सत्यवान-सावित्री (पं. लख्मीचन्द)
किस्सा सत्यवान-सावित्री जब पाण्डवों को कौरवों ने वनवास दिया तो पांचों पाण्डव तथा उनके साथ द्रोपदी मारकण्डे ऋषि के आश्रम पर पहुंच जाते हैं। मारकण्डे ऋषि ने उनका बडा सम्मान किया तथा पांड्वो ने फिर कुछ दिन वहीं पर निवास किया। एक दिन मारकण्डे ऋषि और धर्मपुत्र युधिष्ठर बैठे आपस में बात कर रहे थे। धर्मपुत्र ने अपनी विपता के विषय में कहा कि हम तो जंगल का दुख-सुख सहन कर सकते हैं, परन्तु हमारे साथ द्रोपदी भी है, यह […]
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