै,
पलटन फौज रसाले का उसकै सहम नशा होरया सै,
पहलम तै के जाण नहीं थी प्याउं दूध कटोरे भरकै।।
इसी कार तै दुनिया के मां चोर और जार करैं सैं,
मैं झूठी उस महाराणा का फेर क्यों इतबार करैं सैं,
मात-पिता बेटी का संकल्प एक ही बार करैं सैं,
सती बीर के दो-दो बालम कोढ़ त्यवाहर करैं सैं,
लखमीचन्द कहै मेरे भजन का होगा फैंसला हर कै।।
अपनी प्यारी बेटी की बात सुनकर मां कहने लगी कि बेटी अब तुम समझदार और जवान हो गई हो। तुम्हारे पिता जी अब तुम्हारे विवाह का इन्तजाम कर रहे हैं। अब तुम अपने सादे वस्त्र उतार दो और सास के घर जाने के लिए तैयार हो जाओ। मीराबाई अपनी मां को क्या जवाब देती है-
मीरा दासी भगवन की री मां,
गैरां की गैल खन्दावै मतन्या।।टेक।।
मां तनैं कहूं जोड़ के हाथ,
मेरा दुख पाया कोमल गात,
तू जाणनिया बात मेरे मन की री मां,
दुनियां के लोग हंसावै मतन्या।।
बता दे कुणसा अवसर चूकी,
मारी चोट जिगर मैं दुखी,
मैं भूखी ना जर धन की री मां,
अण दोषी कै दोष लगावै मतन्या।।
मन्दिर मै सब सखियां थी पास,
मैं तनै उड़ै भी जांच ली थी खास,
पिया जी की दास घणे दिन की री मां,
मेरा जलती का खून जलावै मतना।।
लखमीचन्द भजन मै लाग,
जाण कै क्यों फोड़े सै मेरे भाग,
या दुनिया सै नाग बिना फन की री मां,
तू सब की ढाल लहरावे मतना।।
अपनी सखियों की बात सुनकर मीरा क्या जवाब देती है-
मेरी पिया जी के चरणन मै लग्न लगी,
श्री ठाकुर जी के साथ,
उम्र भर प्रण निभाऊंगी।।टेक।।
सखी मेरी लग्न लगी हरि हर मैं,
सच्चे पति का प्रेम जिगर मै,
जब जोत मन्दिर के मैं जगण लगी,
वो करी प्रेम की बात,
ना भूलू चाहे मर जाऊंगी।।
के करणा सै लाल खिला कै,
मैं खुशी गोबिन्द के गुण गाकै,
मनै लोभ दिखाकै ठगन लगी,
थारी के बीरां की जात,
राहण दो ना सौ खोट बताऊंगी।।
मैं जति-पति की नार,
तुम झगड़ो सो बिना विचार,
सौ बार पिया जी के पगन लगी,
हाजिर कर लिया गात,
इबकै मै आंख चुराऊंगी।।
लखमीचन्द उठ देख जाग कै,
सतगुरु जी के पायां लाग कै,
जै मैं प्रण त्याग कै भगन लगी,
जां रूठ मेरे रघुनाथ,
फेर किस तरह मनाऊंगी।।
अब मीरा को डोले मै बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा और डोले में बैठते समय उसने भगवान श्री कृष्ण की तस्वीर भी छुपाकर अपने साथ रख ली। तब उसकी मां मीरा को क्या कहती है-
बेटा कर पाली बेटी, आज दिल तै तोड़ गेरी,
दुश्मन के आगै पेश चली ना मेरी।।टेक।।
और नहीं कोए लड़का-लड़की,
तू एक जणी थी जेठी,
लाल कणी-मणी दान दिया,
मनैं बणकै घणी ढेठी,
कित पेट पाड़कै मरज्यां बेटी,
करूं काया की ढेरी।।
फूली नहीं समावै थी,
जब सखियां मैं गाया करती,
सखी सहेली कट्ठी हो कै,
मन्दिर में जाया करती,
जिसनै दूध पिलाया करती,
वैहें रक्षा करैगे तेरी।।
मेरे लेखै परमेश्वर ठाकुर,
जो ओरां के लेखै पाथर सै,
तेरा पिता छिक लिया नाट कै,
जो अकलमन्द चातर सै,
ले लुकमा लाल तेरी खातिर सै,
क्यों नजर परे नै फेरी।।
लखमीचन्द मत कम करिये,
इज्जत मात-पिता के घर की,
मनै बान्दी देदी टहल करण नै,
बात नहीं डर की,
वे पार गये जिननै माला हर की रात दिनां टेरी।।
अब राणा मीराबाई को देखने की गर्ज से पर्दे को हटाता है। पर्दा हटाते ही उसको मीरा के दर्शन हुए। मीरा के रूप को देखकर राणा क्या कहता है-
पल्ला ठाकै देखण लाग्या
चीज कर्म के फेरे आली,
डोले के मैं बैठी देखी
चन्द्रमा से चेहरे आली।।टेक।।
बहुत से जन्म लें नाम धरण नै,
नर सच्चे ना तजैगें प्रण नै,
डांगर की कित श्रद्धा चरण नै,
तू दूब लटकरी झेरे आली।।
तू आज मनैं चीज कर्म कर पागी,
देख़ कै आनन्दी सी छागी,
गोरी तेरा रूप देख शरमागी,
जो घरां बोहड़िया मेरे आली।।
क्यों बोलण चालण तै डरती,
होले प्रीतम के संग भरती,
तेरे दोनों होठां पर कै फिरती,
लपलप जीभ गवेरे आली।।
मत बोलण चालण तै डरिये,
तु मनै देख प्रेम मै भरिये,
लखमीचन्द की रक्षा करिये,
री मन्सा देवी ननेरे आली।।
मीरा राणा को क्या कहती है-
म्हारे घर तै ठा लाया, मेरा लहणा भाई रे,
पर्दा उठाया के कुछ कहना भाई रे।।टेक।।
समझ कै बैठी सूं ईश्वर के धन्धे मैं,
फंसाये सै तै दिल फंसता ना काम गन्दे मैं,
चिड़ी मारी के फन्दे मै ना फहना भाई रे।।
तेरी बातां नै सुण-सुण कै जी मेरा डरया सै,
इतना भारी घड़ा पाप का क्यों ठाडा भरया सै,
पाछले डोले मैं धरया सै, मेरा गहणा भाई रे।।
दुनियां मैं के जीणा माणस नर्म का,
सिर पर तै दिये तार भरोटा भ्रम का,
लिखा जो कर्म का, दुख सुख सहणा भाई रे।।
लखमीचन्द मत भूलिए भगवान की अदा,
ना तै कोए दिन में देख लियो बन्जारा सा लदा,
इस दुनियां मै सदा सदा ना रहणा भाई रे।।
डोले से उतारने आई औरतों ने क्या कहा-
दुनियां में रूके रोले की बीर मीराबाई सै,
चालों री लुगाईयो देखैगे वा के-के लाई सै।।टेक।।
धन-धन म्हारे भाग इनै पांटेके आण कै,
कुणबा राजी होज्या जब चलै घूंघट ताण कै,
सब तै सुथरी जाण कै राजा नै ब्याही सै।।
तील रेशमी पहर रही, सिर पै हरी-भरी खेशी,
होठां पै पाना की लाली दांतां पै मेषी,
मीरा केसी इस दुनियां में ना और लुगाई सै।।
सौ बुगचां मैं तील रेशमी न्यारी धर री सै,
हीरे-पन्ने मोहर अशरफी चाला कर री सै,
100 डाल्या मैं भर री घणी मिठाई सै।।
लखमीचन्द नै कहैं बेकूफ, कसर आवाज की,
पुरजे ऊपर देखी जा अकल घड़ी साज की,
कुछ महारे महाराणां महाराज की तकदीर सवाई सै।।
मीरा बाई सबसे क्या कहती है-
बड़ी उमर की मात बराबर मेरी उमर के भाई,
बाल अवस्था बेटी के तुल, मां नै विधि बताई।।टेक।।
टूम ठेकरी गहणा वस्त्र सदा नहीं रहणा सै,
मनै पूजा करकै तिलक चढ़ा लिया या बिन्दी बैणा सै,
भजन कलंगी पति परमेश्वर का योहे सच्चा गहणा सै,
सत्संग ज्ञान विचार करो मेरे सतगुर का कहणा सै,
ना तै खेल कूदण मै जा जिन्दगी, के सदा का पट्टा ल्याई।।
काम देव और अहंकार की थारी आंख भरी ना लजती,
काम क्रोध मद लोभ की आस कदे ना तजती,
पति बिना ना प्रेम प्रजा की सहज तान ना बजती,
संशय का सुख त्याग सखी सच्चे सजन बिना ना सजती,
मनैं ज्ञान-विज्ञान पति के रंग मैं या साड़ी खूब रंगाई।।
सकल पदार्थ छोड़ जगत के दिल नै थमां रही सूं,
नाम सही कृष्ण सच्चे का हृदय जमा रही सूं,
प्राणनाथ के खाक चरण की तन में रमा रही सूं,
व्यापक पति,पति के अन्दर सबर से समा रही सूं
मैं तै न्यूं जाणूं थी भगतां का डेरा, थारै धन की भूख पाई।।
नहीं रंग रूप रहै एक सा ना सदा रहै जवानी,
सदा नही कोए निर्धन देख्या ना सदा राजा रानी,
सदा नहीं धनवान कोए सदा नहीं जिन्दगानी,
सदा नाम साई सच्चे का बाकी पवन रहै ना पानी,
लखमीचन्द दुख-सुख तै डर कै, कदे खल खाई ना भल आई।।
राणा क्या कहता है-
मेरा तेरे में हित सै गोरी, तेरा विघ्न में चित सै गोरी,
पत्थर में पति कित सै गोरी तेरै भूल घनेरी सै।।टेक।।
तेरे मात-पिता नै शिवासण करकै ब्याही,
पर उननै लखण कायदे नहीं सिखाई,
भाई कहण लगी ब्याहे वर नै,
दुख दे री सै तारा नर नै,
पती कहण लगी पात्थर नै, किसी डूबा ढेरी।।
अरै तेरे दुख दर्द नै भूने, दिन तै रात लागते दूने,
अरै सूने कुर्सी मेज तेरे बिन,
और क्याहें में ना हेज तेरे बिन,
चन्द्रमा के तेज तेरे बिन रात अन्धेरी।।
पति के संग में आनन्द सहणा,
परी मान ले राणा का कहना,
बन्ध कै रहणा धर्म आड़ कै, रै गोरी!
बिना पति कित लाड सै रै गोरी,
रांणा की ज्यान काड, रै गोरी! मुठी में ले रही।।
लखमीचन्द कहै प्रेम जगाले
मनै अपना सोच सगा ले,
लग्न लगाले ब्याहे वर पै,
क्यों ढेरी करै ज्यान पत्थर पै,
मेरे कहे की मान, सिर पै नाचै मौत बछेरी सै।।
राणा के कहने के बाद भी मीराबाई राणा को भाई ही कहती रही। राणा ने डोला चलता कर दिया और उदयपुर में आ पहुंचा। उदयपुर की औरत इन्तजार में थी वो डोले से मीरा को उतारने चली-
बरतणी पडै सैं रीत दुनियां व्यवहार की,
म्हारा छैल बन्ना ल्याया
बड़ी बेटी साहूकार की।।टेक।।
मीरा जी की उमर जवान है,
किसी रस की भरी जबान सै,
पड़ै बिजली केसा साया,
जाणूं धार तलवार की।।
इस मीरा गौरी के भाग सै,
कुछ पूर्बले कर्म की लाग सै,
अच्छा जोड़ी का वर पाया,
बनड़ी दासी भरतार की।।
पवन केसे झोके लागैं,
केले केसे पात मैं,
गोरेपन में कसर नहीं है,
मीरा जी के गात मैं,
आच्छा चीकणा बताया,
जाणूं कच्ची कली अनार की।।
दुनियां का रासा चला,
जाणू किसके गल फांसा घला,
इसमैं के लखमीचन्द उम्हाया
या चहल बाजी दिन चार की।।
जब नगर की औरतें डोले के पास आई तो राणा उन औरतों से क्या कहने लगा-
रै बस टाल करो बतलावण की,
इसनै चुपकी नै ले चाओ महल मैं।।टेक।।
इसका ध्यान कहीं-कहीं सै,
म्हारी इसकी जोट सही है,
इब घड़ी नहीं सै शरमावण की,
हरदम बान्दी रहैंगी टहल मै।।
मांगै सो चीज खुवा दो,
गर्म पाणी तै खूब नुहा दो,
सुवा दो जगह लोट लगावण की,
बिस्तर रूई कैसे पहल मै।।
या मुसकिल घड़ी आण कै सधी,
तुम भूल जाओ ना कदी,
विधि समझा दयो टूम बजावण की,
जैसे नारे जुड़ चले दो बहल मैं।।
चीज सब ठाकै महल में धरो,
इसनै देख प्रेम मैं भरो,
बात करो ब्याह करवाण की,
इस मीरा गोरी की गैल में।।
लखमीचन्द नहीं किसे तै घाट,
करै ना कदे किसे की काट,
बाट देखियो म्हारी आवण की,
जब हम दोनों चले जां सैल मैं।।
सभी औरत मीराबाई को गीत गाती हुई डोले से उतार लाती हैं। घर के अन्दर ले जाकर पीढा बिछा दिया और मीरा को पीढे पर बैठा दिया। मीरा के कीर्तन का समय हो गया। उसने कीर्तन शुरु कर दिया-
आओ सखी आओ सखी आओ सखी हे,
धर्म मंडली मैं।।टेक।।
हे सखी भजन करो हर जी के,
अलग होज्यांगे सब डर जी के,
सच्चे दिल में गुण गिरधर जी के, गाओ सखी,
गाओ सखी गाओ सखी हे, धर्म मंडली मै।।
मेरा चित गिरधर जी तै प्रसन्न,
चौकस दया करैं श्री कृष्ण,
दिल का दूर अन्धेरा दर्शन, पाओ सखी
पाओ सखी पाओ सखी हे, धर्म मंडली में।।
किसे की ना जमना बक-बक पै,
दुनियां मरती अपणे हक पै,
चरण बणां मस्तक पै, लाओ सखी
लाओ सखी लाओ सखी हे, धर्म मंडली मै।।
लखीमचन्द कहै इसे ढंग मैं,
प्रेम का मटना मल कै अंग मै,
मनै इस गिरधर जी के संग मैं, ब्याहो हे सखी,
ब्याहो सखी, ब्याहो सखी हे, धर्म मंडली में।।
सभी नगर की औरत मीरा का रंग रूप देखकर सब प्रशंसा करती हैं और मीरां को समझाती हैं कि पति चाहे जैसा भी (अन्धां, लंगड़ा, लूला, काणां, काला) मिल जाये तो भी स्त्री ने भगवान का सुकर मनाणां चाहिये। अब वह औरत मीरा को कैसे समझा रही हैं-
नई बहू नै ब्याह चाले में सौ सुख चाहया करैं सैं,
भले घरां के सास सुसर सौ बानी लाया करें सै।।टेक।।
जिस दिन पिता सगाई करदे, हो लक्षण बीर सती का,
सच्चे दिल से भजन करूं, कद दर्शन करूं पति का,
किसे भागवान नै साजन मिलज्या, मूर्ख मूढ मति का,
किसे भागवान नै दर्शन होज्यां, उजले मर्द जती का,
लंगड़े लूले काणे काले का, बहू शुकर मनाया करैं सैं।।
जै मूर्ख भी पलै पडज्या, कहैं अकलबन्द चातर,
तेरी बुद्वि पै पडगे बान्दी, क्यूं सौ-सौ मण के पाथर,
दुनियां कहै आया करै बहू अगत चलावण खातर,
ओढ पहर कै इसी लागै जाणू इन्द्र सभा की पातर,
राजघंरा मैं बान्दी हों सैं के बहू कमाया करैं सैं।।
लंगड़ी लूली काणी हो जै बहू गात की बोदी,
कै तै सासू आप सम्भालै ना सुसरा घर का मोदी,
ओढण पहरण खाण पीण की जै नहीं बहू नै सोधी,
वा तै घर के दूर दलद्र करदे जब लाल खिलावै गोदी,
जै फूहड़ भी गल मैं घलज्या तै के घर तै तहाया करैं सैं।।
लखमीचन्द कहै पार बसावै बहू सूती नहीं जगाणी चाहिए,
नई बहू नै ब्याह चाले मैं ताता पाणी चाहिए,
घी मीठे तै नाक चढावै जब समझाणी चाहिए,
सोच समझ कै राह रस्ते सिर लखण लाणी चाहिए,
फेर दस दिन पाछै बहु बड़ां के पैर दबाया करैं सैं।।
अब राणा ने क्या कहता है-
रेत के मैं रलरी मीरा,
जाणूं बादल के मैं चांद चमकै,
पहर कै दिखादे मीरा,
जो आया कमीज सिम कै।।टेक।।
होज्या प्रीतम की भक्ति मैं,
मिलैगा ज्ञान टहल करती मैं,
ना तै बीझण सा लागै गृहस्थी मैं,
ज्यूं लकड़ी गला करै खम कै।।
इब होज्या प्रीतम के रंग मैं,
जब कुछ बात बणैगी ढंग मैं,
ना तै रह कै मोडयां के संग मैं,
कित मरैगी बणां में भ्रम कै।।
के फायदा बुरे फैल मैं,
आडै तू करिये मौज महल में,
सौ-सौ बान्दी रहैं टहल में,
बैठ पिलंग पै जमकै।।
गुरु लखमीचन्द मन की पा ज्यागी,
फेर आनन्दी सी छा ज्यागी,
तेरे चेहरे पै लाली आ ज्यागी,
खाया कर अंगूर नम कै।।
अब मीरा क्या कहती है-
सत का संग असत्य का त्यागन,
नेम का नौ लख हार मेरा,
एक तुलसी की माला कर मैं,
यो सच्चा श्रृंगार मेरा।।टेक।।
मैं के किसे गैरां के खटकूं सूं,
झटको मत अधम बीच लटकूं सूं,
यार की खातर मै भटकूं सूं,
और मेरी खातर यार मेरा।।
मै राजी दुख-सुख खे कै,
चित भक्ती में भे कै,
पति नै मन्दिर में दर्शन दे कै,
हड़ लिया दोष विकार मेरा।।
गम गंगा नीर नहाण नै,
मुक्ति मक्खन मिलै खाण नै,
सीधा रस्ता परम परे जाण नै,
यू के लागै संसार मेरा।।
मैं बालम के रटूं नाम नै,
के थारी अकल हडी राम नैं,
मनै जाण दो परम धाम नैं,
जड़ै बसै दिलदार मेरा।।
लखीमचन्द रस घूंटण आले,
यें बन्ध ना सैं टूटण आले
मतन्या झगड़ो लूटण आले,
हौण दयो बेड़ा पार मेरा।।
घर की औरतें मुंह दिखाई घालने की रस्म करती हैं-
तेरी आश मै खड़ी सैं मीरा दर्शन दे,
पांच असरफी हथफूल मुंह दिखाई ले।।टेक।।
हम सभी खड़ी डयौले के पास,
सब नै सै तेरे मिलण की ख्यास,
तेरी आश पै रणवास हरे कृष्ण हरे।।
हम तनै देखैं और पिछाणैं,
सारी तेरे तै मिलण की ठाणै,
तेरे दर्शनां नैं जाणैं, हे मीरा! रामजी केसे।।
भले का राम करैगा भला,
म्हारी तेरे तै मिलण की सलाह,
तनै मैल्ला कर लिया पल्ला बैरण आसुंओं तै भे।।
लखीमचन्द कहै बुरी के तजन बिन,
त्रिया सजती नहीं सजन बिन,
राम के भजन बिन छोरी जीवणा भी के।।
अब राणा क्या कहता है-
सब तै कहूं सूं समझाकै कदे कोड़ी काणी करदो,
लत्ते चाल पराह मीरा नै खुद पटरानी करदो।।टेक।।
जो पीहर में बरता करती,
मीरा का बन्द कायदा करदो,
पति बिना कदे बात करै ना,
इसा ठीक इरादा करदो,
या भी के जाणै ब्याही गई थी,
सेवा हद से ज्यादा करदो,
तमाम जिन्दगी नहीं भूलूं,
जै इस मोकै फायदा करदो,
सब मीरां तै बोल-बोल कै मीठी बाणी करदो।।
तुम नै सारियां नै राखूंगा,
लाडली इसी कसम खालूंगा,
सब मिल कै कहा करो पूरा,
तुम गंगाजी न्हालूंगा,
उक चूक जै रहैगी बात में,
इब धर्म ठालूंगा,
मीरा ठीक बणादी तै मैं
छाती कै लालूंगा,
बान्दी या तेरी बात नैं मानैगी,
कदे खांड का पाणी करदो।।
बीरबानी सै इसनै लखण ला दियो
शेर बघेरा जर्ख नहीं सै,
इसकी और थारी बातां मै देण आला
कोए दर्क नहीं सै,
और कोई तुम बतलाइयो
मेरे दिल पै हर्क नहीं सै,
कै तै मैं जाणूं कै तुम जाणों
तिलभर का फर्क नहीं सै,
मानैं तै कुछ बात मनालो
ना तै पक्की स्याणी करदो।।
जिन नै नहीं बरतणे आवैं,
उनके खोये धन जाया करैं सै,
फिर हाथ मसल कै रोयें जा
कित-कित मन जाया करैं सैं,
इसनै के बेरा या और ढंग में थी
बहू भी बण जाया करैं सैं,
लखीमचन्द कहै जाण पाटते
लग सन जाया करैं सैं,
कै तै राजी तै मानज्या
ना तै कती कट खाणी करदो।।
मीरा श्री कृष्ण भगवन की मूर्ति लेती है और उसकी पूजा आराधना करने लगती है। कैसे-
एक बर्तन में पाणी भरकै,
गोरा-गोरा गात पवित्र करकै,
ठाकुर जी की मूर्ति धरकै,
पूजा करण लगी मीरा जी।।टेक।।
तेरे आगै ढेरी कर दयूं तन की,
मनैं तै चाहना ना घर धन की,
अपणे साजन की गैल सजूंगी,
सोवत जागत मैं तनैं भजूंगी,
प्राण जाओ ना नेम तजूंगी,
न्यूं बांधण प्रण लगी मीरा जी।।
चुपकी थी चन्दा केसी सूरत,
और क्यांहए की नहीं थी जरुरत,
एक मूरत ल्याई सू गैल ल्हकको कै,
घर कुणबे तै न्यारी हो कै,
चरणांब्रत बणां पां धो कै,
न्यूं घूंटी भरण लगी मीरा जी।।
समझ कै परम परे के सा धाम,
रटूंगी सच्चे दिल से नाम,
काम करूं जल दूध छाण कै,
पर घर देख्या नहीं था आण कै,
ठाकुर नै भगवान जाण कै,
पिया जी के चरण लगी मीरा जी।।
पिया जी की भक्ति में आनन्द,
कटज्या जन्म-मरण के फन्द,
लखमीचन्द कह प्रेम जगा कै,
सतगुरु जी की तरफ निघां कै,
हरि कीर्तन हरि गुण गा कै,
कष्ट नै हरण लगी मीरा जी।।
आगे मीरा क्या कहती है-
बेशक तै सिर काट लिए मेरै मरण का टाला ना सै,
भगतां के दिल लग्या दुखावण तनै उतपणे का चा सै।।टेक।।
बड़ी उमर के मात पिता मेरी उमर के भाई,
छोटी उमर के बेटा-बेटी मां नै विधि बताई,
गैरत खा कै मरज्यांगी के थूकैं लोग लुगाई,
मैं बोलू भाई कह कै तू करता घणी अंघाई,
जै उसा किसा नेग बतादे ना इसी बेहुदी मां सै।।
इसी नहीं सू चिड़ी मारां के फन्दे में घिरज्यांगी,
इसी नहीं सू तेरे बोलण तै सहज बात डरज्यांगी,
ईश्वर कै न्याय नहीं मिलै जै बचना तै फिरज्यांगी,
जाल फला कै पकड़ लई जै पल भर मैं मरज्यांगी,
मैं तै भाई कह कै बोलूं तू बहू कहै किस भा सै।।
खोटी कार करणिया बन्दा हृदया पाट मरैं सै,
ठाडे सर काटण की खातर जी तै घाट मरैं सै,
तेरे किसे इस दुनियां मैं कितने लाख मरैं सैं,
जै विषय वासना का भूखा तै तेरै रानी 60 मरैं सैं,
तेरी मलिन बुद्धि हुई पड़ी तू बिन तोल्या अन्न खा सै।।
कौन गुरू मात-पिता और कौन सुत दारा सै,
कौन किसके गल घल कै मरता कौन किसतै न्यारा सै,
नाम श्री सच्चे कृष्ण का हर का नाम प्यारा सै,
मेरा सही नेग गिरवर धारी तै झूठा जग सारा सै,
लखमीचन्द कहै अगत सम्भालो या दुनिया चाली जा सै।।
बान्दी मीरा को मनाती है-
भाई पणे का नेग छोड़ दे याहे कसूती बात
जोड़े में मिल चाल्या करिये पिया जी के साथ।।टेक।।
बान्दी:-
हम राजी तेरा दर्जा शिखर करे तै,
क्यूं नाक चढावै जिकर करे तै,
रात दिन का फिकर करे तै, फूक लेगी गात।।
मीरा:-
बान्दी क्यों झूठा जंग झोवै सै,
क्यूं प्यारी बण कै मन मोहवै सै,
जो जाण कै पूंजी खोवै सै, वो रोया करै दिन रात।।
बान्दी:-
बणा देगा सब की सरदार,
वो ना तेरे कहे तै बाहर,
मीरा करले नै सिंगार, पहर कै नो बुल्कां की नाथ।।
मीरा:-
डाट री एक ठिकाणै दम नै,
शील शान्ति खींच कै गम नै,
हार सिंगार बणया रहो तमनै, यूं हमनै कुरड़ी का खात।।
बान्दी:-
हे मीरा एक दिन जी लिकड़ज्यागा,
मन पक्षी पास पकड़ज्यागा
हे यू सुकड़ज्यागा तन केले केसा पात।।
मीरा:-
रहूंगी प्राण पति की प्यारी,
मैं नहीं कहे प्रण तै हारी,
मेरे पति सैं गिरवर धारी, ना झूठ बोलती बात।।
बान्दी:-
और सब झगड़े करदे बन्द,
पिया की भक्ति मैं आनन्द,
लखमीचन्द गुरु के आगै जोड़ लिये हाथ।।
मीरा:-
लखमीचन्द का कहणा सही सै,
यो सतसंग तै कहीं कहीं सै,
मेरे अन्तःकरण में भेद नहीं सै, बीर मर्द का गात।।
बान्दी आगे क्या कहती है-
इसी भक्तिनी हरीचरण की
दास भी हो जाया करै,
किसी समय में पूर्ण सच्ची
आश भी हो जाया करै।।टेक।।
के-के थ्यावै सै सहम मरे तै,
चित भक्ति मैं ध्यान धरे तै,
सच्चे दिल तै भजन करें तै,
ख्यास भी हो जाया करै।।
ध्रुव भगत नै बालेपण में,
दर्शन होगे थे कोकला बन मैं,
रटते-रटते हरी भजन में,
पास भी हो जाया करें।।
मनैं इब भेद पाटया सै जिताए तै,
मनु स्मृति के बताए तै,
किसे की बहू बेटी सताए तै,
घर का नाश भी हो जाया करै।।
सच्चा कहना सै जगत का,
ख्याल कुछ चाहिए अगम अगत का,
लग्न करे तै भगवान भगत का
खास भी हो जाया करैं।।
लखमीचन्द भूल मत मद मैं,
रहणा चाहिए काल की हद में,
ज्ञान के स्वरूप से मोक्ष के पद मैं,
बास भी हो जाया करै।।
रागनी
अर्जी लिख के तेरे नाम की
धर्मराज कै गेरी चाहिए
तू बेशक अधर्म पै जमज्याा
सफल कमाई मेरी चाहिए।।टेक।।
साधु सन्त हो ज्ञान करण नै,
गऊ माता सम्मान करण नै,
विप्र जिमां कै दान करण नै,
धन माया की ढेरी चाहिए।।
गुण ज्ञान की बात होण में,
संत संगियों का साथ होण मैं,
पुन दान खैरात होण मैं,
साधु-संत की फेरी चाहिए।।
तू तै आनन्द मौज लूटज्या,
मैं डरती कदे मेरा भरम फूटज्या।,
जै मीरा सती का नेम टूटज्या,
प्रलय किसी अन्धेरी चाहिए।।
लखमीचन्द भगवान नै बतावै तू पात्थर,
गहणे का लोभ दिखावै घणा चातर,
व्यवहार के डर से परदे की खातिर,
धोती एक भतेरी चाहिए।।