किस्सा पद्मावत

रत्नपुरी शहर में राजा जसवन्त सिंह राज करते थे। उनका एक लड़का था जिसका नाम रणबीर सैन था। उसी शहर में एक सेठ सूरजमल रहता था जिसके लड़के का नाम चन्द्रदत्त था। रणबीर और चन्द्रदत्त की आपस में गहरी मित्रता थी। एक दिन दोनों जंगल में शिकार खेलने के लिए जाते हैं। कैसे-

दिन लिकड़या पीली पटी, चलने की सुरती रटी,
ना डरते, फिरते, करते सैल बण की रै ।। टेक।

तला नीर कै भर रहे, उपर कै भौरे फिर रहे,
बड़ा शोर आनन्द का कर रहे, खुशी दिल में,
पल में, जल में झलक जिनकी रै ।।1।

बाहर नगर तै लिकडे, जहां लम्बे-लम्बे दरखत खड़े,
जहां चन्दन के देखे बिड़े, खुशबोई टोही,
खोई दुरगन्धी तन की रै ।।2।

बोले कोल पपइयॉं मोर जी, जहां मौनी धारण कर रहे और जी,
कर रहे आनन्द का शोर जी,
होशियार डार लार फिरै मृगन की रै ।।3।

उस उपवन में बसता रहा, ज्ञान दीप चस्ता रहा,
रंग देख-देख हंसता रहा
लखमीचन्द कहया, गया, दया श्री कृष्ण की रै ।।4।

दोनों एक साथ घर से निकले परन्तु जंगल में जाकर रणबीर चन्द्रदत्त से बिछड़ गया और एक सुन्दर बगीचे के अन्दर पहुंच गया। रणबीर चन्द्रदत्त को भूल जाता है और बगीचे की शोभा देख वहीं पर बैठ जाता है। बगीचे में सुन्दर महल है, ताल है। अचानक उसे कुछ सखियां स्नान करने के लिए आती दिखाई देती हैं। कैसे-

पांच सात ढंग दूर एकला प्रदेशी बन्दा,
चमन में बैठग्या छुप कै ।। टेक।

मिलाणा सै हूर परी तै जोड़, मेरी रही तड़फ एकले की खोड़,
एक सै पाक्या ओड़ अंगूर, हटा कै फल छोटा गन्दा,
मैं सूआं बण तोडूं लपक कै ।।1।

के फायदा न्यूंये सहम बसे मैं, मिलैगा जो कुछ कमर कसे मैं,
झट हो लिया नशे मैं चूर, छोड़ कै घर बिध का धन्धा,
इश्क के गोले से गपकै ।।2।

परी सै इन्द्र राजा के घर की, तसल्ली छैल छबीले नर की,
ठीक सै पन्दरा सिर की हूर, तोल ल्योछ चाहे आख्यां का अन्धा,
पूरी पांच फूट की नप कै ।।3।

लखमीचन्द भेद टोहवण का, गया सुख जागण और सोवण का,
लुगाईयां का मन मोहवण का नूर, मोह लिए सूरज और चन्दा,
ऋषि झक मार गए तप कै ।।4।

रणबीर अपने मित्र को याद करता है-

सुण चन्द्रदत्त मेरे यार कितै सुणता हो तै बोलिए ।।टेक।

ध्यान धरै नै परमेश्वर का, जैसे गोरी नै आसरा बेशर का,
तेरा भाई केसर का क्यार रै , बिना धणी चुगैंगे गोलिए ।।1।

मत छेडै पाप घड़े नै, रै दुख के नाग लड़े नै,
बिछड़े नै होए दिन चार, अरै जाणै बरस हजार हो लिए ।।2।

दुख में कालजे दुखे, हम ना किसे बात नै चूके ,
लिए सौ-सौ रूक्केा मार, अरै झाड़ बोझड़े भी टोह लिए ।।3।

क्यों बोलण तै होग्याा बन्द, गल में घला विपत का फन्द,
लखमीचन्द बस माया कै संसार,
जिसनै ऋषि मुनि सिद्ध मोह लिए ।।4।

रणबीर अब अपने मन में क्यात सोचता है-

गया बैठ पलंग पै जाकै, धड़का करकै दूर शरीर का, पलंग पै टेढ़या होग्या ।। टेक।

माया लगरी ऐड़ी सैड़ी, जड़ै हूरां की लगी कचैहड़ी,
सामने लगी कांच की पैड़ी, ताल भरया जड़ में सुन्दर नीर का,
था पाणी पीवण जोगा ।।1।

एक ताख में तै डिब्बा धरा ठा लिया, जिसमैं लिकड़े पान छालिया,
एक खुशबो का पान खा लिया, झट दिल होग्या खुश रणबीर का,
मजे का मतलब टोहग्या ।।2।

धन माया की जोत जागरी, जाणै प्रस्ताखन में परी भाग री,
महल में घण्टे घड़ी लागरी, यो करतब किसे छैल अमीर का,
देखते ए आनन्द सा भोगा ।।3।

देखै था चौगरदे फिरकै, पलंग पै लगगी आंख पसर कै,
लखमीचन्द कह छन्द धरकै, कौण दे लीख मिटया तकदीर का,
अरै लिख दिया सोए भोग्या ।।4।

सखियां पदमावत को झूलने के लिए कहती हैं पर वह इन्कार कर देती है। जब वे घूम रही थी तो वही प्रदेशी बाग में छुपा देखा। यह बात पदमावत को बताई गई। अब रणीबर पद्मावत के महल के पास गया तो वहां की रौनक देखकर हैरान हो गया और उस महल की प्रशंसा करता है-

किसनै महल बणाया सै यो ढंग दुनिया तै न्यारा,
पर्दे जाली चक चांदी के झांखीदार चौबारा ।।टेक।
जगह चखूटी नींव चोए मैं ऊंची छात दिवाई,
तरह-तरह के कूट मशाले चंगी करी लिपाई,
काले पीले हरे रंग किसी दे रहे सै रूशनाई,
देश-देश की माया लूट कै इस कमरे मैं लाई,
महल दुमजला दरवाजे पै मोर फराटे ठारया ।।1।

चौखट आगै चौंक चौंतरी दोनों ढब पड़काला,
जड़े किवाड़ खड़े शीशम के कूंदी लगी ना ताला,
फर्श गिलोरी संगमरमर के धन माया का गाला,
सोने का पाणी होया छांत में देख्या ब्योंत निराला,
पुस्तक धरी वेद मंत्र की महे ठाकुर द्वारा ।।2।

कुए पै नल लग्याम चमख्खा जल पीज्या कोए मुंह धोज्या।,
आहमी स्याहमी दस कोठड़ी बोल गूंज मै खोया,
पलंग निवारी पड़े कमरे में कितणाये कुणबा सोज्याी,
एक बिजली का बटन दाबते ही सहम चान्दणा होज्या,
शकल जमाना देख्या घूमकै कमरे का ढंग प्यारा ।।3।

एक तला भरा ठण्डे जल का महे तरैं मुरगाई,
एक आधी जगह कन्ठारे पै हरे रंग की काई,
गुरु मानसिंह बता गए जो धर्म कर्म की राही,
लखमीचन्द जिननैं समझ कै टोही उन बन्दां नै पाई,
सैकिण्ड मिनट और घड़ी घण्टे में एक घण्टा टेम दिखाया ।।4।

अब रणबीर पलंग पर लेट जाता। है और उसे नींद आ जाती है। और क्या होता है-

नींद में बीती रात तमाम सो लिया छोरा दिन लिकड़े उठा ।।टेक।

बन्धया इश्क रूप तागे कै, मिला यू फल रात जागे तै,
होग्या आख्यां आगै के इसा काम, रात नै कोए तारा सा टूटया ।।1।

मैं प्रदेशी माणस दूर का, मारया मरग्या परी की घूर का,
हूर का गोरा-गोरा बदन मुलायम, रूप जाणू बम्बा सूरज का फूटया ।।2।

रूप में अगांरा सा झड़या, मैं रहया सहम एकला खड़या,
आज के तलै टूट पड़या मेरे राम, तला पै किनै प्रदेशी लूटया ।।3।

लखमीचन्द छन्द की कह दे कली, सब ईश्वर कर देंगे भली
कै तै या हूर मिली सरेआम, ना तै जगत का झगड़ा झूठा ।।4।

सारी सखियां मिलकर तालाब में स्नान करने के लिए आती हैं-

नहाण चलैंगी सारी साथ हे, उस खास जनाने ताल मैं ।।टेक।

नहाये बिना किसनैं सरज्या सै, न्हाण तै कोये बेहूदी डरज्या सै,
ठरज्याा सै औले तैं शीला गात हे,
आवें सौ-सौ सुबकी एक झाल मैं ।।1।

जोड़ी सजती कोन्यां दो बिन, बात बणैं ना दूसरे के मोह बिन,
जोबन केले केसा पात हे, यो हिलै सै हवा की हाल मैं ।।2।

हे तुम किन बात तैं डरी , जाणू इन्द्र खाडे की परी,
मद में भरी रहो दिन रात हे,
जोबन जाणूं आम्ब दाब दिया हो, पाल मैं ।।3।

लखमीचन्द उमर की थोड़ी, बण कै सारस केसी जोड़ी,
जाणूं कोए घोड़ी चढै बरात हे, कोए चौकड़िया कोए चाल मैं ।।4।

अब आगे सखियां आपस में क्या कहती हैं--

कटठी होकै न्हाण चलैंगी, दोघड़ धर ल्यो सिर पै,
गीत गावती चालैंगी तुम लग्न लगाल्यो हर पै ।। टेक।

सिर चोटी कर लगा बोरला साज और डांडे बाली,
आंख मैं स्याही मस्तक बिन्दी जुल्फ नाग सी काली,
सिर पै चीर हजारी ओढ़या मद जोबन का पाली,
दामण उपर पड़ी तागड़ी झब्बे के मैं ताली,
घूर चलण दो हूरां आली पडै तवाई नर पै ।।1।

भोली शक्ल अकल बन्द पूरी ना ठाड़ी ना माड़ी,
सब के धोरै बान्धण खातिर नरम सूत की साड़ी,
कोहणियां तक की रेशमी कुर्ती आधी भुजा उघाड़ी,
शरबती चूड़ी नरम कलाई चलै टेम सर नाड़ी,
परियां केसा तीजन छाग्या इन्द्र केसे नगर पै ।।2।

राम भजन का शौंक लागरा सबकै बालेपन मैं,
कर अस्नान भजन करणे का करया संकल्प मन मैं ,
किसे चीज की कमी नहीं थी सखियां के तीजन मैं,
16 कला भरपूर खिल्याख पूनम का चान्द गगन मैं,
झाल लागती ताल की तन मैं सीलक रहै जिगर पै ।।3।

गोरी सांवली श्याम वर्ण की सुथराए बाणा दिखै,
ईश्वर राजी पद्मावत पै जोबन याणा दिखै,
किसे बेईमान के दर्शन होज्यां तै मौत ठिकाणां दीखै,
लखमीचन्द कह भले बुरां का सब जस गाणा दीखै,
पास तख्त कै जाणा दीखै धर्मराज के घर पै ।।4।

सभी सखी सहेली पद्मावत के साथ बगीचे में तला पर पहुंच जाती है। तब पद्मावत स्नान करने के लिए तैयार हुई तो अपनी सखियों को क्या कहती है-

के बोली, न्यू बोली, कदे कोये मर्द देखले ना श्यान,
पूजा करती की ।।टेक।

कोए मर्द तला पै आ भी गया तै, भूलकै धोखा खा भी गया तै,
सब होली जाणै दब होली, कदे टूट पडै असमान,
समतल धरती की ।।2।

जी का झाड़ घल्याण मेरे गल मैं, मेरी सै नाव धर्म के जल में,
जै डबकोली, किसी दबकोली
करैं श्री भगवान, आस कुदरती की ।।3।

राम भजन बिन हो ना भला तै,
कोए मर्द तला पै आ निकला तै,
हद होली, जाणै कद होली, मैं मूर्ख नादान,
दया लियो मरती की ।।4।

कहैं लखमीचन्द बुरी बाण नहीं सै, मनै ऊंच नीच की जाण नहीं सै,
सूं भोली, हूं भोली, तुरत लिकड़ ज्यागी ज्यान,
हाय हाय डरती की ।।5।

सखियां पद्मावत से क्या कहती हैं-

सारे काम फतह होज्यांगे, तू त्रिलोकी का ध्यान करले,
हम रखवाली खड़ी तला पै, तू चित करकै स्नान करते ।।टेक।

सूथरी श्यान भजन का फल सै, इसमैं ना तिल भर हलचल सै,
गात लरजता ठण्डा जल सै, तू एक बर करड़ी ज्यान करले ।।1।

तेरे प्रण पै राम रटूंगी, मैं बचनां तै नहीं हटूंगी
एक तिल भर भी ना बधूं घटूंगी, तू बैरण मेरा इमान करले ।।2।

कड़वा बोल कर्द सा हो सै, सुण-सुण रंग जरद सा हो सै ,
घणी मत कहै दर्द सा हो सै, तू मुख मैं बन्द जबान करले ।।3।

मेरी रटना सै घणी देर की, आडै ताकत ना मर्द शेर की,
लखमीचन्द पै नजर मेहर की, त्रिलोकी भगवान करले ।।4।

सखियों की बात सुनकर रणबीर मन ही मन क्या कहता है-

थारा जंगल मैं के काम तला पै न्हाण आली ।।टेक।

जोड़ी ना सजती कदे दो बिन, काम बणै ना मोह बिन,
जोबन का झोंका थाम, जिन्दगी तै या जाण आली ।।1।

मै थारे इशारा नैं तकरया सूं, थारे गुण अवगुण लखरया सूं ,
मैं पकरया मालदे का आम, घूर कै खाण आली ।।2।

करो मत घोड़ी जितना दंगा, जाणै नशेबाज पी रहया हो भंगा,
ना दिखादूंगा जगांह पकड़ लगाम, जुणसी ठाण आली ।।3।

लखमीचन्द आनन्दी लूट, कदे न कदे जा तम्बू सा ऊठ,
जांगी डोरी टूट तमाम, जुणसी ताण आली ।।4।

सखी सहेली और पद्मावत सब झूल रही है। रणबीर भी बैठा बैठा छुपकर देख रहा है। पद्मावत तो झूलती रही तथा सखी इधर उधर घूमने लगी तो सखियां रणबीर को बाग में बैठा देख कर क्या कहने लगी-

कहे बोल दर्द के हो, जख्म कर्द के, आड़ै हुक्म मर्द के,
आवण का कोन्यां ।।टेक।

जच्रकया सती बीर का ध्यान, देखती नहीं वा मर्द की श्यान,
ज्यान बिराणी, मुफ्त मैं जाणी, सबनै यो पाणी,
थ्यानवण का कोन्यां ।।1।

रूक्के दे कै सिर नै धुणुं, जले तेरे बोल कसूते सुणूं,
बणूं झाड़ गले का, तला पै खले का, खोज जले का,
पावण का कोन्या ।।2।

तू क्यूं नीत पाप की धरै, जले तेरी निघां कसूती फिरै,
क्यूं करै सै हंघाई, हो लाम्बी राही, काम लड़ाई
ठावण का कोन्यां ।।3।

लखमीचन्द ज्ञान की बात, गुरू पै सीख्या कर दिन रात,
रट मात भवानी, रहै ना अज्ञानी, काम आसानी,
गावण का कोन्यां ।।4।

रणबीर सिंह उनसे पूछता है कि तुम कौन हो और कहां से आई हो जो तुम्हारे साथ हैं, कौन है। रणबीर उनसे सारी बातें पूछता है और कहता है कि उस सखी का नाम बताओ जिसका अलग से तला बना है-

तला जनाने न्यारे आली, साहुकार गुजारे आली,
मृगां जिसे लंगारे आली, या कौण लुगाई सै ।।टेक।

बह सै धन माया का लौट, कदे कोए मारया जा बिन खोट,
चालै चोट गवांरा खातिर, सत से बीच बिचारां खातिर,
मरीजे इश्क बेमारा खातिर खास दवाई सै ।।1।

ध्यान सच्चे ईश्वर का धरियों फेर बेशक निर्भय हो कै फिरयो,
दया करियों छाया डारण की, मंजिल सै बेमाता हारण की,
और आगै नक्शा तारण की, ना रूसनाई सै ।।2।

देख कै गोरी धन थारा हाल, बदलग्या मुझ बन्दे का ख्याल,
तुम चाल चलो मखनेगज कैसी, कई-कई झलक मोरध्वज कैसी,
गगन मण्डल मैं सूरज कैसी, थारी कला सवाई सै ।।3।

लखमीचन्द के खता कवि की, शोभा बरणी शशी रवि की,
उमर छवि की सोला वर्ष की, चिन्ता लगरी प्रेम दर्श की,
तला के ऊपर जोत अर्श की, या कित तै आई सै ।।4।

उन सखियों ने सारा हाल बता दिया कि हम कर्नाटक शहर के रहने वाली हैं। यहां हमारी सरदार सखी पद्मावत घूमने आती है यह उसी का बाग है। रणबीर कहने लगा कि भगवान तुम्हारा भला करेगा। मेरे को एक बर पद्मावत के दर्शन करा दो। सखी कहने लगी हम जाकर जिसको राम-राम करेंगी वही समझ लेना पद्मावत है। अब सभी सखी आ जाती हैं और क्या हुआ-

जोट गई एक तीसरी की जड़ में ।।टेक।

इश्क रूप का पड़ग्या जाल, चालै थी परवा माड़ी-माड़ी बाल,
मेरे कालजे के ढेक, सांस चालता दीखै धड़ में ।।1।

आकै मिलग्या कती हूर तै, मैं मारया मरग्या घूर तै, रहा दूर तै देख,
लरज जाणूं गाड़ी केसी फड़ में ।।2।

रंग सै हरे भरे पातां में, फर्क ना था गोरे-गोरे गाता में,
जड़ी दांता में मेख, मोती हार की ज्यूं लड़ में ।।3।

लखमीचन्द सत वचन भाखैंगे, गुरु का ज्ञान अमृत कर चाखैंगे,
राम जी कद राखैंगे टेक, पाटड़ा कद बिछैगा बगड़ में ।।4।

सारी सखियां पद्मावत के पास गई। पदमावत ने कहा कि तुम सब मेरे को छोड़कर कहां चली गई थी तब सखियों ने कहा कि बहन आज हमने एक बहुत सुन्दर लड़का देखा है वह तो सचमुच आपके योग्य है और एक सखी क्या कहती है-

पद्मावत सुणले तै कहदूं ख्याल करै जै मेरी बात का,
सुथरी श्यान गाबरू छोरा गोरे-2 गात का ।।टेक।

भूखी नहीं अंघाईयां की सूं , लागू नहीं बुराईयां की सू,
इसा मर्द ए भाईयां की सूं, चाहिए था तेरे साथ का ।।1।

क्यूं तू विष का प्याला घूंटै, सहज बात का ना पांडा छूटै,
मर्द बिना धेला ना उठै, इन बीरा की जात का ।।2।

परमेश्वर कै लेखा कोन्यां, ध्यान पती में टेक्या कोन्यां,
तेरे पिता नै देख्या कोन्यां, रंग आई तेरी बारात का ।।3।

लखमीचन्द धर्म पै चलता, लिख्या कर्म का कोन्यां टलता,
बिना पाणी कोन्यां खिलता, रंग केले के पात का ।।4।

अब पदमावत दर्शन करने के लिये खुद आती है-

जब सुणा सखी का बोल मर्द की देखण श्यान चली,
कर घूंघट की ओट सहम कै दूर खड़ी होगी ।।टेक।

डरूं कदे नेम टूटज्याद निज का, रूप जाणूं बिजली कैसा बिज़का,
घाघरा था पूरा 52 गज का, पड़ै थी औली सौली झोल,
जैसे कचिया बडबेर हली, मदजोबन की चोट दाब कै दूर खड़ी होगी ।।1।

चली थी सहज-सहज पग धरती, जैसे जल पर पै मुरगाई तरती,
छैल के आस पास कै फिरती,
सुन्दर श्यान बदन अणमोल, जाणू सूरज की किरण खिली
कुछ दिन की बड छोट समझ कै दूर खड़ी होगी ।।2।

गोल पग केले केसा दर्जा, चली जैसे नीवैं बोझ तलै नरजा,
बदन जाणूं लगै गोभ में लरजा,
थे रूखसार लाल मुख गोल, नैन जाणै मिश्री की डली,
पतले-पतले होठ चाब कै दूर खड़ी होगी ।।3।

लखमीचन्द ज्ञान बिन कोरा, बिना सतगुरू के नहीं धर धोरा,
सुथरी श्यान गाभरू छोरा,
ढह पड़ी हो कै डामां डोल, जब आंख्यां तै आंख मिली,
एक बै गई जमीं प लोट, फेर होश कर दूर खड़ी होगी ।।4।

अब पद्मावत क्या कहती है-

मरे बिनाखोट, हुए लोटपोट, मेरै चोट लागगी छाती मैं ।। टेक।

नहीं करते माशूक दया, शर्म का खोज कती ना रहया,
गया छूट साथ नहीं हाथ बात, गोरा गात ल्ह को लिया गाती मैं ।।1।

मेरे जी नै मुश्किल होरी, सारी बिन समझे कमजोरी,
ठीक सज कै बिजली सी होरी, गोरी लाल खाल, पातर का हाल,
जैसे चाल माखने हाथी मैं ।।2।

मनै तन पै दारूण दुखड़ा सहया, बता मैं के जीवण मैं जिया,
अरै दिया मार शेर, किसा हेर फेर, गई गेर पंतगा पाती मैं ।।3।

लखमीचन्द याद घणी राखी, गिणी गिणाई थी 11 सखी,
लिखी ना टलै, बलै न्यू ये जलै, तलै जैसे तेल कढाई ताती मैं ।।4।

सखियां घर चलने को कहती हैं तो पदमावत का और उसकी सखियों में क्या सवाला जवाब होता है-

हे घर नै चाल्या कोन्यां जाता, जले की मेरै खटक लागरी सै ।।टेक।

पद्मावत :-
हे तमनै बहोत करी कंजूसी, तमनै मैं नहीं मनाई रूसी,
मरै सै बिन आई मैं मूसी, सांप की सटक लागरी सै ।।1।

रणबीर :-
दिया छोड़ हाथ तै कोड़ा, सारा बिन समझे सै तोड़ा,
परी का चार आंगल चौड़ा माथा, जुल्फ की तै लटक लागरी है ।।2।

पद्मावत :-
बिपत की गल मैं फांस घलै, मेरे तै कोन्या इश्क झिलै,
मिलै जाणै कद श्याणा सा नाता, जाणै के अटक लागरी सै ।।3।

रणबीर :-
डोब दिया तनै परदेशी छैल, या कौड बणी मेरी गैल,
भागै जैसे बैल तुड़ा कै गाता, मरूंगा मेरै झटक लागरी सै ।।4।

पद्मावत :-
आंख कदे खोलै कदे मिचै, माली बिन कौण पेड़ नै सींचै,
ढह पड़ी चक्कर खा कै नीचै, इश्क की पटक लागरी सै ।।5।

रणबीर :-
दुख दूणा सा दगण लगा-आवा गौण, रंग बगण लगा,
लागण लाग्या ताता-ताता, पंतगे की जाणूं छटक लागरी सै ।।6।

पद्मावत :-
लखमीचन्द चालै चाल छबीली, जल्या बोलै सै बोल रसीली,
मरजाणे की दो आंख कटीली, गात मैं मटक लागरी सै ।।7।

रणबीर :-
लखमीचन्द रंग नई किस्म पै , दूसरै ढोलक की ढम-ढम पै,
ऐकली कीड़ी कितने दम पै, क्यूं तोलण कटक लागरी है ।।8।

चन्द्रदत्त का दोस्त रणबीर उससे बिछड़ जाने पर चन्द्रदत्त के साथ क्या बीतती है । यह दो निम्न बहरेतबील में वर्णित है-

जैसे नाचै उरवशी राजा इन्द्र की सभा में,
न्यू हंस हंस कै ताली बजाने लगी,
आपस में मिलाकै हाथ परी मुस्कुरा कै गाना गाने लगी ।।टेक।

हुस्न देवी ज्यूं रम्भा, ऐसा देखा अचम्भा,
धड़ चिकना बना जैसे केले का खम्बा,
नाक सूऐं की चोंच ना छोटा ना लम्बा,
साबुन मलमल कै तला बीच नहाने लगी ।।1।

मैं आजिज बनता रहा, सिर को धुनता रहा,
वो बतलाती रही और मैं गुनता रहा,
वो कुछ कहती रही और मैं सुनता रहा,
परी मेरा ही जिकर चलाने लगी ।।2।

एक नहाती रही, दूजी साबुन लाती रही,
एक लचक कै उरे सी को आती रही,
अपने जोबन की झलक दिखाती रही,
मुझे लुच्चा हरामी बताने लगी ।।3।

मारी इश्क भर गोली, रत्न जड़मां थी चोली,
कहै लखमीचन्द बोली कोयल की बोली,
याद आती है वो सूरत भोली-भोली,
जादू पढ़-पढ़ कै फूल बगाने लगी ।।4।

रणबीर आगे कहता है-

थी इन्द्र की हूर , मुख से बरसै था नूर,
मेरे दिल का सरूर सी खड़ी हुई थी ।।टेक।

थी सीरी सदा, जिसकी बांकी अदा, शैनशा पीरो गदा,
मनुष्य और परिंदे सब थे फिदा,
ठाली बे माता की घड़ी हुई थी ।।1।

सिर पै दखणी चीर, गौहर-कणी सीर,
रंग कौसे-कूजा की तरह बेनजीर,
क्या शहंशाह और पीरो फकीर,
सबकी आखें हुरम से लड़ी हुई थी ।।2।

थी शर्मसार, जैसे आली वकार,
जैसे गुलशन में होती गुलों की बहार,
महलका थी सामने इश्कबार,
दो नागण सी जुलफें पड़ी हुई थी ।।3।

थे मोटे चश्म, जिसका अच्छा किस्म
लखमीचन्द गुफ्तगु का किस्सा ना होगा खत्म,
जैसे सामण की लगी झड़ी हुई थी,
छम-छम, छमा-छम चली धम ।।4।

रणबीर सैन अपने मित्र चन्द्रदत्त से और क्या कहता है-

इबकै बचग्या तै बज्जर केसा, बण ज्यांगा पक कर मैं ,
फंसे भूल मैं आण घिरे, कित हुरां के चक्कर मैं ।।टेक।

मोर पपईया कोयल कैसी मीठी बाणी बोलै,
चमक का चक्कू मार दूर तै, मेरे जिगर नै छोलै,
एक आधी ब मन मोहण नै हंस कै घूंघट खोलै,
आश्क नर मारण की खातर हूर लरजती डोलैं,
समझणियां बच गए चोट तै , मैं आग्या टक्कर मैं ।।1।

निंघा कटारी गल काटण की पड़गी नजर हालती,
दम घुटग्या हुया बोल बन्द मेरी नाड़ी मन्द चालती,
हंस मुसकान करै खुश हो कै करकै कत्ल डालती,
ना लिकडै स्याणे की काढ़ी ऐसी घाल घालती,
तन लागी नै सब जाणैं ना करता मक्कर मै ।।2।

लाम्बी गर्दन आंख कटीली मुखड़े की छबी प्यारी,
चाल चलै जैसे हंस ताल के पल में लेत उडारी,
इत्र की खुश्बू छूट रही जैसे रूत पै केसर क्यारी,
कितै बेमाता नै घड़ी बैठकै चीत्ता लंकी नारी,
उजले दांत बोलै मीठी जाणूं घी घलग्या शक्कर मैं ।।3।

लखमीचन्द शोभा वरणे तै कवियां के मन भरज्यां,
बेहूदे नर ज्ञान की तजकै सौ-सौ कोस डिगरज्याय,
जो इन बातां नै ज्ञान मैं लाले उनके कारज सरज्याज,
इस माया की तारीफ करें तै मूर्ख जी तै मरज्या ,
इस माया के गुण दूर करण की गम योगी फक्कर मैं ।।4।

अब रणबीर अपने दोस्त चन्द्रदत्त से क्या कहता है -

दुनियां के ढंग बहुत देख लिए चन्द्रदत्त तेरी यारी करकै,
इसी बीर तै मिलणा चाहिए, ज्यान तै बत्ती प्यारी करकै ।।टेक।

मेरे दिल में आराम नहीं सै, चैन पडै सुबह श्याम नहीं सै ,
इस मैं बदमाशी का काम नहीं सै, गई सैं इशारा सारी करके ।।1।

चाल भाई तू भी दर्शन पाईए, जब मनैं आच्छा बुरा बताइए
उल्टा फूल सोपणा चाहिए, देगी चीज उधारी करकै ।।2।

बिन बालम हो नार बेहुनी, दिन तै रात लागती दूनी,
किसे बेईमान नै छोड़ी सुन्नीन, खिलमा केशर क्यारी करकै ।।3।

कहूं धर्म का ख्याल सोच कै, मुझ बन्दे का हाल सोच कै,
लखमीचन्द टुक चाल सोच कै, ना मारैगा काल खिलारी करकै ।।4।

रणबीर अपने मित्र चन्द्रदत्त से-

उस गोरी तै चलकै मुलाहजा करूंगा ।।टेक।

मेरै नाग विपत की लड़गी, तकदीरी विपता छिड़गी,
मेरी लैला बिछड़गी, मैं मजनू भर्मता मरूंगा ।।1।

पद्मावत का ध्यान वर पै, मेरी भी रटना साचे हर पै,
आज मेरै होग्या दर्द जिगर पै, उस शरबत बनफसे की घूंटी भरूंगा ।।2।

मैं जीता वो हार गई, तेग दुधारी परलै पार गई ,
वैं हंस कै फूल मार गई, मैं कितसी टोहता फिरूंगा ।।3।

हूर जाणैं कद मिलज्यागी फिरकै, रहा में इश्क फन्दे में घिरकै,
मानसिंह की सेवा करकै, कहै लखमीचन्द छन्द नै धरूंगा ।।4।

अब आगे रणबीर क्या कहता है-

ज्ञान बहुत सा रूप गजब का अकलबन्द भतेरी,
दर्शन कर लिए उपवन मैं हुई आनन्द आत्मा मेरी ।। टेक।

त्रिगुण नगरी पांच तत्व की गारया सात रंग की,
नौ दरवाजे दस पहरे पै भोगैं हवा उमंग की,
चार का भाग पांच संग मिलकै तेग दूधारी जंग की,
पांच का रूप-स्वरूप संग मिलकै जगह बणी नए ढंग की,
जै व्यापक ज्ञान दिवा बीच धरदे मिटज्या, सकल अन्धेरी ।।1।

धीरज बिना धारणा कैसी श्रद्धा बिना किसी सेवा,
गुरु बिन ज्ञान कभी नहीं मिलता सेवा बिन किसी मेवा,
कर्म बिना पूजा नहीं बणती विचार सूखों का लेवा,
ध्यान बिना सम्मान नहीं जो परम पदी सुख देवा,
या राजा बिना कती ना सजती जो फौज साथ में लेहरी ।।2।

छः विकार सत प्रकृति के चित चरोवण खातिर,
इतणा कुणबा कटठा कर लिया क्यूं जंग झोवण खातिर,
हंसैं बोलै करै नजाकत, न्यूं मन मोहवण खातिर,
माया उतर चली पृथ्वी पै जीव भलोवण खातिर,
बिन सतसंग सत्य श्रद्धा बिना तन माटी केसी ढेरी ।।3।

24 गुण सत प्रकृति के खेल खिलावण लागे,
एक शक्ति दो नैना बीच तीर चलावण लागे,
जीव पुरजंन बहू पुरजंनी मेल मिलावण लागे,
ईश्वर व्यापक जड़ चेतन की डोर हिलावण लागे,
कहै लखमीचन्द निष्कर्म करे बिन छुटती ना हेरा फेरी ।।4।

जब रणबीर अपने मित्र चन्द्रदत्त को ले कर फिर से पद्मावत से मिलने जाता है तो बाग़ के दरवाजे पर पहरेदार उसे रोक लेता है तो रणबीर उस से क्या कहता है-

ले तेरी मुट्ठी गर्म करू अरी -री री ।।टेक।

मत पकड़ो बुरा पेशा, तमनै राखूंगा याद हमेशा,
कागज केसा दिल नरम करूं अरी री-री ।।1।

दुनियां नक्कारे की चोभ दे, चाहे जिस मानस नै डोब दे,
दिया दिखा लोभ, इसा करम करूं हे री री ।।2।

थारी शरण आण कै, बात करी जल और दूध छाण कै ,
बड़ी जाण कै थारी शर्म करूं अरी री री ।।3।

लखमीचन्द की राम सुणग्या तै , जो मेरे हरफां नै गुणग्या तै ,
माली की जै मेरा काम बणग्या तै,
100-200 रू. धर्म पुन करूं हे री री ।।4।

रणबीर आगे क्या कहता है-

अरी हम दो बन्दे परदेशी फाटक खोल दे री ।।टेक।

बारणै बोल सुणै बैरण का, डंक लागरया नागण जहरण का,
इन बागां में कुछ ठहरण का सुण्या। कुछ मोल दे री ।।11

म्हारा भाग पड़ा सै हीणा, दीखै कोए घड़ी में विष पीणा,
आरया सख्त पसीना तू पंखा डोल दे री ।।2।

बड़ी रंग रूप हुसन मैं चातर, दिखै इन्द्र सभा की पात्र,
री प्यासे पीवण खातर सरबत घोल दे री ।।3।

मानसिंह उंचे दरजे मैं, लखमीचन्द नहीं हरजे में,
धरकै पाप पुन नरजे मै, तू काटैं का तोल दे री ।।4।

पहरेदार उस से क्या कहता है-

बाग जनाना ठहर ना सकते गैर आदमी आवण आले,
धोखा देकै माल लूटलें इज्जतदार बतावण आले ।। टेक।

तेरै के होरया सै मरज बाल मैं , चाल्या जा ना बकूंगी गाल में,
तेरा काल सै तेरी आल में, चोर की ढाल लखावण आले ।।1।

हमके किसे का एतबार करया करैं, न्यू के फन्दे बीच घिरया करैं,
पिट छित के हां भरया करैं सैं, चीज पराइ ठावण आले ।।2।

सतगुरु जी पै ज्ञान लिया कर, नित उठकै पुन दान किया कर,
तड़फ तड़फ कै ज्यान दिया करें, गरीब का टूक छुटावण आले ।।3।

लखमीचन्द कह बहुत चले गए, काल की चक्की बीच दले गए,
रोक टोक बिन पार चले गए ईश्वर का गुण गावण आले ।।4।

चन्द्रदत्त कहने लगा कि ऐसा क्या देख लिया। तब रणबीर क्या कहता है-

जिन्दगी में जल पिया नहीं, इसे तला के ठण्डे पाणी केसा,
कदे इशारा ना देख्या इसी नार अकलबन्द स्याणी केसा ।।टेक।

न्हाद थी पर्दा करै फर्द का, मारया मरग्या मैं परी के दर्द का,
मुखड़ा देखै नहीं मर्द का, नेम सति इन्द्राणी केसा ।।1।

इशारा करकै बदन स्यारगी, कर छाती में आर पार गी,
जादू पढकै फूल मारगी, बर्मा स्यार कमाणी केसा ।।2।

मनै भय ना कती मरण तै लागै, मिलूं कद प्रेम भतेरा जागै,
आंख्या आगै हिरती फिरती, धरती कौड़ी काणी केसा ।।3।

लखमीचन्द इश्क जंग झोग्या, इब माशूक कड़ै पड़ सोग्या,
पलभर मैं अचरज सा होग्या, सुपने जिसी कहाणी केसा ।।4।

चन्द्रदत्त कहने लगा कि भाई रणबीर सिंह मैं तेरी बात को ठीक तरह से नहीं समझ पाया हूं, तुम मुझे सब हाल खोलकर सुनाओ कि तुम्हारे साथ क्या हुआ। अब रणबीर बार-बार चन्द्रदत को क्या बता रहा है-

आंख कसूती काढ़ी आड़ी, ठाड़ी चोट जिगर पै लागी,
जुल्फ नाग सी कैहरण जहरण, बैरण मौत कड़े तै आगी ।।टेक।

रूप जाणूं चढ़रया चांद कला पै, मेरी सुरती सै हरी मल्हान पै ,
गई छोड़ तला पै, मरे नै, धरे नै, परे नै, फूल बगा कै भागी ।।1।

गहणा पहरे एक धड़ी थी, रंग खिलरा जाणू फूलझड़ी थी,
लवै भिड़ी ना दूर खड़ी थी, वा दूर तै हूर घूर कै खागी ।।2।

दर्शन कर लिया इसी बीर का, मेरै होरया जख्म इश्क तीर का,
कितै करूं शरीर का ढेर, फेर या शेर की ज्यान मुफ्त में जागी ।।3।

लखमीचन्द गुरु का दास, कर ईश्वर का भजन तलाश,
आश मिलण की सै मनै, रै मनै, जै मनै हूर फेर कै पागी ।।4।

लखमीचन्द ना बखत टलन का, इब रुत आरहा फूल खिलण का,
उसतै चाव मिलन का, सै मनै रै, रै मनै रै, जै मनै रै,
हूर फिर कै पागी ।।5।

चन्द्रदत्त अपने दोस्त को पर त्रिया से बचने के लिए ज्ञान की बात बताकर संकेत करता है-

पिछला कर्म ध्यान में ल्यादे अपणै हाथ नही सै,
गैर बीर के मोह मै फंसणा आच्छी् बात नही सै !!टेक!!

स्वाद जीभ का रूप देखणा यो माणस नै मारै,
इश्क की सुणकै चित मै धरले ज्ञान की नही बिचारै,
तरहां-2 की ले खश्बोई फिरै भरमता सारै,
गर्म सर्द दुख सुख ना मानै भूख प्यास भी हारै,
ना तै झूठे आश्क फिरै भतेरे सुख दिन रात नही सै..!!1!!

पर त्रिया से जो नर बन्दे इश्क कमाणा चाहवैं,
ठाढी नदी बहै नर्क की प्यावैं और न्हावावैं,
गैर पुरूष और गैर स्त्री जो खुश हो इश्क कमावै,
उनकी ताती मूरत कर लोहे की अग्नि बीच तपावै,
मार पीट कै छिन्न भिन्न करदे रहै जात जमात नही सै..!! 2!!

पर त्रिया के तजण की श्रद्धा जै किसे नर मै हो तै,
पतिव्रता के कायदे करती जै इसी ब्याही घर में हो तै,
जितणी नीत बदी मै राखै जै इतनी हर मै हो तै,
मिटज्या आवागमन राम का़ नाम जिगर मै हो तै,
भला जीव का मन मैं सोचैं अपना गात नही सै ..!!3!!

लख्मीचन्द कहैं बुरा जमाना सोच समझ कै चलना,
लुच्चे गुण्डे बेईमानां से सौ सौ कोसां टलना,
एक नुक्ता तै लिखा वेद मै प्यारा सेती मिलना,
जिसतै इज्जत धर्म बिगड़ज्या उसकै गल नही घलना,
यारी कै घरां जारी करना इसतै बत्ती घात नही सै..!!4!!

पदमावत अब क्या कहती है-

त्यारी करी सिंगार की मेरी तबियत डटण लगी ।।टेक।

बैठी बणैक बहू निराली, माथे पै दो जुल्फ लहरावैं काली,
थाली भरी खांड कसार की, भर-भर मुट्ठी बटण लगी ।।1।

बैठगी मृग्यां किसी पंगत, छांट कै मदजोबन की रंगत,
संगत करे बिना भरतार की, किसनै मालूम पटण लगी ।।2।

स्वासन बीर मर्द बिन घरां, बता कित उड़ज्यां बिना परा,
रही तड़प तरहां बीमार की, पिया पिया रटण लगी ।।3।

लखमी चंद हाथणी सूनी, दिन तै रात दीखती दूनी,
जैसे बेहुनी नार की, कैसे रतियां कटण लगी ।।4।

अब वही फूल जो पदमावत ने बगाए थे रणबीर ने चन्द्रदत्त को दिखाए। चन्द्रदत्त कहने लगा ये कैसे फूल हैं। तब रणबीर ने क्या कहा-

ये मारैंगे फूल हमनैं, जीवण की आश नहीं सै ।।टेक।

तला पै दर्शन दे लिए, ये तन इश्क रंग मैं भे लिए,
खे लिए त्रिशुल हमनै, झूठा विश्वास नहीं सै ।।11

वा किसी चम्पा केसी कली, बाग में अचानक आण खिली,
घली देखी झूल हमनैं, झूलण की ख्यास नहीं सै ।।21

बजैं कद ब्याह शादी के ढोल, पटै कद सारे शहर नैं तोल,
कर लिया बोल कबूल हमनै, पुण्य करदूं कुछ पास नहीं सै ।।3।

लखमीचन्द बान्धी बन्धैं परण की, घड़ी इब आगी मेरे मरण की,
गुरु मानसिंह के चरण की, लाई मस्तक पै धूल हमनैं,
गुण बिन शाबास नहीं सै ।।4।

रणबीर आगे कहता है-

मेरा मन मोह लिया हुर परी नै, जब नजरों से नजर मिलाली,
क्या कसर रही तन में, जब परी घूम-घूम-छननन करती चाली ।।टेक।

मोती बाल बाल मैं, गर्दन मोर की चाल में,
जोबन जैसे नीर हिलोरे ले रहा ताल मैं ,
दिल फसांया गेस्यों के जाल मैं, दो जुल्फे लहरा री नागिन काली ।।1।

एक चम्पो कली छाती पै हिली, ईत्र की खशबोई बदन में मली,
मुस्कुचरा कर पैतरा बदल कर चली,
मेरा हुया था इशारा झट आंखे चुराली ।।2।

भरी इश्क के गुमर मैं, रहा हरि नै सुमर मैं,
परी 15-16 साल उमर मैं, चलती कै लचके लगैं थे कमर मैं,
जैसे पवन से हिली कोए चम्पा की डाली ।।3।

करकै डाल्या कत्ल, हुई काया विकल,
कहै लखमीचन्द गई बिगड़ अकल,
रहग्या पिंजर तड़फता जब चला दम निकल,
झट बोशा दिया मेरी ज्यान बचाली ।।4।

उधर पद्मावत अपनी सखियों से कहती है-

एक नया मुसाफिर आया, करग्या रूप के बस में हे ।।टेक।

रो रो कै शीश धुणुंगी, आंगलियां घड़ी गिणूंगी,
उस मरजाणे की बहू बणूंगी, चाहे मिलियो बीस वर्ष में हे ।।1।

तन पै दुख दर्द डारग्या, कहे वचना तै हारग्या,
मेरै शोभा के तीर मारग्या, पैस गए नस नस में हे ।।2।

गल में दुख का झाड़ घल्या सै, टालूंगी जै दुख टलग्या तै,
जै परदेशी नहीं मिला तै, मैं मरलूंगी दिन 10 दिन मैं हे ।।3।

मानसिंह भोगै एश आनन्द, कटैं सब जनम मरण के फन्द,
लखमीचन्द के छन्द इसे जाणूं, मोती पो दिए डस में हे ।।4।

अब पद्मावत अपनी सखियों से क्या कहती है-

तीन रोज हो लिए तड़पती नैं मैं कुछ ना खाई खेली,
हे भाईयां की सू जी ज्यांगी दिये दर्शन करा सहेली ।।1।

इश्क का नाग लड़या मेरे तन मै, जाणूं कित लुकरया सै डसकै,
हे परसों की बेहोश पड़ी मेरी सारी काया चसकै,
इसे मर्ज का बैद्य मिलै तै मैं हाथ पकड़ लू कसकै,
जवानी का रंग कुछ ना देख्या मनै पीहर मै बसकै,
तुम गाल्यो गीत झूलल्यो हंस कै मैं बेशक मरूं अकेली ।।2।

सपने के मैं पैड़ जले की मनैं मुधी पड़-2 टोही,
आंख खुली जब कुछ ना दीख्या मर्द मिला ना कोई,
आधी रात पिलंग के ऊपर एक पहर तक रोई,
मेरी माता नैं ऊठ पुचकारी मैं करकै लाड़ भलोई,
जाणै भौरा बण कद ले खशबोई मैं रूत पै फूल चमेली ।।3।

मेरी माता मनै बुछण थी मेरे सखी मैं ना बोली डरके,
सौ-सौ बात टालज्यां थी इन कान्यां के ऊपर कै,
थाम जाणों सो मेरे मर्ज का होगा फैंसला हर कै,
प्रदेशी बिन जीउं कोन्यां चाहे फेर जन्म ल्यूं मर कै,
काल जले के रोष मैं भरकै मनै काढ कै टूम बगेली ।।4।

बैठे नै के जाणैं जो समझैं ना दूर खले नै ,
सबर का पाणी गेर बुझालू मैं मद के डीक बले नै,
लखमीचन्द कद परखैगा इस मोती रेत रले नै,
कई बै इसी मन मैं आवै जाणूं मरज्यां घोट गले नै ,
इश्क जले नैं ज्यान काढ कै मेरी मूटठी के मैं ले ली ।।4।

सखियों की बात सुनकर पद्मावत क्या कहने लगी-

हे मेरा व्याकुल हुया शरीर , मनैं थाम झूलण की कहरी,
आज घड़ी झूलण की कोन्या ।।टेक।

मर्द मिला था उजले रंग का, साथ चाहूं थी बनाया खुद संग का,
हे किसा बांका छैल अमीर, छोड़ कै चला गया बैरी,
रात दिन भूलण की कोन्यां ।।1।

इब कै वा श्यान दिखगी भली, सुधी मैं जांगी स्वर्ग में चली,
गल में घली इश्कल की जंजीर, ज्यान मेरी फन्द में फैहरी
गांठ जली खुलण की कोन्या ।।2।

इब कुछ ना बणता रोये तै, सहम न्यूए जिन्दगी नै खोये तै,
ना टोहें तै मिलै लकीर, इश्क का नाग लड़ा जहरी,
चसकती मैं कूल्हण की कोन्या ।।3।

लखमीचन्द चार कली कथणी, चाहिए बात धर्म की मथणी,
हथणी की करी ना तदबीर, इब तक बिना हिलाए रहरी,
समय मिली हुलण की कोन्या ।।4।

अब पद्मावत की सखियां क्या कहती हैं-

हे तू जिसकी मारी फिरै भटकती वो प्रदेशी बाग में आरया सै ।।टेक।

देख कै प्रेम गात में जागै, फिरै था मेरी आंख्या आगै,
100 मर्दां तै सुथरा लागै, जले का रूप मेरे मन भारया सै ।।1।

मेरी तरफ गया सै लखा, मै ना रही तनै झूठ भका,
न्यूं मत सोचै करै सै इरखा, मनै वो तेरे तै बत्ती प्यारा है ।।2।

मै तनै भेद बतादूं सारा, सखी गिण-गिण कै न्यारा-न्यारा
हे पद्मावत वो तेरा मारया, इन बांगा में चक्कर लारया सै ।।3।

साची कहे बिना ना सरता, वो हांडै सै दुख भरता,
हे जल्या बोलै सै डरता-डरता, जाणै किसे के कासण ठारया सै ।।4।

लखमीचन्द सै फीके बाणै, कोए मरीजे नर मर्ज पिछाणै,
इन बातां नै दुनियां जाणैं, मर्द बिन बीरां का नहीं गुजारा सै ।

अब पदमावत की सखियां क्या कहती है-

झूली गाई नहीं मनैं दुख तेरी ओड का भारया सै,
जिसकी मारी फिरै भटकती चाल बाग में आरया सै ।।टेक।

स्यामी हो कै लड्या करैं नरमाणां आच्छा कोन्या,
जित दोवां की राजी हो धिंगताणा आच्छा कोन्या,
दूसरे का झूठा-कूठा खाणां आच्छा कोन्या,
भरी खाट पै किसी बीर का जाणां आच्छा कोन्या,
तनै न्यूं भी उसतै बूझी सै वो ब्याहा सै कै कंवारा सै ।।1।

सामण के महीने में लुगाई, सब झूलैं सब गाया करैं,
बूढी ठेरी और सवासण कंवारी तक भी चाहया करैं,
सासु सुसरे पींघ पाटड़ी ले कै मोल पुहचाया करैं,
किसे का सिन्धारा किसे की कोथली ले कै नाई जाया करैं,
तू डूब मरै नै तनै के बेरा इस महीने का ढंग न्यारा सै ।।2।

अपणे दुख नै आप ओटलें या मरदां की पोटी हो,
सब का भाव एकसा राखैं चाहे बड़ी चाहे छोटी हो,
मरदां की बुद्धि मर्दां धोरै जात बीर की खोटी हो,
सब की सुण कै अपनी कहदे, ना सोच मर्द नै मोटी हो,
तू भी अपणी कह कै उसकी सुणले के गूंगी का गुड़ खारया सै ।।3।

पैदल भी चलणा होज्या के रोज सवारी निम्भया करैं,
बूछ बेहूदी पीहर में के ओड़ कंवारी निम्भया करै ,
बाप तै कह कै ब्याह करवाले के ल्हुकमा यारी निम्भया करैं,
ओढ बड़े घर कुणबे मैं के चोरी जारी निम्भया करैं,
लखमीचन्द का दास तनैं सुलतान ज्यान तै प्यारा सै ।।4।

पदमावत की सखियां पदमावत को समझाती हैं और क्या कहती है-

परण तोड कै ब्याह करवाले क्यूं दुख भरया करै,
स्याणी होगी साजन बिन न्यूंव के सरया करै ।।टेक।

बेटी बाहण घरां ना डटती सबकी ब्याही जा,
ब्याहवण जोगी होज्या जब सलाह मिलाई जा,
जोड़ी का वर ढूंढणै नै यैं ब्राह्मण नाई जा,
बेटी बाहण पराया धन किस ढाल ठहराई जा,
गुरू ब्राह्मण ज्योतिष के ब्याह का दिन धरया करैं ।।1।

ईशक आग अग्नि तै करडी मुश्किल डटया करै,
धूम्मां दीखै ना बलती का जी माहे माह घुट्या करै,
ब्याह शादी में रंग चा हो सै, धन माया लुट्या करै,
कई ढाल की बणै मिठाई ओर बूरा कुट्या करै,
के सीधयां का अनुमान कईं दिन ईन्धन चरया करै ।।2।

तनै सातां तै दे बान बैठया रंग दूणा छंटज्यागा,
तू हंस बनवाडे खाईए जोबन और निपटज्यागा,
बारोठी पै तनै बनडे का बेरा पटज्यागा।
दे चौकी घाल दहल के आगै वो आकै डटज्यायगा,
बनड़े का रूप देखकै बनड़ी लुकदी फिरया करै ।।3।

तेरी आकै डटै बारात परस में डेरे होज्यांगे,
यज्ञ, अग्नि बणा कै जामण फेरे होज्यांगे।
बनड़े सेती मिल कै मन के तेरे हो ज्यांगे।
कहै लखमीचन्द तेरा ब्याह सै छोरी फेरे हो ज्यांगे।
दस दिन में खुलै ढेठ तेरा, दिल दो एक दिन डरया करैं ।।4।

सभी सखी -सहेलियों की बात सुनकर पद्मावत क्या कहने लगी-

मत छेड़ो मनैं पड़ी रहाण दो, ना झूलण की ख्यास,
मरूंगी मनै होश नहीं सै गात की ।।टेक।

प्याली पीलू तै विष की ना, कितै दवा मिलै इसकी ना,
थारे बसकी ना लड़ी रहाण दो, काली नागिन खास,
दवाई तै मिलै प्रदेशी के हाथ की ।।1।

कदे चमका लगा ना चीर में, भाई कीसूं दुख हो सै घणां पीहर में,
मेरे आग शरीर में छिड़ी रहाण दो, जल भुन हो लिया नाश,
पता ना कद आवैगी घड़ी बरसात की ।।2।

हे मत ठाडू ठाडू बोलो, मत मेरे नरम जिगर नै छोलो,
मत सांकल खोलो भिड़ी रहाण दो, भली कहो चाहे बदमाश,
भाई कीसूं घुटी पड़ी सूं सारी रात की ।।3।

लखमीचन्द कहै तृष्णा जागी, छोड़ कै चला गया मंदभागी,
मनै कोलै लागी खड़ी रहाण दो, हो मन की पूरी आश,
जब मेहर फिरै रघुनाथ की ।।4।

पद्मावत सखियों के साथ बाग़ में झुलाने के लिए जाती है-

चमकै चमकै री बिजली गगन में ए बादल छाए ।।टेक।

कामनी बणी हूं सुन्दर नैना अन्जन स्यारे,
कहां बाग में झूलैं गावैं, कहां गए पती हमारे,
मारे-मारे री निशाने मोरे तन में बादल छाए ।।1।

सखी सहेली कट्ठी हो कै बांगा के मैं आगी,
गहरी लोर उठैं सामंण की, झाल प्रेम की जागी,
लागी लागी री सखी मोरे तन मैं , बादल छाए ।।2।

मईया में सताई मारी दुखै मोरी पांसू,
कहां बाप कै बेटी रंग में, कहां है म्हारी सासू,
आंसू छाई छाई री सखी नैनन में ।।3।

गोदी में भतीजा मोरा संग में छोटा भैया,
कह लखमीचन्द तार कै मटकी खागे दही कन्हैया,
कन्हैनया गई गईयां री विचर रही बन में ।।4।

रणबीर और पद्मावत की बातचीत होती है-

तनै किस कारण बुलवा लिया, मनैं साच बतादे कामनी ।।टेक।

पदमावत :-
मेरा तेरे में सै घणा हेत, तू परदेशी करिए चेत,
तेरा समय प खेत लहरा लिया, तनै करणी चाहिए थी लामणी ।।1।

रणबीर :-
तू मारै सै चोट लह कै‘, मै सारी बैठग्या सह कै,
पिता तै कह कै क्यूं ना ब्या ह करवा लिया रै,
मुश्किल सै जवानी थामणी ।।2।

पद्मावत :-
ओ मैं कोन्या बोलती झूठ , बुरी हो सै आपस की फूट,
इश्क नै चूंट कालजा खा लिया, गई समय फेर ना आवणी ।।3।

रणबीर :-
तू रहा भोग ऐश आनन्द नै,
तनै के समझाऊं मती मन्द नै, छन्द लखमीचन्द नै गा लिया,
रूप जाणूं रही, चमक गगन में दामणी ।।4।

अब पद्मावत अपनी सखियों से क्या कहती है-

हे मैं मरगी इस परदेशी नै ज्यान काढ़ ली मेरी ।। टेक।

हे किसा खड़ा चमन मैं जमकै, किसी बात करै थम-2 कै,
इसकी चमकै चन्द्रमा सी श्यान, जाणूं पडा बिड़े में केहरी ।।1।

यू सै ऐश अमीरी भोगया, यो सै ब्याह करवावण जोगा,
कद होगा मेरी शादी का पकवान, घर घर उठी फिरैं चंगेरी ।।2।

मेरा तै सांटा भी ना संटता, आध्पाै खून रोज का घटता,
हे ना डटता यू जोबन बेईमान, मनैं आवण लगी अंधेरी ।।3।

लखमीचन्द मरी में धिंगताणैं, मर्ज नैं तै मर्जी ये लोग पिछाणैं,
हे के जाणैं वो त्रिलोकी भगवान, ना मैं झूठा ओड़ा लेरी ।।4।

अब पद्मावत की सखियां उसे क्या समझाती है-

जुणसी खाण पीण की चीज के देखें तै पेट भरै ।। टेक।

सखी तेरी उमर बीत ली बाली, तनैं सब बात हांसियां में टाली,
जब आवै होली, दिवाली, तीज, ओढ़े पहरे बिन के सरै ।।1।

दर्शन कर आई एक जणे का, तनैं दुख होग्या दिन घणे का,
बहाण तेरे कवारी पणे की रीझ,
पता ना तनै कद लुग दुखी करैं ।।2।

के भरगया पेट बात तै, बचती रहियो खोटी स्यात तै ,
हाथ तै बोया करड़ का बीज, बता केसर कित तै काट धरै ।।3।

लखमीचन्द छन्द नै गावै, अपने सतगुरू को शीश झुकावै,
हम बोलैं तू कढावै खीज, पता ना तेरा किस दिन नाश मरै ।।4।

अब पद्मावत क्या कहती है-

लाख टके का हे मां मेरी बीजणा, हेरी कोए धरया-ए-पुराणा हो,
खड़िए मै भीजण लागी, हे मां मेरी बाग में री ।।टेक।

काली घटा छाई हे मां मेरी उगमणी री, इन्द्र बरसे मुसलधार,
खड़िए मैं भीजण लागी, हे मां मेरी बाग मैं री ।।1।

घूम घूमता हे मां मेरी घाघरा री, जले घूंघट की झनकार,
खड़िए मैं भीजण लागी, हे मां मेरी बाग मैं री ।।2।

सारी सहेली हे मां मेरे साथ की री, सब कररी सोला सिंगार,
खड़िए मैं भीजण लागी, हे मां मेरी बाग मैं री ।।3।

नौ बुलकां की हे मां मेरी नाथ सै री, हे री जले तोतां की तकरार,
खड़िए मैं भीजण लागी, हे मां मेरी बाग मैं री ।।4।

किसा छैल गाबरू हे मां मारे बाग मैं री,
हेरी जले लखमीचन्द सी हुनियार, खड़िए मैं भीजण लागी, हे मां मेरी बाग मैं री ।।5।

पद्मावत अपनी सखियों के साथ सावन के गीत गा रही होती है। कैसे-

रल मिल कै तीजन में डोलै, बीर सैन का हिरदा छोलै,
पदमावत गीतां में बोलै, सरबत भरया जबान में ।। टेक।

बीर सै चाल चलण में नेक, लाखां मैं देखण जोगी एक,
टेक में बोलै सब तै आगै, सुण सुण प्रेम गात में जागै,
एक आदी ब इसा चमका लागै, जाणूं बिजली असमान मैं ।।1।

उसकी खोगी मार नैन की, मेरी छुटवादी घड़ी चैन की,
दन्त सैन की पुत्री से रै, जाणू स्वर्ग लोक तै उतरी सै रै ,
इसी शान सकल की सुथरी से रै, जाणू किरण चमकती भान में ।।2।

देख सब मित्र प्यारे सगा लिये, हमनै काया में प्रेम जगा लिये,
लगा लिए सब दुनियां में फेरे, सौदागर धनवान भतेरे,
सब तरियां का सौदा ले रहे, पर यूं धन नहीं दुकान में। ।।3।

लखमीचन्द चन्द नै गाता, सतगुर जी को शीश झुकाता,
धन धन री बेमाता माई, क्यू,कर सुथरी श्यान बणाई,
पदमावत सी हूर लुगाई, टोहे तै मिलै ना जिहान में ।।4।

अब आगे क्या होता है-

हालती ना चालती, घालती क्यों सांस बैरण पूत सै बिराणा हे ।।टेक।

तेरे दातां की चमकै मेषी, सिर पै रही ओढ गुलाबी खेशी,
प्रदेशी पै मररी, गिररी कररी सत्यानाश बैरण,
ठयोड़ न ठिकाना हे ।।1।

अपणा लिए देख अन्दाजा, सिर पै बजै काल का बाजा,
घर कुणबे तै तेरा मुल्हा जा, टूटज्या, घर छुटज्याल, उठज्या खास,
बैरण तेरा पाणी दाणा हे ।।2।

तू खड़ी तला के काठै, तेरा दामण चक्कर काटै,
समय बीते पै बेरा पाटै, बीर का, तकदीर का, पीहर का सै बास,
बैरण चाहिए ना गिरकणा हे ।।3।

दिए काम छोड़ गन्दे नैं, बावली इस गोरख धन्दे नैं,
क्यों इस मूर्ख बन्दे नै दीखले, झीखले,
सीख ले, बण दास बैरण लखमीचन्द का गाणा हे ।।4।

रणबीर अब चन्द्रदत्त से सारा हाल बता देता है। अगले दिन सखियां पदमावत को कहती हैं हे बाग में चल तो पद्मावत क्या कहती है-

परदेशी की श्यान देख कै सखी प्रेम में सारी मरगी,
के बुझैगी मेरे मन की मैं प्रदेशी की मारी मरगी ।। टेक।

फूटया ओड़ मेरा लहणा सै , मेरे कर्मां मैं दुख सहणा सै,
थारा तै भला के कहणा सै, सखी मैं पति की मारी मरगी
पिरवा पिछवा कुछ ना देखी, मैं कती ज्यान दे कंवारी मरगी ।।1।

थारी आत्मा के प्रसन्न सै, राजी मैं प्रदेशी के दर्शन सै,
प्रेम रूप का मींह बरसण सै , केशर केसी क्यारी भरगी,
ले कै चीज दई ना उल्टी, घर की घरा उधारी मरगी ।।2।

घायल की गति घायल जाणैं, किसे मरज नै मरीजे पिछाणै,
तुम अपणे गई पहुंच ठिकाणैं, मैं घरां एकली न्यारी मरगी,
मैना की पर टूट गई या पड़ कै बिन उडारी मरगी ।।3।

लखमीचन्द जिगर में धोह ना, छोडी मैं जीवण जोगी कोन्यां,
और चीज मैं मेरा मोह ना, या भूखी गऊ बिचारी मरगी,
प्रदेशी बिन दाम उठै ना, कीमत चीज हजारी मरगी ।।4।

अब पद्मावत की सखियां क्या कहती हैं-

क्यों आसण पाटी लेएं पड़ी, रहाण दे,
हे बरस दिन का दिन आया खेलण खाण दे ।।टेक।

तेरे केसी बेवकूफ फूक दे छाती नै, ना देखै सीली ताती नै,
हे कण कीड़ी मण हाथी नै, खाण नै नारायण दे ।।1।

साथ सहेली और के चाहवै, खुशी का बख्त कड़ै हिथ्यावै,
तू फूहड़ कहावै अपणे घर तै लाण दे ना जाण दे ।।2।

माईचन्द छन्द धर देगा, तनै खाणा पीणा हर देगा,
परमेश्वर वर देगा और गेल्यां गूंद जमाण दे ।।3।

अब पदमावत और रणबीर की आपस में क्या बातचीत होती है-

धन भाग आज घर आया, राह ना तेरे किले का पाया,
तन पै मुसीबत भारी थी, था जितणा मनैं प्रेम तनै के,
मैं उतनीये प्यारी थी ।। टेक।

फूल बगा कै आई निशानी अपने हाथ की,
पनाह पेट का जीभ सच्चाई हो सै बात की,
देखले मैं घड़ी स्यात की होरी, ल्या तेरी नब्ज देखदूं गोरी,
बता तेरै के बीमारी थी,
मेरी आज सुहागन रात भाई की सूं जन्म कवारी थी ।।1।

दुनियां में दो गरीब बताए एक बेटी एक बैल,
अपणी-अपणी कहरी पता ना के बीती मेरी गैल,
महल भाई की सू झेरा होग्या, छिपग्या चांद अंधेरा होग्या,
शिखर में हिरणी आ रही थी,
मेरी गई लाग चाणचक आंख, कमन्द नीचै लटका री थी ।।2।

पीहर के में बास मेरा, मैं बैठगी घिरकै,
पल्ला क्यूं ना पकड़ा गोरी हांगा सा करकै,
न्यूं डर कै जिया तै के जिया मैं बड़ी मुश्किल आवण दिया,
एक बणिये संग यारी थी,
तेरे ब्राह्मण बणियें यार तनै के चाहना म्हामरी थी ।।3।

कह सुलतान भीख राम मेरै बालम की घालै,
बिना हुकम उस मालिक के गोरी पत्ता ना हालै,
न्यूं के चालै काम रहे थे, गोरी गौतम के घरा गए थे,
चांद कै धौती मारी थी,
सब कटे अहिल्या के पाप स्वर्ग में गई बिचारी थी ।।4।

पद्मावत को सोती हुई जगाने के बाद अब रणबीर से क्या कहती है-

भूल ज्यागा पता जिला गाम और घर नैं,
देखैगा जब आंख खोल म्हारे भी नगर नैं ।

हम हुरमत की रूई जब चाही, झट मिलगी पिनी पिनाई,
जिसमें काया रहै छिवाई, जरा देख्य विस्तर नै ।।1।

देख मेरी तरफ गिणै नैं झाल, जचा कै एक जगह पै ख्याल,
हंस खेल बोल चाल, दूर करले डर नै ।।2।

तेरा जी चाहवै सो खाईये, राज कर किले में मौज उड़ाइए,
म्हारे केसी बीर चाहिए थारे केसे नर नैं ।।3।

लखमीचन्द उमर गई सारी, या दुनियां लूट ले बणकै प्यारी,
वे नर मुक्ति के अधिकारी जुणसे जाणैं पद पर नैं ।।4।

अब रणबीर पद्मावत से क्या पूछता है-

तू बेटी सै किस बाप की रै गोरी, तेरे कौण करया करै लाड़,
बता दे प्यारी रै तूं किसकी सै ।।टेक।

कदे तू बात करैं ना रूखी, मारी चोट जिगर में दुखी,
के भूखी सै मेल मिलाप की रै गोरी, सब मन तन की लिये काढ,
अदा तेरी न्यारी रै, तू किसकी सै ।।1।

मेरे तै सौ सौ नजारे लेती, अपना नैन इशारा देती,
तू तै खेती सै इन्साफ की रै गोरी, मैं जाणूं था, सुन्ना बाढ,
हरी भरी क्यारी रै, तू किसकी सै ।।2।

मनैं सै तेरे मिलण का चाव, कदे खो बैठे ना आदर भाव,
कदे नाव डूबज्या पाप की रै गोरी, ना मिलै लगण नै आड़,
मरण की बारी रै, तू किसकी सै ।।3।

कहै लखमीचन्द बिना नाथी सै, बाप कै घरां तूं बन्धा हाथी सै,
तू तै साथी सै त्रिए ताप की रै गोरी, तेरे फंस फंस आवैं टाड ,
औड बड़ी कंवारी रै, तू छोरी किसकी सै ।।4।

अब पदमावत रणबीर को अपना पूरा हाल सुनाती है-

ये सोज्यां जब मैं जागूं म्हारी एक मन जोत कला सै,
मैं सोज्यांब जब ये जागैं म्हारी सब की एक सलाह सै ।।टेक।

दसों से मिलकर हाम चार जणी हाम चारू एक जणां सै,
दस ग्यारा और चौदह पन्द्ररा मिल म्हारा प्रेम घणा सै,
पांच पांच दस और मिलैं म्हारा जब चौबीस पणा सै,
लगी तेरे तै डोर भर्म का पर्दा सहम तणयां सै,
तू मिल मेरे तै हो इज्जत तेरी इसमैं तेरा भला सै ।।1।

इसे मिल फिर पांच सात हों पुरुष रूप दर्शाया,
दशों से मिल कै अहंकार मन बुद्धि चित रूप कहाया,
पचास संकल्प पचास विकल्प सौ का जोड़ मिलाया,
एक सखी संग सौ नौकर जब पदमावत पद पाया,
भजन करण नै शिव मन्दिर की जड़ मैं ज्ञान तला सै ।।2।

तू देख तै सही बदन मेरे पै के के कहर पड़ा सै,
मैं जीतू के मेरा दुश्मन जीतै न्यूं लेणा बैर पड़ा सै ,
और बात बतलावण नै यो आगै पहर पड़ा सै,
एक राजा बिना खजाना प्रजा सुन्ना शहर पड़ा सै,
जैसे जीव बिना तत्वों का पुतला एक माटी जिसा ड़ला सै ।।3।

एक तेरे कैसे मर्द बिना यो सुन्नाै गाम पड़ा सै,
कर्मां कर कै मेरी नजरां मैं तू सच्चा धाम पडया सै,
तोड़ मोश चाहे कुछ भी करले दिल कती मुलायम पड़या सै,
लखमीचन्द कहै भगतां नै राम का लेणां नाम पड़या सै,
क्यूं के भगता की नैंया पार करण नैं खुद भगवान मल्हा सै ।।4।

अब पद्मावत सखियों को मर्दों के बारे में समझाती हुई कहती है कि बहन चन्द्रप्रभा व फुल्लमदे! मैं मर्द आदमी से बात नहीं करूंगी। इसलिए तुम यह पूछो कि इस प्रदेशी का क्या घर गाम है और क्या नाम पता है। सखियां रणबीर के पास जाती हैं तो रणबीर उनसे कहता है कि चन्द्रप्रभा मैं औरतों से बात नहीं करता पर अपनी तरफ से यों कहदे-

बुझै कड़े का घर गाम नै छुटा कै ।।टेक।

रणबीर :-
जब या मीठी-मीठी बोली, परी नै तबियत मेरी चरोली,
तला पै क्यों दिआई झोली, लाम्बा हाथ उठाकै ।।1।

पद्मावत :-
दुख विपता की गल फांस घलै तै, लिखी कर्म की नहीं टलै तै,
जै तू ना मिलै तै मरज्यां नाड़ नै कटा कै ।।2।

रणबीर :-
कद न्यूं कहै तू झूठी और यो साचा, किसा बतलावै सै दे कै पाछा,
इस तै आच्छा मारज्या मेरी घीटी नै घुटा कै ।।3।
हे मैं समझू थी अकलबन्द चातर, इसकी बुद्धि पै पड़गे पात्थर,
कहदे न्यूके तेरी खातिर बैठी जोबन नै लुटा कै ।।4।

रणबीर :-
लखमीचन्द छन्द नै कहज्याी, जै किसे का जी फन्दे में फहज्या,
थारे भरोसे तै कंवारा ऐ रहज्यां, अपणे ब्या ह की उटा कै ।।5।

अब पद्मावत अपनी सखियों को क्या समझाती है-

रहाण दयो हे जाण दो तुम दबी दबाई बात,
औरां के दुख की जाणैं कोन्यां के मर्दां की जात ।। टेक।

मैं जाणूं मर्दां के छल नै, यें प्यारे बण काट ले गल नै ,
किसी करी थी राजा नल नै साड़ी गेल खूभात,
सोवती नैं छोड़ गया था बण मैं आधी रात ।।1।

जब कैरों चीर हरैं थे, पांचों पांडो ऊड़ये मरैं थे ,
जब द्रोपदी नै नग्न करैं थे देखै थी पंचात,
फेर भी बण मै साथ गई रही खा कै नै फल पात ।।2।

फूहड़ का ना लाल खिलाणा चाहिए, गैर ना पास हिलाणा चाहिए,
हरगिज नहीं मिलाणा चाहिए इसे मर्द तै गात,
श्री रामचन्द्र नै त्याग दई गई बण में सीया मात ।।3।

लखमीचन्द सब नक्शा झड़ग्या, आज किसा नाग इश्क का लड़ग्या,
एक यो मूर्ख पल्लै पड़ग्या, तुम ठगणी छ: सात,
मेरे जिगर पै लागी, मैं मरगी बणियें आली लात ।।4।

रणबीर ने पद्मावत की बात सुनी कि पद्मावत मर्दों की बुराई कर रहीं हैं। आमने सामने कोई भी बात नहीं करता है। अब रणबीर उसकी बात को काटकर क्या कहने लगा-

सहम मरण नै होरी गोरी अपणी आप बड़ाई करकै,
बूझ बेहूदी काल तला पै भाजी नहीं के हंघाई करकै ।।टेक।

नल मौके पै ठीक सम्भलग्या, जब कलयुग का बखत निकलग्याम,
रचया स्वयंभर फिर नल मिलग्या, करड़ाई नरमाई करकै,
फेर स्वर्ण का शरीर बणा दिया, विषयर नै चतुराई करकै ।।1।

कैरो कररे थे आपा धापी, धर्म सुत चाहवैं थे इन्साफी,
महाभारत में कैरो पापी, मारे नहीं के लड़ाई करकै,
भरी सभा में न्यूं ना बोले सोचगे बख्त समाई करकै ।।2।

लगी बन्ध थोथे थूकां के तारण, ताने राह चलतां कै मारण,
श्री रामचन्द्र नै मर्यादा कारण, त्याग दी सिया बुराई करकै,
ना तै आज जगत में कौण रटै था, मात जनक की जाई करकै ।।3।

माया बैरण मोह ले हंस कै, नागिनी ज्यूंस बिल में बड़ज्या डसकै,
इन बीरा के फन्दे मैं फैंसकै, मर लिए लोग कमाई करकै,
लखमीचन्द के नफा मिला, इन बीरां की गैल भलाई करकै ।।4।

दो दिन के दर्शन मेले, एक दिन उड़ज्या। हंस अकेले,
लखमीचन्द के जितने चेले, सोज्यांक काख निवाई करकै,
एक मरज मेरा इसा लागरा, मर लिया जगत दवाई करकै ।।5।

अब सखियां क्या कहती है-

तू मरती कदे यो मरता थारी तर-तर चलै जबान,
झूठ साच के जाणन आला त्रिलोकी भगवान ।।टेक।

भाइयां कीसूं तेरी बातां की मेरे धोरै काट नहीं,
जो सोच समझै के चलैं आदमी हो बारा बाट नहीं,
थारे आपस में चलैं इशारे, रही मालूम पाट नहीं,
तू बोलै कदे यो बड़ बोलै, थाम कोएसा घाट नहीं,
इसे अकलबन्द माणस नै तै लोग कहें बेईमान ।।1।

ब्याह शादी की सुण कै कहै थी, प्रण पै मरलूंगी,
तला के उपर शिव मन्दिर की पूजा करलूंगी,
कहै थी भेष कंवारे में मैं पार उतरल्यूंबगी,
जै शिवजी नै वरदान दिया तै फेर पति बरलूंगी,
कदे मेहर फिरी हो शिवजी की भेज दिया इन्सान ।।2।

यो भी साची रोवै सै भेष कंवारे में,
बाबल के घर उमर बितादी पड़ी रहै चोबारे में,
और इसा पति मिलै नहीं लिये टोह जग सारे में ,
धर्मराज कै लेखा होगा धर्म दवारे में,
प्यार करै तै प्यारे की समझै अपणे केसी ज्यान ।।3।

तनै प्रेम में भरकै फूल मार दिए के ना लागी चोट,
तेरै भी इतणा ही दुख होगा ल्यामदयूं तेरा गल घोट,
पीठ फेर कै करै इशारे कर घूंघट की ओट,
बिन समझे बेईमान बतादें, लखमीचन्द का खोट,
सर लिया हो तै चाल घरां थारी सहज बाजली तान ।।4।

रणबीर अपने मित्र चन्द्रदत्त से-

इबकै फेर इशारा करगी मेरे तै परख्या ना जा ।। टेक।

पकड़ै पाप रूप की राही, क्यों जुल्म करै अन्याई,
चन्द्रदत्त तेरा भाई, भूल राह, घर का ना जा ।।1।

रै बे नै ठाली बैठ घड़ा सूं , मैं असली इश्क छड़ा सूं ,
मैं तै पत्थर बण्याम पड़या सूं , हाल्या थरक्या ना जा ।।2।
रै बातां का साचा करूं जिकर में, उल्टा चढग्याह चांद शिखर में,
रै मेरे भाई पद्मावत के फिकर में, टूट तन चरखा ना जा ।।3।

यू इश्क दुखां का देवा, और के इसमैं तैं लिकडै मेवा,
लखमीचन्द कर गुरु की सेवा, मन से छूट नाम हर का ना जा ।।4।

तेरा ठीक सौण सै यार जागा तै जाते काम बणै ।। टेक।

नाक का सौला सुर चालै सै, बैठी हूर सांस घालै सै,
मेरा कद आज्यागा दिलदार, बैठी आंगलियां घड़ी गिणैं ।।1।

पीठ के पीछै दिशासूल रै, जोगनी बामैं रही झूल रै,
सोहन चिड़ी सन्मुिख रही पुकार, यार मेरे जाणै सो पढ़ै गुणैं ।।2।

मेरी बात ध्यान में लाईए, दर्शन करकै उल्टा आ जाईए ,
कदे कोए गेरै ना ज्यान तै मार,
जब उनके घर का जिकर सुणैं ।।3।

मानसिंह भोगै ऐश आनन्द, काटो दुख बिपता के फन्द,
लखमीचन्द कली धरै चार, मोह ममता की डोर तणैं ।।4।

अब रणबीर अपने दोस्त चन्द्रदत्त से क्या कहता है-

मन मेरा बैरी बदलै सै ढंग निराले ।।टेक।

आज्ञा तेरी ले कै नै मैं बाग में गया था भाई,
मुरगाई सी तरती सखी बाग के मैं फिरती पाई,
हंसी खेली रली मिली मेरी तरफ मुस्कराई,
पपीहा चकोर मोर कोयल नै ब्याफन किया,
चिड़िया का चहचाहट सुण कै डाट गया ज्यान जिया,
बैठा था चमन मैं छुपके मेरी तरफ ध्यान दिया,
मनैं भी देख्या नजर से तोल कै जब पड़े सामनै पाले ।।1।

पांच सखी चुपचाप इशारां मैं बात करैं,
पांच सखी बोलैं चालैं मेरी तरफ हाथ करैं,
मीठी-मीठी बोली जिनकी हृदय ऊपर घात करैं,
रूख था अजीब सन्धी 7 किस्म से मिली हुई,
दुबेले मैं शाखा तीन चौतरफे नैं ढली हुई,
तीन किस्मी से बटी झूल पेड़ के मैं घली हुई,
एक दिखै कदे कईं कईं दीखैं लश्कर चार रूखाले ।।2।

मुरगाई की चाल चलैं पायलों की झनकार,
सीने ऊपर चोली खिंची गले में फूलों के हार,
माथे ऊपर बिन्दी टिक्की रोली भी देती बहार
प्रेम की पौशाक पेटी कमर उपर खिंची हुई
इत्र की महकार काया खशबोई से सिंची हुई,
मोटी-मोटी आंख सेली तेग की ज्यूं जची हुई,
कमर पै चोटी दो जुल्फ सामने जाणू नाग लड़े दो काले ।।3।

जनानी मर्दानी माहरी करौली सी झड़ती रही,
सखियों की सरदार सखी सखियों में कै लड़ती रही,
करती रही बात झोल गात के में पड़ती रही,
डोरी सी लटकाई झटबारा से बगागी फूल,
शीशा चमकाया मेरी आंख्या में मिलागी धूल,
हंसती खेलती चाली गई दरख्त से निकाली झूल,
लखमीचन्द सतगुर सेवा बिन खुलते ना ब्रह्म ज्ञान के ताले ।।4।

अब रणबीर पद्मावत द्वारा किए गए सभी इशारों का पूरा मतलब अपने दोस्त चन्द्रदत्त से पूछकर पद्मावत के महल की तरफ चल देता है तो क्या हुआ-

चन्द्रदत्त की आज्ञा ले कै फेर भगवान मनाया,
चाल पड़ा रणबीर रात कर काबू में काया ।।टेक।

घोर अन्धेरा पृथ्वी से अम्बर मिल्या दिखाई दे था,
चला अगाड़ी फूल जोत का खिल्याम दिखाई दे था,
सत का सागर झाल का झंझट झिल्या दिखाई दे था,
सात धात की चमक चान्दणी किला दिखाई दे था,
लोहे सोना चान्दी के घर खूब लगी धन माया ।।1।

पांच खड़े चुपचाप कोए ना इधर उधर हिलै था,
पांच खड़े दो-घाटी पांच का दौर-ए-दौर चलै था,
हीरे पन्ने कणी मणियां पै अद्भूत नूर ढलै था,
नौ दरवाजे सात मंजिल ऊडै ज्ञान का दीप बलै था,
उस पद्मावत की झांकी के में पड़ैं थी रूप की साया ।।2।

ऋषि मुनि सन्यासी योगी किते त्यागी आप खड़े थे,
कहीं बुरा कहीं भला कहीं पै पुण्य और पाप खड़े थे,
धर्म कर्म पुण्य दान दया जप-तप चुपचाप खड़े थे,
कितै भूत भविष्य वर्तमान त्रिविध तीनों ताप खड़े थे,
मेर तेर और मोह ममता नै यो मिल कै खेल रचाया ।3।।

पांच खड़े चुपचाप कवर फिर हद से आगै बढ़ग्या,
शीशे का रंग महल देख कै फर्क गात का कढ़ग्या,
लखमीचन्द सतगुरु सेवा कर कै कोए-कोए अक्षर पढ़ग्या,
जहां दस डन्डे रहे लाग कमन्द कै पकड़ कै ऊपर चढग्या ,
सूती हूर जगावण खातिर मुंह पर तै पल्ला ठाया ।।4।

जब रणबीर पद्मावत के कमरे में पहुँचता है तो वह सो रही होती है-

सोवै थी अपणी मौज मैं, उडै जा पहुंचा रणबीर,
जड़ मैं बैठग्या जा कै ।।टेक।

तन पै दारुण दुखड़ा भोग्याय, यो माशूक नींद मैं सोग्या,
घालण जोगा गोझ मैं, पका हुया अंजीर,
चाहे कोए देखल्योण खाकै ।।1।

मेरै गई लाग ईश्क की कर्द, क्यूकर करल्यूं सीना शर्द,
जैसे कोए मर्द बिचल रहा फौज मैं, लग्याू चलावण तीर,
लिकड़ज्या माणसां के मैं कै ।।2।

परी इन्द्र राजा के घर की, तसल्ली छैल छबीले नर की,
कुल पन्दरा सिर की बोझ में, सुध लहंगा सुधंया चीर,
चाहे कोए देख ल्यो ठा है ।।3।

लखमीचन्द छन्द नै गाया करता, सतगुरु नै शीश झुकाया करता,
के आया करता रोज मैं, आज ठा ल्याई तकदीर,
के सुख पाया ताल में नहा कै ।।4।

पद्मावत की नींद नहीं खुली तो रणबीर उसकी सेज के पास खडा होकर क्यान विचार करता है-

आशिक होग्या खड़या सिराहणैं ।।टेक।

काया कदे अधम बीच चिरवादे
मेरा या सिर धड़ तै तरवादे,
कदे मरवादे ना या धिंगताणै ।।1।

पता ना कद घोर सुणै पायल की,
होग्या खड़ा तरह जाहयल की,
घायल की गति घायल जाणै ।।2।

इश्क न्यूं कररया धिंगताणा सै,
टुकड़ा सिर बेचे का खाणा सै,
मुश्किल जाणा सै घरां बिराणै ।।3।

गले मैं घला विपत का फन्द,
मेरे सब छुटगे ऐश आनन्द,
कहै लखमीचद मरज नैं मरीजे इश्क पिछाणै ।।4।

रणबीर अब पदमावत को कैसे जगाता है-

सोवै सै के बैठी हो लिए रै ।।टेक।

मान्ड़े पोए दाल मूंग की,
बीच दई डोडी गेर लूंग की,
भरी आंख उंघ की तू धोलिये रै ।।1।

हूर तू सै कौण सलाह पै,
रूप जाणूं चढरा चांद कला पै,
तला पै हम क्यों चलते मुसाफिर मोह लिए रै ।।2।

परी तू मीठी-मीठी बोली, तनै तबियत मेरी चरोली,
भतेरी सो ली और तड़कै दिन में सो लिए रै ।।3।

लखमीचन्द कली धरै चार,
मिल तेरा पास खड़ा दिलदार,
उगली पड़ी बहार जैसे टाट में तै छोलिए रै ।।4।