किस्सा अंजना-पवन

एक समय की बात है रतनपुरी नगरी में राजा विद्यासागर राज किया करते। उनकी रानी का नाम केतुमती था। इनका पुत्र पवन एक शूरवीर योद्धा था। पवन रंग का सांवला था परन्तु उसकी शोर्यगाथा सभी रियासतों में फैली हुई थी। महेन्द्रपुर नगरी के राजा महेंद्र सिंह की लड़की अंजना पवन की हमउम्र थी और वह पवन के शोर्य से प्रभावित थी। अंजना की माँ हृदवेगा अंजना के विवाह के लिए अलग अलग राज्यों के राजकुमारों के फोटो मंगवा कर अंजना को दिखाती है। रानी हृदवेगा चाहती थी के अंजना राजकुमार उद्य्त्पर्व को चुने क्यूंकि वह बहुत ही रूपवान था, लेकिन अंजना पवन को अपना जीवन साथी चुनती है। दोनों तरफ से सहमती हो जाती है तथा विवाह की तैयारी शुरू हो जाती हैं। पवन को बान बैठाया जाता है।

चाची ताई अगड़ पड़ोसन गीत गुवावण लागी
पवन भूप नै बान बैठा कै नायण नुहावण लागी।टेक

हल्दी तेल और जौ का आटा मिला कै बटना तैयार हुया
इत्र की खुशबों गेरी न्यू बहुत सा खुशबुदार हुया
ब्याह शादी की करी तैयारी कठ्ठा सब परिवार हुया
सती अंजना नै ब्याहण खातिर जती पवन कुमार हुया
नेग जोग की भाभी सारी नैन मटकावण लागी।

ओले पां मैं दई बांध राखड़ी सौले हाथ मैं नाला
स्याही घाली आख्या कै म्हां कट्या रूप का चाला
लोहे का दिया गज हाथ मैं होग्या ब्योत निराला
एक सोने की हंसली गल मैं जणुं ले रया चांद उजाला
बनड़ी लायक यो सुथरा बनड़ा न्यूं बतलावण लागी।

राजघरां का राज कंवर कुछ शादी का रंग न्यारा
बनड़े सेती करैं मस्करी वो सबनै लागै प्यारा
नुह्वा धवा कै बान बैठा कै काम बणा दिया सारा
बनड़े का रंग न्यारा चमकै जैसे भान दोफारा
छोटी बड़ी भाभी सारी मुंह कैड लखावण लागी।

ब्याह के रंग में हुई मग्न सब भरग्या प्रेम गात मैं
जिसा बनड़ा उसी बनड़ी पावै कोन्या फर्क बात मैं
भाई मित्र चाचा ताऊ जांगे सभी साथ मैं
लत्ते चाल पहर कै नये होंगे त्यार बरात मैं
कहै मेहर सिंह आधी रात नै बरात चढ़ावण लागी।

और पवन की बारात की तैयारी कैसे की जाती है-

जब बरात चढ़ा कै करी थी चलण की त्यारी।टेक

बाप दादा चाचा ताऊ सिंगर कै ने होगे त्यार
राजी राजी बोल रहे आपस मैं करैं थे प्यार
बनड़े ही का रूप ऐसा देखण आवै बारम्बार
बनड़ै ही कै धोरै बैठ्या बनड़े ही का छोटा भाई
सुनहरी था ताज सिर पै चवर डोलै खड्या नाई
बटेऊ नै मोड़ बांध्या भाभी घालण आगी स्याई
हो सै नेग चुची प्यावण का फिर आगी झट महतारी।

बाप दादा चाचा ताऊ जांगे सभी साथ मैं
पील सोत बलता चालै नाई जी के हाथ मैं
झमा झम होण लागी पवन की बारात मैं
पालकी मैं छोरा बैठ्या जुड़कै कहार चाले
फुलझड़ी छुटण लागी छुटते अनार चाले
बर्छी भाले और कटारी हो कै नै होश्यार चाले
सेहरे उपर तेग तणी चमकै थी नग्न कटारी।

सांग तमासे गाजे बाजे रंडियो का नाच गाणा
भरे थे उमंग मैं सारे सजा हुआ ठीक बाणा
राजा की बरात मैं इन चीजां का आणा जाणा
दिन सा निकाल दिया रोशनी बणाई ऐसी
नींद भूख प्यास नहीं रात्री जगाई ऐसी
पहुंचगी बरात ऐसी किसै कै ना आई ऐसी
चलते चलते दिन लिकड़ आया मानी कोन्या हारी।

महेन्द्रगढ़ कै धोरै आगी लाई नहीं जरा वार
बरात कै अगाड़ी पाया बेटी आला खड़ा त्यार।
जनवासे मैं ठहरा दिये कोली भर-भर करें प्यार
साबन तेल धरया पाया बारी बारी न्हाण लागें
दुधां के गिलास आगे मिठाई भी खाण लागे
नौकर चाकर त्यार खड़े बिस्तरें बिछाण लागे
मेहर सिंह वर देखण खातिर नगरी झुकगी सारी।

उधर दूसरी तरफ भी खुशी का माहोल था। अंजना बाग मे सखियों के साथ घुमने जाती है। कैसे-

बागां कै म्हां सैल करण नै चलो सहेली सारी
बसंत माला, चन्द्रमणी थारे संग मैं राजदुलारी।टेक

कई कई कदम धरे आगे नै नोलखा बाग खड्या था
रौसे कै म्हां फिरै घूमती एक बरवा नजर पड्या था
बरवे नीचे देखै अंजना एक प्रेम का फूल झड्या था
फूल नै ठा के अंजना बोली जोबन का नाग लड्या था
या हालत होज्या माणस की तुम सुणो सहेली सारी।

कई कई लरजे लागैं उसकै केले केसे गात मैं
मिट्ठी मिट्ठी बाणी बोलैं मजा आवै बात मैं
हवा के म्हां हिलती दीखै पड़ती लरज पात मैं
बागां कै म्हां झूलण चालो घालो हाथ हाथ मैं
शहर नगर तै चलो लिकड़ कै जैसे ले रे हंस उडारी।

पाप पुन्य के तोलण खातिर यो धर्मराज का नरजा
एक बोलै थी एक फूल पै न्यारा न्यारा दरजा
तीन अवस्था हों जिन्दगी मैं कहती आवै प्रजा
धर्म कर्म नै जो जाणैं नहीं किसे बात मैं हरजा
जै तीन अवस्था खत्म बणैं तै ना बचती दुनियादारी।

मातपिता नै जन्म दिया हमनै बेरा पटणा चाहिए
आशा तृष्णा मिटै शरीर की दिल भी डटणा चाहिए
मेहर सिंह कहै अगत की खातिर कुछ हर भी रटणा चाहिए
ब्याह शादी मैं मिलकै नै कुछ रंग भी छटणा चाहिए
भले आदमी सदा करैं भलाई तज कै चोरी जारी।

बारात तय समय पर आती है। अंजना की सखी सहेली जब पवन को देखती हैं तो उसके सांवले रंग को देख कर अंजना को शादी से इंकार के लिए कहती हैं-

इसतै सुथरे और भतेरे तूं कित छोरयां के तोड़े मैं।
आच्छी कोन्या लागी अंजना पवन भूप के जोड़े मैं।टेक

अपणें हाथां आप करै सै अंजना मतकर चाला हे
पवन भूप मैं साठ कमी सैं करदे ब्याह का टाला हे
वो सै रात अंधेरी कैसा सै तूं ले रही चांद उजाला हे
तूं तै सै कती सफेद हंसणी वो बिल्कुल कागा काला हे
तूं संगमरमर की दुकड़ी सै वो पासंग फूटे रोड़े मैं।

न्यू सोचूं थी स्याणी सै पर तूं दाहुंएं हद करगी हे
कितना भूंडा वर छांट्या सै अंजना कति निस्तरगी हे
दुःख मैं साझा करण लागरी या म्हारै भी जरगी हे
न्यूं बूझूं सूं साच बता तू क्यां कै उपर मरगी हे
कोढ़ी दुखिया माक्खी भिनकै दाद खाज और फोड़े मैं।

तनै पढ़ी लिखी नै वरया नही वो उदयतपर्व एक छैल इसा
उसकी गैल घुमती फिरती करवाता जग की सैल इसा
सब क्यांहे की मौज रहती राजा का मिलता महल इसा
दासी बांदी टहल करती बेशक करिये फैल इसा
जितना चाहवै माल बरतती के सै हाथ सिकोड़े मैं।

इस मेहर सिंह गैल्यां जाकै गुजर करैगी जाटां मैं
सिर पै भरोटा गोडे टूटज्यां हूर आले की बांटां मैं
करै लामणी फांस चालज्यां हाथ फूटज्या कांटा मैं
होज्या वार ज्वारे नै तेरी खाल तार ले साट्यां मैं
तूं मैम साहब रह छीटम छींटा गोबर माट्टी चोड़े मैं।

अंजना उनकी बात नहीं मानती और कहती है की मैं पवन को अपना पति स्वीकार कर चुकी हूं और मेरे पिता जी ने मेरी इच्छा के अनुरूप मेरा पति चुना है। तो सखी सहेली क्या कहती हैं-

सै तेरे पिता की गलती, तेरी शक्ल पवन ते ना मिलती,
कुछ ना बर तेरा हे, तेरी अंजना जोड़ी ना मिली।टेक

तेरी बातां मैं ना गेरुं दर्क
सुरग नै छोड़ भाजगी नर्क
यो फर्क रात और दिन का
तूं खिलरी भान गगन का
जल्या पवण अंधेरा हे, तेरी अंजना जोड़ी ना मिली।

तूं म्हारे मैं सै लाल किरोड़ी
क्यूं शर्माकै गर्दन मोड़ी
तेरी बेशक आयु थोड़ी थी
तेरी गर्न्धव तैं जोड़ी थी
न्यू जी जलता मेरा हे, तेरी अंजना जोड़ी ना मिली।

हम तुम साथ रहे दिन रात
बाहण म्हारा दुःख पा रहया सै गात
या बात समझ मैं ना आती
तरे सैं दुःख सुख के साथी
मेरै दर्द घनेरा हे, तेरी अंजना जोड़ी ना मिली

तेरी करणी मैं पड़ग्या भंग
उड़ै हो ज्यागी तूं काफी तंग
मान ले मेहर सिंह का कहना
ना तै दुःख पावै मेरी बहना
यो गर्दिश का फेरा हे, तेरी अंजना जोड़ी ना मिली।

अंजना उनकी बातों को नजर अंदाज कर देती है। शादी सम्पन्न हो जाती है। डोली में बैठाते समय रानी हृदवेगा अपनी बेटी अंजना को क्या समझाती है-

आया जाया करिए बतलाया माया करिए,
कमाया खाया करिए, बेटी सासरे के बास मैं।टेक

तूं दगाबाज धोखे की भरी, तनै म्हारे संग मिल कै किसी करी
मेरी त्यारी होली न्यारी, तेरी मारी मरूं बिचारी, तेरी सासरे की त्यारी,
थारी फिरको धजा आकाश मैं।

ईब लग थी ज्यान भरोसै म्हारै, क्यूं ना आगे की बात बिचारै
थारै लाणा बाणा सै, आणा जाणा सै, याणा स्याणा सै,
रहिऐ सास ससुर के पास मैं।

थारी शर्म की मारी डरती, तबीयत देख देख कै घिरती
कुछ करती धरती रहिए, सुमर्ति फिरती रहिए हरति
फिरती रहिए बेटी ओम की तलास मैं,

तरी करणी मैं पडग्या भंग, सुण सुण कै हुआं बोलता तंग
मेहर सिंह हल बहाणा के, ल्याणा ले जाणा के, गाणा बजाणा के,
तेरा नाम खासम खास मैं।

बारात वापिस रतनपुरी में आ जाती है। घर परिवार की औरतें इक्कठी होकर बहू को डोले से उतारती हैं-

आज्या बहू तनै तारण आई, देर मत लाईये ।
जुड़गी सारी नार बाहर, डोले तै आईये ।।

बालक जवान बूढी सब आ रही,
गीत आनंद रंग के गा रही,
ये सारी मुंह देखणा चा रही, एकबै पल्ला ठाईये ।।

करम है सुख दुख का देवा,
सेवा से सदा मिलती मेवा,
सास ससुर व पति की सेवा, करकै सुख पाईये ।।

छौड़ दिये सब ख्याल भरम के,
साची बात कहण मै शरम के,
काम करकै धरम के , कुल कै बान्नी लाईये ।।

निहार रही सब एक एक अंग,
तेरा रूप देख कै हो रही दंग,
बणा रागनी जाट मेहर सिंह, लय सुर मै गाईये ।।

पवन को सखियों द्वारा कही गई बात चुभ जाती है वह अंजना को ताना देता है

कमरे में दस पांच सहेली बैठ कै बतलाई अक ना
करया सवाल जहर अमृत का या तकरार चलाई अक ना।टेक

थारे मैं तैं सखी कोण जो ब्याही अमृत घर देहली पै
इतणा बोझ टेकणा ना था ज्ञान ईश्क की बेली पै
खाऐ बिना कोए शख्श मरया ना चाहे धर दे जहर हथेली पै
तनै भी जोर जमाणा था अपणी सखी सहेली पै
तूं मनै बुरा बतावै थी तेरे पलै बंधी बुराई अक ना।

जिस दिन तै तेरी बात सुणी मेरे नाग गात मैं लड्या हुया
थारी बातां नै सुण रहया था कमरे आगै खड़या हुआ
मेरी आंख फरकती भूजा फड़कती मेरे माथे में बल पड़्या हुया
तू निर्मल गंगा जल बणगी मै पाणी लेट सडया हुया
चन्द्रमणी बनिये की लड़की सखीयां नै धमकाई अक ना।

तनै सेवा करणी चाहिए थी तूं पति की दास रही कोन्या
जहर अमृत के फंदे मैं साजन कै कदे फही कोन्या
अकलमन्द भरपूर ज्ञान मैं तनै सच्ची बात कही कोन्या
एक और सखी का जिक्र करूं मनै तेरे बारे मैं लही कोन्या
तूं मेरी खता बतावै थी ईब तेरी गलती पाई अक ना।

राजमहल का रैहणा छुट्या दुहागी महल में कर डेरा
लैम्प रोशनी कुछ ना दिखै दिन मैं घोर अंधेरा
अंजना तै दुहाग दे दिया नगरी नै पटग्या बेरा
मैं छत्री तेरी जात बीर की ना शीश काट लूं हे तेरा
जाट मेहर सिंह सोच समझ कै कर ली मनै समाई अक ना।

पवन आगे कहता है-

कुत्ता मार बणजारा रोया आज वाहे कहाणी बणगी।
मैं काला तूं भूरी थी आज क्यूकर राणी बणगी।टेक

सारे ऐब मेरे म्हां काढ़े फिर भी कोन्या सरया तनै
सुथरे छैल अमीर छोड़ कै क्यूं पवन आण कै बरया तनै
जिन्दगी भर ना आच्छा हो छाती मैं घा करया तनै
मेरे नाम पै बोली मारी मैं कती समझ लिया मरया तनै
तेरे बोल के कारण आज म्हारी खिंचा ताणी बणगी।

जो सोचै थी बणी नहीं तेरी रहगी बात अधूरी
ब्याह की टाल कर देती जै तूं थी पैज प्रण की पूरी
रंग रूप मैं घमंड करै तूं सै अक्ल की कम सहूरी
तेरे लेखै तो दुनियां काली तूं बणगी सब तै भूरी
कोए नहीं जोड़का मान्या तूं इसी सेठाणी बणगी।

शीश काटल्यूं ख्याल ईसा मेरे आवै सै मन कै म्हां
तेरी बोली का तीर लिकड़ग्या आर पार तन कै म्हां
ठा दी बांस तनै दुनियां मैं आग लगा कै धन कै म्हां
तनै भृगु आली लात मार दी जी लिकड़्या छन कै म्हां
बोली का यो मिल्या नतीजा तूं धक्के खाणी बणगी।

पवन भूप का हुक्म आज बणगी महल दुहागण
धोली साड़ी बास हाथ मैं उड़ा काग और कागण
बीर मर्द का मेल रह्या ना कित्त की बणी सुहागण
बिना पति तेरे न्यूएँ जांगे सुक्के सामण फागण
मेहर सिंह का दोष नहीं तेरी दुश्मन बाणी बणगी।

अंजना पवन को समझती है की बीती बातों का कोई फायदा नही है। आपको उन बातों को दिल से नहीं लगाना चाहिये-

जो पाछे का जिक्र करते उन बंद्यां की हार बणी
उजडैगें घर बीर मर्द की जित आपस मैं तकरार बणी।टेक

दबे हुए मुर्दे दबे रहाण दे क्यूं हटकै फेर उघाडै़
ब्याह होग्या म्हारी एक सलाह मत लाली नै पाड़ै
भीत बराबर कहै बीर नै क्यां पै नकशा झाड़ै
स्याणा होकै खा गलती क्यूं घर की बात बिगाड़ै
बात बतंगड़ बणा दई या मामूली सी कार बणी।

त्रिया हो संतान बेल दखे इस तै बंश चलाया जा
एक से दो-दो से चार न्यू कर कै जगत फलाया जा
या दुनियां हो सै आणी जाणी दो दिन का खेल खिलाया जा
बीर मर्द दुःख सुख के साथी न्यूं करकै मेल मिलाया जा
बिना बीर हो मर्द अधूरा मैं न्यू कर कै तेरी नार बणी।

मर्द छोड़ दे ब्याही नै तै होज्या जी नै रासा
अगड़ पड़ोसी हंसी करते देखैं लोग तमाशा
अपनी ईज्जत आप बिगाड़ै करद्यूं तोड़ खुलासा
बीर मर्द जब लड़ैं आपस मैं देगा कोण दिलासा
इब कै करदे माफ खता फेर रहल्यू ताबेदार बणी।

पूर्व में पीली पाटी ईब दिन लिकड़ण नै होरया सै
कोए फौजी गया जाग नींद तैं एकाधा कोए सौ रह्या सै
कोए तै बड़ग्या मोर्चां में कोए पहाड़ां मैं राह टोहर्या सै
मेहर सिंह ढंग देख देख अपणे कर्मां नै रो रह्या सै
बजग्या बिगुल लड़ाई का ये मुश्किल तै कली चार बणी।

पवन अंजना की बात को अनसुनी कर देता है। सखियों के मजाक को अपनी तौहीन समझ लेता है। बदला लेने के लिए अंजना को बारा साल का दुहाग दे देता है। अंजना क्या कहती है-

नई नवेली तै दुहाग दे दिया, हाल्या ना दिल तेरा ।
यो किसा खेल खिल्हाया, कोये खोट बता मेरा ।।

पहल्यां ए मन मै धारै रहया था, कोड करया चाला,
दुनिया सोच्चैगी अंजना नै तै, कोये काम करया कुढाला,
क्यूं दिखाया यो दिन काला, दुख का गल घाल्या घेरा ।।

मात पिता नै घणे रंग चाह तै, तेरे संग ब्याही थी,
सोच्या सब सुख मिलैंगे तेरै, ऐश अमीरी चाही थी,
के के अरमान ले कै आई थी, तनै भारी संकट गेरा ।।

सब क्याहें कै फांसी ला दी, किसी करी लीचार मैं,
अणहोई या आफ्फत गेरी, धंसा दी गऊ गार मैं,
पाप का पाला रहै हार मै, सदा बसै धरम का डेरा ।।

पिता कहै सै गावै मतना , मैं ना गावण तै छिकरयाह,
जाट मेहर सिंह वाहे बीतैगी, जो भाग मै लिखरयाह,
दो नावां पै पांह टिकरयाह, होगा मेरा के राह् ।।

अंजना अपने मन में क्या सोच विचार करती है

मेरी कुछ भी गलती कोन्या, ना काढया को मेरा खोट ।
पीहर के मै मौज करूं थी , सासरै गई किस्मत लोट ।।

इतनै बेटी रहै पीहर मै, इतनै रही रह किस्मत जाग,
हाँसै बोलै सखियां गेल्या, ना कोये चिंता ना कोये लाग,
जै मैं पड़कै मरूं महल तै ,पीहरियां कै लागै दाग,
तीज त्यौहार चले जा सूखे , मैं कागां गेल्या खेलूं फाग,
मेरे भोजन और पकवान छुटगे, मिलै खाण नै बासी रोट ।।

जो राणियां का हुया करै, वो कोन्या पीणा खाणा हे,
जिंदगी के दिन गिण गिण काटूं, हो रया सै धिंगताणा हे,
कूंडे भरे दही के धर दे, भाज भाज काग उडाणा हे,
कदे न्यून कदे न्यून ,पड़ै चारों कूणा जाणा हे,
लागी रहूं सूं भूखी प्यासी, सूखै कालजा पाटै रोट ।।

समझदार ले समध बात नै, पर मूरख का डर हो सै,
क्यूकर डटज्या झाल बदन की, जड़ै खींच सरासर हो सै,
उड़ै बसेबा हौवै ब्याही नार का, जड़ै सही स्याणा वर हो सै,
ना तै भतेरे रोते देखे गृहस्थी, ना जिंदगी ना मर हो सै,
माँ बेटी नै तील दे बणवा कै, लाकै घोटा पेमक घोट ।।

सारी दुनिया मौज करै सै, दुखी करण नै छांटी मैं,
रंग महल मेरे छुटवा कै , आड़ै ल्या कागां मै डाटी मैं,
पणमेसर कै होगा फैंसला, क्यू इज्जत मेरी मिलाई माटी मै,
करमां के अनुसार पडै भोगना, पाप पुन की घाटी मै,
बरोणे आला सारी जाणै सै, मेहर सिंह तेरी लिखै रिपोट।।

इस प्रकार ग्यारा साल का अरसा बीत जाता है। सावन के महीने में अंजना अपने पति पवन को याद करती है।

ठण्डी हवा चलै सामण की कामदेव ने जोर किया
ईच्छा पूरी करण की खातिर आओ सो मेरै याद पिया।टेक

प्रेम करण नै तबीयत चाही इच्छा पूरी हो मेरी
बिना पति के एक पल छन मैं तन की हो डुबा ढ़ेरी
मस्त हुई मैं जवान उम्र मैं इस जोबन का रंग ले री
आओ पति जी कहां चले गए या दासी याद करै तेरी
मैं याद करूं मेरा कष्ट मेट द्यो तुम बिन अब लगता नहीं जिया।
मैं पतिव्रता सती स्त्रिी धर्म कर्म जाणूं सारा
मैं पति के दिल में दिल राखूं सूं हरगिज ना होता न्यारा
अंगकी कली खिली मौसम पै जोश बदन मैं है न्यारा
मेरी सलाह कुछ प्रेम करण की हितचित से करो निस्तारा
तेरी अर्धांगिनी बणन की खातिर मेरी माता नै जन्म दिया।

मनुष्य पखेरु जीव जन्त सब काम के मारे मरते हैं
कामदेव है जबर जगत मैं मारे मारे फिरते हैं
जती मर्द और सती स्त्रिी सदा काम से डरते हैं
पर काम क्रोध मद लोभ मोह की आश हमेशा करते हैं
फिर अंजना नै हाथ जोड़ कै साजन को प्रणाम किया।

कामदेव की झाल बदन मैं मेरै कसूती जागै सै
एक ठिकाने दिल कोन्या मन पक्षी बण कै भागै सै
इस मोकै पै ऋतु दान सुत्या भाग न्यूं जागै सै
अकलमन्द ले समझ ईसारा मुर्ख कै के लागै सै
इस दुःख तै पार होण की खातिर मेहर सिंह रट राम लिया।

उधर पवन अपने पिता के कहे अनुसार युद्ध में गया हुआ था। एक रात को फौज आराम कर रही थी। पवन जाग रहा था। पवन और उसका मंत्री सोती हुई फौज की रक्षा करने के लिए पहरेदारी कर रहे थे। पवन को एक चकवी के रोने कि आवाज सुनाई देती है-

चकवे पंछी नै जुल्म करया, चकवी रो रो रूधन मचारी।
बियाबान बणखंड मै फिरै, चकवी चकवे की मारी ।।

इस चकवी का चकवा कितै जंगल मै रहता होगा,
किसे शिकारी का तीर लग्या हो , दुख नै सहता होगा,
अपणे घर नै क्यूकर चालूं, न्यूं मन मै कहता होगा,
चकवी प्यारी की याद मै, नीर आँख तै बहता होगा,
या कितै फंदे मै फंस कै, उनै हो री हो लाचारी ।।

इस चकवी का रूधन देख, मेरै गात उचाटी होगी,
मद जोबन की झाल अंजना ना क्यूकर डाटी होगी,
कामदेव नै जाग रात नै, करी तबियत खाटी होगी,
ग्यारां साल हो लिये उसकी तै, रेह रेह माटी होगी,
इब जा कै बेरा लेणा चाहिये, मेरै याहे समझ मै आरी ।।

ब्याह करवाकै के सुख देख्या, बरस बीत लिये ग्यारा,
अंजना आगी याद मेरै, मैं ब्होत घणा दुख पारया,
इस चकवी तै मनै ग्यान मिल्या, इब बंश चालज्या म्हारा,
करमां का डंड पडै भोगणा, भाग है न्यारा न्यारा,
पड़या दुख तो झेलणा होगा, के हल्का के भारी ।।

जाट मेहर सिंह मनै खढा खोदया था, यो खुद पाटणा होगा,
पिंजरे मै फंसाई थी मैना, वो फंद काटणा होगा,
दुहागी महल मै जाकै अंजना , का दुख बांटना होगा,
जोबन रूपी अमृत रस मनै, आज चाटना होगा,
इस पंछी की शिक्षा तै इब, चलै अगत बेल म्हारी ।।

उस दृश्य का आगे और कैसे जिक्र किया है कवि ने-

आधी रात परिन्दे बोले वा चकवी जंग झोवै थी
पहरे ऊपर पवन जागता फौज पड़ी सौवै थी।टेक

चकवी कहण लगी चकवे नै प्रेम जाल मैं फंसकै
ओम नाम नै भूल गये सब घरवासे मैं धंस कै
धर्म की चर्चा करणी चाहिए तलै राम कै बस कै
कुछ कहो बात त्रिया की जात ज्यूं रात कटै हंस हंस कै
मीठे बोल सुरीले बोलै वा चकवे नै मोहवै थी।

सही सांझ का कहरया सूं इब आ ली रात शिखर मै
चकवी आंख लागती कोन्या बैरण तेरे फिकर मैं
दो दिन का जीणा दुनियां मैं गर्दिश के चक्कर मैं
राजकुमार पवन का ल्या तेरे आगै करूं जिकर मैं
इसकी अंजना राणी कैद पड़ी दुःख अपणें नै रौवै थी।

बात कहण का मौका कोन्या वो चकवा फेर न्यू बोल्या
पाप जगत मैं फैल गये धरती का परदा डोल्या
पवन राज बैरी पै पड़ियों आज गजब का गोला
आंख मसलती वा चकवी रैहगी ना भेद बात का खोल्या
पाखंड कै म्हां फंस कै दुनियां सहम डले ढोवै थी।

हुई बात कहणें मैं चकवी नहीं दोष म्हारा सै
सन्ता के डेरे मैं यो पापी पवन राज आरह्या सै
गाम बरोना जाट मेहर सिंह लय सुर में गा रह्या सै
लखमीचन्द पै ज्ञान लिया न्यूं तम नै समझा रह्या सै
पतिव्रता सेवा करण लागगी जौ गंगा मैं बोवै थी।

 

चकवे चकवी की बातें सुनकर पवन का मन विचलित हो उठता है-

चकवा चकवी सुणें बोलते ध्यान भूप का फिरग्या
ग्यारा साल हुऐ अंजना तै फेटण नै जी करग्या।टेक

आधी रात बिरह की चर्चा मेरे गात नै फूकै
चकवे बिना चकवी सुन्नी न्यूं अंजना का दिल दूखै
काची कली बिना माली के खड़ी बाग मैं सूकै
धोला बाणा बांस हाथ मैं खड़ी महल पै कूकै
वा मरणें तै ना बिल्कुल चूकै जै अंजना का मन भरग्या।

ग्यारा साल होए कर री होगी उड़ै रुधन अंजना
मैली साड़ी मैं मलमल कैसी ढकरी होगी तन अंजना
बार त्यौहार नार के पति पै बिन साजन के वा अंजना
इन कागां मैं तंग हो ज्यागी एकली मेरे बिन वा अंजना
गिण गिण काटै दिन अंजना आज मैं पापी निस्तरग्या।

सती बीर नै मर्द त्याग दे या गलती सरा सरी सै
स्याणे माणस न्यूं कहेंगे देखो नै कोड करी सै
अंजना का ना दोष रत्ती भर सारी ए खता मेरी सै
धर्मराज कै चलै मुकदमा तै अंजना हूर बरी सै
मेरी भूल के कारण मंत्री मेरा लाल रेत मैं रलग्या।

आवै याद मेरे अंजना की हुई मुश्किल झाल थामणी
मामूली सी बात कै उपर करदी काल कामणी
भर्ती होण तै पहलम उसनै पहरे सूट जामणी
दो आडां का फेर धरया और कट्ठी करी लामणी
रो रो कै कहरी जाटणी कित जाट मेहर सिंह मरग्या।

चकवे और चकवी की बात सुनकर पवन को अहसास होता है की जब ये पक्षी एक दुसरे के बिन एक रात भी दूर नहीं रह सकते तो उस अंजना का क्या हाल होगा। इस बात का जिक्र पवन अपने मंत्री से करता है कैसे-

एक रात के बिछड़न तैं दो पक्षी कायल हो लिए
अंजना का मुंह देखे मंत्री ग्यारा साल हो लिए।टेक

शादी कर कै मुंह ना देख्या यो भी तै अन्याय सै
बात तलक भी बूझी कोन्या जबतै हुया ब्याह सै
क्यूकर अंजना डटती होगी साल बाहरवां जा सै
पक्षी तक भी प्रेम करै उड़ै अंजना का के राह सै
ना हांसी खेली पति के संग मैं जुल्म कमाल हो लिए।

अंजना ब्याही घणी सताई उसका मर्म दूखता होगा
रो रो कै आंख्यां का पाणी रोज सूखता होगा
ओढ़ण पहरण खाण पीण का टेम ऊकता होगा
सती बीर का जती मर्द बिना तौर टूटता होगा
ईब जाकै भरणे होंगे वे खाली ताल हो लिए।

मोहन माला हार नौलखा सारी चीज धरी सैं
तन कै ला कै देखी कोन्या दामण चीर हरी सै
जै मौके पै पाणी आजया समझो खूद हरी सै
छाई हरियाली कोए ना खाली सब की गोद भरी सैं
अंजना की साथ की सखियां कै दो दो लाल हो लिए।

दो रात फौज नै डाट मंत्री जांगा ब्याही धोरै
एक मिनट का पता नहीं मेरा काल शीश कै धोरै
पहलम तै मनै पता नहीं था ईब बंध्या प्रेम कै डोरै
कहै मेहर सिंह चौड़े मैं लुटग्या कालर कोरै
जो अंजना तै बचन भरे थे खत्म सवाल हो लिए।

आगे पवन क्या कहता है-

परिन्दे इतना प्रेम करैं उस अंजना के कै राह सैं।
दुःख की कैद पड़ी गौरी नै साल बाहरवां जा सैं।टेक

बेखता तै तकलीफ कोड़ दी,
मैनै एकदम प्रीत तोड़ दी,
ब्याह होते ब्याही छोड़ दी ,करया कोड़ अन्या सै।।

ईब के सुणांऊं जिकर मंत्री
पणमेशर का शुक्र मंत्री
बीर मर्द का फिकर मंत्री, समझणीयां नै खा सै।

काम बिगड़ लिया जोड़ तोड़ का
क्यूंकर धोऊं दाग खोड़ का
अंजना कै मेरी ओड़ का, छाती कै म्हां घा सै।

लिख्या कर्म का नहीं टलैगा
पाप धर्म सब गैल चलैगा
मुझ पापी नै नर्क मिलैगा, स्वर्ग बीच मैं वा सै।

ईब मौका सै बतलावण का
इसा बख्त फेर ना थ्यावण का
साज बाज पै गावण का, भाई मेहर सिंह नै चा सै।

पवन अंजना से मिलने के लिए चल पड़ता है। कवि ने कैसे दर्शाया है-

देख देख कै शरमाग्या ढंग दुनियादारी का
पवन भूप नै फोटू ले लिया उस अंजना प्यारी का।टेक

मेरे पिता ने गैर मुल्क की ली थी ओट लड़ाई
एक चकवे नै बैठ दरखत पै प्यार की बात चलाई
वा चकवी एक रात विछोह तै ब्होत घणी दुख पाई
फेर चकवे नै चकवी आगै म्हारी बात चलाई
टेम आखिरी आण लागग्या बखत सदा हारी का।

गैर मुल्क मैं करैं लड़ाई कोए साथी साथ नहीं सै
लिखि कर्म की नहीं टलैगी या माणस के हाथ नहीं सै
बहु नै छोड दे लड़ कै जिनकै होती जात जमात नहीं सै
मैनै अंजना के संग जो करी वा आच्छी बात नहीं सै
पवन भी घबराया लाग्या टैम हुआ इन्तजारी का।

चढ़ घोड़े पै चाल पड्या मंत्री तै प्रण करवाया था
एक रात एक दिन चल कै दुहाग महल मै आया था
बांदी नै वो भेद लाग्या उसनै जिक्र चलाया था
पवन सेती मिलणे का अंजना कै लग्या उम्हाया था
धोरै बैठ बूझन लाग्या हाल दिल की प्यारी का।

पक्षी भी बैठ डाल पै अपणा जिक्र चलावैं थे
हम पति पत्नी भी इस जिन्दगी मैं मिलने तक ना पावैं थे
बाप का हुकम मानना होगा न्यू पवन राज घबरावैं थे
मन की चाही कर कै नै वो चढ़ घोड़े पै जावैं थे
जाट मेहर सिंह चाल्या रण मै हुक्म बजावण ताबेदारी का।

पवन महल में जाकर क्या कहता है-

सोवण आली जागीये, मुलाकात करया चाहूं सूं।
एक बै मुंह तै बोलिये, दो बात करया चाहूं सूं।।

पाछली बात भूल कै राणी अपणा दिल समझाले,
डयोढी ऊपर पवन खड़ा, तू एब बाहर लखाले,
भीतर आणा चाहूं सूं ,तू दे कै बोल बुलाले,
टुक घड़ी बैठकै , दुख सुख की बतलाले,
तेरी और अपणी मैं पंचायत करया चाहूं सूं।।

पंचां के म्हा वचन भरे ,सूं तेरा मोदी मैं,
अपणे हाथां खेल बिगाड़या , हो कै बेशोधी मै,
और दूसरा क्यूं पड़ण लाग्या , औरां कि खोदी मै,
बेरा ना के लिख राखी, इस किस्मत बोदी मै,
ग्यारा साल बिछड़े होगे आज साथ करया चाहूं सूं।।

दई आत्मा मोस तेरी, खोस्या तेरा बसीणा,
राणी तै करी काग उडाणी, करकै कुढ़ा हीणा,
जिसकी बीर दुखी दुनिया मैं, उसका भी के जीणा,
तेरे तै बतलाये बिन , इब पाणी तक ना पीणा,
आज तै आगै सुखी जिंदगी की, शुरूआत करया चाहूं सूं।।

कहै जाट मेहर सिंह खता माफ कर, खतावार मैं तेरा,
तेरे बिन मनै इस जिंदगी मै, दिखै घोर अंधेरा,
बीर मरद न्यारे होज्यां, तै उजड़ होज्या डेरा,
खोल दिये दरवाजा राणी , हो लिया काल्य भतेरा,
तेरा मेरा सुपना था जिसका, रंगीन रात करया चाहूं सूं।।

अंजना पवन के आने से बहुत खुश होती है। वह पवन का आरता करने लगती है-

करण आरता लागगी, चोमुखा नदीना बाल़ कै ।।

हट मिले मरद और बीर,
म्हारा होग्या साझा सीर,
तकदीर म्हारी जागगी, पिया घर आये चाल कै ।।

थी कूण सी बात होया क्यू न्यारा,
जै मिलणा था हट कै दुबारा,
सारा काट दुहागी, सांस सबर के घाल कै।।

पकड़ री थी धरम करम की डगर मै,
ध्यान था बस सच्चे रघुबर मै,

मेरी करणी मैं पड़रया था भंग,
ना रहया था जीवण का ढ़ंग,
मेहर सिंह ईश्वर के गुण रागगी, अपना बख्त संभाल कै ।।

अंजना पवन से शिकायत करती है-

राम रमी सिर माथै आज क्यूकर पागी राही तनै
ग्यारा साल मैं आज आण कै क्यूकर श्यान दिखाई तनै।टेक

ब्याह करवाकै दुहाग दे दिया मैं नेम धर्म पै डटगी
शुभ कर्म भी करे भतेरे अलग पाप तै हटगी
नित उठ प्रेम भाव तै मैं नाम आप का रटगी
जोबन मेवा कैसी ढ़ेरी सस्ते कै म्हां लुटगी
इतने दिन मैं क्यूकर आग्या क्यूकर छोड़ी लुगाई तने।

ऋषि मुनी योगी संन्यासी सब माया मैं गरगाप कहैं
भूत भविष्य वर्तमान मिलकै तीनों ताप कहैं
जती मर्द नै सती बीर का छोड़ण का घणा पाप कहैं
वीर मर्द के बारे मैं कथा ऋषि महात्मा आप कहैं
इस कामदेव नै नहीं सताया क्यूकर करी समाई तनै।

कर्म करे के पाप पुण्य नै भगवान खोलते दिखैं थे
बेमाता के लिखे लेख वे घाट तोलते दीखैं थे
सौ-सौ मण के झाल जिगर मैं रोज डोलते दीखैं थे
तेरे बिना इस रंग महल मैं मनै भूत बोलते दीखैं थे
बिना बहु क्यूकर सरग्या क्यूकर उम्र बिताई तनैं।

क्यूकर दिया दुहाग तनै तेरे भेद गात का पाया ना
मनै जौ का आटा सेर मिला और घणी धन माया ना
मैं महल दुहागी की जड़कै जले बारा साल तक आया ना
कदे मन की बात नहीं बूझी तनै प्यार बीर का चाह्या ना
मेहर सिंह ईब मेरा गल काटया झूठी तार सफाई तनै।

अंजना आगे क्या कहती है-

तू भूल कै भी मेरे धौरै कदे नहीं आया।
बीतगे ग्यारां साल के पहल्यां रस्ता ना पाया ।।

किस घमंड़ मै चूर होकै, दे दिया दुहाग,
मरद होये की तेरै तै ,कुछ भी ना थी लाग,
आज ग्यारां साल पाच्छै तूं ,क्यूकर आया भाग,
काम की तेरे तन मै , लागी दिक्खै आग,
आज गया किसा जाग, क्यूं पहल्यां होंश गवांया ।।

दुहाग देकै ब्याही तै तूं ,हो रया होगा राजी,
न्यूं ना जाणी बीर मरद, हों दुख सुख के साझी,
भूंड खिंडवा दी तनै सारे कै ,हँसे होंगे पाजी,
तू बेशक तै भूल ग्या, मेरा ता घा होग्या ताजी,
इब के जीत कै आग्या बाजी, मूल नहीं सरमाया ।।

सुबह शाम दोन्नूं बख्तां मै हर के जाप करूं थी,
रूखा सूखा खा कै भी, मन के दोष हरूं थी,
कदे कोये झूठा पलमा ला दे, इस बात तै डरूं थी,
आओ जब याद मेरै, मैं भी आह भरूं थी,
तेरे आये बिन ना मरूं थी, कितनी ए दुख पाती काया ।।

बचपन तै ए मनै भावै था, गाणा और बजाणा,
छोरे रागनी मत गावै, पिता कर रया था धिंगताणा,
गाणे की गूंज चौगरदै गूंजी, जल़िया लागे देण उल्हाणा,
राड़ तै बाड़ भली मान मनै, पड़या फौज मैं जाणा,
जाट मेहर सिंह का सुरीला गाणा, सबके मन भाया ।।

अंजना आगे क्या कहती है-

तूं मर्द जती गया डूब कती क्यों आया पति मुझ निरभागण के दर पै।टेक।

तेरी ईज्जत में पड़ज्या खामी,
मतना शीश धरै बदनामी
लोग कह देगें नमक हरामी
तेरै नहीं जरै, तूं बह्या फिरै, क्यूं घूंट भरै विष नागण के दर पै।

शरीर पै ओट्या दुःख घनेरा,
शीश पै करड़ाई का फेरा
साजन मेरे काम देव नै तेरा
चित हड़या, कित आण बड़या, तूं हंस खड़या मुझ कागण के दर पै।

मुझ दुखिया का कोण हिमाती,
ना मेली मित्र गोती नाती
सज्जन मेरी विपता का साथी
घनश्याम नहीं, आराम नहीं, तेरा काम नहीं दुःख दागण के दर पै।

महल दुहागी मैं चल कै आया,
फिरगी पणमेशर की माया
मेरे भी होग्या मन का चाह्या
हुए ठाठ बाट, ना घली घाट गया पहुंच मेहर सिंह जाट रंग लागण के घर पै।

पवन सारी रात अंजना के साथ व्यतीत करता है। सुबह होने से पहले वापिस लोट जाता है। इस एक रात के मिलन से अंजना गर्भवती हो जाती है। बांदी पवन की माँ को जाकर शिकायत करती है-

महल दुहागी मैं जित अंजना तेरी बहू एकली।
बदलगे विचार बदी मैं नीत टेक ली।टेक

घणे दिनां मैं आज मेरा उड़ै होग्या जाणा री
अंजना की खातिर मैं ले कै पहुंची खाणा री
वा चाह री पाप कमाणा री कडै समझ नेक ली।

बारा साल हुऐ तेरा बेटा जा रहा बाहर सै
ओपरे मर्द की महल मैं आहर जाहर सै
बोया कोन्या क्यार सै महलां मना मेख ली।

चक्कर से आवैं सैं दखे उसका काल बोलता
माथा रहया भड़क गात सारा डोलता
पेट भेद खोलता कितै निगाह सेक ली।

दे कै तार मेहर सिंह नै बुलवा ले छुट्टी
न्यू लिख दे तेरी बहु तै तेरी किस्मत फूटी
कानां सुणी तै हो सै झूठी पर मनै आंख्या देख ली।

अंजना की सास अंजना को धमकती है-

आगा पाच्छा देख्या कोन्या लूट्टे सै रंग ठाठ तनै।
डूब गई बेहूदी अंजना कर दिये बारा बाट तनै।टेक

लिहाज शर्म तनै तार बगादी अंजना खप्पर भरणी हे
धर्म छोड़ कै अधर्म करती कोन्या पार उतरणी हे
कर्मां के फल मिलैं तनै आगै आवै तेरै करणी हे
हररया ढ़ांडी की तरियां तूं खूद बिराणी चरणी हे
खुली बछेरी चरी बाड मैं घाली कोन्या घाट तनै।

संदका संदकी दिखै सै तेरे खोट नै कड़ै ल्हको ल्यूं हे
ओड पवाड़ा रच बैठी तनै कड़े कड़े तै रो ल्यूं हे
ना दुनियां में जतन ईसा तेरे पाप दाग नै धो लूं हे
के सहारा सै घणी कहण का मैं भी भूण्डी हो ल्यूं हे
खून बिराणा तेरे पेट मैं ल्यूं क्यूकर घर मैं डाट तनै।

नोमा महीना पूरा हो जब कती उघाड़ उघड़ज्या हे
दुनिया मैं तेरी चर्चा चालै सारी बोर बिगड़ ज्या हे
मुंह काला कर बैठी तेरे नागिन काली लड़ज्या हे
ना चाहती तेरी शान देखणी घर तै बाहर लिकड़ज्या हे
बेशक कुआ जोहड़ टोह लिए मैं कोन्या रही नाट तनै।

आ लेण दे तेरे खसम ढ़ेड नै तेरे नल मैं लठ ठुकवा द्यूंगी
सारे ठाठ भूल ज्यागी दिन मैं तारे दिख्वा द्यूंगी
जै बोलैगा तरी मेर मैं न्यारे भांडे धरवा द्यूंगी
मेरे बस की नहीं रै सांडणी न्यू चिट्ठी मैं लिखवा द्यूंगी
तेरी बहू घरां तूं रहै बोर्डर पै के रो ल्यूं मेहर सिंह जाट तनै।

अंजना अपनी सफाई पेश करती है और अपनी सास को समझती है-

मेरी मानै तै नहीं जरुरत ज्यादा जिक्र चलाणे की।
फेर कहूं मनै कती करी ना बिल्कुल कार उल्हाणे की।

अैर-गैर तनै समझ लई बिल्कुल धक्के खाणी
झूठा दोष लगावै हो कै इतनी बड्डी स्याणी
जो सै असली बात तनै वा ईब तलक ना जाणी
थारे घर का पी राख्या सै ना और गैर का पाणी
आदत कोन्या घर-घर जाकै भीख घलाणे की।

बेटी तरियां राख बहूं नै सुख जिन्दगी भर का हो सै
सास बहू पै जुल्म गुजारै उज्जड़ वो घर हो सै
साच्ची बात कोए कह दयो साची में के डर हो सै
कोन्या कती कसूर मेरा तूं खामै खां नै सिर हो सै
झूठी साची बात किसै की बिल्कुल नहीं मिलाणे की।

मेरे बिना कोए दिन मैं सुन्ना तनै शहर दिखाई दे
या चूड़ी की झंकार बहू का ना पैर दिखाई दे
तेरा छुटज्या पीणा खाणा तनै सब जहर दिखाई दे
गुडलियां बालक बिना इस घर मैं कहर दिखाई दे
पोते पोती बिना पालणा तूं बिल्कुल नहीं हिलाणे की।

एक दिन जागा भेद पाट तूं कद लग ढ़कैगी
कित जागी ईज्जत बाहर मनै जब दुनियां तकैगी
मेहर सिंह थारी धजा शिखर तै कती धरती मैं टिकैगी
मैं तै लिकड़ ज्यागी पर या दुनियां तमनै के बकैगी
कोए घर मैं कमी थी ज्यातै भाजगी बहू फलाणे की।

अंजना की सास अंजना से गर्भ के बारे में पूछती है-

किसका गर्भ पेट मैं ले रही के थूकै प्रजा
इसी बदनामी तै आच्छा कितै डूब कै मरज्या।टेक

जिस दिन तै तूं ब्याही आई थी तेरे हाथ मैं डोर
रजपूतों का घर था म्हारा तने मचा दिया महाघोर
लुच्चे डाकू जार चोर का हो खोटा दर्जा।

मनै बेरा पाट्या कोन्या अंजना बात तेरी का
परखे बिना पता नहीं चलता खोटी और खरी का
आच्छी भूण्डी भली बुरी का, हो धर्मराज कै नरजा।

जो कुछ लिख दिया बेमाता नै हरगिज नहीं टलैगा
पाप पुन करया बन्दे का हरदम साथ चलैगा
धर्म तुलै उड़ै सुरग मिलैगा, पाप नरक मै गिरज्या।

जो सोचै थी अपणे मन मै वा कोन्या बात पांवती
लिकड़ज्या सै घड़ी मनुष्य की वा हाथ नहीं आंवती
या दुनिया फिरै गांवती, मेहर सिंह इसे छन्द बणा कै धरजा।

अंजना अपनी सास को क्या कहती है-

सासू मत दे गाल, करज्या टाल, ना मैं चंडाल, मनै क्यूं ताहवै सै ।।

दे कै दुहाग पति नै, मैं आप्पै त्यागी,
आकै महल मै तेरा बेट्टा ए करग्या निरभागी,
लाग्गी तूं काढ्ढण खोट, ल्यूं क्यूकर ओट, मरज्यां गल घोट, इसा पलमा लावै सै ।।

मैं ना किसे गैर मरद तै फेट्टी,
मनै क्यूकर पैड़ धरम की मेट्टी,
बेट्टी अपनी मान, मैं थारी आन, देक्खै भगवान, सहम सतावै सै ।।

राम की सूं मैं कति पाक साफ रहैरी,
आज मुझ बेखता की ज्यान फन्द मै फहैरी,
कहैरी तू चाल्ली जा, कुछ तरस खा, गर्भवती नै ताह्, क्यूं भूंड खिंढावै सै ।।

गावै मतना न्यू पिता नै ब्होत कहया,
मनै गाण बजाण का शौक शुरू तै रहया,
गया सीख ढंग, सब रहज्या दंग, जाट मेहर सिंह, अनूट्ठा गावै सै ।।

अंजना की सास आगे क्या कहती है-

कितने ए बहाने भर ले हे महेन्द्र की जाई
छोडूंगी नहीं घर तैं ताहे बिना।टेक

तनै कोड रोप दिया चाला
गैल्यां डोबी बसन्त माला
हे तूं मूंह काला करले तनै थूकैंगे लोग लुगाई
डूब क्यों गई पति तेरा आऐ बिना।

तनै घर कुणबे तै ला लिया बैर
प्यारे समझ लिए तनै गैर
हे तूं ओढ़ पहर सिंगर ले तनै शर्म कती ना आई
हे टिकी नहीं तू ईश्क कमाए बिना।

ईब इसनै राखैगी कड़ै ल्हको कै
बैठगी अगली पिछली खौ कै
हे कितै नाक डुबो कै मरले, तेरे मरियो बाप और भाई
हे सरया नहीं तनै गोद खिलाए बिना।

न्यूं ईश्वर नै कर दिये तंग
न्यूं बिगड़ग्या काया का ढंग
मेहर सिंह ठीक छन्द धर ले , सीखग्या मनमोहनी कविताई
सरै नहीं तनै गाऐ बिना।

अंजना की सास अंजना को घर से निकल देती है। अंजना दुखी मन से अपने पीहर जाती है। अंजना अपनी माँ को सारी बात बताती है। सारी बात सुनकर अंजना की माँ अंजना को वापस लोटने के लिए कहती है-

हे बेहुदी उल्टी होले ,आड़ै के शान दिखावण आई सै।टेक

हे बेहुदी तनै मेरी लजा दी कूख
रंज में गया बोलता सूख
शरीर के फूंक बणा दिये कोले ,आज म्हारी सारै लोग हंसाई सै।

ये शरीर मुफत मैं खपणे
चाहिऐ थे नाम हरि के जपणे
ईब अपणे कर्मा नै रोले, चली जा बदमाश पेट की तू जाई सै।

कदे थी तेरे हाथ मैं डोर
आज यो किसा रच दिया महाघोर
कितै और ठिकाणा टोहले ,चली जा या बण खंड की सूधी राही सै।

तेरी करणी मैं पड़ग्या भंग
न्यू बिगड़्या काया का ढंग
मेहर सिंह सतगुरु जी न्यूं बोले ,यो गाणा सबतै कष्ट कमाई सै।

अंजना अपनी अपनी माँ को अपनी बात बताती है कवि ने क्या दर्शाया है

आख्यां कै म्हां पाणी आया धोरै पहुंची मां कै।
अपणे हाथां क्यू ना गेर दी कुऐं कै म्हां ठा कै।।टेक

मिला रेत में लाड़ दिया री
बिना तेगे सिर बाढ़
होते हे जी क्यूं ना काढ़ दिया री, घिटी मैं गुंठा ला कै।।

सोचू थी राह टोह लूंगी,
अपणे दाग जिगर धो लूंगी,
सारा दुख रो लूंगी, तेरे धौरै आकै।।

मैनै खता करी ना कतई,
फेर भी विप्त तन पै सहई,
सास जली नै काढ दई, तू भी छोड़गी ताह कै।।

मैनै धूंट सबर का भर लिया,
छाती पै पत्थर धर लिया,
मेहर सिंह कुणबा बैरी कर लिया, राग रागनी गा कै।।

अंजना आगे क्या कहती है-

जो कुछ बीती मेरी गैल्या ,जांगी तनै बता कै ।
तेरी कुख की जाई सूं माँ क्यूं बोलै धमकाकै ।।

गर्दिश का बादली भाग पै छागी,
मैं ब्होत घणी घबरागी,
या बेटी दुख रोवण लागी, माता धौरै आकै ।।

सूं मैं कर्मां की हाणी,
माँ तेरे तै पड़गी बात बताणी,
ना कदे पीया सुख का पाणी, सांसरे मै जाकै ।।

आज पड़ी बात मैं खामी,
मेरै सिर टेक दई बदनामी,
कदे भी किसे स्याहमी ,ना देखी जुबां चलाकै ।।

ला दिया अणदोषी पै दोष,
रही मैं सकल आत्मा मोस,
लिया घरवासा भी खोस, झूठी तोहमद लाकै ।।

माँ दुख मैं रही सूख मै,
क्यूं गेरै तेजाब हरे रूख मै,
मैं ले री लाल कूख मै, मरज्यांगी इसनै जांकै।।

मेरी किस्मत पड़कै सोगी,
मेरे राह मै कांटे बोगी,
मेरी दुनिया बैरण होगी, जित भी देखूं लखाकै ।।

आज मेरी गैल्यां के बणी,
दुख पागी ब्होत घणी,
कोन्या सिर पै धणी ,जो राखै लाड लडाकै ।।

इब और नहीं को आश ,
मैं जांगी जिसके पास,
गुरू लख्मीचंद का दास , कहै जाट मेहर सिंह गाकै ।।

अंजना आगे क्या कहती है

सत की डोरी मन कपटी पै तणकै खिंची हुई सै
तेरी अंजना बेटी बुरे कर्म तै बिल्कुल बची हुई सै।टेक

कोए दिन में हो ज्यागा गलत निशाना देख लिए
रोवण लागै ले ले कै धुम्मे का बहाना देख लिए
पवन पति के आए-पाछै जा बदल जमाना देख लिए
ना जंचती तै मेरे पति का अंगसताना देख लिए
मतना काटो बेल चढ़ण द्यो या सत तै सिंची हुई सै।

रत्नपुरी मैं जाऐ पाछै यो कलेश हुया सै मां
मेरे पति की गलती तै यो दुर्बल भेष हुया सै मां
सब इलजाम गलत सै झुठा दायर केस हुया सै मां
मेरा मुकदमा धरमराज कै आगै पेश हुया सै मां
जो सास ससुर नै कह दी थारै वाहे जंची हुई सै।

मान सरोवर ताल के अन्दर मीन बिचारी घिरी पड़ी
बिना शूरमा तेग दुधारी म्यान के अन्दर जरी पड़ी
के किचड़ फैंके तें कुम्हलावै बेल धर्म की हरी पड़ी
मतना घणी सतावै मां मैं शर्म की मारी मरी पड़ी
करो आत्मा साफ पाप तैं या देह में रची हुई सै।

थारा पाप का कमती तोल रहै मेरा धर्म का सौदा बध ज्यागा
पवन पति सै गवाह मेरा यो कती मामला रद्द ज्यागा
उस दिन बेरा पाटै जिस दिन टैम आणकै सध ज्यागा
कह मेहर सिंह पता नहीं कद बणजारा सा लद ज्यागा
क्यूं के काल रूप की मुठी कै म्हां या जिन्दगी भिंची हुई सै।

अंजना की माँ भी अंजना को घर से निकल देती है। बेबस अंजना अपनी सहेली बसंत माला से मिलती है और क्या सोचती और कहती है-

कुछ भी सुखड़ा देख्या कोन्या धक्के खाणी नै।
छाती कै म्हां मुक्का मारया अंजना राणी नै।टेक

बसन्त माला देखिए हालत मेरी
चाल्या भी ना जाता लागी आवण अंधेरी
किस बिपता मैं ल्या कै गेरी, मेरे अन्न जल पाणी नै।

राज घरां में जन्म लिया कंगाल कर दिये
खुद ब्याहा दुःख देग्या बेहाल कर दिये
मेरी छाती कै म्हां शाल कर दिये शाल कमाणी नै।

बन्दा लेगा काट जिसे बोवैगा
घर नै खाली देख कै पिया जिन्दगी नै खोवैगा
देख देख कै रोवैगा, इस कुणबा घाणी नै।

गुरु लखमीचन्द नै ज्ञान सिखाया
भूल्या होया रस्ता फेर दिखाया
मेहर सिंह बेकूफ बताया, इस दुनियां स्याणी नै।

उधर पवन को एक सुपना आता है। पवन उठकर सुपने का जिक्र मंत्री से करता है-

मेरी तबीयत डाटी ना डटती पड़गी बिपता म्हारे मैं
सुपने के म्हां दई दिखाई खुद अंजना के बारे मैं।टेक

आज रात के सुपने मैं मनै देखी सूरत भोली
गूठा पकड़ जगावण लागी आंख देर मैं खोली
ईब तूं साजन बैठया हो ले बहोत घणी हद होली
टप टप आंसू पड़ैं नयन तै जब हूर परी न्यूं बोली
इस जिन्दगी मैं फेर मिलूं ना प्राणां के प्यारे मैं।

मेरे नाजुक दिल पै चोट लागगी मनै इसा सुपना आया
न्यू की न्यू बणगी तै मंत्री घर बिगड़ै बण्या बणाया
इस जिन्दगी मैं आए पाछै कित काला मुंह करवाया
और किसै का दोष नहीं या सब ईश्वर की माया
मनै अपणी नाड़ कटाणी दीखै खुद ब्याही के आरे मैं।

मेरै दुनियां ताने मारैगी मैं कित मुंह दिखलाऊंगा
इसे बहम मैं फिरुं मंत्री ना अन्न पाणी खाऊंगा
न्यूं की न्यूं बणगी तै मंत्री मैं उलटा ना आऊंगा
अंजना रानी नहीं मिली तै मैं जीणा ना चाहूंगा
मेरी धर्मराज के पेशी लागै लिकड़ै दोष म्हारे मैं।

कहै मेहर सिंह भगवान नै दिया मार करमां मै होड़्या
और कीसै का दोष नहीं मनै भाग जाण कै फोड़्या
अंजना नै भी आस छोड़ दी मनै प्रेम जाण कै तोड़्या
बड़ी मुश्किल तै जती सती का राम मिलावै जोड़ा
अंजना जैसी सोहणी लुगाई कोन्या और जग सारे में।

पवन अपने राज महल पहुंच कर अपनी माँ से अंजना के बारे में पूछता है। पवन की माँ कहती है की वो बदचलन थी इसलिए उसको घर से निकाल दिया। पवन अपनी माँ को क्या कहता है-

बुरा मान चाहे भला कहूं एक गलती कर दी खास तनै।
दरबारां मैं शोर माचर्या थूकैं दासी दास तनै।टेक

बारा साल तक रही एकली जाग्या कोन्या लोभ कती
राणी तैं बणी काग उड़ाणी सारा ओटया रोब कती
एक बेल थी फूल लागण की तनै कतरदी गोभ कती
स्याणी हो कै निस्तरगी दिये चौगरदे तै डोब कती
एक बहू घर मैं थी करणी चाहिए थी ख्यास तनै।

सासू देखै बाट बहू की कद आवै नई नवेली री
पूर्णमासी नै ब्रत करै प्रसाद चढ़ावै भेली री
एक पवन तेरा बेटा था वा अंजना बहू अकेली री
वा भी घर तै काढ़ दई करे उल्टे बांस बरेली री
नोमा महीना गर्भ लागर्या वा राखी कोन्या पास तनै।

घर के भाग सवाए हों जब बहू पैड़ साल में धर्या करै
लक्ष्मी रूप बीर का होन्यूं कोठ्यां में धन जर्या करै
बेटा जण कै न्यूं खाया जा और के बड़का भर्या करै
बेटे का घर बस्या रहै न्यू मालाराम की फिर्या करै
सीलक नहीं हुई बेटे की कर दिया सत्यानाश तनै।

नौ महीने हुए अंजना का ठा ल्याया था हेज मनै
मेहर सिंह के कर्म माड़े दें बोडर उपर भेज मनै
के तै गोली तै मरज्यां ना कपड़ ले ज्यां अंग्रेज मनै
या बात कालजै लागै सै री तेगे तै भी तेज मनै
कितै सिंगापुर मैं मारया जा ना मिलै पूत की ल्हास तनै।

उधर अंजना अँधेरी रात में भटकती फिरती है-

काली पीली रात अन्धेरी मेरा जी कांपै डर डर कै।
पीहर सासरा खसम गोसांई हाथ बात ईश्वर कै।टेक

आपणे हाथां आग लगाकै जाती नहीं बुझाई
चुगल खोर औरत के हाथ मैं देग्या सफल कमाई
पवन पति तै मिल कै नै कदे बोली ना बतलाई
मेरे पति ने औट लई गढ़ लंका की लड़ाई
जाईयो मतना मेरे साजन बेशक आईयो फिर कै।

सारस मोर हंस की जड़ मैं के काग लगाया जा सै
भागवान की जड़ मैं के निर्भाग लगाया जा सै
हलवे खीर दूध मीठे पै के साग लगाया जा सै
उस पवन पति की शान पै के दाग लगाया जा सै
पवन पति बिन जिऊं कोन्या रहूं अगले जन्म मै वर कै।

न्यूं तै मैं भी जाण गई अक सूं किस्मत फूटी की
जिस की टूट लई दरगाह तै ना पेश चले बूटी की
मेरी सास नै मान लई बात उस दासी झूठी की
मनै सब कुणबे तै दखा लई ना सनद करी गूठी की
धक्के दे कै काढ़ दई चली घूंट सबर का भर कै।

भले घरां की बहु बेटी न्यूं कर कै मेर मरी तूं
कुछ किस्मत की हेठी बेटी कर काया का ढेर मरी तूं
अपणे घर नै छोड़ बाछडु म्हारे घेर मरी तूं
यो तै बुगला मरग्या अपणी आई साथ बटेर मरी तूं
कह जाट मेहर सिंह इस दुनियां नै काढ़ै हिम्मत कर कै।

अंजना अपने मन में क्या सोचती है

सास जली नै घर तै काढ़ी दे झूठे ओड्यां मैं।
नोमां महीना गर्भवती मेरे आसंग ना गोड्यां मैं।

के सुख देख्या उस दिन तै जब तै ल्याया ब्याह कै
काटे बारा साल मनै उस महल दुहागी मैं जा कै
बासी कुसी खा कै नै दिन काटे काग उड़ा कै
कुणसे जनम का दुःख दिया था उस रात अंधेरी मैं आ कै
बिना पति मेरी उम्र कटै ना थारे महल हवेली टोडयां मैं।

हे ईश्वर ना कोये और सहारा एक आसरा तेरा,
डर लागै मेरी ज्यान अकेली जंगल में घोर अंधेरा
ठोकर लाग कै पड़ी धरण पै दिख्या कोन्या झेरा
उठ कै चाली तै गुठी रहगी पाट्या कोन्या बेरा
पता नहीं कित आण फंसी आड़ै सांहसी कांजर ओडां मैं

नोमां महीना गर्भ का लाग्या न्यू मन मै घबराई
चलते चलते जंगल मै दी चसती ज्योत दिखाई
देर करी ना गिरती पडती कुटिया कै धौरे आई
बैठया ऋषि भजन करै था चरणां मैं नाड़ झुकाई
बेरा ना संन्यासी योगी सै अक आण फंसी मोडया मैं।

बैरी सैंतीस के सन मैं वे अड़गे कर्म अगाड़ी
भर्ती होग्या खेत क्यार छोड़ देखी जाकै पहाड़ी
लाणे का कोल्हु पोह का पाला बाज्या करती जाड़ी
मेहर सिंह तनै हल जोड़या मनै काटै हींस और झाड़ी
चुगचुग बाड़ी मेरे हाथ फूटगे इन कांशी और डोड्यां मैं।

अंजना चलते चलते एक ऋषि आश्रम में पहुंच जाती है। ऋषि जी अंजना से पूछते है-

जंगल के मै फिरै भटकती, तू कितना दुख पा री ।
इस हालत मै घर तै काढ़ कै , करया जुल्म भारी ।।

कौण देश की रहणे आली कित ब्याह राखी,
पीहर सांसरा दोन्नूं जगहां तै क्यूं तू ताह राखी,
गर्भवती भी घरां ना राखी, मत माल्यक नै मारी ।।

के सास ससुर तै होई लड़ाई या नणन्द गेल्यां रौला,
कोये बता का के करले जब बखत सधै औला,
के पति कति साधा भौला, या तनै करी जारी ।।

कुछ तै खता बणी होगी जो तू काढ्ढी डेरे तै,
पिता बराबर मान मनै ना भेद छुपा मेरे तै,
कुणसा खोट बण्या तेरे तै, बेट्टी बता सारी ।।

कोये तै खोट करया होगा जो तू काढ्ढी घर तै,
ईश्वर भला करैंगे तेरा, एक दिन मिलज्या ब्याहे वर तै,
इब मतना डरै किसे भी डर तै, मेरी शरण मै आरही ।।

इब क्याहें कि चिंता कोन्या , रिषी आश्रम मै आ कै,
मेहर सिंह की तरिया रहिये, हर मै ध्यान लगाकै,

अंजना ऋषि को क्या कहती है-

मैं दुखियारी नारी सूं ऋषि के बुझोगे मन की।
हर नै बिपता गेरी ढेरी कर राखी सै तन की।

मात पिता नै जणकै गिण कै मैं बड़ी मुश्किल तै पाली
लिखा पढ़ा दी तालिम बाप नै फेर शादी की स्याली
जुड़गी कामण बुला ब्राहमण यज्ञ बेदी रचवा ली
नूहवा धुवा बरात बुला फेर साजन घर घाली
दिया दान करया मान घणा कुछ कमी नहीं धन की।

बैठ बहल मैं गई महल मैं लिए चरण चुचकार
सास ननद तै लड़ी भिड़ी ना रही हरदम ताबेदार
पवन पति जति तै कदे भी मेरी हुई नहीं तकरार
कुछ दिन भीतर डेरा मेरा करया शहर तै बाहर
दिया जौ का खाणा काग उड़ाना या कार रात और दिन की।

गये भाग जाग मुझ निरभाग के सुध ले ली भगवान
कर पति के दर्शन होगी प्रसन्न आई ज्यान मैं ज्यान
नहाई धोई करी रसोई मनै तार लिए पकवान
पति को खिलाकै दिल बहला कै फेर किया जलपान
थे छत्री कौम रहे तीन यौम फेर त्यारी कर गे रण की।

सास मेरी नै जुल्म करे मैं घर दर तैं ताही
गई पीहर ना रह्या सीर धोरा धरगी माई
ईब हद होली आपै टोह ली बणखण्ड की राही
प्रभु कष्ट मिटा मेरी ज्यान छुटा मैं बहुत घणी दुःख पाई
जाट मेहर सिंह छन्द बन्द करकै ईब रट माला कृष्ण की।

ऋषि जी अंजना से क्या कहते है-

रात अंधेरी गिरती पड़ती आगी चाल कुटी पै।
रहै तै रहै बेटी की ढ़ालां करकै ख्याल कुटी पै।टेक

के घरक्यां तै हुई लड़ाई थारी आपस कै म्हां खिंचगी
ऊक चूक बणी तेरी गैल्यां न्यूं मेरे भी जचगी
दखै गर्भवती तूं घर तै भांजी आंख जमा तेरी मिचगी
मेरी शरण में आगी बेटी समझ मरण तै बचगी
ईश्वर चाहवै भला तेरा एक होज्या लाल कुटी पै।

तेरी ओड़ की शंका बेटी न्यूं बत्ती डर लागै हे
जवान अवस्था जंगल कै म्हां कदे तृष्णा जागै हे
फेर कामदेव का गोला भर कै कदे मेरे उपर दागै हे
उस हूर मेनका की ढालां मनै बेहुदा कर भागै हे
उस विश्वामित्र आली बणज्या मेरी मिशाल कुटी पै।

तनै चाट मशाले भोजन चाहिएं जंगल मैं फल पाते
दोनूं बख्तां पेट भरण नै कंद-मूल मिल जाते
मनै मन  और ईन्द्री जीती ये साधू के नाते
दखे हम योगी अवधूत महात्मा सदा ईश्वर का गुण गाते
कदे सामण फागण के गीतां की लावै ताल कुटी पै।

पीहर कैसी समझ कुटी नै और तंनै के चाहिये
दोनूं बखतां नहा धो कै नित भजन कीर्तन गाईये
जै कोए माणस आवै बाहर तै मत हंस उस तै बतलाईये
तनै मेहर सिंह की याद सतावै तै बेशक चाली जाईये
सिंगापुर कश्मीर बरोणा ना बंगाल कुटी पै।

अंजना ऋषि जी को क्या जवाब देती है-

के बुझैगा दुःख की कथा कहानी बाबा जी।
कर्मां मैं लिख राखी ठोकर खानी बाबा जी।टेक

बाप के घर पै जाण पटी ना छाया धूप की
कह्या करैं सैं खा कर्म की रोवै रूप की
रत्नपुरी मैं पवन भूप की राणी बाबा जी
ब्याह कै दिया दुहाग कर्म की हाणी बाबा जी।।

दे कै दुहाग आऐ पति मेरे बारा साल मै
एक गुट्ठी दे कै चले गये मनै मोह गे जाल मै,
पड़ैं नैन तै जिस के ख्याल मै पाणी बाबा जी।
एक बै सुण कै फेर सुणी ना वा बाणी बाबा जी।।

जंगल कै म्हां चलते चलते पायां मैं पड़गे छाले
इसे दुःख तै आछा ईश्वर माटी नै संगवाले
खा कै गम के भाले समय बिताणी बाबा जी।
हो हर कै फैसला बात जडै जा छाणी बाबा जी।।

उन के बेड़े पार हुए जिनके हृदय राम रमै
माया के विश भूत हो ठिकाणें जीव ना जमै
मेहर सिंह या समय आवणी जाणी बाबा जी।
एक दिन सब नै खा ले या मौत निमाणी बाबा जी।।

अंजना आगे क्या कहती है-

लुट गई इस दुनिया मै मेरा गुजारा नहीं है।
कोई मुस्ताख मुझपे मेरा कोई ख्वाहिस्तगारा नहीं है।।

बारा साल का गनम मिटा दिया सनम ने,
पर कमकूत निमत पे जोर हमारा नहीं है ।।

दुनामा कर तकसीर लगा आशाबंद नसाई,
अदल करने को कोई मुनसिफ सहारा नहीं है ।।

बेशुमार दुत्कार माँ ने रिश्ता गारत किया,
अब इस गम ए दरिया मिलता किनारा नही है ।।

तकते चशम जाट मेहर सिंह का वसीला,
गर वो भी ना हुआ तो जीना गवांरा नहीं है ।।

अंजना अपना अता पता ऋषि जी को बताती है-

महेन्द्रपुर सै गाम मेरा, मैं रत्नपुरी ब्याही थी।
मेरे पति का नाम पवन है, जिसके गल लाई थी ।।

दुख का तीर पति नै सांध्या,
खुद होया हिये का आंधा,
जिस दिन ब्याह का कांगणा बांध्या, उस दिन करडाई थी ।।

एक रात दिये साज्जन दर्शन,
डोब गया बैरी वो दिन,
मेरे गर्भ पै एक बैरण , दासी नै चुगली खाई थी ।।

सासू बोली आडी आडी ,
बिन तेगे मेरी गर्दन बाढी,
जिस दिन घर तै काढी, उस दिन सरमाई थी ।।

माँ भी करगी दूर किनारा,
खोट मेरै सिर धर दिया सारा,
मेहर सिंह ना कोये सहारा, न्यू मरण बणां मै आई थी ।।

जब अंजना को आश्रम में रहते हुए कुछ समय बीतता है तो एक दिन अंजना का मामा प्रतिसुरज शिकार खेलते हुए उसी आश्रम पर आजाता है। अपने मामा को देख कर अंजना की आँखों में आँसू आ जाते हैं-

भर आया आख्यां में पाणी मामा की शक्ल पछाण कैं।टेक

मनै तै वृथाए जिन्दगी खोली
मेरी गैल्यां सब अणहोणी होली
वा सासु बोली माणस खाणी करया उट मटीला जाण कै।

मैं तो मारी करूं थी शर्म की
आज या खुलगी गांठ भ्रम की
थी मेरे कर्म की हाणी ना दया हुई मां डायण कै

मेरी देही में ना थी खामी
सिर पै बांध दई बदनामी
या मामी पास खड़ी महाराणी दया ले लेगी आण कै

विपता नै करदी तंग
न्यू बिगड़ग्या काया का रंग
मेहर सिंह गया सीख रागनी गाणी सतगुरु का ज्ञान बखाण कै।

अंजना अपनी व्यथा अपने मामा को सुनती है-

मैं लुट गई मामा हो, मेरा इस दुनिया मै गुजारा नहीं ।।
मेरे सब बणे बिगड़गे काज,
हर नै हर लिया सिर का ताज,
आज होया करमां मै खाम्मा हो, सूखगी रही मैं फूल हजारा नहीं ।।

सासरै रही ना कदे भी सुख मै,
पति भी होग्या उल्टे रूख मै,
दुख मै ना जाता दिल थाम्मा हो, कोये खसम गुंसाई हमारा नहीं ।।

गरदिश मै लिये धक्के खा,
अंजना निरभाग चली कित जा,
ना साथ माणसां का साम्मा हो, दिक्खै ईश्वर बिन कोये सहारा नही ।।

जाट का ना घर कुणबे नै खोता,
क्यूं बरोणा बरेली सिंगापुर नै रोता,
होता जै ग्यान का फाहम्मा हो, मेहर सिंह करता घर तै किनारा नहीं ।।

उधर पवन अंजना को खोजता खोजता जंगल तक आ पहुंचता है। पवन क्या सोचता है-

बहुत देर हुई चलते चलते थक लिया फिरता फिरता।
जंगल झाड़ बोझड़यां मैं फिरूं अंजना अंजना करता।टेक

घटग्या त्यौर दिखाई नादे बुझण आई कोन्या
एक मिनट की देर नहीं मेरे गात समाई कोन्या
मरण तै आगै मेरे खातिर कोए और दवाई कोन्या
सारा जंगल छाण लिया पर अंजना पाई कोन्या
आज मैं भी न्यारा वा भी न्यारी म्हारा हांडै प्यार बिखरता।

अंजना प्यारी इस जंगल में खूब बिचल ली होगी
मेरे बिना इस गहरे जंगल में एक ली फिर ली होगी
घर तै लिकड़े पाछै भूखी प्यासी मर ली होगी
मिली अंगुठी मनै अंजना की वा चौकस मर ली होगी
अंजना प्यारी तेरे बिना मनै हरगिज भी ना सरता।

बेरा ना कित चली गई भगवान दिखती कोन्या
चौगरदे नें देख लई दे ध्यान दिखती कोन्या
भूरा भूरा गात उमर की जवान, दिखती कोन्या
फेर्यां की गुनाहगार नार की शान दिखती कोन्या
म्हारे घरक्यां नै तोहमद ला कै काढ़ दई पतिव्रता।

अंजना प्यारी तेरी बिना मनै निश्चय मरणा सै
जीऊंगा तै ईब तै आगै दूणा दुःख भरणा सै
अंजना मरली मैं भी मरज्यां जी कै के कारणा सै
हे मालिक ईब आखिर मैं बस तेरा ऐ सरणा सै
गुरु लखमी चन्द की नाव मेहर सिंह पार चला गया तरता।

चलते चलते पवन उसी झेरे में घिर जाता है जिसमे अंजना गिरी थी। अंजना की अंगूठी जो पवन ने उसे दी थी वहाँ गिरी मिलती है। कवि ने क्या दर्शाया है-

अंगूठी नै देख पवन झेरे में रोया रै।
अंजना के फिकर नै दुनियां तै खोया रै।टेक

दुनियां मैं बदनाम हुया चाला करगी
रोंवता फिरूं जिन्दगी का घाला करगा
मुंह मेरा काला करगी, ना जाता धोया रै।

धक्के खाती फिरती होगी महेन्द्र सिंह की जाई
इसमैं मेरा दोष नहीं थी तेरी करड़ाई
कित्तै भी नहीं पाई, खोज मिलता ना टोहया रै।

दिल की प्यारी मिलगी तै उसके दिल नै डाटूंगा
दुखिया उस की ज्यान सै कुछ दुःख नै बाटूंगा
आगे वैसा काटूंगा, जैसा पाच्छै बोया रै।

माणस का के जीणा सै आदर मान बिना
दुनियां मैं गुजारा कोन्या हर के ध्यान बिना
मेहर सिंह सुर ज्ञान बिना, बृथ्या थूक बिलोया रै।

पवन बड़ा दुखी होता है और अपनी ज्यान त्यागने की बात सोचता है। कवि ने क्या दर्शाया है-

कितै ल्हुकरी हो तै बोल पड़ै नै कद का रुक्के दे रह्या
ना तै जल कै खो दूं ज्यान टकासी जी मुट्ठी में ले रह्या।टेक

मन मैं फिकर करूं कोन्या बुआ बहाण भाई की
सभी गर्जना छोड़ दई मनै यारी असनाई की
अंजना गौरी मिलण चली गई प्यारी थी भाई की
उसनै भी कुछ मेर करी ना अपणी मां जाई की
सिर कै उपर तै ताज तार कै धरती कै म्हां गेर्या

पवन पति कैसी बोल कालजे में नागिन सी लड़गी
बे माता म्हारा मेल मिला कै धरती मैं बड़गी
प्रेम रूप की झाल उठकै देही मैं चढ़गी
वो भी घर तै लिकड़ग्या इसी के पटकी पड़गी
भाज दौड़ कै ले लण दे नै मेरे साजन का बेरा।

बालक पंण की उम्र दुसरे लूट मैं आग्या
दिवे तलै अंधेरा होग्या ओट मैं आग्या
ऐरण उपर लाल धरा मैं चोट मैं आग्या
पणमेशर कै न्याय होगा तेरे खोट मैं आग्या
जिऊं इतनै रै जिन्दगीभर खतावार रहूं तेरा।

महेन्द्रपुर तै उठकै अंजना रात नै आई
नदी नाले खूब बहैं थे बिचलगी राही
बेमाता म्हारा मेल मिला दे जय दुर्गे माई
बोल सुणे पर दिख्या कोन्या मेरी ननद का भाई
बड़े प्रेम तै ब्याही थी मनै बांध कै नै सेहरा।

मैं अपणे घरां नहीं घरक्यां का चालग्या हांगा
तेरे बिना ना अंजना गौरी अन्न जल खांगा
पवन पति तै सोच लिया तनै बिल्कुल भूखा नांगा
तेरे बिना अंजना देवी कती नहीं जीउंगा
रत्नपुरी का राज करूंगा पहलम लागै तेरा फेरा।

पवन पति कैसी बोल कालजे में आण कै लागी
दक्षिण में तै उठकै अंजना पूर्व मेंआगी
न्यू तै मैं भी जाणुं या जिन्दगी फिरते फिरते जागी
उनके भाग बड़े हो जिन की रली चीज पागी
आग बलै जब न्यू दिखै जणुं बलै सन्त का डेरा।

मेरे की तरियां रात अंधेरी न्यूंऐ झुकरी हो तै
बोल पड़ै नै अंजना गोरी कितै ल्हुकरी हो तै
किसे तरियां ल्यूं काढ तनै फंदे में फंसरी हो तै
मेरे कि तरियां आग बाल़ कै न्यूं ए फुंक री हो तै,
हट कै फेर दिखादे अंजना चन्द्रमा का चेहरा।

अग्नि धौरे कोण खड़या मैं तनै देख कै डर ली
पवन पति हो तै बोल पड़ै नै तेरी मारी मर ली
सारी जिन्दगी पड़ै भोगनी जुणसी करणी कर ली
पवन पति की शान देख कै भाज कै कोली भर ली
कहै जाट मेहर सिंह पेट का तो भरणा होगा झेरा।

पवन जब चिता बना कर उसमे जल कर खुद को समाप्त करने की तैयारी करता है तो वह पर अंजना आ जाती है। अंजना को देखकर खुस होता है। पवन क्या कहता है-

रहया था मरी मान मैं, इस जंगल बियाबान मै,
क्यूं रोवै, खोवै टोहवै के हूर की परी रै।टेक

उठ म्हारै होले साथ मैं,
बाकी रही ना गात मैं
आड़ै डरती मरती फिरती जोबन की भरी रै।

बनवास मैं रो रही
अपणी जिन्दगी नै खो रही
न्यू आग्या, भाग्या ठाग्या चीज तूं खरी रै।

पणमेसर नै मिला दिये,
फूल चमन मै खिला दिये,
खोई चीज ज्यू थ्यागी आगी पागी स्याहमी धरी रै।।

बणवास मैं फिर रही,
सिर बदनामी धर रही
न्यू सी ल्यूं, जी ल्यूं पी ल्यूं सै मद की भरी रै।

गावै मेहर सिंह जाट रै,
घरां बातां के ठाठ रै
आड़ै रचरे बिछरे सजरे गिंडवे दरी रै।

पवन अंजना को महल में ले जाता है। सभी को सच्चाई का पता चल जाता है। अंजना का गर्भ पूरा हो जाता है। वह एक लडके को जन्म देती है जिसका नाम हनुमान रखा जाता है।

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