भजन व मुक्तक

(1)

रै मन डटज्या क्यूं ना, जै हो को डाटण आला रै।।

पांच साल बच्चेपण मै , खूब खेलो खूब खाओ,
अक्षरों का ज्ञान सीखण, विद्यालय मै पढ़ने जाओ,
ब्रह्मचारी रह पढाई पढ़ो, उत्तम सत्संग पाओ,
पच्चीस साल पढ़णे से, सारा ठीक हिसाब होज्या,
ऊधर्वगामी वीर्य होकै, चहरे ऊपर आब होज्या,
मानज्या रै मन मूर्ख ,कदे बीच मै खराब होज्या,
मन वश जै नहीं रहै तै,पडज्या कुबध करण का ढाला।।

अष्टयोग अभ्यास करकै ,तुरीय पद का धरणा ध्यान,
सकल खोड मै आठ चक्र, एक की जगह कंठ मै जान,
अंगीरस को जीव पीता, जो बतलाया अमृत स्थान,
अमृत स्थान से ऊपर, रास्ता है तेरा एक,
बाहर के स्वाद त्याग,ना लाग ज्यागी जीभ ढेक,
इस अमृत रस को पीकर प्यारे, दुनिया तमाशा देख,
घट के पट झट खुल ज्यांगे, ना कुंडी ना ताला।।

दो गुण पांच वृतियों वाले, मन को संभाल ले,
मोक्ष बंधन मै मन ही कारण , इस का कर ख्याल ले,
ज्योतियों की ज्योति मन ,हृदय ज्ञान दीवा बाल ले,
भाव अभाव ज्ञान का मन से, यही लक्षण जाण ले,
विषयों मै फंसकै कदे, कर अपणी हाण ले,
बुध्दि और मन के बीच ,विवेक परदा ताण ले,
सब से श्रेष्ठ शरीर तेरा, मत कर जिंदगी का गाला।।

मन का कुशल सारथी बणज्या, साची बात मान मेरी,
संकट सभी दूर होंगे, छुट ज्यागी हेरा फेरी,
पाणी केसा बुलबला ,को दिन की जिंदगानी तेरी,
यह भी सुण ले ध्यान धरकै, महात्मा का बाणा होज्या,
आठों पहर मन मै तेरे, ईश्वर जी का गाणा होज्या,
प्रभु अमृत का छिड़का लादे, मन का ठीक ठकाणा होज्या,
सोम का तू सखा बणज्या, वो रहैगा आप रूखाला।।

जाट मेहर सिंह ओम भज्या कर ,या ले कही मान मेरी,
मन जैसी गति नहीं, इसपै घाल राखिये घेरी,
चंचल मन की लगाम कसदे, जिंदगी सफल होज्या तेरी,
एक चोर का सत्संग करकै चोरी करणा चाहवै बैरी,
अपणे घर नै ठाढा भरकै, गरीब नै सतावै बैरी,
पकडया जा जब थाणे के म्हां, मन का दोष बतावै बैरी,
मन बिचारा के करले ,जब आपै रोपै चाला

(2)

जीणा दिन चार होज्यागा पार
रट कै करतार की माला।टेक

लाग्या था कुबद कमावण
बण मैं गया जानकी नै ठावण
उस रावण के शेर, चालै फैर, मत कर बैर, कापाला।

मुर्ख बात घड़ै क्यू ठाली
तेरी तै एक पेश ना चाली
उस बाली की ढाल, खाज्या काल, मतकरै आल, हो चाला

किचक था खोहा खेड़ी
घाल ली काल बली नै बेड़ी
छेड़ी द्रोपद नार, वो दिया मार, जो सरदार का साला।

मेहर सिंह भजन कर सूत
वे हों सैं देशां के ऊत
यम के दूत करोड़, दें सिर फोड़, ले ज्यांगे तोड़ कै ताला।

(3)

अश्क बिना ईश्क, ईश्क बिना, आशिक, आशिक बिना संसार नहीं
शर्म बिन लाज, लाज बिन मतलब, मतलब बिन कोए यार नहीं।टेक

धन बिन दान, दान बिन दाता, दाता बिन जर सुन्ना है
सत बिन मर्द, मर्द बिना तिरया, तिरया बिन घर सुन्ना है
रण बिना सूरा, सूरे बिना तेगा, तेगे बिन कर सुन्ना है
तप बिन कर्म, कर्म बिन किस्मत, किस्मत बिन नर सुन्ना है
हठ बिन हार, हार बिन हाणी, हाणी बिन हुश्यार नहीं।

शशि बिन रैन, रैन बिन तारे, तारां बिन गगन सुन्ना है
मोह बिन मेर, मेर बिन ममता, ममता बिन मन सुन्ना है
गुल बिन बाग, बाग बिन बुलबुल, ये सब गुलशन सुन्ना है
रंग बिन रूप, रूप बिन जोबन, जोबन बिन तन सुन्ना है
हक बिन हुक्म, हुक्म बिन हाकिम, हाकिम बिन हकदार नहीं।

मन बिन मेल, मेल बिन प्यारा, प्यारे बिन दो बात नहीं
जर बिन जार, जार बिन जारी, जारी बिन उत्पात नहीं
छल बिन द्वेश, द्वेश बिन कातिल, कातिल बिन कुलघात नहीं
सजनी बिन साजन, साजन बिन सजनी, सजनी रह एक साथ नहीं
दुःख बिन दर्द, दर्द बिन दुखिया, दुखिया बिन पुकार नहीं।

मोह बिन काम, काम बिन क्रोध, क्रोध बिन अभिमान नहीं
गुण बिन कदर, कदर बिन शोभा, शोभा बिन सम्मान नहीं
भजन बिन भगत, भगत बिन भगति, भगति बिन कल्याण नहीं
सुर बिन साज, साज बिन गाणा, गाणे बिन तुकतान नहीं
गुरु बिन ज्ञान, ज्ञान बिन मेहरसिंह, दहिया का सत्कार नहीं

(4)

दो दिन का जीणा दुनिया म्हं है उनमान जरा सा
जगत म्हं देख्या है अजब तमाशा।टेक

ज्ञान की कर रोशनी क्यूं जाण कै अंधेर करता
सोच कै न चाल बन्दे घड़ी घड़ी देर करता
कुणबा तेरा प्यारा नहीं जिसकी तू मेर करता
चाचा रोवै ताऊ रोवै चाची रोवै और ताई
मात पिता दोनूं रोवैं पास के म्हां रोवै भाई
सारी जिन्दगी याद आवै घणी रोवै मां की जाई
तीन दिना तेरी त्रिया रोवै फेर करै घरवासा
जगत म्हं देख्या है अजब तमाशा।

उतां के म्हां बैठ कै नै सीख लई बुरी कार
नशे बाजी जुआ बाजी तास बाजी करली त्यार
चोरी और बदमाशी सीखी जब भी नहीं गई पार
जोड़ जोड़ रख लिया यो तेरा धन माल नहीं
सोच कै चाल मूर्ख आज तेरी काहल नहीं
एक दिन सबनै जाणा होगा काल आगै दाल नहीं
महल हवेली सब तेरे छुटज्यां हो शमशाणा म्हं बासा
जगत म्हं देख्या है अजब तमाशा।

भद्दी बातें छोड़कर शुभकर्म का ख्याल कर
पण्मेशर को ज्यान देणी बुरे कर्म की टाल कर
सारी बातें बुझी ज्यां धर्मराज कै चाल कर
बुद्धि है पास तेरे मन को चलाने वाली
सबसे बुरी बेईमानी ईंसा से गिराने वाली
जिसका तूं गुमान करता ये जिन्दगी है जाने वाली
दस इन्द्री और पांच विषय का घल्या गले म्हं फांसा
जगत म्हं देख्या है अजब तमाशा।

परमेश्र का भजन कर शरीर का उद्धार होगा
पापियों की नाव डूबै सत का बेड़ा पार होगा
ओउम-ओउम रटने से ज्ञान का विचार होगा
उसनै भी क्यूं भूल गया जिसनै तूं इंसान किया
मेहरसिंह सच्ची सच्ची बातों का ब्यान किया
गर्भ से निकल कर भुल्या चमड़े का गुमान किया
धर्मराज घर होंगे पापी तेरे बयान खुलासा
जगत म्हं देख्या है अजब तमाशा।

(5)

हे परम पिता परमात्मा , शुद्ध रहे हमारी आत्मा,
जगदीश ईश शीश तुझको झुकावै।

भला नहीं ओम नाम बिन,
आदर न अच्छे काम बिन ,
जो धरै ध्यान शान मान वे ही पावै।

तुम हो बड़े न्याकारी ,
तेरी गावै महिमा नर नारी ,
काम थारे सारे न्यारे सभी बतावै।

जै चाहैव कोए मुक्ति ,
करो ईश्वर की भक्ति ,
बणै काम तमाम नाम उनके हो ज्यावै।
कहै मेहर सिंह जाट रै,
गाणे में ना घाट रै,
छ्न्द कथ कै गथ कै मथ कै सबनै सुणावै।

(6)

सत की बांदी मिलै लक्ष्मी मतना छोड़ा सत नै
इन्सानां पै करा दिये भाई के-के काम बख्त नै।टेक

एक बख्त म्हं राज मिल्या सुणो हरिशचन्द्र की कहाणी
एक बख्त म्हं रूक्का पड़ग्या कोन्या सत की बाणी
एक बख्त म्हं तीनों बिकगे लड़का राजा राणी
एक बख्त म्हं भरणा पड़ग्या घर भंगी के पाणी
आंसूं तै पड़ैं टूक घुटणे यो इसी बणादे गत नै।

एक बख्त म्हं नल राजा के मन की खिलगी बाड़ी
एक बख्त म्हं पासे बणकै नल की हवा बिगाड़ी
एक बख्त म्हं दमयन्ति के चाले कर्म अगाड़ी
एक बख्त म्हं इसी सुवादी बण म्हं काटी साड़ी
सोचै कुछ और करदे कुछ यो इसी मारदे मतनै।

एक बख्त म्हं तख्त हजारा रांझा पीर बनाया
एक बख्त म्हं पीर की गेल्यां रांझा हीर बनाया
एक बख्त म्हं पाली ला दिया सीर का चीर बनाया
एक बख्त म्हं छूट्या द्वारा परम फकीर बनाया
एक बख्त म्हं महल बना दे यो तलै गिरादे छत नैं।

एक बख्त म्हं पाणा पड़ज्या एक म्हं पड़ज्या खोणा
एक बख्त म्हं हंसणा पड़ज्या एक म्हं पड़ज्या रोणा
एक बख्त म्हं जागू रहणा एक म्हं पड़ज्या सोणा
एक बख्त म्हं मिली बरेली एक म्हं मिल्या बरोणा
यो मेहरसिंह नै भी बख्त सेधग्या पढ़-पढ़ रोया खत नैं।

(7)

पांच तत्व का शरीर बना नौ गिरह टेक दी भारी
टोटा नफा और लाभ हाणी आदम देह खातर तारी।टेक

कोए दिशा धनवान बणादे कोए करै कंगाली
कोए दिशा धन तै भरदे कोए रखदे खाली
कोए दिशा रजगार चलादे कोए बिठादे ठाली
किसे दिशा म्हं शरीर सुकज्या कोए बणा दे लाली
किसे दिशा निर्धन बन्दा करै जगहां सर यारी।

किसै दिशा म्हं जहमत झगड़ा किसे दिशा म्हं शादी
किसै दिशा म्हं माणस का तोड़ा कोए करै आबादी
किसै दिशा म्हं धन आले नैं मिलै ना खाण नै आधी
किसै दिशा म्हं राजा नल नै गद्दी तलक जिता दी
किसै दिशा म्हं दमयन्ती भी गई पाट पति तैं न्यारी।

किसै दिशा म्हं बन्धे आबरो किसे दिशा म्हं हाणी
किसै दिशा म्हं राज चाल्या जा छूटज्या चीज मिजानी
किसै दिशा म्हं साहूकार भी करते कार बिरानी
किसै दिशा म्हं हरिश्चन्द्र नै भर्या नीच घर पाणी
किसै दिशा म्हं उन बन्दयां की हुई सुरग की त्यारी।

किसै दिशा म्हं प्रेम कुटम्ब का किसै दिशा म्हं छुटज्या
किसै दिशा म्हं धन मुन्जी का जोड़या जाड़या छुटज्या
किसै दिशा म्हं दुश्मन गेल्यां प्यार मुलाहजा छुटज्या
किसै दिशा म्हं मोती चुगता हंस ताल तैं उड़ज्या
किसै दिशा म्हं मिलै मेहरसिंह हाथी की असवारी।

कर भजन हरी के तजकै नै झगड़े झूठे।।
लख चोरासी जूनी भोग , मनुष की मिली सै काया ,
काम क्रोध मद लोभ छोड़ दे , बणी रहै सुख की छाया ,
सारे बंधन दूर होज्या , जै तज दे तू मोह माया ,
गरमी सर्दी भूख प्यास ,आत्मा मै नही रहै,
जै योग साधना करता रहै, कोये भी ना बुरा कहै,
आशा तृष्णा त्याग दे , तै फंदे मै ना मूल फहै,
जिनकी वृति रही ठिकाने उनके सत नही टूटे रै।।

(8)

किसनै ना मान घटाया रै करकै ओछे गैल्यां प्यार

तोते की प्रीत हुई दिल से
रंगीन फूल संभल से
रूई निकली फल अंदर से जब रोया था सर मार

कोयल के बच्चे थे बाले
कोए ने बड़े लाड़ से पाले
जब बच्चों ने होंश संभाले वो कौवा दिया दुत्कार

भीष्म ने भी था दुखड़ा ठाया
क्यूंकि अन्न दर्योधन का खाया
फेर कर मल कै पछताया जब हुई महाभारत में हार

गुरू अनपढ़ और वैद्य अनारी
बिना लगां तुरंग असवारी
मेहर सिंह ये हाणी कारी संग ओछी पूंजी का व्यवहार

(9)

रै गया बिगड़ जमाना ल्याज शर्म सब तारी।

मात पिता और भाई बन्ध सब की गैल्या बैर हो गया
बैठना तै दूर रहा बोलणा भी जहर होग्या
अपणा सारा मित्र प्यारा धोखेबाज गैर होग्या
आज काल के छोरों देखे मां बाप पै मारै डाट
सुधी दे कै गाली बोलैं सुणले नै बुढ़े खुर्राट
ईब तेरा आड़ै नहीं ठिकाणा घर तै बाहर बिछा ले खाट
लाठी ले कै न्यूं भी कहै चीज बाट दे सारी।

छोरां का भी दोष नहीं बुढ़ां का भी बिगड़ा ढंग
आछा आछा खावै भाई घर कुणबे ने राखै तंग
साठ साल के होकै ने ब्याह करवाणा चाहवै मलंग
धोले लते हाथ में डोगा बैठे-2 हुकम चलावै
सुलफा, और गांझा पीवैं ताशां की भी बाजी लावै
गालो के म्हां घुमें जा सै बहु बेटी पै ध्यान डिगावै
मुछां पर कै हाथ फेर कै कुण सुणैगा म्हारी

ये बीर भी सतवन्ती कोन्या इन का भी मैं करूं ब्यान
गैर मर्द की गैल्या होले अपणे का ना राखै ध्यान
यारां सेती बात कर करके प्यारे के ले लै से प्रान
बहुत सी रुपये पैसे के लोभ में मनै ललचाती देखी
घर कुणबे की ईज्जत खौवै अपणी नै डुबाती देखी
रूपवान गुणवान छोड़ कै कंगले के संग जाती देखी
हर दम संकट जी नै रासा राखैं सै कलिहारी।

दुनियां में बेमारी फैली मोड्यां के भी बणगे पंथ
साधु और स्वादुओ के जगा जगा पै बैठे महंत
गाम में भी घूणां उपर हमने देखे बैठे सन्त
बहुओं के काढ़े से ये बहुत से कनपाड़े फिरै
घर कुणबे तै लड़ कै भाई घी दुध के लाड़े फिरै
म्हारे भारत में नागे मोडे 60 लाख उघाड़े फिरै
साधु थोड़े घणे रै स्वादु कोण कहै तपधारी।

भजनी सांगी गाम कै म्हां आकै नै बजावै ढोल
कच्ची मन्दी बाणी बोलै लुगांड़ा के फिरै टोल
सुण सुण कै ने राग रागनी माणस होज्या डावा डोल
कोए कहै बात ठेस की कोए कहै सौ का जोड़
रुपयो की बरसात करदे ना सुल्फे का कोए ओड़
कोए कहै बात काट दी लखमी चन्द नै कर दिया तोड़
कह मेहर सिंह समझणीयां ने सब तरियां लाचारी।

(10)

वैदिक धर्म जाण्ते कोन्या झूठी करैं सफाई
देखे नकली महाशय भाई।टेक

जितने हैं महाशय भाई सभी हाहाकार करते
तुम ही तो सुनने वाले कितनी मारा मार करते
ज्ञान की कोए बात नहीं अवगुण को इजहार करते
जितने है महाशय भाई सब पेट का रोजगार करते
पाछे तै मे काट करैं आगे से प्यार करते
जितने भाई सूनने वाले क्यों नहीं विचार करते
ये तै अपणी करैं बड़ाई।

उन ही का काम भाई उन ही कै सिर पाड़ै रोट
महाशय जी का काम देखो कितनी गहरी मारैं चोट
उन ही का काम भाई उन ही के सिर काढ़ैं खोट
असली थे महाशय भाई नकली बनाने लगे
महाशय जी का काम देखो कैसा गाना गाने लगे
बड़े बड़ों की धूल को खुद आप ही उड़ाने लगे
स्वामी जी कै भी बट्टा ला दिया जिसने या कौम बचाई।

ईब कै बताऊंगा कुछ सांगियां के काम भाई
सांगियां नै खो दिया बाहमणां का नाम भाई
वेदाचारी रहे कोन्या हो गये गुलाम भाई
आप ही तो पढ़्या करते औरों को पढ़ाया करते
ब्राह्मणों की मान थी ब्राह्मण पुजे जाया करते
बेदों के भण्डार थे औरों को सिखाया करते
आज बणगे लोग लुगाई।

एक बै तै देखते ही आगे से प्रेम कितना
घर में मुस्के कला करैं नखरा करते मेम कितना
दो घड़ी रैं रैं करकें खो दे सै टेम कितना
म्हारे तै के जिद लाओ हम तैं सां उता कै ऊत
जो कोए म्हारी काट करै वे नर जागे ऊत न पूत
के तै राजी खुशी मान जावैं ना तें बाद में बजा द्यां जूत
कहै मेहर सिंह छन्द गा कै बता कुणसी झूठ बहकाई।

(11)

खामखां क्यूं खर्चा ठाओ थारै के फैहरी सै।
इन उतां का सांग देख थरी क्यूं अकल बैहरी सै।टेक

बीस घरां तै चून मांग कै दस का ढे़ड बुलाए
फलसे कै म्हां बालक बोले देखो सांगी आए
ताता पाणी करया डेग मैं अपणे हाथ न्हवाऐं
करी कुशामंद खातिरदारी भर भर होक्के प्याये
घी बूरा और चून साग की लगी झड़ी गैहरी सै।

मात पिता चाचा ताऊ से कती नहीं शर्माते
उल्टी सीधी कैहण लागज्यां कैह कै पोप ख्जिाते
वेदों के पढ़ने वाले आज टूक नाच कै खाते
टूम सजा दें स्याही घालैं तेलै नई तील पैहरी सै।

कपड़े पहर खड़या हुया तखत पै चौगरदै नाड़ घुमाई
पाच्छे सी नै बहाण बैठ जा आगे सी नै भाई
ऐड मार झट ढुंगा मार्या चारों आंख मिलाई
सारयां म्हां नै सैन मारज्यो जरा शर्म ना आई
एक बहाण की साहमी नाचै नाचणुआं तै शर्म कड़ै रैंहरी सै।

दादी चाची ताई की ये कोन्या छांट करैं सैं
ईज्जत और आबरू नै कती बारा बाट करैं सैं
इन ऊतां की कुशामन्द क्यूं ये डुबे जाट करै सैं
मेहर सिंह की सुणो रागणी पाछे तै काट करैं सैं
सांगी लुच्चें ऊत बताऐ या न्यूं पबलक कैहरी सैं।

(12)

आग्या बुरा जमाना मत लब गाठणियां रैहरे सैं
करकै कौल करार बखत पै नाटणियां रैहरे सैं।टैक

झूठ बराबर पाप नहीं बिन बोले सरता कोन्या रै
लोभ बराबर नहीं नीचता पर पेटा भरता कोन्या रै
परत्रिया हौं नागिण काली नर फिर भी डरता कोन्या रै
ये तै हौं सैं लाड करण की पर कोए भी करता कोन्या रै
आज काल भाई के सिर नै काटणियां रैहरे सैं।

अगड़ पड़ौसी न्यूं सोचें जां ना क्यांहे का चा हो रै
घर का होज्या उट मटीला ना छोरयां का ब्याह हो रै
मीठा बोल कालजा खा जा ना दुखै ना घा हो रै
अपणा मारै उड़ै गेरै धूप नहीं जित छां हो रै
गैरां की बहू बेटी नै घर पै डाटणियां रैहरे सैं।

मनै थोड़े माणस धर्म की खेती बोवण ओले देखे रै
मनै थोड़े माणस बात कान में चोवण आले देखे रै
थोड़े प्यारे ज्यान बखत पै खोवण आले देखे रै
बीस ऊत मनै धुम्मे के मिस रोवण आले देखे रै
ब्याह की जगह मौत पै लाडू बांटणियां रैहरे सैं।

के जीण्यां मैं जीवै सैं ये दुखी सैं गरीब बेचारे
धोखा दे कै मरवा दे सैं आज काल के प्यारे
कोण सै अपणा कुण पराया मनै पड़ते ला लिए सारे
बहुत से माणस रोवै सैं इस मेहर सिंह के मारे
मैं जाणूं सूं नीचें तै जड़ काटणियां रैहरे सैं।

(13)

शक्ति के बल कर लिया अपना , कब्ज़ा राज लुगाईयां नै
सच बूझो तै कद्र मर्द की , खो दी आज लुगाईयां नै

पहलम झटके आवै बहु ज्यब नज़र चोगरदै फिर ले सै
सासू ननंद जेठानी खुद पति नै काबू कर ले सै
पति तै भी पहलम फूहड नीत खाण में धरले सै
चाहे सारा कुणबा पड़ो भाड मै वा अपणा पेटा भर ले सै
इन बनिया कै ढो कै गेर दिया ल्हुकमा नाज लुगाईयाँ नै

आछी भूंडी बात मर्द की स्याहमी कर लें सै
लडै बराबर रोवै बाध खुद बदनाम्मी कर ले सै
आठों पहर पड़ी रहै ठाल्ली गात हराम्मी कर ले सै
पेट दर्द कदे सिर भड़कै मर्द गुलामी कर ले सै
मर्द गुलाम बणा राखे सै इन धोखेबाज लुगाईया नै

आज अमर सिंह राठोर कैस्से शत्रु भून रहे ना
जो एक बोल पै मरया करै थे वे अफलातून रहे ना
इन बीरा‍ के चक्कर मै छोहरे होगे बरून रहे ना
घिस्सा लिये हाड बदन के चरबी खून रहे ना
भौत से घर बर्बाद कर दिये घर तै भाज लुगाईया नै

मर्द निखट्टू बीर कलिहारी इनका जिकर सुण्णाईये सै
दोन्नू जात्य बराबर लडती कोन्या झूठ भकाइय्ये सै
पूरब पश्चिम उत्तर दक्कन सब जग घूम कै आइय्ये सै
गाम नगर शहर बस्ती मै योहे झगडा पाइय्ये सै
कहै मेहर सिंह समझणा चाहिये पति सिर का ताज लुगाईया नै

(14)

चार जणां की लिखूं कहाणी कागज के गत्ते पै।
चोर जार नशे बाज जुआरी खड़े पाप हत्थे पै।टेक

पहले वर्णन करूं चोर का ठा रहा हाथ कबाहड़ा
दुष्ट कमा कै खाते कोन्या फिरैं गेरते दाड़ा
घिटी कै म्हां गुठा दे दें ना देखैं ठाडा माड़ा
रस्ते क में कोए मिलै मुसाफिर तै लें हांगे तै झाड़ा
चोर दुष्ट ना बैठे देखे कदे माया के खते पै
धर्मराज घर-जूड़े जांगे पापी खम्बे तते कै।

जार आदमी का मेरे भाई पर त्रिया मैं मोह सै
सब कै इज्जत एक ढ़ाल की ना न्यारी न्यारी दो सै
वैश्या रांड़ का कुछ ना बिगड़ै समझणियों का खो सै
पकड़या जा जब जुत लगैं बता या के इज्जत हो सै
जार आदमी मरया करै काले पीले लत्ते पै
खीर खांड का भोजन तज कै डूबै गुड़ भत्ते पै।

नशे बाज तेरा हाल देख कै पाट्या घासी रह्या सूं
तर तर तर तर जुबान चलै शराब घणी पी रह्या सूं
सुलफा गांजा भांग धतूरा इन कै ताण जी रह्या सूं
खांसी खुरे के बस का कोन्या काफी खा घी रह्या सूं
फिलहाल तै मैं लाट सूं साबत कलकत्ते पै
नशा उतर ज्या जब डंड पेलै इमली के पतै पै।

चोर जार नशे बाज जुआरी सब तै भूंडे नर सैं
ओढ़ण पहरण नाहण खाण तै इन के बालक तरसैं
घाघरी तक भी छोड़ै कोन्या ऊत बेच दें घर सैं
मेहर सिंह भाई तेरे भजनां की सामण की जू बर सैं
सारा माल जिता कै घर दे छक्के और सतै पै
दाव हार ज्यां जब दे दे मारै हाथां नै मत्थे पै।

(15)

आलकस नींद किसान नै डोबै बीर नै डोबै हांसी
मैं का बोल मर्द नै डोबै चोर नै डोबै खांसी।टेक

साढ़ भादवा आसौज बरसै जमींदार पड़या सोवे
जमीन मैं डांगर ढोर चरै देख देख कै रोवै
सूकी करै शोकिनी बावला अपणा-ए धन खोबै
कर्मां के फल मिल्या करैं सैं काटै जिसा बोवै
सब तै आंख चुरावै उसने कहैं पुरा सत्यानाशी।

आपें मैं मजबूत रहैं वे गर्द आदमी हों सैं
जिन तै हर दम फिकरा चरा रहैं वे जर्द आदमी हों सैं
सबतै पाटा टुटी राखैं वे कर्द आदमी हों सैं
दुख दर्द आदमी हों सैं जिन कै घलै प्रेम की फांसी।

सांझै बिछड़ कुटम्ब तै चोर चोरी करने चाल्या
लगा विचारण सोण हुए जब कांप कालजा हाल्या
ठाडु ठाडु खांसण लाग्या जब काल गले मैं घाल्या
एक गरीब था निर्धन मनुष्य जिसका घर पाड़न का स्याला
ईश्वर का नाम लिया वो बणया नर्क का वासी।

मेहर सिंह ये त्रिया ना अपनी बिना नाथ की हों सैं
जो काम सोचैं वाहे कर दे बिना गात की हों सैं
आजमा कै देख लिया ये घड़ी स्यात की हों सैं
जैसे काल के मुख मैं आज्या माणस ये बिना जात की हों सैं
सच्चे पिता मात की हों सैं उन्हें मणी कहो चाहे अठमासी।

(16)

बिना बाप का बेटा सूना बिन माता के छोरी
बिन भूमि जमीदारा सूना बिन बालम के गौरी।टेक

बिना बाप के बेटे नै कोए आछी भूण्डी कहज्या
थप्पड़ घुस्से लात मार दे वो बैठ्या बैठ्या सहज्या
मन मैं उठैं झाल समन्दर आख्यां कै म्हा बहज्यां
जिस का मरज्या बाप वो बेटा चन्दा की ज्यूं गहज्या
कर कै याद पिता नै रोवै या काया काची कोरी।

बिन माता की छोरी तो रहती मैले तन मै
ओढ़ण पहरण खाण पीण की रह्ज्या मन की मन मै
के जीणा उस बालक का जिसकी मां मरज्या बचपन मै
साबत रात आंख ना लागै सपने आवै दिन मै
मात बिना रै ऐसी लागै जैसे चन्दा बिना चकोरी।

बिन भूमि के जमींदार की चाल्ले किते मरोड़ नही
इन्दर बरसे घूर घूर कै जल ओटन नै ठोड नही
महफिल बैट्ठी शह भाईयाँ की सांझे कुआ जहोड़ नही
उठा बिस्तरा चाल्या जाइये हम नै तेरी लोड़ नही
धरती उगले हीरे पन्ने कती आधम आध्या होरी।।

बिन बालम की गौरी का तै फिकाए बाणा हो सै
आछी भूण्डी कैह कै उस तै पाप कमाणा हो सै
मनै जाट के घर में जन्म लिया घणा न्यूं शर्माणा हो सै
जाट मेहर सिंह साज बिना तै कुछ ना गाणा हो सै
साची बात बखत में कह दे उस साची मैं के चोरी।

(17)

बीर बाणियां पुलिस डरेवर नहीं किसे के प्यारे
भीतरले का भेद नहीं दे मिठे बोलैं सारे।टेक

इन बीरां के कारण लोगो आग लंक म्हं लागी
गौतम के घर गया चन्द्रमां बण्या दुष्ट निर्भागी
बाली और सुग्रीव चले गये राड़ बीर पै जागी
बड़े बड़े ऋषि मुनि हुए त्यागी और बैरागी
जिसनै करया प्रेम वीर तै वैं नर धोखे म्हं मारे।

जिसतै ज्ञान राम नैं दिया वो नादान नहीं सै।
मित्र का कुछ ख्याल करै इतना ज्ञान नहीं सै
इन चारों तै बढ़कै नैं कोए बेईमान नहीं सै
शीश काटकै आगै धरदे पर बणीये कै स्यान नहीं सै
बेशक बालक भूखे मरज्यां पर मेरे दे दे दाम करारे।

जितणी पुलिस की बेईमानी म्हं ईब गिणा द्यूं सारी
देहली भीतर पां धरते ही तकैं यार की नारी
मिठै बोलै राजी होकै करवा कै खातिरदारी
फेर चलती बरियां न्यू सोचैं यो यार मिलै चोर जुवारी
घाल हथकड़ी आगैं करले दीखैं दिन म्हं तारे।

अन्तकर्ण तै न्यूं बोले भाई नहीं प्रण तैं हालैंगे
मेरे यार तूं कद कद आवै तेरे ब्याह म्हं मोटर ले चालैंगे
तेरे पीस्यां का मोटर म्हं तेल तलक ना घालैंगे
पर छोरे नैं न्युं जाण नहीं थी ये मौके पै टालैंगे
इन यारों की संगत तज दे मेहरसिंह ये चारो लाजमारे।

(18)

न्यारे न्यारे ख्याल जमाना के सुणना चाहवै सै
देख देख ढंग दुनिया कर मनै अचरज सा आवै सै।टेक

कोए कैह सै लखमीचन्द के गीत पुराने गा दे
कोए कैह सै नौटंकी के दो एक टूक पकड़ा दे
कोए कैह सै पूर्णमल की सारी कथा सुणा दे
कोए कैह मनै हरिश्चन्द्र का सारा हाल बता दे
बेरा ना लोगां नै इन बातां मैं के थ्यावै सै।

कोए कैह सै तर्ज फिल्म की बढ़िया गादे गाणा
कोए कैह सही शब्द बोल कोए सुण ले बड्डा स्याणा
कोए कैह सै बता हीर नै क्यें ब्याह कै लेग्या काणा
कोए कैह सै पद्मावत का चाहिए हाल बताणा
कोए कैह सै यो रोट पाड़ सै कई बै आ जावै सै।

कोए कैह गोपी चन्द मैं कै बोल्या बाजे नाई
कोए कैह तूं ठीक बोल आड़ै बैठे लोग लुगाई
कोए कैह तारा चन्द गादे गादे मीरा बाई
कोए कैह दिये छोड़ कथा ना म्हारी समझ मैं आई
कोए कैह ईह नै कुछ ना आता व्यर्था मुंह बावै सै।

कोए कैह सै सुणा रागनी बहोत फिरै सै मरते
कोए कैह छोरे आज रात नै रांद काट कै धर दे
कोए कैह तूं बणा कै देवी खड़ी सामनै कर दे
जाट मेहर सिंह गावणियां बता किस किस का पेटा भर दे
एक ऊत आण कै न्यूं बोल्या तूं के घंटा गावै सै।

(19)

तेरै पाप जबर,मनै ना थी खबर
कर लिया है सब्र,चाल्या हूँ गम खाकै

हेड़ी बैरी जीभ का कितणा ए सुथरा हो
त्रिया बैरण मर्द की दिए बड़े बड़े इसनै खो
ये करदें चाळा,कम्बल काळा,धोवण आळा, रोवै साबण लाकै

भरड़,ततहिया,कान खजुरे छेड़े तै काटैंगे
त्रिया,बिछु,सांप,गवेरा ना गम गाठैंगे
इनमें भरया है जहर,मत समझो ख़ैर,साधैंगे बैर,देखो चाहे दूध-दही प्याके

सूम जुआरी लालची और हांड़णी नार
तुर्की बाणिया और पुलिसिया थोड़ा राखैं प्यार
लेज्या आब कतर कै,रहियो डर कै,ये सर पै धरकै,पटकैंगे ठाकै

अग्नि का भाड़,बड़बेरी झाड़ पगड़ी के गाहक सैं
सीख ज्ञान बणैं बेईमान आदमी नालाक सैं
इसमें क्या गुरू क्या चेला,रह सबसे अलबेला
दो दिन का देश में मेला कह मेहर सिंह गाकै

(20)

कुछ जाणता हो तै हाथ देखीऐ मेरा।टेक

क्यूं सूर्य कै गैहण लाग्या क्यूं चन्द्रमा कै लागी स्याई
ऋतुभान ग्यारह रुद्र क्योंकर कै बैठे सभी समाई
समझा सकै तै पड़वा दोज सोमवती मावस कैसे आई
काणे के घरां जाकै नै ईद मनावण आली
तेरह महीने एक वर्ष मै बता कै चल्ली गई चाली
मूढ़ कति दती द्वार किले की पाई ना ताली
मेरे प्रश्न का उत्तर दे क्यों फीका पड़ग्या चेहरा।

सीता ठाई किस तारिख नै वा तिथी खोल कै लिखदे वार
कै महीने कै दिन रही वा रावण के दरबार
मारीच बण्या था मृग स्वर्ण का किसका था वो रिश्तेदार
रेखा तै देख मेरी जै कुछ तेरी बुद्धि मैं विचार हो
संगत कुणसी आछी कड़े देवत्यां का प्रचार हो
इस का उत्तर नहीं तै इस गंगा जी तै बाहर हो
जै इस ज्योतिष का ज्ञान लगा दे मानू साच्चा ज्ञान तेरा ।

चार वेद छः शास्त्र ठा रहा तै तू गिणा दे पुराण
ऐसा देव कुणसा है जो सृष्टि को लाग्या खाण
ये पोथी पतरे बन्द कर दे ना तन्नै क्यांहे की जाण
तीज तै मनाई क्यूं सामण का त्यौहार क्या
मद में हो कै मोर नाचै ऋतु की बहार क्या
कितने मौसम साल मैं उनका हैं व्यवहार क्या
जल्दी जल्दी उतर दे ना तै गंगा तै ठा डेरा

तम कितनी किस्म के ब्राहमण सो कितनी है थारी नस्ल बता
बहकान की सोचै मत सारी सोच सोच कै असल बता
जितने प्रश्न बुझे सै उतर कर कै नै कुछ अकल बता
कुणसा बख्त अच्छा हो जिम्ह पाना पड़े या पड़े खोना
इनके उतर नही मिले तै ज्यादा तंग मत होना
उड़ै दहिया कै म्हां आ जाईए जड़ै बसै सै गाम बरोना
मेहर सिंह तूं बूझ लिए जड़ै बंधै गुरु के सेहरा।

(21)

अगर महफिल मैं कोए गाणा चाहवै।
प्रथम उत्तर दे मेरी बात का जो विद्यावन्त कहावै।टेक

पहला प्रश्न सुण मेरा तनै बात सुणाद्यूं सारी
नहीं मात सै जनम लिया नहीं मर्द नहीं नारी
नहीं पति से ग्रहण किया दो सुत जामे बलकारी
वो लड़के महारथी राजा थे जाणैं दुनिया सारी
आड़ै आवण का अधिकार उसे जो इसका अर्थ लगावै।

वही मात वही स्त्री वहीं कंथ वही बेटा
वही गुरु पत्नि वही चेला वही कंथ हुया जेठा
वो नारी जबर जवान पति कुल ग्यारा दिन ना फेटया
एक पिता मां तीन गर्भ म्हं कित कितने दिन लेटया
भौकें तैं ना पार पड़ै क्यूं वृथा गाल बजावै।

वही बहु वही मामा की बेटी वही फुफस वही माता
वही भतीजी वही बुआ यो सास बहु का भी नाता
खड़्या सभा म्हं सहम गया तूं क्यूं ना भेद बताता
अकलबन्द बिन कोण अर्थ लगावै नुगरा पीठ दिखाता
म्हारे कथन पवित्र का भेद किसै मुर्ख नै कोन्या पावै।

एक लड़का एक लड़की जणदी जननी मरगी छन म्हं
उस लड़की के ब्याहवण खातर छतरी फिरे लगन म्हं
नहीं पति का मुंह देख्या नहीं नार के तन म्हं
गुरु लख्मी चन्द जाटी आला पास करै एक छन म्हं
मेहरसिंह के छंद सुणे बिन विद्या मूढ़ लखावै।

(22)

देख रोंगटे खड़े होगे या मेरी छाती धड़कै
गरीब किसान की जिन्दगी क्युकर बितै सै मर पड़कै।टेक

गर्मी म्हं आकाश तपै सै कोरी आग बरसती
निचै धरती आग उगलती दुनिया पड़ै तरसती
पाट्टी धोती टूट्टे लित्तर भूख पेट करसती
शिखर दुफारी पड़े पसीना ना सर पै छात दरसती
आधी रात तक पाणी बाहवै फेर भी उठै तड़कै।

सामण और भादवे म्हं बादल जोर के छारे
बिजली चमकै बादल गरजै कितना शोर मचारे
गेंड़वे मिंढ़क कान सुलाई फिरै खेत म्हं सारे
सांप संपोलिया बिच्छू बिसीयर फन ऊपरनै ठारे
कांधै कस्सी हाथ म्हं रस्सी चालै गोडयां पाणी म्हं बड़कै।

मंगसर पोह म्हं बर्फ पड़ै , आक तलक मुरझावै
पाट्या कुड़ता दोहर पुराणी पैदल खेतां म्हं जावै
ऊपर पाला निचै पाणी हाथ फेर भी ना घबरावै
थर-थर कांपैं जाड़ी बाजै जाड्डा पाड़ के खावै
सुख का सांस कदे ना आवै खाट म्हं पड़ै अकड़ कै।

राज काज सब तेरे ऊपर जो शासन सरकार करै
सारी मण्डी मील तिजारत छोटा बड़ा व्यापार करै
कपड़ा लत्ता नाज दाल धनियां मिर्च तैयार करै
तेरे बिन ना सरै किसे नै फेर बी ना कोए प्यार करै
जाट मेहर सिंह सोच फिकर म्हं मेरी अंखियां फड़कै।

(23)

राजा रईयत लखपति सब देख तेरी गैल लागरे
हल छूटग्या तै सब मिट ज्यांगे जितने फैल लागरे।टेक

तनैं भोले पन म्हं धन खोया तेरी मिचगी आंख जाग म्हं
पाट्टे कपड़े टूट्टे लित्तर गन्ठा रोटी भाग म्हं
साहूकार कै छौंक लगै तेरै आलण पड़ै ना साग म्हं
तेरी बीर ज्वारा ढो कै मरले, सिठाणी सूंघै फूल बाग म्हं
तनैं सोवण नै खाट थ्यावै ना ,उनकै रूई के पहल लागरे।

साढ़ मै बीज बुआई खर्चा तम पिस्सां खातर दौड़ो
कागज ऊपर गूठे लाकै आपणी किसमत फोड़ो
ऐड़ी तक थारै आवै पसीना गैल बल्दां की पूंछ मरोड़ो
सारी उमर कमा कमाकै धन सेठा कै जोड़ो
कर्जा तारण खातर तम ये बेचण बैल लागरे।

वेद उचारण छुटगे तनै फूट बिमारी खोगी
पाखंड और आडंबर फैले भारत की किस्मत सोगी
तनैं रोटी तक ना मिलै खाण नै इसी दुर्गती होगी
टोटे म्हं फेर करी नौकरी उड़ै भी मुसीबत भोगी
बिन आई मौत फौज म्हं तेरे मरण छैल लागरे।

सत के बैल प्रेम तैं जोड़ों स्वर्ग म्हं बास करोगे
गऊ माता की सेवा तज कै नीम नाश धरोगे
इननै दुख दे कै तम बी दुःख के सांस भरोगे
घी दूध दही अन्न मिलैना आवै फेर के घास चरोगे
गुरु ज्ञान का साबण ल्याया मेहर सिंह काटण मैल लागरे।

(24)

देश नगर घर गाम छूटग्या कितका गाणा गाया
कहै जाट तूं डूम हो लिया बाप मेरा बहकाया।टेक

कातिक की पूर्णिमा नै गढ़ गंगा न्हाया करते
सारे छोरे कट्ठे हो कै गाणा गाया करते
जितने छोरे यार बास थे फेटण आया करते
उन दुष्टां नै के मिलग्या जो मनैं बुरा बताया करते
राम करै वो निर्वस जाइयों मैं हत्थे म्हं कटवाया।

रागणियां के बारै बाप नैं हाड़ लिये सब बट्टे
जितणे छोरे यार बास थे ना बैंठण दिये कट्ठे
हांसी मसकरी सब छूटगी मेरे छूटे उडाणे ठठ्ठे
जो दिन थे मेरे ईब नाहण के दिन बरेली मैं कट्टे
छोरे छारे नाहण चले मेरी आंख्या मैं पाणी आया।

अलबत तो मनैं होकै जाट यो गाणा गाणा ना था
बालक पण मैं कार सिखली फेर पछताणा ना था
पहलम तैं मनैं जाण नहीं थी मैं इतना स्याणा ना था
एक गलती खा बैठ्या मनैं ब्याह करवाणा ना था
ब्याह करवाएं पाच्छै लोगों मैं बहोत घणा पछताया।

इस दुनियांदारी म्हं रहकै मनैं मुलक देख लिए सारे
लगा जीभ कै छोड़ दिये ये ना मिठे ना खारे
तूं अधीनि तैं करें जा गुजारा मेहरसिंह जाट बिचारे
तेरी माया का बेरा कोन्या फल कर्मा के न्यारे
राजा तैं कगाल बणा दे हे ईश्वर तेरी माया।

(25)

सारे कै बदनाम हो लिया कितका गाणा गाया
मात-पिता घर गाम कुटंब कै क्यूं तनै बट्टा लाया

कातिक की पणवासी नै मेलै जाया करता
दंगल के म्हां बणा पार्टी गाणा गाया करता
वा भई मेहर सिंह खूब मेहर सिंह जगत सहराया करता
जब तक धन खर्चया करता मैं यार कहवाया करता
फेर धन खर्चणा बंद कर दिया तो बदनाम कहवाया

बदमाश बताएं ना पार पड़ी फेर बूढ़े धोरै जाकै
न्यूं बोले यो मेहर सिंह थारै जागा बट्टा लाकै
सारे कै भिद पीट दई इह नै गाकै और बजाकै
इसा चौधरपण के बोझ मरै दखा मेहर सिंह नै ब्याहकै
ये बोल लाग्गे थे बूढ़े कै जब मेरा ब्याह करवाया

गोती-नाती मित्र प्यारे सब नै नाता तोड़या
दान-पुन भी करणा जरूरी घणा नही तै थोड़ा
धी बेटी के लेण देण में ना कदे हाथ सकोडया
मेहर सिंह में बुद्धी आगी न्यूं धन कोन्या जोड़या
धन बिना श्याम कौर सूनी सै हे ईश्वर तेरी माया

पिता का कहया होया वचन मनै सर माथे ठाणा पड़ग्या
कुछ तो धर्म ग्रहस्थी का मनै न्यूं शर्माणा पड़ग्या
गुरू लख्मीचंद कहग्या था न्यूं कमाकै खाणा पड़ग्या
दाणा पाणी बलवान बताया मनै फौज में जाणा पड़ग्या
कित सिंगापुर कित बरोणा काळ शीश पै छाया

(26)

सुथरापन आच्छा ना होता सुथरापन नुकसान करै ।
वो त्रिया ना दो धेले की खाल भूरी का गुमान करै ।।

नार अहिल्या सुथरी थी ,उके संग मै होया झमेला,
गौतम रिषी नै श्राप दे दिया काया का ना उठया धेला,
सुथरेपन कारण राय सिंह की कंवारी ठाई थी बेला,
वा श्यामला भी खूब रोई छोड़ग्या काशीनाथ सपेला,
सत टूटै और धर्म बिगड़ै यो सुथरा रूप बेइमान करै।।

अंबली राणी नै इसै कारण ब्होत घणा दुख ओटा,
दमयंती भी फिरी बणां मै विप्त का बांध भरोटा,
सोरठ के जी नै भी रूप के कारण होया कलेश मोटा,
नौ रत्न भी खूब रोई सुथरापन हो सै खोटा,
चमकना रूप धक्के खवा दे के इसका अभिमान करै ।।

काली माई सुख तै बसती भूरियां कै चिपटै भूत,
नौटंकी का सुथरेपन कारण वारी बैठया था सूत,
उस फूलमदे के कारण कितने खपगे थे रजपूत ,
संयोगिता के रूप के कारण चौहान नै बजाया जूत,
जयचंद की छोरी सुथरी ना होती तै क्यूं यो काम चौहान करै।।

स्याही धाल करै आँख कटिली इन्है तै करणा वार ठीक नहीं,
सुरखी पोडर ला गिरकावै इतना सिंगार ठीक नहीं,
कोये रूप देखकै गल मै घलज्या या तकरार ठीक नहीं,
जिका सुथरापन खो दे मर्द नै ऐसी नार ठीक नहीं,
कह जाट मेहर सिंह जि तै धर्म डिगै इसा रूप ना भगवान करै।।

(27)

मैं कदकी रूक्के दे रही तूं रोटी खा लिए हाली
दिन ढलज्या जब फेर खेत नै बाह लिए हाली।टेक

बोल दिये जब बोल्या कोन्या दे लिए बोल हजार मनैं
रोटी पाणी भर्या छाबड़ा मुश्किल तार्या न्यार मनैं
बारा बज कै दो बजगे जाणें नै हो सै बार मनैं
सारे पड़ोसी जा लिए ईब तूं भी चालिए हाली।

एक मील तैं रोटी ले कै बड़ी मुश्किल तैं आई मैं
हाली गेल्या ब्याह करवा कै बहोत घणी दुःख पाई मैं
मत रेते बीच रलावै पिया पन्नेदार मिठाई मैं
तेरे मरते बैल तिसाये तूं पाणी प्या लिए हाली।

बैठ आम कै निचै पिया मैं तेरी सेवा कर द्यूंगी
मिठी-मिठी बातां तै तेरा सारा पेटा भर द्यूंगी
मनैं जी तैं प्यारा लागै सै मैं गात तोड़ कै धर द्यूंगी
तेरी हूर खड़ी मटकै सै तूं गल कै ला लिए हाली।

गर्मी पड़ती लू चालै सैं पड़ै कसाई घाम किसा
दोफारी म्हं भी टीकता कोन्या जुल्मी सै तेरा काम किसा
फूंक दिया सै गात मेरा जुल्मी सै यो राम किसा
तूं मेहर सिंह की सीख रागनी गा लिए हाली।

(28)

बांच कै गोरमैन्ट का तार झड़गी चेहरे की लाली
छोड़ कै खाट खड़या होग्या।टेक

ईब तै जाणा था कई दिन मैं
न्यूं वो फिकर करण लग्या तन मैं
मन मैं सौ सौ करै विचार, उड़दी गात मैं डाली
ला कै डाट खड़या हो ग्या।

प्रेमकौर बैठी खोई खोई
डाटगी झाल कोन्या रोई
उसनै करी रसोई त्यार धरदी गोड्डयां मै थाली
दो मुंह चाट खड्या हो ग्या

मनै चलते नै बिस्तर धारे
जुड़गे अगड़ पड़ौसी सारे
मित्र प्यारे खड़या परिवार मां जाम्म्ण आली
कालजा पाट खड़या हो ग्या।

सब बातों का छुटग्या भरम
करड़ा हिरदा हो ग्या नरम
होग्या देश धर्म मैं प्यार सुरती उस हर मैं लाली
मेहर सिंह जाट ख्ड़या होग्या।

(29)

छुट्टी के दिन पूरे होगे दिल आपणे नै थाम लिए
इसी रकम की चाहना कोन्या मत जाणे का नाम लिए।टेक

इस पेट की खातिर सब कुछ करणा के धिगताणा चालै सै
मेरी याणी उम्र अकेली रैहगी क्यूं गल मैं फांसी घालै सै
तूं सुबक सुबक कै रोवै मतना मेरा का लजा हालै सै
तूं ठुकरा कै चाल पड़्या मेरी जिन्दगी राम हवालै सै
तेरी जिन्दगी राम हवाले कोन्या चाहिए जितने दाम लिए
दामां नै के फूकूंगी जिब खिंड जोबन के आम लिए।

क्यूंकर आम खिंड़ें जोबन के महीने भीतर आल्यूं मैं
जै ना आया तै भईयां की सूं जहर मंगा कै खाल्यूं मैं
जै ना आया तै चिट्ठी गेरूं अपणे पास बुलाल्यूं मैं
सारी रात एकली सोऊं क्यूं कर दिल समझाल्यूं मैं
जै दिल भी ना समझाया जा तै आपै हो बदनाम लिए
जै मेरी बात मैं फर्क लिकड़या जा तार बदन का चाम लिए।

घणी देर का कैहरया सूं तेरी नहीं समझ मैं आई
पिया बड़े बडेरे कैहते आए मर्दा गैल लुगाई
डाट लिए तूं झाल बदन की इस मैं तेरी भलाई
गोडे दे छाती पै चढ़ज्या पापी ईश्क कसाई
जै इज्जत का ख्याल करै तै ईश्क कै घाल लगाम लिए
किस नै ले कौली मैं सोज्यां के मनै बेटा बेटी जाम लिए।

तुरन्त का लिप्या दिखै सै आगे का ख्याल करया कोन्या
तेरे प्रेम मैं मरी पड़ी सुं इस मैं खोट मेरा कोन्या
तूं घरां बैठ कै खा लेगी ईसा धन का कुंआ भर्या कोन्या
कह नै मेहर सिंह ख्याल बीर नै मर्दां बिना सर्या कोन्या
दुख हो कै सुख होया करै तूं भोग सभी आराम लिए
जै ब्याही बीर का सुख चाहवै तै छोड़ दूसरा काम दिये।

(30)

प्रदेसां मैं जां सूं गौरी लोग हंसाईये मतना
म्हारे खानदान की इज्जत कै तूं बट्टा लाईये मतना।टेक

बखत पड़ै पै पाटूं न्यारा समय आवणी जाणी
कदे मद जोबन के बस में होकै करदे राम कहाणी
समझण जोगी स्याणी, सै तूं गलती खाईये मतना।

आठूं पहर घूंघट में रहणा आऐ गये नै पिछाणै
छोटा देवर तेरा लाडला उसनै बेटे केसा जाणै
गैर बखत तूं घरां बिराणै, बिल्कुल जाईये मतना।

मिट्ठी बात कहण की हो सै रमज्या से गातां मैं
म्हारे खानदान की ईज्जत तूं राख लिए हाथां मैं
गैर आदमी की बातां में, तूं बिल्कुल आईये मतना।

जाट मेहरसिंह कष्ट कमाई हर दम तेरे साथ में
मात पिता की सेवा करिऐ हरदम दिन रात में
घर की खास बात नै, गौरी कितै बाहर बताईये मतना।

(31)

मैं तेरी गैल चलूंगी हो जै मेरा कहण पुगावै।टेक

गैल चलूंगी मेरे पिया करती कती समाई कोन्या
मेरे केसी दुनियां कै म्हां दुखिया और लुगाई कोन्या
मोड़ बांध कै ब्याह कै ल्याया करां कितै तै आई कोन्या।
देवर देवरानी जेठ जेठानी सब मारैं मेरे पै डाट
धरती कै म्हां क्यूकर सोज्यां सोवण नै ना मिलती खाट
दस सेर पक्का पड़ै पीसणा थारी चाकी के भार्या पाट
तेरी मां नै कोड करी सै हो मनै आधी रात जगावै।

मेरी दुरानी ऊत घणी वा हरदम राड जगावै सै
बात बात मैं हो मेरे पिया तेरा भाई लाठी ठावै सै
तेरा छोटा भाई आड़ै मनै कुछ भी कहकै बुलावै सै
सारे घर का काम करूं वा बैठी घरा पटरानी हो
फिर भी डाण टिकण ना देती भाई भतीजे खाणी हो
पायां कै म्हां जुती कोन्या फिरती कती उभाणी हो
इसा के खोट बता दे नै हो क्यूं माटी मेरी पिटवावै।

बरोणे कै म्हां आण कै बहोत घंणी दुःख पागी हो
सारा कुणबा मारै सै मेरी ज्यान मरण में आगी हो
तेरे छोटे भाई पै मारी थी वा चोट कसूती लागी हो
भका सिखा कै मनें पिटवावै देशां की बदकार हो
जै तू क्यांहे जोगा हो तै क्यूकर खा ल्यूं मार हो
मेरे करमां में कड़ै धरा था अनपढ़ मूढ़ ग्वार हो
जिस नै मिल्जया मूढ़ पति वा जीवते जी मर जावै।

हाथ जोड़ कै कहरी सूं एक मेरा कहण पुगाईये हो
तनै आछी नहीं लागती धड़ तै शीश उड़ाईये हो
इस कुकर्म तै आछी पिया न्यारी मनै बठाईये हो
देवर देवरानी जेठ जेठानी सब का कहण पुगाऊं मैं
तेरी माता के चरणां कै म्हां हरदम शीश झुकाऊं मैं
इस मैं मेरी गलती हो तै माफी तक भी चाहुं मैं
मेहर सिंह नगर बरोणा हो जिला रोहतक खास बतावै।

(32)

फौज मैं जाकै भूल मत जाईये अपणी प्रेमकौर नै
आड़ै डर डर कै मर ज्यांगी पिया देख कै घटा घन घोर नै।

तेरे बिना पिया इस घर मैं लागै घोर अन्धेरा
ग्राम बरोणे मैं तेरे बिना म्हारा होजया उजड़ डेरा
जैसे चन्दा बिना चकोरी सूनी न्यूं सूना घर मेरा
रही ठाण पै कूद बछेरी कित चाल्या गया बछेरा
मेरा फिका पड़ग्या चेहरा क्यूं लूटै मेरे त्यौर नै।

शाम सवेरी मनै अकेली नै खेतां कै म्हां जाणा हो
बदमाशां की टोली घूमैं मुश्किल गात बचाणा हो
नहीं मौत का कोए भरोसा घटज्या माल बिराणा हो
तेरी खातिर में रहूं जींवती जब लग पाणी दाणा हो
बिना मोरनी कूण नचावै इस रंग रंगीले मोर नै।

पतला गात बैत ज्यूं लरजै जणुं बाड़ी खिलरी जोर की
सूए बरगी नाक पिया की गर्दन मेरी मोर की
काली गऊ सूं पिया मैं देखुं बाट खोर की
होट गुलाबी चमकैं सैं जणुं बिजली घन घोर की
कठ पुतली की तरियां नाचूं जब तूं हिलावै डोर नै।
दर्जी पै सिमवाइये मेरा लेडी मैटर सूट पिया
पायां कै म्हां पहरादे उंची ऐडी के बूट पिया
दम दम कर कै चालूंगी जणुं कोए फौजी रंगरूट पिया
तेरे बिना क्यूंकर जीऊं भरूं सबर की घूंट पिया
मेहर सिंह तू भूल मत जाइये अपणी चितचोर नै।

(33)

करकै घायल तड़फती छोड़ी तूं ज्यान क्यूंना काढ़ लेग्या
हो परदेशी गैल मेरे तूं बांध क्यूंना हाड लेग्या।टेक

सारा कुणबा छोहमैं आवै सासू दे सै गाल मेरी
ओर किसे का दोष नहीं या छोटी नणद कराल मेरी
ओढण पहरण और सिंगरण की कती छूटली ढाल मेरी
हो परदेशी तनै आणकै क्यूं ना लई सम्हाल मेरी
रंग चा हो सै गैल सजन की तूं घाल गोझ मैं लाड लेग्या

बडी मुश्किल तै बेरा पाट्या के तेरि चिट्ठी आई फौज की थी
चिट्ठी के म्हां न्यूं लिख राखी तेरि छुट्टी बीस रोज की थी
चौदस पूर्णमासी पड़वा तेरी पक्की बाट दौज की थी
सब कुणबे कै चाव चढ़या था मेरी वाहे रात मौज की थी
तूं चंदा बणकै दरस्या कोन्या कित बादलां की आड़ लेग्या।

शक्कर पारे गिरी छुआरे और सुहाली देशी घी की
घर घर के म्हं चालू होरी लाड़ कोथली बेटी धी की
क्यूकर आवै सबर मेरै जब मटती नहीं तृष्णा जी की
सारा सामण उतरग्या खाली दुनिया बाट देखरी मीहं की
सूखी तीज मनाऊं क्युकर मींह का मौका साढ लेग्या।

भरती हूंगा भरती हूंगा या हे आस बदन में थी
और किसे का दोष नहीं सूरती गौरमन्ट के अन्न म्हं थी
कुछ तो जोर करया करमां नैं कुछ तेरै भी मन म्हं थी
भरती होण की खास जरुरत 41 के सन् म्हं थी
घर कुणबे तैं दूर मेहरसिंह तनैं आजदी का चाढ़ लेग्या

(34)

हो हो रे गौरी के बात बताऊ मैं
इस एमटी. के दुःख घने किस ढ़ाल गिणऊ मैं।टेक

पहला दुःख गार्ड बूट पहर कैनै सौणां पड़ै
सीओ परेड की चिन्ता भारी एतबार भी खोणा पड़ै
बराबर की या नफरी ज्यादा सिंगल फाईल होना पड़ै
गाड़ी पै डिटेल हो ज्या सारी चिन्ता साथ हो ज्यां
सीएमई की इन्सपैक्सन हो ज्या बहुत बड़ी सुबात हो ज्या
काला मुंह और काले कपड़े काला सारा गात हो ज्या
रोज आना गाड़ी ले कै ड्यूटी पै जाऊं मैं।

कान-बाई मैं नम्बर पड़ग्या मेरी गाड़ी संग होगी
पहाड़ी ऊपर चढ़ती कौन्या गैयर नोट पुलिंग होगी
पास कर नै पिछली दूनिया सारी तंग होगी
अस टेरंग भी टाईट होरी आयल लिक सम्प करै
पैट्रोल की कमी घणी दुखी एसी पम्प करै
रोड है खराब गोरी गाड़ी घणी जम्प करै
कलच (किलच) दबा कै अगले पाछले गेर लगाऊं मैं।

फिटर भी सिर मार गए बोल कै देती रानी
रेडिएटर भी गर्म होरया गर्म तो बणावै पानी
सीएमई की चैकिंग वाले करते फिरते खैंचा तानी
गाड़ी में लोह-लकड़ गौरी बैठण की त ठौड़ कौन्या
लाईट जिस की ठीक प्यारी दिखता यो रोड़ कौन्या
अस्टेरंग भी टाईट गोरी कटता कितअ मौड़ कौन्या
तारीख 31 जेब खाली के लै कै खांऊ मैं।

टोचन कर कै र्स्टाट करी फैन बैल्ट टूट गया
ऊतराई मैं बरैक मारे पिछला टैर फूट गया
जल्दी कर कै टायर बदल्या जैक वहीं छूट गया
यूनिट के मैं पेसी होगी साथियों से मिलाप हुआ
28 दिन क्वार्ट गार्ड कोरट मार्सल माफ हुया
टुल बाक्स की चैकिंग होगी पैमेंट अपने आप हुया
कहे जाट मेहर सिंह जैक बता इब कित तै लाऊं मैं।

(35)

नीचे चाले टैंक कॅरियर ऊपर जहाज हवाई
मोधे पड़ पड़ गोली मार जब याद लुगाई (टेक)

भर्ती होऊंगा भर्ती होऊंगा लगाया उमाया मन मे
भर्ती हो के भेज दिया मै पहुचा था 10 दिन में
6 महीने में काल होया पर पास होया एक छण में
29 तारीख 11 वा महीना 41 सन में
रंगरूटी की छूटी आ गया मेरी घरा बहु ना पाई (1)

मेरी भाभी मने नुए बोली देवर कितने दिन की छुटी आया
तेरे आवण का जिक्र सुणा जब दिल मे लगा उमाया
मै तेरी भाभी तू मेरा देवर मेरी ख़ातर के लाया
मै बोला री प्रेम करे न कति नही सरमाया
उसकी मोटी मोटी आँखा के महा घणी गजब की स्याही (2)

मने बहु लेवन भी जाना था छुटी मिली थी थोड़ी
दिन लिकड आया जब पीली पाटी मने बैलडी जोडी
आगे जा मेरी सास लड़ी लकदीर राम ने फोड़ी
भागा आला करे सवारी या बिना उलंगी घोड़ी
बहु ने छोड़ के भर्ती हो गया म्हारा बेवकूफ जमाई (3)

गाम त लिकडे पाछे छोरो बैठ गया बहु की जड़ में
बड़ी मुश्किल त घुघट खुलवाया हाथ मार के कड़ में
भूरा भूरा गात परी का पानी जाता दिखे धड़ में
मीठी मीठी बात करे जणू कोयल बोले बड़ में
मेहर सिंह ने तंबू के महा ये कली चार बनाई (4)

(36)

छुट्टी के दिन पूरे होग्ये न्यू सोचण लाग्या मन म्हं
बांध बिस्तरा चाल पड़्या कुछ बाकी रही ना तन म्हं।टेक

छाती कै ला कै माता रोई जिसनै पाल्या पोष्या जाम्यां था
बुआ बाहण पुचकारण लागी भाई भी रोया रांम्भ्या था
दरिया केसी झालउठती मनैं कालजा थांब्या था
छोटे भाई नै घी पीपी म्हं गून्द खाण का बांध्या था
न्यूं बोले दिये छोड़ नौकरी के दब कै मरैगा धन म्हं।

पिताजी खड़े दरवाजे म्हं उनकी कैन्ही चाल्या था
कोलै लागी मेरी बहू रोवै थी सांस सबर का घाल्या था
आँख्या के मैं नीर देख कै मेरा कालजा हाल्या था
न्यूं बोली पिया मेरे नाम का किसनै दिया हवाला था
गम खाकै नै पड़ी घरआली होश रही ना तन म्हं।

हाथ फेर कै पुचकार दई कुछ ना चाल्या जोर मेरा
छः महीने म्हं आल्यूंगा जै ना आया तो चोर तेरा
रस्ते मैं सुसराड़ पड़ै थी उड़ै बी लाग्या दौर मेरा
जीजा आया जीजा आया साला करता आया शौर मेरा
सासू नैं पुचकार दिया मेरै सीलक हुई बदन म्हं।

उड़ै रौटी तक भी खाई कोन्या करी चलण की त्यारी
जीजा जी कद आओगे न्यू बूझै साली प्यारी
म्हारे आंवण का बेरा ना तुम आस छोड़ दियो म्हारी
इतने ए दिन की जोड़ी थी या थारे तैं रिश्तेदारी
मेरी लियो आखरी राम राम थारे कर चाल्या दर्शन म्हं।

टेशन ऊपर छोड़न खातर साला संग म्हं आया था
बाबू जी तैं करी नमस्ते बारंट चेंज कराया था
गाड़ी के मैंह बैठ ग्या मनै पाला गस का खाया था
सींगापुर म्हं जा पहोंचा डांगर ज्यूं डकराया था
कर बदली में भेज दिया उस केहरी बाबरी बण म्हं।

यूनिट म्हं दई हाजरी मनैं पक्का देणा पहरा हो
घर की याद बहू की चिन्ता यो भी दुःख गहरा हो
फौज के म्हां वो जाइयो जो बिन ब्याहा रह रह्या हो
फौजियां तै बूझ लियों जे मेहर सिंह गलती कर रह्या हो
कोए बहू आं आला सुणता हो तो मत दियो पैर बिघन म्हं।

(37)

जब इकतालीस के सन में सिंगहापुर की त्यारी होगी
प्रेम कौर मनैं तेरे ओड़ की चिन्ता भारी होगी।टेक

डीपू म्हैं तै चाल पड़े हम टेशन उपर आगे
एक गौरा एक मेम मिली वे दो दो हार पहरागे
कड़ थेपड़ कै दी शाबासी गाड़ी बीच बैठागे
गाड़ी नैं जब सिटी मारी जो बालक थे घबरागे
अठारहा दिन के अरसे म्हं म्हारी तबीयत खारी होगी।

एक जहाज मनैं ईसा देख्या जिस म्हं बसता गाम
एक औड नैं टट्टू घोड़े रंगरूटा का काम
एक ओड़ नैं बिस्तर पेटी माहें माल गोदाम
जहाज के उपर चढ़कै देख्या सिर पै दिख्या राम
बैठे बैठे बतलावै थें घरां रोवंती नारी होगी।

इसे देश म्हं जा छोड़े जड़ै मोटर रेल नहीं सै
कई किसम के मिलै आदमी मिलता मेल नहीं सै
ब्याह करवा कै देख लियो जिसनै देखी जेल नहीं सै
नौकरी का करणा छोर्यो हांसी खेल नहीं सै
साढ़े तीन हाथ की काया थी या भी सरकारी होगी।

हम आये थे लड़न की खातर पहाड़ी ऊपर चढ़गे
दम दम करकै हुई छमा छम आगै सी नै बढ़गे
सी.ओ. साहब नैं सीटी मारी हम मोर्चे म्हं बड़गे
और किसे का दोष नहीं करमां के नक्शे झड़गे
घर कुणबे तैं दूर मेहरसिंह मोटी लाचारी होगी।

(38)

छुट्टी के दिन पूरे होगे बांध बिस्तरा त्यार होग्या
हिंदुस्तान दिखाई दे ना, अपणे देश तैं बाहर होग्या।

हे ईश्वर मेरी रखिए लिहाज
कदे थे पंछी आज बणगे बाज
बंबई तै एक चल्या जहाज, एक गहवांडी यार होग्या
आ गाम्होली आ गाम्होली, बातां बातां प्यार होग्या

जब बंबई तै हुया था जहाज चलण नै
जगहां मिली ना किसे नै हिलण नै
जी कर रहा था घरक्यां तै मिलण ने, मन में सोच विचार होग्या
किस तरीया तै फेटण आऊं, सात समुन्द्र पार होग्या
मां नै मैं पाल्या लाड़ लडा़कै
मरूंगा कितै मीश्र ब्रहमा मै जाकै
घरां छोड़ दी एक बोहड़िया ब्याहकै, यो भी सिर पै भार होग्या
मौत का बेरा भेजणिया, टेलीफोन या तार होग्या

मेहरसिंह टूटैगी ज्यादा खिंचली
मरूंगा मेरै या तै पक्की जचली
लाशां नै खा-खा गिद्ध भी छक ली, उनका भोजन मजेदार होग्या
लाशां ऊपर घास जाम कै, गोड्यां गोड्यां न्यार होग्या

(39)

बिस्तर बांध कै चाल पड़्या जब याद हाजरी आई
मेरे फिकर म्हं मेरी बहू नै रोटी भी ना खाई।टेक

दो दिन रहैगे छुट्टी के मेरा घी पीपी म्हं घाल्या
छोटे भाई नैं ठाया बिस्तर मेरै आगै चाल्या
कुए पै मेरी बहू फेटगी सांस सबर का घाल्या
दरवाजे म्हं खड़े पिता जी मैं उनकी कान्हीं चाल्या
हालत देख कै वे न्यूं बोले हमनै चाहती नहीं कमाई।

टेशन उपर पहोंच गया सुसराड़ पड़ै थी जड़ म्हं
क्लाक रूम म्हं धर्या बिस्तरा पहोंचा बीच बगड़ म्हं
छोटी साली न्यूं बोलै जणू कोयल बोलै झड़ म्हं
आ जीता तूं बैठ पिलंग पै मैं बैठूं तेरी जड़ म्हं
घणे दिनां मैं आया जीजा के भूल गया था राही।

जब रोटियां का टेम हुअया आई बलावण साली
आलू टमाटर घी बूरा की ठाडी भारदी थाली
धोरै बैठ जिमावण लागी तिरछें घूंघट आली
मुंह बटुआ सा गोल गोल था होठां पर थी लाली
उस गोरी के संग मैं छोर्यो साबत रात बिताई।

जब चालण का टेम हूअया वा बोली साली आण
तू तो जीजा चाल पड़े म्हारी रोती छोड़ी बहाण
जाणा पड़ै जरूरी हमनैम्हारा करडा सै लदाण
जै नहीं आता यकीन तेरै तैं चाल गेल पाटज्या जाण
मेहरसिंह पहोंच गया पलटन म्हं जाते ए ड्यूटी लाई।

एक दिन रोटी खाते खाते याद मेरै तूं आई
लंगर म्हां तैं चाल्या उठकै रोटी भी ना खाई
खाट म्हं जा कै मुंधा पड़ग्या रो कै नाड झुकाई
फेर उठकै देखण लाग्या चोगरदे खड़े सिपाही
कदे नौकरी कदे सैल्यूट करूं कदे चलाऊं लारी।

सिर फोडू और फुड़वा ल्यूंगा दुश्मन गल्यां भिड़कै
बेशक ज्यान चली जा गोरी ना शीश समझता धड़ पै
दो बट आली रफल कै आगै खड़या रहूंगा अड़कै
रहया जीवंता तो फेर मिलूंगा चाल्या आज बिछड़कै
कर कै याद पति नै गौरी मत रोवण का नाम लिए।

सीना ताण देश की खातिर जो हंस हंस प्राण गंवादे
सीधा रोड़ सुरग का मिलज्या सच्चा धाम दख्यादे
के जीणा सै जगम्हं उनका जो मां का दूध लज्जा दे
धन-धन सै वैं लाल देश पै जो अपणा खून बहादे
तन मन धन सब इसकै हाजर सुण मेरा पैगाम लिए।

कहै मेहरसिंह सब जाणें सैं अकलमंद घणी स्याणी
पतिरूप परमेश्वर हो सै या वेदां की बाणी
दुश्मन का दिया घटा मान थी चूड़ावत छत्राणी
देश की खातर कटा दिया सिर थी झांसी की राणी
कर कर याद कहाणी मतकर दिल नै कती मुलायम लिये।

(40)

पीसण खातर चाकी झो दी फौजी की होगी त्यारी
दुःख का कैसे पता लगाऊं सुण प्रेमकौर मेरी प्यारी।टेक

छह साल गालां म्हं हांडया चार साल पढ़ाया
छह साल थारी भैंस चराई दो साल हल बहाया
फेर फौज मैं भर्ती होग्या कुछ ना खेल्या खाया
वो माणस ना किसे काम का जिसनै आगै की नहीं बिचारी।

कदे कदे तेरा त्यौर कुंढाला मेरी छाती म्हं आज्या सै
सुपने के म्हां दिल गोरी मेरा तेरे धौरे आज्या सै
सामण जैसी लौर चलै जब बादल सा छाज्या सै
होल्दार मेजर हुकम करैवो पाड़ पाड़ कै खाज्या सै
तूं तो सोवै पैर फैला मैं द्यूं ड्यूटी सरकारी।

एक दिन रोटी खाते खाते याद मेरै तूं आई
लंगर म्हां तैं चाल्या उठकै रोटी भी ना खाई
खाट म्हं जा कै मुंधा पड़ग्या रो कै नाड झुकाई
फेर उठकै देखण लाग्या चोगरदे खड़े सिपाही
कदे नौकरी कदे सैल्यूट करूं कदे चलाऊं लारी।

इबकै नाम लोट म्हं आग्या तैं पड़ै मिश्र म्हं जाणा
ऊपर तैं हों हवाई हमले पाहड़ां मैं ल्युक जाणा
बैठ जहाज म्हं सफर करै उड़ै चाय बिस्कुट का खाणा
मरने म्हं कुछ कसर रही ना वापिस मुश्किल आणा
कहै मेहरसिंह उल्टे आग्ये तै सोवैंगे महल अटारी।

(41)

छुट्टी काट चला छौरा पर न आगे न डंग पाटे रे ।
उस मोके हाल देख कोये बिरला ए दिल डाटे रे ।

चाची-ताई अगड़-पडोसी कट्ठे होगे सारे रे ।
एन बख़्त पै छोडन आगै जितने यारे -प्यारे रे ।
कोये पीपी कोये बिस्तर बेग मेरा सब सामान उठारे रे ।
कुछ त बोले चाल पड्या कुछ पाछै-पाछै आ रहे रे ।
पर आपा मरे सुरग दिखे बता कोनसा दुःख न बाटे रे ।।।१.

मैंने देहलां पै त मूड कै देख्या सहम उदासी छागी रे ।
आंसू ते पल्ला मेरी वा रोकै कोले लागी रे ।
शरमाती मैंने छोडन खातर पाछै पाछै आगी रे ।
और क्याहें की सोच नहीं मैंने याहे चिंता खागी रे ।
दिन और रात फ़िक्र में जा मेरे चित न चिंता चाटे रे ।।

फलसे त गया बहार लिकड़ गया बहार गाम के गौरे रे ।
जितने यारे प्यारे थे मेरे फिरगे ओरे धोरे रे ।
राम राम कह उलटे मुड़गे मैं रहग्या कालर कोरे रे ।
एकडवासी खड़ी पद्मनी जर्दी चित न चोरे रे ।
एक डंग धरी मैंने चालान खातर दूसरी उल्टी हाटे रे ।।।

करले गुजरा टोकरी ढोके अच्छा फ़ौज त होने म्हैं।
सारी रात गात भड़के मेरा धरती के म सोने म्हैं।
सारी उमर बीत जागी नुएँ कड प पिट्ठू ढोने म्हैं।
फेर मेहर सिंह बेरा न क़द आना होगा बरौने म्हैं ।
पेट खढ़ा ठाके लेज्या पर प्यार बहु का नाटे रे ।।

(42)

बेरा ना छोहरयों या गाड़ी कित ले ज्यावगी।
छुट ग्या हरियाणा याद घर आली आवैगी।।

बख्त ऊठ गौरी चाकी झोंवण लागगी,
मैं बोल्या ना बोल्ली मेरतै श्यान लहकोवण लागगी,
मेरे जावण की सुणकै नै वा रोवण लागगी,
काला था दुपट्टा उसमै मुंह दबकोवण लागगी,
बोल्ली तूं चाल्या जागा पड़ोसन मनै रोज खजावैगी।।

प्रेमकौर रोवण लागगी मेरी भरकै नै झाफी,
बोल्ली गैल चलूं तेरी, घमका चै दे माफी,
भाई आकै बोल्या चाल हो ली देर काफी,
माता नै पुचकार दिया बाबू नै लाई थाफी,
बोले जाते ए चिट्ठी गेर तेरी फक्र सतावैगी

यारे प्यारे छोड़ गये मनै, करकै नै लारी,
पांच सात दस फौजी मिलगे होई रामरमी म्हारी,
दिल्ली के टेशन तै चलण नै गाड़ी नै सीटि मारी,
सारे मिलकै चालैंगे गाड़ी नेफा मै जारी,
उड़ै घरती घरती के म्हं सोणा होगा कित सेज पावैगी।।

नेफा और लद्दाख मै छोरयों पाट रहया चाला,
गर्मी का उड़ै लेहश नहीं पड़ता पोह का पाला,
आवै याद बहू की सोचूं करूं जावण का टाला,
पर जाकै देश बचाणा उल्टा हटूं किस ढाला,
जाट मेहर सिंह थारी कुर्बानी दुनिया गावैगी।

(43)

चौगरदे कै खड़ी कम्पनी, बीच में खड़े भकले
दुश्मन गोळा मारैगा,इस गंजे सिर नै ढकले

काळे बूंट बिलायती पहरे वर्दी लाली खाखी
गोरमेंट नै सूबेदार की फीत तेरै ला राखी
क्यांका अफसर बण्या तण्या तेरै मैड़म आरी ताखी
वा बैठी हुक्म चलाए जा तूं फ़ूंकै चुल्हा-चाकी
वा बिलकुल ना राखै बाकी तनै आछी भूंडी बकले

गंजा अफसर काळा बामण मत इनकी टहल बजाइयो
काणा झीमर भूरा जोगी मत इनतै गात मिलाईयो
केरा जाट नाचणा नाई मत इनतै प्रीत लगाईयो
मशीन कमीण का बेरा ना कित आण ड़बोदे भाईयों
इन नुगरयां तै भगवान बचाईयो चाहे कती ऐकला रखले

झूठी भरैं ग्वाही किसे की मनुष्य नर्क नै पाया करै
यारां सेती दगा करै वो हरदम धक्के खाया करै
गैल्यां खाकै धोखा देदे वो बिना उलादया जाया करै
बाँझ बीर और मर्द हीजड़ा सबनै अपणे केसा चाहया करै
वो सबका टिब्बा ठाया करै जो अपण्या सेती छकले

ध्यान लगाकै सुणता जाईए जो भी बात सुणारया सूं
चोगरदे नै खड़ी कम्पनी मैं के इनतै न्यारा सूं
इन रागनियां नै नाश करया न्यूं गाम छोड़ आरया सूं
गुरू लख्मीचंद की मेहर मेहर सिंह न्यूं लह सुर में गारया सूं
अपणा बरोणा गाम बतारया सूं चाहे डायरी के म्हां लखले

(44)

आज रात का जिकर राहण द्यो कती ज्यान तैं मरग्या
सपना ऊत निराला रै मेरी रे-रे माटी करग्या।टेक

सपने आली बात सुणण का करद्यों रै तम टाला
सपने कै म्हैं दिखै था मनै धौले के म्हं काला
सुपना बैरी मारग्या मनैं ज्यूं खेती नै पाला
जीवण जोगा छोड़्या कोन्या रोप्या मोटा चाला
सुपने आली हूर देखकै मेरा सारा पेटा भरग्या।

सोली करवट सोया था मैं जड़ म्हं होक्का धरकै
मनै रात नै इसा दिख्या जणूं ल्याई जाटणी भरकै
पांत्यां बैठ जगावण लागी वा थोड़ी थोड़ी डरकै
बैठा हो कै घूंट मारले बोली इशारा करकै
सारै दिन ना बोल्या मेरतै के मेरे बिन तनै सरग्या।

मैं उठकै बैठ्या होग्या जब हूर खड़ी थी जड़ म्हं
धन धन उस मालिक नैं जिनै मोती पोया लड़ म्हं
आता जाता सांस दीखता भूरे-भूरे धड़ म्हं
मीठी-मीठी बोलै थी जणूं कोयल बोलै झड़ म्हं
सुण मीठा बोल परी मेरा नरम कालजा चिरग्या।

कहै मेहरसिंह मनैं बता दो यो सपना के जंजाल
सपने आली बणती कोन्या मनै दिखै अपणा काल
माणस बेरा नैं के बणज्या इसा सुपने का हाल
जै सुपणे आली मिलज्या तै हो मैंज्यां माला माल
कदे सुपने आली हूर मिलै ना न्यूं सोच सोच कै डरग्या।

(45)

के बातां का जिक्र करूं बस कोन्या तन म्हं बाकी।
सुपने म्हं सुसराड़ डिगर ग्या बांध कै साफा खाकी।टेक

दिन छीपणे नैं होर्या था जाणू दीखैं दिवे चसते
गाम कै गोरै पहोंच गया मैं बुझण लाग्या रस्ते
आगै सी नै साला मिलग्या भाजकै करी नमस्ते
घर कै बारणें पहोंच गये हम दोनूं हंसते हंसते।
मेरी सालह ठहट्ठा करण लाग्गी के आज्या ऊत तलाकी

साले नै मेरा बिस्तर लाया कर दिया ठाठ निराला
जुती काढ़ कै बैठग्या मैं खाट का देख बिचाला
हूर परी की एक नजर पड़ी मैं खाकै पड़या तिवाला
इन्डीदार गिलास दूध का मोटा रोप्या चाला
दूध म्हं मीठा कम लाग्या मनैं खाण्ड की मारी फांकी।

रोटीयां ताई आया बुलावण नाई तावल करकै
सासू जी तै स्याहमी बैठी थाली म्हं रोटी धरकै
घाल दिया घी बूरा साली नै आगे कै फिरकै
सहज सहज मैं लाग्या खावण थोड़ा थोड़ा डरकै
ठेक्यां पाछै झांक रही थी मेवा ईब तलक ना चाखी।

छोटी साली धोरेकै लिकड़ी करगी हेरा फेरी
ऊंट मटिला मेरा करगी कुदण लायक बछेरी
आंख मारकै न्यूं कहगी मैं बहू बणुगी तेरी
न्यून पडूं तै कुआ दिखै न्यून पडूं तै झेरी
कहै मेहरसिंह तनैं पड़ै काटणी खेती खड़ी जो पाकी।

(46)

के सुपने का जिक्र करूं वा करगी डूबा ढेरी
पिलंग की जड़ म्हं आकै डटगी ज्यान काढ ली मेरी।टेक

पकड़ हाथ तैं खींच लई मेरी ताजी भरी रजाई
कहण लगी तूं बैठा होले मेरी ननदी के भाई
चुपका रह गया बोल्या कौन्या लेता रहया जम्हाई
क्यूना उठता बाट देखरी कद की तेरी लुगाई
मेरी रजाई दूर बगादी झट खींच कै निचै गेरी।

पलंग की जड़ म्हं खड़ी हुई थी वा मसतानी हूर
माथे बिन्दी आंख्यां म्हं स्याही नैना की पैनी घूर
बिजली कैसा बल्ब चासरी थी नूरां की नूर
इसी कटीली गौरी देखी जोबन म्हं भी भरपूर
बैठा होकै देखन लाग्या ना इसी देखी खाण्ड की ढेरी।

सोच फिकर म्हं खून सूख्ग्या नागन सी लड़गी
इधर उधर मैं देखण लाग्या बेरा ना कित बड़गी
उस गौरी का के बिगड़्या मेरी बण कै बात बिगड़गी
घर घाट का छोड़्या कोन्या चेहरे की लाली झड़गी
दूर मिली ना धौरै पाई हूर ढूंढी मनै भतेरी।

दीदे पाड़-पाड़ कै देख्या पाया घोर अंधेरा
मन म्हं आई जाकै देखूं कोए कुआ झेरा
रे-रे माटी मेरी करगी इश्क जाल नै घेरा
मेहरसिंह नहीं कोए अपना दुनिया रैन बसेरा
रंज फिकर म्हं रोता रहग्या किस्मत सोगी मेरी।

(47)

आधी रात शिखर तै ढलगी सुपना दिया दिखाई
लत्ते बढ़िया ओढ़ पहर कै देखी एक लुगाई।टेक

रिम झिम रिमझिम होरी थी गहणा पहर री एक धड़ी
ऊंची एडी बूट बिलायती बांधरी हाथ घड़ी
काली चोटी ईंच ब्यालीस नागनी की ढाल पड़ी
जोबन की मस्ती म्हं जलती जैसे छूटै फूलझड़ी
हाथ पकड़ कै पास बैठगी हंस हंस कै बतलाई।

मनैं बुझी ना न्यूं बोली मनैं नर की चाहना सै
जोड़ी का भरतार मिल्या ना मेल मिलाना सै
मेरा बालम मनै ले ज्यागा जड़ै पानी दाना सै
आम सरोली पके पकाए भाग म्हं खाना सै
गात मुलायम मलमल कैसा पतली नरम कलाई।

आज मनैं तूं फेटया बनड़ा जिसा मैं चाहूं थी
तूं मेरा बालम मैं तेरी गोरी तनै मनाऊं थी
सुरखी बिंदी पोडर लाकै रूप बनाऊं थी
सारा हरियाणा टोहती फिरती तनैं पांऊ थी
मेहरसिंह कहै और पसन्द ना इसी चकोरी आई।

(48)

सुपने के म्हां हूर परी ढंग कुढाला करगी
छाती धड़कै ईब तलक वा ज्यान का गाला करगी।टेक

मनैं कह्या तूं बैठ पिलंग पै बार करै ना गोरी
मन की चाही हो ज्यागी तूं अजब श्यान की छोरी
रंग छांटरी रूप गजब का अब तक रहरी कोरी
ओड़ सुवासण हुई मस्तानी न्यूएं रूप नैं खोरी
ओढ पहर सिंगर रही गारी बेढब चाला करगी।

फेरैं बैठी चीज अनूठी मेरा हरद्या हाल्या
रोम रोम म्हं खुशी हुई जब हाथ गले म्हं घाल्या
चांद चकोरी मिलैंगे दोनूं ताली म्हं मिलग्या ताला
प्यार के रस म्हं भरे हुए रांझा हीर की ढाला
बटन दबा बिजली कैसा सहम उजाला करगी।

बैठी हूर पलंग के ऊपर पैर दबावण लागी
भर चोंटकी देखै धर कै नजर मिलावण लागी
नजर फेरले हसैं जोर तैं हाथ हिलावण लागी
कौली भरली जब मनैं दाब कै बात बनावण लागी
छाती तैं छाती मिलेंगी वा रूप निराला करगी।

हांगा करकै प्यार किया जब दिया भगवान दिखाई
मध्य लोक को छोड़ स्वर्ग की होगी सैर हवाई
हरियाणे म्हं इसे गजब की देखी ना और लुगाई
मेहरसिंह नै जोड़ जाड़ कै कविता खास बनाई
एक छोरी नैं किवाड़ खोल दिये खाण्ड का राला करगी।

(49)

सुपने के म्हां बहु मेरी गई लिकड़ पिलंग कै जड़कै
नखरा करकै मनैं जगागी सुते का हाथ पकड़ कै।टेक

सुपने के म्हां घरां डिगरग्या ले दस दिन की छुट्टी
फेर बहू मनैं देख की झट पीढे पर तै उठ्ठी
भूरी-भूरी आंगलियां म्हं पहर रही थी गुठ्ठी
चार पहर तक हम बतलाए एक बुक्कल म्हं बड़कै।

सुपने के म्हां आज रात मनैं आगया ख्याल बहू का
जड़ म्हं बैठ कै बूझ लिया मन सारा हाल बहू का
गोल-गोल मुखचन्दा कैसा मुखड़ा लाल बहू का
आज तलक ना ठीक हो लिया कर्या हुअया घायल बहू का
के तो आज्या नाम कटा कै ना मरूं कुए म्हं पड़कै।

तेरे तैं तेरा छोटा भाई कमरे बीच बुलावै
मैं पहलां चली जां तो वो पाच्छे तैं आवै
ओढूं पहरूं सिंगरू तो या दुनियां बुरी बतावै
अपणी ब्याही की तिरयां वो सारे हुक्म चलावै
जिसा सुपना मनैं आज आया इसा बेशक आइयो तड़कै।

कहै मेहरसिंह सुपने म्हं ढंग होग्या चाप सिंह आला,
इसा महोब्बत नैं घेर लिया ज्यूं मकड़ी नै जाला
भूरी-भूरी ढोड़ी पै तिल खिण्वारी थी काला
जै छोरा ले देख बहू नैं खाकै पड़ै तिवाला
कित बरेली कित बरोणा मेरी सुते की छाती धड़कै।

(50)

हो रही सूं बेमार सखी ना करती असर दवाई हे
बेरा ना कद लेवण आवै मेरी मां का खास जमाई हे।टेक

जोबन म्हं भरपूर नूर मेरा बिन साजन के झड़्या हुआ
दिन रात बेचैन रहूं मैं नाग प्रेम का लड़्या हुआ
मैं सूं सोने का गुलदस्ता असल माल का घड़्या हुआ
देखलूं मूंह बालम का होज्या कला सवाई हे।

जिनके बालम धौरे ना उनकी मुश्किल सर्दी हो
गैर बीर के प्रेम म्हं फंसकै आया ना बेदर्दी हो
सासु नणद जेठाणी नै कदै ना चुगली करदी हो
कै किसै सौक राण्ड नै मेरी झूठी गवाही भरदी हो
सुभा का तेज घणा गर्म सै मेरी नणदी का भाई हे।

ठीक नहीं पीहर म्हं रहणा खानदान की छोरी नै
कद चमकैगा चांद मेरा हरदम आस चकोरी नै
खावणियां कद खावैगा इस धौली खाण्ड की बोरी नैं
फोड़नियां कद फोड़ैगा इस माटी की हाण्डी कौरी नैं
बिन बालम के गौरी नै भरनी पड़ै तवाई हे।

मुश्किल होज्या रात काटणी बिन बनड़े के सून्नी सूं
सेज का सोवणियां आज्या तै चमकूं दूणी दूणी सूं
चिकणा गात मेरा मैं असली घी नूणी सूं
आम सरौली पकी डाल की मीठी ना मैं अलूनी सूं
मेहर सिंह तूं रहा चला मेरा जोबन जहाज हवाई हे।

(51)

लड़ाई मैं जां सूं रै गौरी तूं घरां बैठी मौज उड़ाया करिए।टेक

शान तेरी हिरदे बीच फसी
ज्यान किसी फंदे बीच कसी
इसी घड़ा घड़ाई मैं जा सूं रै गौरी तूं हंस खिल कै बतलाया करिए।

मेरा तेरा बीर मर्द का नाता
लिकड़ग्या बखत फेर हाथ ना आता
उड़ै दुश्मन रहै सै लातम लाता
पड़ा पड़ाई मैं जां सूं रै गौरी तूं ब्राहमण सोण जमाया करिए।

बिना धणी उजड़ज्या खेती,
फेर रहज्या रेती की रेती,
उड़ै जा कै दुश्मन सेती
भिड़ा भिड़ाई मैं जां सूं रै गौरी तूं कुछ पुन मैं पीसा लाया करिए।

तूं बंध जाईए धर्म कै डोरै
दिन कटज्यागें गुप्त मसोरै
गुरु लखमीचन्द कै धोरै
जड़ा जड़ाई मैं जां सूं गौरी तूं मेहर सिंह से छन्द गाया करिए।

(52)

सामण में उल्हार,उठैं बागा में महकार,पड़ री गीतां की झंकार,
झूलैं हिंदुवा की नार, आया तीजा का त्यौहार बरस दन में....

सब सखी ओढ़ पहर संगर री,
सारी रंग चाह में भर री,
कर री हूरा कैसा भेष, चमकै काले काले केस,
रह आनंद में हमेश, ना दुख विपदा का लेस, बाकी तन में...

सब सखियां की घल री थी झुल,
रही थी ईश्क नशे टुल,
फुल गैंदा ओर गुलाब,संग दे रया मोतिया भी आब,
खड़े पेड़ बे हिसाब, और बीजली की दाब लाग्गी घन में....

कर रे थे हंस किलोल,
रहे थे मोर पपिइयां बोल,
कोयल सी रही पुकार ,कालजे को सार,
पाक्के दाख आंब अनार, ओर पिया जी का प्यार बस्या है मन में.....

भरया था सुंदर जल का ताल,
बाग की थी शोभा अजब कमाल,
हाल गावै मेहर सिंह खास, खड़ी थी कचिया कचिया घास,
जैसे गोपनियां थी पास ओर कृष्ण जी नै रास रचाया बन में........

(53)

कोन्या पार बसावे लोगो कमजोर रुखाले की
सबकी भाभी होया करै सै बहु टोटे आले की (टेक)

निर्धन कंगले की जड़ मै के लागे सुथरी राणी
डिगज्या नीत रांड टोटे मै होज्या रोज मनाणी
टोटे के म्ह मर्द ने होज्या मुश्किल जात बचाणी
टोटे के म्ह बीर मर्द की रह सै खींचाताणी
मुश्किल हो ज्या रोटी थ्याणी जा अक्ल बिगड रजाले की

रंग रूप हुस्न अदा मानस की टोटे के म्हा घटज्या
प्यारा मानस आंख फेर कै दूर परे नै हटज्या
ढका ढकाया गात उघडज्या वस्त्र तक भी फटज्या
मांगे तै उधार मिले ना दाता तक भी नटज्या
गर्मी तै जल्दी कटज्या पर मुश्किल रात पाले की

टोटे आले मानस नै सब राखै दूर परै
पाटे वस्त्र टूटे लितर हो मुश्किल गुजर करै
यारी और असनाई में जाये बिन नही सरै
सास ससुर साले साली का पेटा नही भरै
कौन खुशामद करे बटेऊ बोदे काले की

नफे मै मानस पड़ कै सोवै टोटे मै जागै
रात दिन चिंता में डोले भुख जिगर मै लागै
जाट मेहर सिंह टोटे आले नै भाई बंध सब त्यागै
कुछ धींगताना ना चाले इस टोटे तै कित भागै
मिश्री की डली के आगै के कीमत राले की

(54)

हाथ जोड़ के कहु पिया मेरा इतना कहन पुगाइये
मै मर ज्या त सोंख दूसरी मतना ब्याह के लाइये (टेक)

मौसी कारण धुर्व भगत भी बियाबान में आया
बोली मारी थी मौसी ने सुनके जलगी काया
फिरा भटकता जंगल के महा भूखा ओर तिसाया
नारद मुनि मिले रस्ते में उसने भेद बताया
धुर्व भगत की तरिया मत बेटे ने तंग करवाइये

रूप बसन्त की माता मरगी शौक़ दूसरी आई
रूप के सर पे दोष धरा दुष्ट नही घबराई
दोनो भाई चल पड़े वे बियाबान की राही
न्यारे न्यारे फिरे भटकते शीश चढ़ी करडाई
मौसी काली नागिन हो स तू मतना डसवाइये

पूरनमल मौसी के धौरे करण नमस्ते आया
नीत डीगी थी इस पापण की दोष कंवर प लाया
हाथ पैर कत्ल करवा के कुएं में गिरवाया
बाहरा साल सदा कुएं में तंग होगी थी काया
पूरनमल की तरहा लाल न मतना तू मरवाईये

भोरे में गिरवा राखा स लाड़ लड़ाये कोन्या
मुह भी देखन ना पाई मने गोद खिलाया कोन्या
छटी मनी ना दोघड़ पूजी हवन कराया कोन्या
आज तलक मने बेटे का मुह दिखलाया कोन्या
कहे मेहरसिंह मेरी प्रेम निशानी ने तू छाती के लाइये

(55)

हे बनकै आधीन पराया करके खाणा हो।
कदे सपने में भी सुख हो ना, अड़े हुक्म बजाणा हो। टेक

रहैन्गे सब तरीयां के आराम
खरी गजुरी चोखे दाम
यो तेरे मर्द का काम, रोज़ का ईंधन ल्याणा हो।।

तेरे दो बालक याणें -याणें
पड़े जंगल में धक्के खाणे
आड़े ढांगर ढोर चराणे दुःख इस तन पै ठाना हो।।

हे शक्ल से जाती पच्छाणी
दिखे समझण् जोगी श्याणी
हे करयी टहल बराणी मन का के समझाना हो।।

हे जो बात लिखी पिंगल में
(यह पंक्ति नहीं मिली)
कहै जाट मेहर सिंह दंगल में सुर त गाना हो।।

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