किस्सा चाप सिंह

मारवाड के गढ नौ महले में राजपूत जसवंत सिंह हुए, जो शाहजहां बादशाह के दरबार में सेनापति के पद पर कार्य कर रहे थे, उनके लड़के का नाम चापसिंह था। चापसिंह का रिश्ता श्रीनगर की राजकुमारी सोमवती के साथ हुआ। जब चापसिंह का विवाह हुआ तो उसी समय राजपूत जसवंतसिंह व उनकी पत्नी दोनों स्वर्ग सिधार गए। चापसिंह अपने पिता की जगह शाहजहां बादशाह के दरबार में कार्य करने लग गऐ। एक दिन चापसिंह के पास सोमवती के गौणे की चिट्ठी आती है। चिट्ठी को पढ़ कर चापसिंह शाहजहाँ के दरबार छुट्टी मांगने के लिए हाज़िर होता है-

पांच कदम से मुजरार किन्हा, झूक कै करी थी सलाम ।। टेक ।।

बड़ा रजपूत शूरमा नामी, होग्या खड़ा तख्त की स्याहमी,
मुस्लमान को दई सलामी, और हिन्दू को प्रणाम ।।1।।

सब दरबार सजा हुआ पाग्या, देखकै आनंद दिल में छाग्या,
उठकै पाजी फेरण लाग्या, ताजी की पकड़ लगाम ।।2।।

तुम मनै देख प्रेम मै भरियों, ध्यान हरी का धरियो,
तुम मेरी सारे रक्षा करियो, जितणे रजपूत तमाम ।।3।।

मोती कद पोया जा लड़ में, भरया रस केले के-सी घड़ मै,
गुरू मानसिंह की जड़ मै, रहै लख्मीचन्द गुलाम ।।4।।

चापसिंह को छुट्टी मिल जाती है और वह अपने आने की खबर श्रीनगर भिजवा देता है। सारे परिवार में खुशी छा गई। जब चापसिंह के आने की ख़बर सोमवती की मां को लगी तो क्या कहने लगी-

होया आनंद कबीला सारा था, जब सुणी थी बटेऊ के आवण की ।। टेक ।।

जाणैं रजपूता के कायदे नै, अलग कमरे म्य ठहरादे नै,
सन्तरी तोश्क-तकिया लादे नै, लेज्या दरी और दत्ती बिछावण की ।।1।।

ईश्वर सबके कारज सारै सै, बेड़ा तै भगतां का पार तारै सै,
जिसा आज उमंग रंग म्हारै सै, इसी फेर घड़ी ना थ्यावण की ।।2।।

तजदो बुरी शक्ल नालाकी, बधैं ना बुरी बात मै साखी,
मनै तीळ रेशमी ल्या राखी, किसी कर री सो ढील पहरावण की ।।3।।

लख्मीचन्द भेद विधी सारी का, इस रंगत प्यारी-प्यारी का,
गाणा हो लयदारी का, घणखरे रीस करैं मुहं बावण की ।।4।।

सोमवती की सखियां इकट्टी होकर कैसे हंस खेल रही थी-

एक कै एक गल मै घलरी सै, घर मै फुलवाड़ी सी खिलरी सै,
थोड़ी सी छुट्टी मिलरी सै, हो सै देर मनै ।। टेक ।।

सोला वर्ष रही थारे पास, इब बण लण द्यो पति की दास,
आश ला़गरी रंग चा की सै, थारी प्रीत घणी बेटी मां की सै,
दस दिन की छुट्टी बाकी सै, उडै़ जाणा फेर मनै ।।1।।

मनै सै एक बात का खतरा, यो आदम मनुष्य जन्म में उतरया,
सुथरया की कीमत चाहिए सै, मात-पिता की पत चाहिऐ सै,
एक माणस की ताकत चाहिए सै, पाइया-सेर मनै ।।2।।

मनै एक धर्म रास्ते पै जचना, जो सच्चे ईश्वर की रचना,
ढंग बचनां की पूरी के-सा, कायदे और दस्तूरी के-सा,
किमत में कस्तूरी के-सा, पड़या दिखै ढेर मनै ।।3।।

लख्मीचन्द ज्ञान मिलै गुनिया म्य, सत्संग मिलै ऋषि मुनियां म्य,
दुनिया में जीणां दस दिन का, यू हाथी गात बिराणे बस का,
मन मूर्ख डंडा अंकुश का, ले सै घेर मनै ।।4।।

सोमवती की माँ उसे अपने पास बुला कर उसके लाड लड़ती है और उसे क्या कहती है-

न्हां धो कै सिर करवाले, तनैं साजन घर जाणा सै,
भरी प्रेम मै आज किसा दिन, मुश्किल तै आणा सै ।। टेक ।।

घरां जमाई आवण की, भर उमंग बधाई बांटू,
चंरणाव्रत बणां पा धोकै, अमृत कर रस चाटूं,
एक दो बर तै उपरले मन तै, घालण तै भी नाटूं,
स्याणी बेटी जवान जमाई, पीहऱ मै ना डाटूं,
जाइए हसंणी हंस की गैल्या, तेरा जित पाणी-दाणां सै ।।1।।

तीलां के बुगचे गहणा के डिब्बे, ठोक-ठोक भर राखे,
डौले बांदी धन माया के, इंतजाम कर राखे,
जितने फर्ज बाहण-बेटी के, एक नहीं सिर राखे,
हीरे-पन्ने मोहर-अशर्फी, लाल मंगा धर राखे,
देखकै दुनियां खुश होज्या, मनै इसा रंग लाणां सै ।।2।।

जैसे जनक के घर पै रंग चाव थे, दशरथ सुत ब्याहवण के,
श्री रामचंद्र रक्षक दुनियां के, दुश्मन खुद रावण के,
जैसे वृषभान भी भूखे थे, कृष्ण दर्शन पावण के,
मैं भी सौ-सौ सुकर मनाऊं, घरां चापसिंह आवण के,
दीन जाणकै दर्शन दे दिये, यू अकलमंद स्याणां सै ।।3।।

घर-वर टोह कै धन दे दिया, तकदीर नहीं बांची सै,
भगती बिना फलै ना फुलै, या हरी बेल काच्ची सै,
जो बिधना नै लिखी भाग मै, वा ऐ बात साच्ची सै,
स्याणी नणंद बाहण और बेटी तै, अपणे घंरा आच्छी सै,
कहै लख्मीचन्द साज मै मिलकै, हर का गुण गाणा सै ।।4।।

सोमवती अपने माता के वचन सुनकर क्या कहती है-

हे! री, इसी कौण सै भाई रोई री, जो कहया ना मानै तेरा ।। टेक ।।

आज म्हारै नया बटेऊ आया, सुणकै आनंद होगी काया,
मां मेरी, तूं कहै करूंगी सोई री, न्यूं दमक रहा सै चेहरा ।।1।।

मार लगी इश्क रूप त्रिशूलां की, गात चमेली केसे फूलां की,
सै ढेरी, मेरा बालम ले खुश्बोई री, जो जोबन लहरे लेरा ।।2।।

दर्शन करलूं पति धाम का, लेकै जांगी जो मेरे नाम का,
तू लेरी, इन्है बंटा सकै ना कोई री, जो खास निमत का मेरा ।।3।।

लख्मीचन्द की सूरत रघुवर मै, सौला साल तलक पीहर मै,
कर गेरी, या काया निरमोही री, आज सासरे का फेरा ।।4।।

सोमवती सज-धज कर चलने के लिए तैयार हो जाती है। जब चापसिंह की नजर उस पर पड़ती है तो चापसिंह अपने मन-मन में क्या सोचता है-

जो धन माया लिखी भाग मै, घणी नहीं तै थोड़ी मिलगी,
या ना बात प्रेम की थोड़ी, सारस के-सी जोड़ी मिलगी ।। टेक ।।

मरता मुल्क हवा की खातिर, बिगड़ज्यां काम ग्वाह की खातिर,
दर्द की मर्ज दवा की खातिर, प्रेम की पींद निचोड़ी मिलगी ।।1।।

हूर का था गोरा-गोरा गात, झोंके तै लगैं थे पवन के साथ,
रही बागडोर ईश्वर के हाथ, लाख रूपये कैसी घोड़ी मिलगी ।।2।।

बणी जाणूं इन्द्र सभा के-सी पात्र, बड़ी रंग रूप-हुश्न मै चातर,
बनड़े के मुंह मीठे खातर, शक्कर के-सी रोड़ी मिलगी ।।3।।

लख्मीचन्द सेवा म्य डटकै, इब नही जांगे परण तै हटकै,
52 जनक ब्रह्मा नै रटकै, एक दर्जन दो कोड़ी मिलगी ।।4।।

सोमवती का डोला तैयार कर दिया गया, सभी सखी सहेली सोमवती को डोले में बिठाने आई तो वहा चापसिंह से चलते समय क्या कहने लगी-

सुणता जाईए हो बटेऊ, हमनै कहैणी सै दो बात ।। टेक ।।

कदे म्हारी बहना नै धमकावै, हमनै ठग-डाकू चोर बतावै,
जब म्हारा लेण आदमी आवै, मत उल्टा ताहिए हो बटेऊं,
कर दिए म्हारे माणस की साथ ।।1।।

कहण नै मैं होरी थी घणी हाण की, मारी मरगी शर्म बाहण की,
के-के ल्यावैगा चीज खांण की, हमनै भी खवाइये हो बटेऊं,
कदे सालियां तै करै ना दुभात ।।2।।

हम तनै देख प्रेम मै भरली, तेरी सुरत देख-देख कै डरली,
क्यूं तनै नाड़ तले नै करली, मत शरमाइये हो बटेऊं,
हम तनै याद करैंगी दिन-रात ।।3।।

इब घड़ी आज्यागी ऐश-आनंद की, फांसी कटै विपत के फन्द की,
शिक्षा लेकै लख्मीचन्द की, लयसुर मै गाइयें हो बटेऊ,
सौप दिए सतगुरू जी नै गात ।।4।।

सोमवती सजधज कर डौले में बैठ जाती है और चापसिंह घोड़े पर सवार होकर चल दिये। थोड़ी देर चलने पर चापसिंह ने अपने सामने दो काले सर्प देखें जो रास्ता काट गये और घुमाकर कोडा़ जब घोड़े को मारने लगा तो हाथ से कोड़ा छूट गया। यह दो किस्म के अपशकुन समझकर घोड़े को रोक देता है। उधर से सोमवती चापसिंह को देखकर अपना डोला रूकवा लेती है और क्या कहने लगी-

माड़ा-माड़ा मन क्यूं करया हो पिया, हो मै डरगी, हो मै मरगी ।। टेक ।।

पिया बोलै नै कुछ करकै होश, थारा घर रह रया सै कै कोश,
जली जोबण जोश काच्ची सी घिया, हो मै डरगी, हो मै मरगी ।।1।।

पिया तुम भजन करो हर क्यां नै, दिये सब काम छोड डर क्या नै,
म्हारे घर क्यां नै किमै कहै तै ना दिया, हो मै डरगी, हो मै मरगी ।।2।।

मनै तूं परमेश्वर तै भी बाध, घी तै क्यों बणैं सै तेल की गाध,
के आया याद घोड़ा थाम क्यों लिया, हो मै डरगी, हो मै मरगी ।।3।।

लख्मीचन्द की गौड़ ब्राह्मण जात, सज्जन तेरी गैल रहूंगी दिन-रात,
जैसे रघूवर के साथ रही थी सिया, हो मै डरगी, हो मै मरगी ।।4।।

फिर चापसिंह व सोमवती आपस मे क्या बात करते है।

सोण-कसौंण हुऐ राह मै, न्यूं डाट लिया घोड़ा ।। टेक ।।

चापसिंह:-
काले सर्प दो राह मै फिरगे, सौण गोरी मेरा मन्दा करगे,
मेरे मात-पिता मरगे ब्याह मै, निमत लेग्या होड़ा ।।1।।

सोमवती:-
बात इब छोड़ दिये सब डर की, मिली तनै अर्ध शरीरी घर की,
जगत बसै सै हर की छां मै, पर अक्ल का सै तोड़ा ।।2।।

चापसिंह:-
याद कर सारा नक्शा झड़ग्या, आज मेरै नाग बिपत का लड़ग्या,
जाणूं नूंण-मिर्च सा पड़ग्या घा मै, फूटकै नै फोड़ा ।।3।।

सोमवती:-
काम चलै ना बेशर्मी तै, नाश होया करै हठधर्मी तैं,
इतनी गर्मी तै जाणैं खरसा मै, हवा भी लेगी मोड़ा ।।4।।

चापसिंह:-
मुश्किल होगी मात-पिता मरकै, न्यू घणां बोलूं सूं डर-डर कै,
छोड़ू था घोड़ा भर कै चा मै, पर छूट गया कोड़ा ।।5।।

सोमवती:-
कहै लख्मीचन्द बुरी ना तक लूं, तेरी मै सेवा कर-कर छक लूं,
तेरी बिकल्यूं गैल महंगे भा मै,ऊँ तै पड़ी म्य रोड़ा ।।6।।

चापसिंह:-
कहै लख्मीचन्द खबर ना गत की, कद म्हारी इज्जत राखैगी पत की,
हम बैठे सत की नाव मैं, ईश्वर पार तारै जोडा ।।7।।

चापसिंह की बात सुनकर सोमवती क्या कहने लगी-

झूठा विश्वास पिया, सौंण ना विचारया करते ।। टेक ।।

प्रेम तै बस्ती दुनियां सारी, मनै तेरी सूरत लागै प्यारी,
वैं नर-नारी खास पिया, जो हरी रटकै गुजारा करते ।।1।।

कमी नहीं थी माया-धन की, बहुत घर बाट चले गए बन की,
उनकी भी शाबाश पिया, जो आपे नै मारया करते ।।2।।

बहुत दिन तक खेली तीजन मै, इब लगी सुरती हरि भजन मै,
कर तन मै तलाश पिया, जो योगी लोग इशारा करते ।।3।।

गुरू मानसिंह होगे प्रसन्न के, लख्मीचन्द भुखे दर्शन के,
कृष्ण के जो दास पिया, वो हरगिज ना हारया करते ।।4।।

चापसिंह ने फिर घोड़ा चलता कर दिया और नौ महले पहुंच गया। नगर की औरत अगड़-पड़ोसन इकट्टी होकर सोमवती को डौले से तारने आती हैं-

गांवती-बजांवती ल्यावती क्यूं ना तार, बाहर बहूँ जी का डौला सै ।। टेक ।।

एक तै तुम्हे देनी पडैगी मरोड़ी, कदे समझो ना उम्र की सै थोड़ी,
जोड़ी ना सजती दो बिन, मोह बिन, जोबन का रंग लूट-झूठ,
रती नहीं तोला सै ।।1।।

वा किसी चंदा की तरह दमकती, मेरे ह्रदय मै श्यान रमकती,
चमकती एक-एक रेख देखकै, मैं बेकूफ-रूप,
गजब केसा गोला सै ।।2।।

बोल मेरे सुण लियो मत मतिमंद के, फांसे काट बगाओ दुख-फंद के,
आनंद के रंग, राग, बाग लागते जिगर मैं-घर मैं,
लुगाइयां का रौला सै ।।3।।

लख्मीचन्द करैं सेवा शुरू जी, ज्ञान से होंगे पार धुरु जी,
म्हारे गुरू जी का रंग, ढंग, गंग का, अस्नान ध्यान,
ज्ञान का झिकोला सै ।।4।।

अब पड़ोस की औरत इकट्टी हो गई। कवि ने वर्णन किया है-

कट्ठी होगी लुगाई, जितणी कुटम्ब-कबीले की ।। टेक ।।

सारी खड़ी हाजरी म्य पा गई, दिल म्य देख आनंदी छा गई,
मिलकै आ गई चाची-ताई, जितणी कुटंब-कबीले की ।।1।।

रंग शादी केसा लगी छांटण, लगी कपटी दिल नै डांटण,
चली घर-घर बांटण बधाई, जितणी कुटंब कबीले की ।।2।।

फूल साफे में टांगण लगी, रंग खुशी में रांगण लगी,
घर में मांगण लगी मिठाई, जितणी कुटंब कबीले की ।।3।।

लख्मीचन्द छन्द का परण, ले सच्चे सतगुरु की शरण,
लगी भावज करण हंघाई, जितणी कुटंब-कबीले की ।।4।।

सभी अगड़ पड़ोसन रंग चाह के गीत गाती है-

छोटी बड़ी नार मिलकै, गावै मंगल चार मिलकै,
मृगा कैसी डार मिलकै, नई बहू नै तारण आई ।। टेक ।।

खड़ी डौले कै चारूं खूंट, रही थी रंग चमन का लूट,
हे! ऊठ बहू क्यूं ना घर नै चालै, डौले बीच पदमनी सी हालै,
सोमवती तेरी पीतस घालै, पांच असर्फी मुंह दिखाई ।।1।।

कुछ सुझै ना दंगे-रौले मै, राख्या नेग नही भोले मै,
डौले मैं तैं बाहर लिकड़कै, देखी बीर खड़ी जड़-जड़ कै,
पीतस के पायां मै पड़कै, एक मोहर दी पांया पड़ाई ।।2।।

कट्ठी घणी लुगाई होली, बणगी हूरां बरगी टोली,
एक बुढिया बोली नजर फलाकै, मुंह दिखाइए बहू पल्ला ठाकै,
बीरां पर कै हाथ लफाकै, बड़ी मुश्किल तै पुचकारण पाई ।।3।।

कोए बे-भागी पड़कै सोगी, बहू थी सुथरी देखण जोगी,
शीलक होगी एक-एक कै, लख्मीचन्द कहैं नजर टेक कै,
कहै लुगाई रूप देखकै, धन्य-धन्य सै बहू जिसनै जाई ।।4।।

चापसिंह सोमवती को अपने घर का सारा हाल बताता है। सोमवती प्यार से सारी कहानी सुनती है-

एक बात का रंज सै, गौरी मेरे धड़ मै,
तेरे कौण करैगा लाड, सासू-नणंद नही जड़ मै ।। टेक ।।

म्हारा-तेरा बीर मर्द का नेग, भरे कपड़ा तैं ठाडे बेग,
ज्यों रहा लिकड़ तेग मै बाड, मोती पिरो लिऐ लड़ मै ।।1।।

परी आखिर नै यू तेरा घर सै, रूप तेरा चन्द्रमां सा दर सै,
जाणूं बरसै गर्ज कै साढ, टहलज्या जल पीपल-बड़ मै ।।2।।

बात दो करै नै गुरबत कैसी, आड ऋषियां नै ज्यो पर्वत कैसी,
बोल मै शर्बत केसी गाढ, भरया रस केले केसी घड़ मै ।।3।।

कहै लख्मीचन्द हंसती बरियां की, बणी खड़ी रहो ढाल परियां की,
तनै सब तरियां की ठाड, धर्म की तेग बन्धी कड़ मै ।।4।।

अब सोमवती चापसिंह की बात सुनकर क्या कहती है-

सांस-सुसर और नणंद-पति, सब जगह समझती तुमनै,
मैं पतिव्रता बीर सजन, जाणूं सूं धर्म किस्म नै ।। टेक ।।

जो बाळम की दास स्त्री, सदा ऊंच-नीच नै तोळै,
चाहे आठूं पहर उदास रहै, पर साजन तैं हंसकै बोळै,
लड़ै ना झगड़ै चुगली ना चोरी, ना कितै फिरती डोळै,
आये गये की शर्म करै, नित्य रहणा परदे ओळै,
दरखत समान सब मनुष्य समझकै, सोचूंगी पति धर्म नै ।।1।।

नही गुमान रूप-धन घर का, और ना-ऐ उछलकै चाळै,
पति के बदले भीड़ पड़ी मै, ज्यान देण की भी शाळै,
पुरूष बिराणा बाप बराबर, ना कदे दिल हाळै,
मंगता आज्या तै पर्दा करकै, भीख जरूरी घाळै,
मंगता के जाणै नफे-टोटे और, घर के धन घणें-कम नै ।।2।।

बख्त उठकै धन्धै लागै, पति नै न्हवाकै न्हाणा,
धोती करकै करै रसोई, यो पतिव्रता का बाणा,
साजन नै परमेश्वर समझै, उसके ही गुण गाणा,
जीम झूठकै पति चल्या जा, पाछै भोजन खाणा,
ओढ-पहरकै सादेपण तै, हाजिर करदे दम नै ।।3।।

मानसिंह सतगुरू की सेवा, शिष्य लख्मीचन्द करण नै,
शिष्य नै सतगुरू, सती नै बाळम, पूजण लायक चरण नै,
दुनियां भरी पड़ी अवगुण की, एक सांगी नाम धरण नै,
झूठी दे कै शाबाशी, ये इब होज्यां ऊत मरण नै,
बहोत कहैं प्रचार बिना ना, स्वाद आवंता हमनै ।।4।।

चापसिंह की छुट्टियाँ ख़त्म होने को आई तो अब चापसिंह क्या विचार करता है-

चापसिंह नै हाजिर होणा, मन मै डरण लाग्या,
ब्याही कान्ही का, न्यूं फिकर करण लाग्या ।। टेक ।।

बादशाह नै हुक्म दिया, वो हान्डै सै मन मै कै,
दुख-सुख टन्टे-झगड़े, सौ-सौ बीतैं सै दिन मै कै,
मां-बाप मरे का तन मै कै, तार सा फिरण लाग्या ।।1।।

कुणसे जन्म में कर्म करया था, या लाग लगा कद ली,
15 दिन राजी खुशी बीते, इब कौण समय सध ली,
अपनी छूट बिराणी बदली, कौंण मरण लाग्या ।।2।।

हो बाप कमाऊ चाचा-ताऊ, जब बेटे नै ब्याहियों,
जननी माई एक-दो भाई, जब कोए नौकर जाईयों,
करे कमाऐ-खाऐ बिन भाई, यो किसनै सरण लाग्या ।।3।।

मानसिंह सतगुरू बिन भाई यो, कौण काट सकै फन्द नै,
मंगते-भूखे कोढी-कंगले, सब चाहवै ऐश-आनंद नै,
किसा भूल जमाना लख्मीचन्द नै, नाम धरण लाग्या ।।4।।

चापसिंह को सोच-विचार में देख सोमवती पूछती है कि आप कैसी चिंता में डूबे हो तो चापसिंह और सोमवती आपस मे बातें करते हैं-

साच बता हो, तेरा माड़ा मन क्यूं सै ।। टेक ।।

सोमवती:-
पहर री तेरे नाम की बेशर, रूप खिला जाणूं क्यारी-केसर,
मेरै लेखै परमेश्वर, तू सै ।।1।।

चापसिंह:-
तूं भगवान समझकै पूजै, तेरे बिन और बता के सुझै,
साच्च बुझै सै तै, मेरी तेरे-ऐ मै रूह सै ।।2।।

सोमवती:-
क्यूं ना साची बात बतावै, जब तेरी गोरी बुझणा चाहवै,
जै झूठ बहकावै, तै तनै मेरी-ऐ सूं सै ।।3।।

चापसिंह:-
कपटी दिल मै ठाड करूं, पर्वत की ज्यूं आड करू,
तेरे लाड करूं, तेरा चन्द्रमां सा मुंह सै ।।4।।

चापसिंह:-
जब तू मीठी-2 बोली, परि तनै तबियत मेरी चरोली,
मेरी छुट्टी पूरी होली, मनै घणां रंज न्यूं सै ।।5।।

सोमवती:-
लख्मीचन्द धर्म की खिचंली, फिकर करै जैसे जल बिन मछली,
मेरै पक्की जचली, पिया ज्यूं की ज्यूं की सै ।।6।।

चापसिंह सोमवती से कहता है, मै शाहजहां के दरबार मै नौकरी करता हूं, बस 15 दिन की छूट्टी मिली थी जो पूरी हो चुकी है, अब मुझे जाणा पड़ेगा। सोमवती कहती है पिया आपके बिना मै अकेली नहीं रहै सकती और क्या कहती है-

जी क्यूकर लागैगा अकेली का, हो पिया तूं जा सै,
तेरा फिकर करूंगी दिन-रात, तेरे बिन के दिखै हो जले इस घर मै ।। टेक ।।

जाण की सुणकै जी लिकड़ै सै, मेरे चेहरे का नूर झड़ै सै,
जब जोड़ा बिछड़ै सै मन मेली का, हो खोटी डाह सै,
हो सै नर्म बीर की जात, प्रीति बहुत घणी ब्याहे वर मै ।।1।।

के मेरी आच्छी लागी ना टहल, बता के करण लाग्या मेरी गैल,
तूं सै दीवा महल हवेली का, हो देखै चा सै,
घलै तेल जलण नै बात, अन्धेरा मत करिये हो जांगी डर मै ।।2।।

जोड़ी सजती कोन्या दो बिन, बात बणै ना दूसरे के मोह बीन,
जल्या जोबन फूल चमेली का, हो मंहगा भा सै,
सब खिल रहे फल पात, लिऐ खश्बोई हो ठाकै कर मै ।।3।।

मानसिंह गुरू के सै तेरी सलाह, सजन ब्याही का काट चल्या गला,
मलाह जै तू भूखा पिसा-धेली का, या तै सत की ना सै,
बली लख्मीचन्द के हाथ, पार तर जाणा सै ला सुरती हर मै ।।4।।

चापसिंह बताता है कि उसे कल ही जाना है और क्या कहता है-

तड़के का इकरार जाण का, जाणां पड़ै जरूर प्यारी रै,
गौरी रै, मै छ: महीने मै आल्यूँगा ।। टेक ।।

तू चौकस रहियो छत्राणी, कदे होज्या ना धर्म की हाणी,
ताता पाणी धरया न्हाण का, मद-जोबन का तन्दूर प्यारी रै,
तू कड़ मलईए मै न्हाल्यूँगा ।।1।।

मै पाट चाल्या तेरे तै न्यारा, करणा पड़ै जरूर गुजारा,
ना कोए प्यारा चतर बाण का, रखणा पड़ै मंजूर प्यारी रै,
उसतै टहल कराल्यूँगा ।।2।।

मनै भाग लिखा लिया मुआ, न्यून तै झेरा न्यून कुंआ,
यू सूवा करै विचार खाण का, रूत का पकया अंगूर प्यारी रै,
आप समय पै खाल्यूँगा ।।3।।

लख्मीचन्द मत मारै होड़ा, कदे भिड़ज्या रोडे तै रोड़ा,
यो घोड़ा सै सवार ठाण का, दाणा मिलै भरपूर प्यारी रै,
इस पै चढ जाल्यूँगा ।।4।।

चापसिंह सोमवती को क्या समझाता है-

छूट्टी के दिन पूरे होगे, दरबारां मै जाणा होगा,
परमेश्वर का भजन करया कर, छ: महीने मै आणा होगा ।। टेक ।।

घणखरे जन्म ले सै नाम धरण नै, कित तैं आवैं बिना करें पेट भरण नै,
जिब हाथ-पैर दिए काम करण नै, रोज कमाकै खाणा होगा ।।1।।

जै जाणा चाहवै स्वर्ग धाम नै, तजकै रहिऐ बूरे काम नै,
रटया कर अपणे पति के नाम नै, साजन का गुण गाणा होगा ।।2।।

मेरी फिकर नै ज्यान बोचली, काया मीन की तरह नोचली,
जै तनै मन मै बूरी सोचली, तै दोनों कुलां कै लाणा होगा ।।3।।

दोनो मिलकै प्रीत पालैंगे, परण तै हरगिज ना हालैंगे,
लख्मीचन्द चुगकै चालैंगे, जितणा पाणी-दाणा होगा ।।4।।

चापसिंह सोमवती को आजकल की औरतों के बारे में क्या बताता है-

टन्टे-झगड़े करैं भतेरी, घर-कुणबे कै स्याहमी,
खोटी बीर घणी दुनियां मै, करते मर्द गुलामी ।। टेक ।।

घर मै धन सासू के निमत का, रूप दिया ब्रह्मा नै,
मात-पिता नै घर बर टोह दिया, मरे ल्हाज-शर्मा नै,
साजन की ना सेवा करती, दें छोड नेम-धर्मा नै,
काम के मद मै खसम नै खाळे, फेर रोवैं कर्मा नै,
इन कामां के बस मै होकै, होज्या देश मै नामी ।।1।।

पति की ओड़ तैं निर्मुख होकै, चलता वंश मिटादे,
दो भाईयां मै चुगली खाकै, चौड़ै शीश कटादे,
रूस-मटक लड़-भड़ नखरा कर, पति की कदर घटादे,
बदमाशी करै एैर-गैर तै, लुह्क्मा माल चटादे,
पड़ी रहै दुख-दर्द बतादें, करले गात हरामी ।।2।।

सावित्री नै धर्म के कारण, पति जिवा लिया मरता,
सीता पत्नी श्री रामचन्द्र की, जनक पिता ना धरता,
कुटुम्ब के दुख में पाण्डों का कुणबा, रहया बणा मै फिरता,
उसके पति दास बणें खुद दासी बणी, इसी हों सै पतिव्रता,
कीचक से सिर मार मरे, ना पड़ी धर्म मै खामी ।।3।।

लख्मीचन्द सती देहूति की, वा करले याद कमाई,
स्वयंम्भू मनू नै अपणी बेटी, ऋषि कर्दम कै ब्याही,
गई चौकड़ी बीत बहत्तर, ना इश्क नै चित मै लाई,
पति नै हूक्म दिया औलाद करण का, जब नौ कन्या जाई,
एक मन्वंतर तक पति सेवा मै, वा बोई भी ना जामी ।।4।।

चापसिंह की बात सुनकर सोमवती चापसिंह से क्या कहती है और चापसिंह क्या जवाब देता है-

पिया सपने म्य दिखोगे सारी रात,
एकली तै क्यूकर जोबन डाटया जा ।। टेक ।।

सोमवती:-
भजूंगी इतनै सिर धड़ पै सै, मोती चमक रहया लड़ पै सै,
मेरा तड़पै सै सारसणी सा गात,
मिली जोड़ी तैं सारस पाटया जा ।।1।।

चापसिंह:-
मैं निर्भाग कर्म का हेठा, मिल्या रहया जो म्हारा तेरा-पेटा,
तनै बेटा देगा रधुनाथ,
बधावा घर-घर बाटया जा ।।2।।

सोमवती:-
तनै जाते नै देख भीड़ी सै धरणी, पार सै जो बड़यां नै बरणी,
नौकरी ना करणी अपणे हाथ,
हुक्म तै किस तै नाटया जा ।।3।।

चापसिंह:-
लख्मीचन्द कदे जा ना टूल, सजन मेरे कदे जा ब्याही नै भूल,
जोबन फूल चमेली का क्यूकर कटैंगे दिन-रात,
कैसे रंग जोबन का छांटया जा ।।4।।

जब चापसिंह जाऩे लगा तो सोमवती क्या कहती है-

हो भर जा सै तै भरतार, भूल मत जाईऐ ।। टेक ।।

सोमवती:-
भजन से पार हुए ऋषि अत्री, कदे पापी की तरै ना कतरी,
हो पिया छत्री हो नशेदार, टूल मत जाईए ।।1।।

चापसिंह:-
घर-घर में आनंद छावैंगे, सब रल-मिल मंगल गावैंगे,
गोरी आवैंगे तीज-त्योहार, फूल मत जाईए ।।2।।

सोमवती:-
प्रेम घणा नणदी के भाई मै, कदे घिरकै मरज्यां करड़ाई मै,
कहूं मेरी राही मै दिलदार, गाड सूल मत जाईए ।।3।।

चापसिंह:-
चाहे घर-कुणबे तै लड़ी रहिए, धर्म पै तू सही खड़ी रहिए,
घर मै पड़ी रहिए बेमार, कुह्ल मत जाईए ।।4।।

सोमवती:-
पिया या ना सै बात जरा सी, कदे समझो ना ठठ्ठा-हांसी,
पिया फांसी आळी सार, झूल मत जाईए ।।5।।

चापसिंह:-
घणा मारया मरता इस डर तै, लुगाई तैं हों सै परै डगर तै,
कहूं इस खूंटे पर तै नार, खुल मत जाईए ।।6।।

सोमवती:-
पड़ैगी बात बिपत म्य मथनी, छोडू ना धर्म रूप की जतनी,
हो पिया हथनी ज्यूं दरिया पार, हूल मत जाईए।।7।।

चापसिंह:-
कहै लख्मीचन्द बण धर्म का धौरी, काबू मैं रखिए जीभ चटोरी,
मेरी गोरी घर तै बाहर, मूल मत जाईए ।।8।।

चापसिंह को नौकरी पर जाने के बाद एक दिन सपना दिखाई दिया और सपने मे अपने सोमवती के करार को याद करता है और सपने के बारे मे मन मे क्या सोचता है-

सुपना तै आया बैरी दौड़ कै, करार परी का हो लिया ।। टेक ।।

सपने मै पहूंच गया सुसराड़, सहम की कर बैठा था राड़,
साली होगी करकै बाड़, चारो ओड़ कै,
मनैं शरमां कै तले नै मुहं गो-लिया ।।1।।

सपने मै होरी झड़ा-झड़ी थी, गहणा पहरें एक धड़ी थी,
पंलग की जड़ मै खड़ी थी, कर जोड़कै,
मीठी बोल चित्त मोह लिया ।।2।।

सपना देख्या सबतै न्यारा, मीठा बोल लागता प्यारा,
परी नै करया इशारा, गर्दन मोड़कै,
पहलम साबण तै मुहं धोलियां ।।3।।

लख्मीचन्द काम छोड़ डर के, काम कई याद आवण लगे घर के,
सिर के केश निचौड़ कै,
मींडी मै बोरला पो लिया ।।4।।

अब चापसिंह अपने सपने का हाल कैसे सुनाता है-

बिस्तर पर तै चल्या उठकै, आवण लग्या तिवाळा,
दोहफारा दिन ढल्या शिखर तै, सुण सपने का चाळा ।। टेक ।।

जो कमरा पहळम देख्या, वो फेर नजर मै आग्या,
बैठ गया कुर्सी पै जमकै, सब सोदा मन भाग्या,
जड़ मै हूर सिंगर कै बैठी, जब बतलावण लाग्या,
मीठा-मीठा बोल हूर का, काट कालजा खाग्या,
यो बुलबुल कैसा बच्चा, किसनै ध्यान लगाकै पाळा ।।1।।

गोरी-गोरी बईयां नरम कलाई, चूड़ी लाल-हरी थी,
चंद्रमा से मस्तक ऊपर, बिंदी ठीक धरी थी,
जुल्फ लटकरी ईत्र रमा री, इंद्राणी कैसी परी थी,
गोरा गात और आंख कटीली, स्याही बीच भरी थी,
ढूंगे ऊपर चोटी लटकै, जाणू नाग लहरावै काला ।।2।।

मीठी बाणी पान छालियां, जाणै गौरां लाकै चाळै,
साड़ी कर री मटणे आळी, गैल पवन की हाळै,
न्यारे-न्यारे हर्फ बोलती, लिख-लिख खत से डाळै,
बैठा कंवर दूर कुर्सी पै, सांस सब्र के घाळै,
के सपने का जिक्र करुं, यूं तै सपना ऐ-उत निराळा ।।3।।

चला उठकै जगांह छूटगी, कमरा फेर बताइयो,
निंघा उकगी कुछ ना दिखै, मेरा पलंग कै हाथ लवाइयो,
इश्क बुरा जंजाल जगत मै, कोए मत इश्क कमाइयो,
बहया ज़माना पाणी की ज्यूं, सोच समझल्यो भाइयों,
कहै लख्मीचंद लागी चोट जिगर पै, बे-अकलां का गाळा ।।4।।

काफी समय हो जाता तो एक दिन चापसिंह मनमन क्या सोचता है-

लड़का फिकर करै मन-मन म्य, कदे पड़ज्या मनोरथ रीता,
रहते हुए चापसिंह नै, यो पांचवा महीना बिता ।। टेक ।।

मेरै उठै सैं झाल बदन म्य, ना कुछ बाकी रहरी तन म्य,
जैसे रामचंद्र तड़पे थे बण म्य, रावण कै भटकै थी सीता ।।1।।

पतिव्रता का ध्यान सही हर पै, लागरी सै चोट जिगर पै,
जिसकी बहू एकली घर पै, वो माणस के फिरै सै जीता ।।2।।

सहम कित करूं शरीर की ढेरी, चिंता घर की सै शाम-सवेरी,
मेरै उठै झाल भतेरी, अग्नि का रहया लाग पलीता ।।3।।

सतगुरु जी नै ज्ञान बांट दिया, लख्मीचन्द नै तन्त छांट दिया,
जैसे श्री कृष्ण नै फंद काट दिया, अर्जून को सुणा कै गीता ।।4।।

चापसिंह ने फिर से छुट्टी के लिए दरखास्त दी और क्या लिखा-

छ: महीने की कहण सै, रहया सै महीना एक,
दे दिये छूट्टी जाण की ।। टेक ।।

चाहे भूखा-कंगला हो चाहे अमीर, सब का सुख चाहवै सै शरीर,
बीर-मर्द बिन्या रहण से, और चाहे सुख रहो अनेक,
चन्दगी ना खेलण खाण की ।।1।।

बिना जमा किसा साहूकार, मर्द बिन रहै बेहूनी नार,
असवार अलहदा रहण से, बिना पछाड़ी बिना मेख,
घोड़ी के जगह पकड़ै सै ठाण की ।।2।।

न्यूं सोचै जमींदार अगेती, फायदा कुछ दे ना फसल पछेती,
खेती का दुख सहण से, जब ईश्वर राखै टेक,
कमाई हो सफल किसान की ।।3।।

लख्मीचन्द छन्द की विधि, समय किसे एक-आधे की सधी,
नदी का अमीरस बहण से, हो जिनकै ज्ञान का विवेक,
मिलै उन्है प्रभी न्हाण की ।।4।।

शाहजहाँ के दरबार में शेरखां नाम का एक और सेनापति था जो चापसिंह से बहुत जलता था। चापसिंह जब छुट्टी मांगने के लिए दरबार में जाता है और शाहजहाँ से कहता है की उसके घर पर एक पतिव्रता क्षत्राणी है तो शेरखां सोमवती के चरित्र पर उंगली उठता है। दोनों में इस बात पर शर्त लग गई की सोमवती पतिव्रता स्त्री है या नहीं।और जो शर्त हारेगा उसे फंसी होगी तय हुआ। अब शेरखां सोमवती की परिक्षा लेने की के लिऐ नौ महले की तरफ चलता है। रास्ते मे में एक वैश्याओं का बाजार था। शेरखां वैश्याओं के पास जाता है और क्या कहता है-

छत्राणी तैं दियो रै मिला, मेरी बाजी लगरी ज्यान की ।। टेक ।।

विधि जाणों सो प्रेम जोड़ण की, चमची थारै हाथ रोड़न की,
सत तोड़न की मेरी सै सलाह, कहैं सै वा पूरी सै धर्म ईमान की ।।1।।

विपता मेटो दुखिया नर की, जगह बता राजपूतां के घर की,
जड़ै संगमरमर की बिछी सै सिला, मैं भी करलूं सैल मकान की ।।2।।

तू मेटैं नै मेरा अन्देशा, तुमनै लूट लिया जगत बणाकै पेशा,
परियां कैसा तेरा रै गला, म्ह पीक चमक रही पान की ।।3।।

लख्मीचन्द ज्यान झोके पै, पाणी लादे नै शौके पै,
इस मोके पै दिये काम चला, जब इज्जत रहै पठान की ।।4।।

शेरखां कहता है आपके शहर में कोई सोमवती नाम की छत्राणी बताई है। तुम मुझे उससे मिलादों तुम्हारा अहसान जिन्दगी भर नही भूलंगा। इतनी बात सुनकर सभी वैश्या गुस्से में भर कर शेरखां को एक बात के द्वारा क्या कहती है-

कर खामोश होश कर दिल मै, ना डूबैगां बिन पाणी,
नाम लेण तैं धरती लरजै, वा रजपूतां की राणी ।। टेक ।।

एक नहुष भूप नै बण में जाकै, करी तपस्या भारी,
स्वर्ग का राजा बणा दिया, जा तकी इन्द्र की नारी,
इश्क नशे में अंधा हो करी, ऋषियां की असवारी,
धर्म नष्ट होया श्राप दे दिया, लात ऋषि कै मारी,
स्वर्ग तै गिरग्या अजगर बणग्या, ना गई शक्ल पिछाणी ।।1।।

इन्द्र-चंदा दोनों चले, मथकै एक बात नै,
गौतम के घरां पहुंच गए, जारी करण रात नै,
मुर्गा बण चंदा ललकारया, घेरा दिया स्यात नै,
जाण पट्टी जब श्राप दे दिया, मुश्किल हुई गात नै,
नीच कै मुर्गा चांद कै स्याही, इन्द्र कै भगजाणी ।।2।।

सबतै खोटा कहैं जगत मै, चोर-जार का बाणां,
जूतां पिटता फिरै रात-दिन, लगै कुटम्भ कै लाणां,
पर तरिया और पर धन की ढब, चहियें नही लखाणां,
आड़ै आए नै कोए ना बरजै, सुणो प्रेम तैं गाणां
खोटी तकै नशे मै टूहलै, के पीहरया सै बिन छाणी ।।3।।

लख्मीचन्द भजन कर हर का, जिन्दगी सै दिन दस की,
इतणा दम तेरे मैं कोन्या, मै भेदी सूं नस-नस की,
बुरंयाँ नै दहशत छत्रापण की, ज्यूं हाथी नै अंकुश की,
जै रजपूतां नै जाण पाटगी तै, बात रहै ना बस की,
काट तेरे दो टूकड़े करदें, बिलक्या करैगी पठाणी ।।4।।

इतनी बात सुनकर शेरखां वहाँ से चल पडा। चलते चलते मन मे पुरानी वेश्या याद आती है, जिसका नाम तारा था। शेरखां ने सारा हाल बता दिया तो अब तारा नौ महले पहूच जाती है। तारा चापसिंह के बारे में बताकर सोमवती से कहती है कि मै चापसिंह की दूर के रिश्ते में बुआ लगाती हूँ। तेरे आने से इस घर मे दोबारा रोशनी की किरण दिखाई दी। मुझे जब यह खबर मिली तो सोचा एक बार मिल आऊं तारा दुति और क्या-क्या कहती है-

हे! मै न्यूं आगी मेरा मन करया, गई उठ प्रेम की झाल,
बहू मै तनै देखण आई हे ।। टेक ।।

फिकर मनै रहै था इस घर की ओड़ का, तनै मिल्या साजन तेरी जोड़ का,
म्हारै कई करोड़ का धन धरया, खूब बरत धन माल,
जिवो तेरी नणदी का भाई हे ।।1।।

रंग चढरया चमन हरे पै, कदे करैं ईश्वर दया मेरे पै,
हो राजी तेरे पै हर तेरा, गोद खिलाइये लाल,
तनै यो घर दे बस्या दिखाई हे ।।2।।

कदे यो जग साहूकार कहै था, सारा कुणबा आनंद सहै था,
रहै था माणसां तै घर भरया, समय-समय के ख्याल,
समय नै हवा इब फेर चलाई हे ।।3।।

इब आग्या सै बख्त आनंद का, फांसा कटै विपत के फन्द का,
लख्मीचन्द का छन्द खरया, समझ लिऐ सुर ताल,
दया करै देबी माई हे ।।4।।

अब सोमवती तारा की सेवा करती हूई और अपना परिचय देती हुई क्या कहती है-

सोमवती शुभ नाम मेरा, बहू बोली पायां पड़कै,
प्रेम तै मुट्ठी भरण लागगी, दोनों पैर पकड़कै ।। टेक ।।

बूरे कामां का तजन करया करूं, सेवन पूजन भजन करया करूं,
परमेश्वर का भजन करया करूं, सवा पहर कै तड़कै ।।1।।

ताता जल सै पैर धो लिए, रोऊं तै दुख गैल रो लिए,
पति गए नै महीने पांच हो लिए, मरूं अकेली सड़ कै ।।2।।

तीळ रेशमी हरी-भरी सै, नौ बुलकां की नाथ धरी सै,
कारीगर नै त्यार करी सै, हरे नगीने जड़कै ।।3।।

लख्मीचन्द कहै और गति के, बीर-मर्द हम पौच रति के,
घणे सतावैं लाड पति के, कदे ना बोल्या लड़कै ।।4।।

सोमवती स्नान करने लगी तो धोखे से तारा देखती है कि सोमवती का बाई जांघ पर काला तिल है। कुछ दिन बाद तारा जाने के लिए कहती है। तारा की विदाई करते समय सोमवती कहती है कि बुआ जी राजी होकर जाना। चलते-चलते तारा सोमवती से चापसिंह की दी हुयी पटका और कटार सोमवती से मांग लेती है । और दोनों चीजें ले जा कर शेरखां को दे देती हैं। शेरखां बादशाह के सामने पटका कटार रख देता है और कहता है कि ये सब मैं चापसिंह की छत्राणी के पास से लाया हूं। चापसिंह ने पटका-कटार को मानने से इन्कार करता है तो शेरखां तिल का निशान की कहता है तो चापसिंह क्या कहता है-

सभा में तिल का सुणा निशान, झड़गी चेहरे की लाली,
कद्र रजपूतां की घटी ।। टेक ।।

मै डोब्या तेरे एतबार नै, दुख दे दिया ब्याही नार नै,
मारने गए मृग भगवान, सीता छल करकै ठाली,
रावण पहूंचा पंचवटी ।।1।।

तूं मनै दीन दुनी तैं खोगी, डाण मार्ग मै कांटे बोगी,
होगी सोमवती बेईमान, शेरखां बण बैठा बाली,
तेरी सुग्रीव तै प्रीत हटी ।।2।।

शेरखां दरबारां में सजग्या, ढोल तेरी बदनामी का बजग्या,
विक्रम तजग्या महल मकान, बकी थी पिंगला नै गाली,
भरथरी नै पाछै जाण पटी ।।3।।

गळ मै घलया विपत का फन्द, म्हारे सब छूटगे ऐश-आनंद,
लख्मीचन्द धरै तेरा ध्यान, दुर्गे तूं दंगल मै ध्या ली,
तेरी कलयुग मै जोत डटी ।।4।।

चापसिंह को गिरफ्तार कर लिया जाता है। जब चापसिंह से उसकी फांसी से पहले कोई आखिरी ईच्छा पूछी जाती है तो चापसिंह सोमवती से मिलने के कहता है। जब चापसिंह सोमवती से मिलने जाता है तो अपने पति के आने खबर सुनकर सोमवती उसका आरता करने के लिए आती है तो चापसिंह क्या कहता है-

मै आरते के जोग, तनै निरभाग, बता कित छोडया रै ।। टेक ।।

पतिवर्ता धर्म बतावै थी, पठाण के नै घरां बुलावै थी,
खुवावै थी मोहन भोग, अडा़ न्यू गोडे कै गोडा रै ।।1।।

वैं के कहे बिना ऊकैं थे, बोल मेरी छाती मैं दूखैं थें,
सभा के सब थूकैं थें लोग, मरूं ले क्यां का ओडा रै ।।2।।

कद सुख होगा परम परे जितणा, दण्ड फल मिलज्या कर्म करे जितणा,
आज मेरै माणस मरे जितणा सोग, तनै किस पाजी पै पैहरा ओढा रै ।।3।।

लख्मीचन्द ये नक्शे झड़गे, आज मेरै नाग विपत के लड़गे,
उघड़गे जाणै किन कर्मा के रोग, चला दिया कोड़ा-कोड़ा रै ।।4।।

अब सोमवती और चापसिहं में वर्तालाप होती है। कैसे-

ताने मतना मारै, गोरी थारी मरज्यागी ।।टेक।

सोमवती:-
मैं ना नेम धर्म तै घटी, बता तनै किसतै मालूम पटी,
तेरी नाव डटी सै किनारै, खेवैगा तै तरज्यागी ।।1।।

चापसिंह:-
जै पतिवर्ता प्रण नै त्यागै, जती मर्द कित डूबण भागै,
जीवती रही तै सारै, मेरी रेह-रेह माटी करज्यागी ।।2।।

सोमवती:-
साजन या बात बणी कुछ न्यूं ना, खाती झूठी भाई की सूं ना,
क्यूं ना समय विचारै, ना तेरी सारै बात बिखरज्यागी ।।3।।

चापसिंह:-
देखणा चाहता ना एक घड़ी, तू काली नागण बणकै लड़ी,
खड़ी चीर नै उभारै, मेरै के रोए तै जरज्यागी ।।4।।

सोमवती:-
म्हारा तेरा बीर-मर्द का नेग, भरया कपड़्या तैं ठाढा बैग,
क्यूं तेग नै समारै, मेरी आप्पै गर्दन चिरज्यागी ।।5।।

चापसिंह:-
आज मेरा दुख भरया शरीर, सांप लिकड़ग्या पीटूं लकीर,
बीर जो आबरो नै तारै, इज्जत पै माटी फिरज्यागी ।।6।।

सोमवती:-
लख्मीचन्द बोल की सजा, जाणग्यी मै सिर पै छागी कजा,
तेरी धजा सै चुबारै, गेरैगा तै तलै गिरज्यागी ।।7।।

चापसिंह क्रोध मे भरकर क्या कहता है-

पगड़ी थी रजपूत की, तनै तार बगादी गाल मै ।। टेक ।।

राही चलणी ना ठीक कुरी थी, सदा म्ह के गलै छूरी थी,
कदे धाक बूरी गजपूत की, आज लिया लाद ऊंट की ढाल मै ।।1।।

तूं निरभाग पेट की काळी, मनै तै इबै देखी-भाळी,
डाळी समझूं था चन्दन मजबूत की, तूं रही जाम लीलबड़ी जाल मै ।।2।।

डरूं सूं सत टुटण के भय से, ना तै सिर काट उडादूं एैसे,
जैसे शिवजी नै मेर तज पूत की, गणेश का सिर काट उडा दिया बाल मै ।।3।।

लख्मीचन्द कोड मचा दिया फैल, डोब दिया रजपूतां का छैल,
जैसे नूणांदे गैल सज पूत की, कत्ल करावै थी दया कहां चण्डाल मै ।।4।।

अब सोमवती विनति करती है- हे! पतिदेव मुझे कोई खबर नही है। मै आपके गुस्से का कारण नही समझी। फिर चापसिंह क्या जवाब देता है-

तनै मेरी लई आबरो तार, बस बदकार,
हट बूरी नार, परे सी नै बैठज्या ।। टेक ।।

जब तेरा जिकर चल्या पंचात मैं, तनै बूरी करी मेरी साथ मैं,
सब थूकै था संसार, हंस दरबार,
छंट बूरी नार, परे सी नै बैठज्या ।।1।।

बच्चया आळा खेल खिलावंती, कई बार इसी मन मै आंवती,
जाणू तन्यै गेरूं ज्यान तै मार, कस तलवार,
कट बूरी नार, परे सी नै बैठज्या ।।2।।

तनै काम करया बड़े फैल का, बेड़ा रजपूतां के छैल का,
तनै डोब दिया मझधार, धंस बीच गार,
डट बूरी नार, परे सी नै बैठज्या ।।3।।

कहै लख्मीचन्द छन्द के जोड़ तै, हम भी मर लिये सै तेरी ओड़ तै,
ले चन्दण मणियां की लार, घिस एक सार,
रट बूरी नार, परे सी नै बैठज्या ।।4।।

सोमवती चापसिंह से पूछती है ये कौन शेरखां है जिसका नाम लेकर आप मुझ पर ये घटिया आरोप लगा रहे हो। यहां पर तो बस आपकी बुआं जरूर आई थी। इतनी सुनकर चापसिंह समझ गया, कि यह कोई धोखा है। और सोमवती निरदोष है। इसके साथ कोई छल हूआ है, पर मन मे कुछ प्रशन अब भी बाकि थे। अब सोमवती से क्या वर्तालाप करता है-

छ: महीने की कहग्या था, तनै सोचकै जिन्दगी काटी कोन्या,
था ढंग तेरी ईज्जत बिगड़ण का, तूं दो चीजां तै नाटी कोन्या ।। टेक ।।

जब तै बच्ची बणै थी प्रण की, रही ना दासी पति के चरण की,
मेरी सधली सै घड़ी मरण की, कितै लिकड़ण नै घाटी कोन्या ।।1।।

घुण नै खा लिया पेट चणे का, के अर्सा था दिन घणे का,
मजा चखाता बुआ पणे का, वा आज तलक तनै डाटी कोन्या ।।2।।

बैरण जागी बिना औलादी, मेरे मरे की गमी ना श्यादी,
तनै पति की फन्द मै ज्यान फसादी, तेरै कोढ लाग देह पाटी कोन्या ।।3।।

जब तूं बच्ची बणै थी भगत की, तनै सब मेटी पैड़ अगत की,
लख्मीचन्द कर सैल जगत की, रोज बसण नै जांटी कोन्या ।।4।।

इतनी कह कर चापसिंह वापिस शाहजहाँ के दरबार में आ जाता है। इधर सोमवती अपने पति को छुड़ाने और खुद को निर्दोष साबित करने के लिए शाहजहाँ के दरबार की ओर चल पड़ती है। रश्ते में उसे नाचने गाने वाली नटणियां मिलती हैं। तो सोमवती नटणियों से गाणा-नाचणा सीखने की याचना करती है तो उनसे सोमवती को क्या जवाब मिलता है-

तू रजपूतां की राणी तेरे तै, नाच्या भी ना जाणे का ।। टेक ।।

खतरा हो सांस-सांस पैं, चालैं उस मालक की आस पै,
नटणी बण कै बांस पै, जांच्या भी ना जाणे का ।।1।।

यूं काम नही तेरे लाक, पति बिन नहीं बीर की साख,
झूठे माणस का वाक, कदे जांच्या भी ना जाणे का ।।2।।

चाहे कितनाऐ सुख होज्या पीहर का, मर्द बिन धेळा ना उठै बीर का,
जो लेख लिख्या तकदीर का, और तै बांच्या भी ना जाणे का ।।3।।

लख्मीचन्द कहै शरीर साधणा, मुश्किल होज्या मन कपटी बान्धणा,
भठियारी का रांधणा, अलूणां-काच्चा भी ना जाणे का ।।4।।

अब सोमवती क्या कहती है-

हे! थारी भाग्यवान की जड़ मै, को-दिन मेरा भी गुजारा होज्या हे ।। टेक ।।

तुम सोवो जब सोया करूंगी, थारे मल-मल पां धोया करूंगी,
मोती पोया करूंगी लड़ मै, मेरे आते सुख सारा होज्या हे ।।1।।

पती मनै करग्या दुख की आझण, कद पायां मै टूम लगै बाजण,
हम तुम साझण रहैंगी बगङ मै, चाहे सब कुणबा न्यारा होज्या हे ।।2।।

हरदम रहूगीं हाजरी मै खली, थारी आज्ञा बिन जां ना टली,
मै भी एक फली लाग रहूंगी घड़ मै, केला तूं स्वर्ग किनारा होज्या हे ।।3।।

लख्मीचन्द बख्त का गवाह, महल बणवाले आनंद की दवा,
चलै हवा भादवे के झड़ मै, झांकीदार चौबारां होज्या हे ।।4।।

अब नाचने वाली और सोमवती की आपस मे क्या बातचीत होती है।

सिरकी के मै करै गुजारा, तेरा रंगीला महल,
हम प्रदेशी दूर के, तूं किसकी चालै गैल ।। टेक ।।

म्हारा सै नटां का बाणां, हमनै पड़ै मांगणा-खाणा,
एक जगह ना म्हारा ठिकाणा, करै चौगरदे सैल ।।1।।

जिनस आवै काम पास की, के घूर डोबगी नणंद-सास की,
के घर मै बोदी बेल नाश की, के पति त्यागग्या छैल ।।2।।

तू रस की भरी बाणी सै, समझले तूं अकलमन्द स्याणी सै,
तूं रजपूता की राणी सै, तेरी कौण करैगा टहल ।।3।।

लख्मीचन्द कहै बात ख्याल की, तूं मुरगाई असल ताल की,
थारै अरथ सुत्र गज पालकी, और बुग्गी टिम-टिम बैल ।।4।।

अब नटणी सोमवती को एक बात के द्वारा क्या समझाती है-

तेरे तै नाच्या ना जाणे का, तू राजा की राणी,
कठिन मांगणी भीख ।। टेक ।।

मरैगी किसे नै आच्छी भुंडी बकदी, क्यूं आख्यां पै ठेकर ढकदी,
जो बेमाता नै लिख दी, गैर तै बाच्यां ना जाणे का,
उसकी कलम निमाणी, लिऐ पकड़ धर्म की लीख ।।1।।

बुरी नाचण-गावण की कार, यो सै परखणिया संसार,
मंगती बणकै नै दात्तार, कोई जाच्यां भी ना जाणे का,
मुश्किल नाड झुकाणी, दे डोब बिराणी सीख ।।2।।

क्यूकर विष का प्याला घूंटया, कुटम तै मेल-मुलाहजा टूटया,
हो जो कई जन्म का झूठा, कदे साच्या भी ना जाणे का,
रहैगी झुठी-ऐ बाणी, वो बात कहण की ना ठीक ।।3।।

गुरू मानसिंह बचना का बान्धा, हिय चांदणा नेत्र का आन्धा,
लख्मीचन्द भठियारी का रान्धया, कदे काचा ना जाणे का,
गुरू की टहल बजाणी, कति रहण की ना फिंक ।।4।।

अब नटणीयों को सोमवती पर दया आ गयी। और सोमवती उनके साथ रहकर नाचना-गाणा करने लगी। फिर जल्द ही बहूत सुन्दर कलां सीख गई कि समुह की बागडोर हाथ में आ गई। दूसरी तरफ चापसिंह को दरबार मे लाया जाता है। शेरखां ने मनादी करा दी कि चापसिंह को फांसी पर लटकाया जाये। इस खुशी में नाच-गाणा करवाना चाहता है। वह नाचने-गाणे वालों की सरदार सोमवती से मिला और दरबार मे प्रस्तुति का न्यौता दिया। बहूत सारा धन देता है। अब आगे-आगे शेरखां और पीछे-पीछे सोमवती जाकर दरबार मे पहूच गयें। जब सोमवती को चापसिंह ने शेरखां के साथ देखता है तो क्या कहता है-

वैं पतिव्रता बीर नही, जिनकै शर्म नही बड़े-छोटे की ।। टेक ।।

वो सब जीत जगत का जंग ले, जाण कोये पतिव्रता का रंग ले,
बाध कंगले तै अमीर नही, जै लुगाई मिलज्या महर-मलोटे की ।।1।।

लुगाई हो चाहे किसे निर्धन की, पर हौणी चाहिएे पक्के मन की,
उनकी आच्छी तकदीर नहीं, जिन नै ना परख खरे-खोटे की ।।2।।

उसका जाणू सूं खोज कति मैं, अवगुण ना पावै नार सती मै,
पति मै जिसका सांझा-सीर नही, वा के साथी रहैगी नफे-टोटे की ।।3।।

कहै लख्मीचन्द विचार सौंण नै, सिध्द ना हो तै ले धार मौन नै,
हौंण नै जै जगह फकीर नही, तै लुगाई चाहिए दास सोटे की ।।4।।

जैसे ही सोमवती दरबार में पहूचती है। अपनी कलां का प्रदर्शन करती है तो कवि ने क्या वर्णन किया-

दिया गाड सभा म्य बांस, कोए नाचै कोए कलां करै ।। टेक ।।

आज म्हारी सधरी औळी घड़ी, आज पासंग ना कदे थी धड़ी,
रो पड़ी घाल सबर के सांस, रो-रो अंखिया मल्या करै ।।1।।

मै भजन करूं दिन निस के, प्याले पिऊँ भक्ति रस के,
जिसके बालम कै ना हो विश्वास, लुगाई वा म्ह-ऐ मै जल्या करै ।।2।।

चिंता मेरे गात मै जगी, सुख की समय सौ-सौ कोस भगी,
लगी नाचण-गावण की चास, चाल मुरगाई ज्यूं चल्या करै ।।3।।

नाचणां-गाणां काम शुरू का, या प्रजा सै खेत बरू का,
यो लख्मीचन्द गुरू का दास, राम जी सबका-ऐ भला करै ।।4।।

सोमवती का नाच-गाणा देख कर शाहजहाँ बहुत खुश हुआ। वह सोमवती से मन चाहा इनाम मांगने के लिए कहता है तो सोमवती कहती है की महाराज आपकी सभा में एक चोर है जो मेरे घर से सामान चुरा लाया। वह शेरखां का नाम लेती है। शेरखां कहता है की वह कोई चोर नहीं है और कोई सामान चुरा कर नही लाया है। वह तो उस नाचने गाने वाली को जनता भी नहीं है। जब शेरखां ने कुरान उठाकर यह हल्फ ले लिया कि उसने आज से पहले सोमवती को नही देखा है तो सोमवती बताती है कि वह चापसिंह की पत्नी सोमवती है। अब तो बादशाह सारा हाल समझ गया और उसने शेरखां को फांसी का हूक्म दे दिया। और चापसिंह को बरी कर दिया। अब चापसिंह सोमवती के पास जाता है और उससे क्या कहता है-

तनै मेरी लई आबरो डाट, ना तै ब्योंत मरण का हो लिया था ।। टेक ।।

तूं सब गुणां तै हूर भरी सै, मेरे हृदय मै लिखी धरी सै,
तनै मेरी गेल्या इसी करी सै, जैसे बण मै न्यारा पाट,
नल दमयन्ती नै टोह लिया था ।।1।।

तूं पतिव्रता नार जरूर, मनै तू न्यू करदी थी दूर,
जैसे शिवजी की दृष्टि करूर, तै लिए पार्वती के सिर काट,
फिर जन्मी शिव मोह लिया था ।।2।।

इसी करी तनै ब्याह पत से, जुणसा पतिव्रता आळे मत से,
जैसे राणी मदनावत के सत से, भीड़ी हुई थी स्वर्ग की बाट,
कांशी शहर स्वर्ग मै ढो लिया था ।।3।।

लख्मीचन्द आनंद लहरे में, धन्य-धन्य रंग गोरी तेरे सेहरे मैं,
आज इस कलयुग के पहरे में, तूं के उन सतियां तैं घाट,
मनै कांटया जिसा बो लिया था ।।4।।

हार-जीत की बाजी चापसिंह और शेरखां में लगी हूई थी। चापसिंह कहने लगा, शेरखां। मै तेरी ज्यान को बख्श देता हूं, परन्तू आगे के लिये मेरी बात याद रखना। अब चापसिंह शेरखां को क्या समझाता है-

पिछला कर्म ध्यान मै ल्याणा, अपणै हाथ नही सै,
गैर बीर के मोह मै फंसणा, आछी बात नही ।। टेक ।।

स्वाद जीभ का रूप देखणा, यो माणस नै मारै,
इश्क की सुणकै चित मै धरले, ज्ञान की नही बिचारै,
तरहां-2 की ले खश्बोई, फिरै भरमता सारै,
गर्म-सर्द दुख-सुख ना मानै, भूख-प्यास भी हारै,
ना तै झूठे आशिक फिरै भतेरे, सुख दिन-रात नही सै ।।1।।

पर त्रिया से जो नर-बन्दे, इश्क कमाणा चाहवैं,
ठाढी नदी बहै नर्क की, प्यावैं और न्हावावैं,
गैर पुरूष और गैर स्त्री, जो खुश हो इश्क कमावै,
उनकी ताती मूरत कर, लोहे की अग्नि बीच तपावै,
मार-पीट कै छिन्न-भिन्न करदे, रहै जात-जमात नही सै ।।2।।

पर त्रिया के तजण की श्रद्धा, जै किसे नर मै हो तै,
पतिव्रता के कायदे करती, जै इसी ब्याही घर मै हो तै,
जितणी नीत बदी मै राखै, जै इतनी हर मै हो तै,
मिटज्या आवागमन राम का़, नाम जिगर मै हो तै,
भला जीव का मन मैं सोचै, अपणा गात नही सै ।।3।।

लख्मीचन्द कहै बुरा जमाना, सोच-समझ कै चलणा,
लुच्चे-गुण्डे बेईमाना तै, सौ-सौ कोसां टलणा,
एक नुक्ता तै लिखा वेद मै, प्यारा सेती मिलणा,
जिसतै इज्जत-धर्म बिगड़ज्या, उसकै गल नही घलणा,
यारी कै घरां जारी करणा, इसतै बत्ती घात नही सै ।।4।।

अब सोमवती चापसिंह से क्या कहती है-

जाण दे हो भुलज्यां पिया, रंज-फिकर नै त्याग दे ।। टेक ।।

इसी हो सै पतिव्रता नारी, तन पै ले ओट मुसीबत भारी,
पार्वती जै शिव की प्यारी, क्रोध करे तै पति सती कती,
धड़ तै सर नै त्याग दे ।।1।।

तन पै भारी विपत सही थी, जान फन्दे कै बीच फही थी,
दमयन्ती पति के साथ गई थी, दुख-सुख नै एकसार समझ,
पतिव्रता घर नै त्याग दे ।।2।।

जोड़े मैं गैल सजी थी, माळा दिन और रात भजी थी,
रामचन्द्र नै भी सिया तजी थी, त्याग दई थी सती कती,
कुण ब्याहे वर नै त्याग दे ।।3।।

लख्मीचन्द हरी गुण गावैंगे, फेर मन इच्छा फल पावैंगे,
वे नर पाछै पछतावैंगे, छोड़कै जो धर्म मूर्ख नर,
डर नै त्याग दे ।।4।।

अब सोमवती और चापसिंह मिलकर शेरखां को क्या कहते है-

फांसी तुडवावै था डूबग्या पठाण के,
पेशे तनै आवै बैरी लूट-लूट खाण के ।।टेक।।

हम तनै देखे उसे पा लिऐ, हम तनै मौके पै अजमा लिऐ,
मै जाणग्या तेरे दिन आ लिऐ, दुनियां मै तै जाण के ।।1।।

हमनै के तू अजमावै था कोरे, टूटते ना जति-सतियां के डारे,
घणे दिन होगे मर लिऐ छोरे, पतिभर्ताओं की हाण के ।।2।।

तुम पतिव्रत धर्म मै क्या लो, इसका मत तै सुपनै मै भी ना लो,
खुद चाचा की बेटी नै ब्याहल्यो, ना भाई सगी बहाण के ।।3।।

लख्मीचन्द देर मै जागै, वे जा लिऐ मोक्ष नै भागै,
जिनकै ह्रदय उपर बाण लागै, पद निर्वाण के ।।4।।

सोमवती चापसिंह से कहती है कि वह अपने धर्म पर अटल थी। चापसिंह को लगा की सोमवती को अपने पतिव्रता होने पर घमंड हो गया है तो वह क्या कहता है-

धर्म पै डटी भतेरी नार, एक तू डटगी तै के होग्या ।। टेक ।।

सती अनसुईया ऋषि की शरण मै, बहुत साल तक रही परण मै,
ध्यान था अत्री जी के चरण मै, दई थी आधी उमर गुजार,
राम नै तू रटगी तै के होग्या ।।1।।

या पतिव्रता की मजबूती, तू समझै सै बात कसूती,
उतानपाद की नार सुनीती, वा बालम नै दई बिसार,
एक तू मिटगी तै के होग्या ।।2।।

शिव नै सुती राड़ जगादी, प्रीती शक्ति के संग लादी,
धूणें पै तै फेर वा अलग हटादी, 108 बार लिऐ सिर तार,
एक बै तू कटगी तै के होग्या ।।3।।

गुरू मानसिंह समझादे, लख्मीचन्द नै पतिव्रता आळे कायदे,
श्री कृष्ण जी छोड गए राधे, कुब्जा संग करकै नै प्यार,
एक तू न्यारी पटगी तै के होग्या ।।4।।

अब तमाम बाते सुनकर चापसिंह सोमवती से क्या कहता है-

बोलिए, मुंह खोलिए, हो लिऐ उरे नै गोरी,
आ लाड करूं ले तेरे ।। टेक ।।

रही तूं किसे चीज मै ना फीकी, तेरे मस्तक मै रोळी-टीकी,
नाचणा-गाणा कद मै कै सीखी, आगी फिरकै, पाया नै धरकै,
कर्मा करकै, म्हारे-तेरे गोरी, फेर मिलणे थे चेहरे रै ।।1।।

न्यू नही काम चलै ल्कोह सै, गोरी नही मेरे जिगर मै धौ सै,
पर मनै एक बात का मोह सै, साथ मैं, पंचायत मैं,
हाथ मै, ले हाथ गोरी, गैल लिऐ फेरे रै ।।2।।

तूं मेरी साझण हिर-फिरकै, इब नही काम करैगें डरकै,
आगी रै कांधै झोळी धरकै, टेक कै, कर सेक कै,
देख कै, ये काम गोरी, आऐ होगे मेरै रै ।।3।।

लख्मीचन्द माळा रट हर की, मिलगी तूं अर्धशरीरी घर की,
तनै सही राखी बर की, ल्याज, आज,
धर्मराज, के बाहर ना तै गोरी, लागणे थे डेरे ।।4।।