किस्सा चापसिंह-सोमवती

दिल्ली में मुगल बादशाह शाहजहां राज किया करते थे। उनके भूतपूर्व दरबारी ठाकुर अंगध्वज का लड़का चाप सिंह मुगल सेना में सिपहसालार के पद पर भर्ती हो गया। समय गुजरता गया कुछ ही अर्सा में राजपूत चाप सिंह अपनी कर्त्तव्यपरायणता तथा शूरवीरता के कारण मुगल दरबार में चर्चित हो गया। दूसरा सिपहसालार शेरखान जो बादशाह शाहजहां का साला था अन्दर ही अन्दर चाप सिंह से जलने लगा। वह किसी ऐसे मौके की तलाश में रहता था जब चाप सिंह को नीचा दिखाया जा सके परन्तु उसकी कोई भी योजना सफल नहीं हो पा रही थी और चाप सिंह दिन प्रतिदिन बादशाह का विश्वासपात्र बनता चला गया।

चाप सिंह की शादी सोमवती से हो जाती है। जब उसके गोणे की चिट्टी आती है तो वह छुट्टी लेने के लिए बादशाह शाहजहां के दरबार में पेश होता है और क्या कहता है-

राजा जी मैंने छुट्टी दे दे चिट्ठी आगी गोणे की
पल-पल हो रही वार भूप या समय नहीं सै खोणे की। टेक

मात पिता ने चिन्ता भारी अपनी बेटी धी की
सोमवती मेरी बाट जोंहवती जणू मोर पपीहा मींह की
पढ़ते ए चिट्ठी हुया उमंग में मेरी चाही होगी जी की
तरी दया तैं राजा जी म्हारै ज्योत बळैगी घी की
किस्मत के मेरे द्वार खुले आज घड़ी नहीं जंग झोणे की।

एकले का के जीणा जग में कोए मत एकला रहियो
मेल किसी ना चीज जगत में धर्म कै उपर मरियो
पंद्राह दिन की अर्ज करुं सूं दया मेरे पै करियो
जा बेटा सुसराड़ डिगर ज्या हंस कै एक बै कहियो
के बैरा या बाण छूटज्या खुद रोटी टुकड़ा पोणे की।

याणे के मां-बाप मरे मनै सूना छोड़ छिगरगे
जग परळो में कसर रही ना गम के बादळ घिरगे
बिगड़ी का ना कोए बणया हिमाती दूर किनारा करगे
दयावान और यार समझ कै तेरे सुपर्द करगें
घड़ी मिली सै आज आनन्द की दाग जिगर के धोणे की।

बिन बालम की गौरी का तै फिकाए बाणा हो सै
आच्छी भूण्डी कह कै उस तै पाप कमाणा हो सै
साज बाज बिना मेहर सिंह तेरा न्यूं के गाणा हो सै
ड्यूटी द्यूं सरकारी मनै तेरा हुकम बजाणा हो सै
बांद्य बिस्तरा चाल पड़या ली टिकट कटा बरोणे की।

चाप सिंह की छुट्टी पूरी हो जाती है और जब वह वापिस अपनी ड्यूटी पर जाने के लिए तैयार होता है तो सोमवती क्या कहती है-

प्रदेसां में चाल्य पड़या दिल तोड़ कै नार नवेली का
तेरे बिना भरतार आड़ै जी लागै नहीं अकेली का। टेक

हो चाहे कितना ए खेद बीर नै मर्दा नै के बेरा
तारे गिण गिण रात चली जा हो ज्या न्यूए सवेरा
बिना पति के ओड हवेली हो भूतां का डेरा
तेरे बिना रह घोर अंधेरा तूं दीपक महल हवेली का।

दिल की दिल में रहै पति बिना होता ना मन चाह्या
ओड उमर में छोड़ चल्या तूं कुछ ना खेल्या खाया
कुछ भी आच्छा लागै कोन्या धन दौलत और माया
तीज त्यौहार चले जां सुक्के मन लागै नहीं उम्हाया
मद जोबन में भरी सै काया मद पै फूल चमेली का।

हाळी बिन धरती सुन्नी बिना सवार के घोड़ी
बिना मेळ के कळह रहै नित घणी नहीं तै थोड़ी
जल बिन मीन तड़पकै मरज्या न्यूए बीर मर्द की जोड़ी
बिना पति के बीर की कीमत उठै ना धेला कौड़ी
बिन परखणीयां लाल किरोड़ी होज्या सस्ता धेली का।

सारी उमर बिता द्यूं मैं पिया तेरे गुण गा कै
याद रखिए कदे भूलज्या परदेस में जा कै
राजी खुशी की चिट्टी गेरिए खुश हो ज्यांगी पा कै
आवण की लिखैगा तै मैं गांऊ गीत उम्हा कै
मेहर सिंह कद रंग लूटैगा मद जोबन अलबेली का।

जब चाप सिंह छुट्टी काट कर वापिस चल पड़ता है तो सोमवती क्या कहती है-

परदेसां मैं चाल्य पड़या ना मेरी ओड़ का ध्यान पिया
बार-बार मनै अजमा राखे मतलब के इन्सान पिया। टेक

हरिश्चन्द्र नै तारावती तै कह दिया बोल तकाजे का
फूकण खातर जगह दई ना रोहताश कंवर था साझे का
तारवती मढ़ी में सोगी मुंह खुल रहा था दरवाजे का
डायण समझ कै चोटी पकड़ी कर दिया तोड़ मुहलाजे का
सिर काटण नै त्यार होआ उड़ै परकट हुए भगवान पिया।

राज नळ नै दमयन्ती जा ब्याह ली कुन्दन पुर तै
राज जिता वा गैल चली गई ना गर्ज करी माया जर तै
सूती समझ कै साड़ी काटी ना परीत हुई ब्याहे बर तै
रामचन्द्र दशरथ का लड़का वा सीता काढ़ दई घर तै
ऋषि बाल्मीकि नै बण में पाळी वा सीता की सन्तान पिया।

पवन भूप नै अंजना ब्याही बारहा साल दुहाग दिया
सुहाग मिला जब सास जळी नै लगा खोड़ कै दाग दिया
धन धन सै उस पतिव्रता नै घर कुणबा सब त्याग दिया
बरहां ऋषि कै धौरै रह कै घर का छोड़ बैराग दिया
वा पति के कारण तंग पाई हुए बणखण्ड में हनुमान पिया।

जमदग्नी ने सती रेणुका बिना खोट मरवाई क्यूं
भामासुर ने सतरूपा नार बिना खोट कढ़वाई क्यूं
कामेश्वर पै कपिल मुनि ने शीला दे नार सताई क्यूं
उस दुर्योधन नै नार दरोपद सभा बीच बुलवाई क्यूं
कहै जाट मेहर सिंह रचया त्रिया तै यो सारा सकल जहान पिया।

चाप सिंह अपनी ड्यूटी पर पहुंच जाता है। एक अर्सा गुजर जाता है। चाप सिंह एक बार फिर बादशाह से छुट्टी के लिए निवेदन करता है-

जहाँपनाह मनै छुट्टी दे दे, कहण छह महीने का पूरा होग्या।।
(यह रागनी नही मिली)

कारण पूछने पर चाप सिंह कहता है महाराज मेरे घर पतिव्रता स्त्रि है वह मुझे बहुत याद करती है। उस समय शेरखान भी वहीं होता है और वह पतिव्रता के नाम पर चाप सिंह का उपहास करता है-

जो पर्दा खोले डोले जां, वे पतिव्रता नार कडे तै होगी।।
(यह रागनी नही मिली)

चाप सिंह क्रोध में शेरखान को क्या कहता है-

मुंह संभाल कै बोलिये ना खींच ल्यूं जुबान नै।।
यह रागनी नही मिली)

आखिरकार शेरखान और चाप सिंह की शर्त लग जाती है कि अगर शेरखान यह साबित कर दे कि चाप सिंह की पत्नी पतिव्रता नहीं है तो चाप सिंह फांसी के फंदे पर चढ़ जायेगा और यदि साबित न कर सका तो शेरखान को फांसी चढ़ना होगा। शेरखान अपनी योजना को सफल बनाने के लिए एक दूती को अपनी चाल का मोहरा बनाने की सोचकर दूती के पास जाता है और क्या कहता है-

मनै गिण कै दे लिए बोल तीन सौ साठ चौबारे आळी
तनै खोले नहीं किवाड़ देख रहा बाट चौबारे आळी। टेक

तेरे तैं सै काम जरूरी तूं कती गोलती कोन्या
मैं खड़या गाळ में रूक्के मारूं तूं कती बोलती कोन्या
गेट खोलती कोन्या के होगी लाट चौबारे आळी।

जागा मीची सी होरी थी टूटै थी अंगड़ाई
कौण गाळ में रूक्के मारै फेर देग्या बोल सुणाई
देहळीयां धोरै आई छोड़कै खाट चौबारे आळी।

तेरे हाथ में तीर निशाना आज इसनै चलवादे
के तै उसनै आड़ै बुला ना मनै उड़ै मिलवादे
कोए खास निशानी ल्यादे कर द्यूं ठाठ चौबारे आळी।

मरण जीण की शर्त लागरी ना इस मैं झूठ कती
उसका पति फौज में जा रह्या घर पै एकली सोमवती
उसके पति का नाम मेहर सिंह जाट चौबारे आळी।

दूती शेरखान की बात सुण कर क्या कहती है

खुद तो मरना धार लिया गैल मनै भी मरवावै।
बेईमान चुपाका चाल्या जा यो मतना जिकर चलावै॥
(यह रागनी नही मिली)

शेरखान धन का लोभ देकर दूती को मना लेता है। दूती सोमवती के पास पहुंच जाती है और अपने आप को चापसिंह की बुआ बताती है। कुछ रोज सोमवती के पास रहने के पश्चात दूती वापिस चलने की तैयारी करती है और सोमवती को कहती है कि उसे उन दोनों की बहुत याद आती है। वह उसे कोई ऐसी निशानी दे दे जिसे उनकी याद आने पर देख लिया करूं और अपने मन को तसल्ली दे लूं। सोमवती उसकी बातों में आ जाती है और उसे चापसिंह की अंगुठी, कटारी और पगड़ी दे देती है। दूती ये तीनों निशानी लाकर शेरखान को दे देती है। शेरखान इन चीजों को पाकर फूला नहीं समाता| शेरखान दूती द्वारा दी गई तीनो निशानी-अंगूठी, कटारी व पटका लाकर दरबार में पेश करता है और कहता है कि जिस सोमवती को चापसिंह पतिव्रता स्त्री कहता था, मैंने उसी से दोस्ती कर ली है तथा मुलाकात की है और सोमवती ने यह चीजें मुझे दी है। दूती ने स्नान करती हुई सोमवती की बांई जांघ का तिल भी देख लिया था। अतः शेरखान उस तिल का जिक्र भी करता है और क्या कहता है-

जिन बातां नै साची कह था सारी होली झूठ तेरी।
कित का छत्री बण्या फिरै देख लई सब ऊठ तेरी।।

इज्ज़त की दिवार चणी सोमवती नै दई गिरा,
वा सै चार सौ बीस घणी तनै समझै बेकूफ निरा,
आए गये मुसाफ़िर डाटै घरकी राखी बणा सरा,
जिसनै भली बतावै सै वा पाप की नईया रही तिरा,
कोए ओच्छे कुल की ब्याह राखी सै न्यू किस्मत गई फूट तेरी।।

चार रोज तेरे घर पै ठहरया बणकै नै मेहमान गया,
बर्फ घोल कै पिया करता वो पाणी मुल्तान गया,
बस पटका और कटार देख कै क्यूं हो इतणा परेशान गया,
मैं चौपड़ खेल्या सोमवती तै फेर ऊके काले तिल पै ध्यान गया,
जुणसी चौकस धर राखी थी, वा पूंजी लई लूट तेरी।।

चौगरदे तै घेर लिया के नुकता चीनी छांटैगा,
ये प्रमाण पड़े तेरे आगै इब तू क्यूकर नाटैगा,
पर्दाफ़ाश हो लिया तेरा इब क्यूकर दिल डाटैगा,
जब तू फांसी तोड़या जागा फेर तनै बेरा पाटैगा,
इस दुख तै तब चैन पड़ैगा, जब नाड़ी जागी छूट तेरी।।

बख्त लिकड़ग्या हाथा तै इब धर सर गोडया मै रोवैगा,
माटी मै तेरी इज्जत रुलगी किस किसतै मुंह ल्हकोवैगा,
जाट मेहर सिंह छन्द कथ कै बातां के मोती पोवैगा,
फौज के म्हा रहकै भरी जवानी खोवैगा,
कडै पै पीट्ठू ढ़ोए जा या देही जागी टूट तेरी।।

शेरखान की बात सुण कर चाप सिंह को एकदम धक्का लगता है। कवि ने क्या दर्शाया है-

सुणकै जिकरा तिल का, एक दम धक्का लाग्या॥
(यह रागनी नही मिली)<

चापसिंह शर्त हार जाता है और उसकी फांसी का दिन निश्चित कर दिया जाता है। चापसिंह फांसी की सजा मंजूर कर लेता है परन्तु उससे पहले एक बार सोमवती से मिलने की इच्छा जाहिर करता है। उसे सोमवती से मिलने की इजाजत मिल जाती है। वह अपने महल में जाता है। जब सोमवती चाप सिंह के आने की बात सुनती है तो ख़ुशी में भर कर आरते की त्यारी करती है-

भरी खुशी मै छत्रराणी जब सुणी आवै चाप सिंह सरदार।
वा करण आरता चाल पड़ी कर सोलहा सिंगार।।
(यह रागनी नही मिली)

चाप सिंह आरते की थाली कै ठोकर मार देता है। सोमवती क्या कहती है-

इतणा छोह मै क्यूं भररया जो आरते कै ठोकर मारी।
हो पिया जी के खोट मेरा बूझै सै तेरे दिल की प्यारी॥
(यह रागनी नही मिली)

सोमवती चाप सिंह से क्रोध का कारण पूछती है -

ठोकर मार दई, आब तार लई, के खता हुई, जो पाड कै खावै ॥
(यह रागनी नही मिली)

चाप सिंह क्या कहता है-

बेइमान डूब कै मरज्या कार करी बड़े छल की
सहम सफाई तारया करती भरी पड़ी सै मल की। टेक

तेरी बात मान कै चल्या गया तनै कुछ भी जाणी कोन्या
हम रजपूत म्हारी दहक बुरी तनै जगहां पिछाणी कोन्या
वैश्या बण कै रहया करेगी ईब रही छतराणी कोन्या
लोग जगत के निन्दा करते तेरी राणी स्याणी कोन्या
धोळा बाणा ले बांस हाथ में आस छोड़ दे कल की।

तेरे हाथ की ले कै इंगुठी चमका दिया नगीना
बाई जांघ पै तिल बताया मेरै सुण कै आया पसीना
मनै ज्यान की बाजी ला राखी थी तेरा शरद समझ कै सीना
तेरी करतूतां नै दिखा दिया आज मौत सजा का जीना
मेरे रस्ते कै महां लाग गई तूं पैड़ी बण कै सिल की।

सती बीर तै पति के बदले सिर दे दे भीड़ पड़ी में
गंगा जैसा धाम छोड़ तूं न्हा ली लेट सड़ी में
असली मोती ना सजता कदे नकली मेख जड़ी में
गळियारे का मोती था मनै पो लिया खास लड़ी में
शेरखान नै जिकर करया उड़ै सुणकै छाती दलकी।

आच्छी बीर थोड़ी दुनिया में घणी बेईमान फिरैं सैं
कीड़े पड़ कै मरया करैं जो पति तैं दगा करै सैं
बीर के मोह में आकै नै सब तरियां मर्द मरै सैं
कहै मेहरसिंह इन बीरां तैं घणे ईज्जत बन्द डरै सैं
ब्याह करवा कै के सुख देख्या या फांसी बणगी गळ की।

सोमवती चाप सिंह की बातों को समझ नहीं पाती | वो बताती है की पटका और कटार तो आपकी बुआ आकर ले गई थी| मैं किसी शेरखान को नहीं जानती और क्या कहती है-

किसका जिकरा कर रे सो यो कोण शेरखान ।
पटका और कटार तो तेरी लेगी थी बुआ आण।।
(यह रागनी नही मिली)

चाप सिंह सोमवती को क्या कहता है -

जै होती जाण्य तेरी रै, तारैगी आन मेरी रै
थारै घरनै सरा सरी रै, तेरी उल्टी बहल हंका देता। टेक

तनै डोब दिया मेरा धरम
आज कौड करया सै करम
मनै शर्म आंवती मोटी
तनै कार करी किसी खोटी
तेरी कटवा कै नाक और चोटी, कुऐ बीच धका देता।

छोड़े राम नाम के जपने दिखा दिये कंगलां आले सपने
अपने फेरयां की गांठ खुलवा कै
तेरे हाथ में हाथ घलवा कै
किसै मुल्ला काजी नै बुलवा कै तेरा उस तै निकाह पढ़ा देता।

तनै डोब दिया बेईमान
मेरा जंचा डिगाया ध्यान
जै उड़ै शेरखान पा जाता
उसकी घिटी नै खा जाता
जै मौके पै आ जाता तनै करणा प्यार सिखा देता।

मेहर सिंह हो लिया महाघोर
तेरा तै सारै माच लिया शोर
जोर था दरबारां में मेरा
मन्नै पाटया कोन्या बेरा
तांबे के अक्षर में तेरा रंडी नाम लिखा देता।

सोमवती क्या जवाब देती है -

गुप्ती घा जिगर में होगे मनै घणी सतावै मतना
निरदोसी सै बहुत तेरी सिर दोस लगावै मतना।टेक

तेरे नाम की माळा रटती दिन देख्या ना रात पिया
तेरे बिना ना चैन मिलै था दुःख पावै था गात पिया
ईज्जत सै तेरे हाथ पिया खुद आप घटावै मतना।

बुरे करम तै पिया जी मैं सौ-सौ कोसां दूर रहूं
जिस तै सिर बदनामी हो ना कर कै इसा कसूर रहूं
तेरी भक्ति कै म्हां चूर रहूं मेरा धरम घटावै मतना।

धड़ तै सीस तार ले बेशक जै आगी तेरे मन मैं
कड़वे कड़वे बोल बोलकै फूकण लाग्या अंग नै
शेरखान के रंग में आकै गलती खावै मतना

झूठा दोस लगावै सै क्यूं कर रह्या धक्के खाणी
थारे घर का पी राख्या ना गैर घर का पाणी
मेहर सिंह कड़वी बाणी के तीर चलावै मतना।

चाप सिंह क्रोध में क्या कहता है -

मेरे माथे में बल न्यूं पड़गें तनै आग्यी बात बणाणी
जीवण जोगा छोड़्या कोन्या सुणले माणस खाणी। टेक

उस दिन नै मैं रोऊं सूं जब तेरा डोळा उठया था
होगे सोण कसोण हाथ तैं जब कोड़ा छूटया था
मात पिता ना बुआ बहाण न्यूं भाग मेरा फूट्या था
तनै छोड़ एकली गया नौकरी मेरा दिल सा टूट्या था
ईब मारै बात खड़ी हांसै तूं खा कै खूद बिराणी।

गीता और रामायण तज कै बणगी पीर मढ़ी तूं
भजन छोड़ श्री कृष्ण जी का मस्जिद बीच चढ़ी तूं
गंगा जमना तीर्थ तजकै मक्के कैड़ बढ़ी तूं
वेद सास्त्र छोड़ दिये कर याद कुरान पढ़ी तूं
तनै साड़ी छोड़ पहर लिया बुरका तूं हाडै बणी पठाणी।

कहे सुणे की ना मानी तूं बणगी मन की मैली
शेरखान नै महलां में तूं बातां कै म्हां दे ली
मुसलमान की गौरी ईब तूं बणगी नई नवेली
दोनूं चीजां नै नाटूं था तनै धिंगताणा कर ले ली
मुट्ठी चापी भरी नुहवाया वो करकै ताता पाणी।

के बेरा था सोमवती तूं ओड पवाड़ा रच ज्यागी
खो दिया दीन ईमान तनै बता ईब कित ईज्जत बच ज्यागी
कुछ तो पहलां खिंचरी थी कुछ ईब आगै खिंच ज्यागी
तड़कै फांसी टूटूं दरबारां में जिब तेरै पक्की जंच ज्यागी
कित की बन्नो ब्याही मेहर सिंह करली कुणबा घाणी।

सोमवती क्या कहती है -

इतनी कच्ची बात कही क्यूंकर दी तन की ढेरी
मार चाहे दुत्कार ज्यान तेरे चरणां कै म्हां गेरी। टेक

पति रूप पण्मेसर हो तेरा निस दिन ध्यान धरूं थी
करम की मंजिल धरम की राही हरदम ज्ञान करूं थी
सुबह उठकै सबतैं पहला अन्न का दान करूं थी
साधु सन्त गऊ की सेवा बे उनमान करूं थी
स्नान करूं थी होणी नै मै आण महल में घेरी।

तेरे गये पै तीळ टूम कदे घाली ना इस तन मैं
तेरे आवण की आस रहै थी सुरती हरि भजन मैं
पतिव्रता धर्म तै नहीं हटी मैं एक घड़ी पल छन मैं
उस सीता की ज्यूं साची सूं चाहे धर कै देख अग्न मैं
लूट लई धोळे दिन में पिया करकै रात अन्धेरी।

तेरी बुआ बण कै दूती आई पिया बात बता द्यूं सारी
कौळी भरकै न्यूं बोली बहु लागै सै घणी प्यारी
चलती बरियां सिर हाथ धर्या ला छाती कै पुचकारी
तेरी निशानी लेगी बैरण पटका और कटारी
तेरी शर्म की मारी ना नाटी कदे सीश तार ले केहरी।

कहै मेहरसिंह तेरी धजा शिखर में गेरूं तै गिर ज्यागी
धरम की नैया बली ज्ञान की पहले पार उतर ज्यागी
हळवे हळवे बोल पिया ना सारै बात बिखर ज्यागी
पैनी तेग तै मारै मत मेरी आपै गर्दन चिर ज्यागी
गळै कटारी धर ज्यांगी जै खोट खता हो मेरी।

चाप सिंह आगे क्या कहता है -

नास करण नै आण्य बड़ी म्हारे रजपूतां के घर मैं
और कसर रहरी हो तै दो जूत मार ले सिर मैं। टेक

बात समझ कै करणी चाहिए बातां पै मरणा सै
सच्चे दिल तैं भजन करें जा जै भव सागर तिरणा सै
होणा था जो हुंऊया जगत में जी कै के करणा सै
भीक्षक बणकै प्राण पति के दरबारां में फिरणा सै
इस जिन्दगी में नहीं मिलूंगा बांध चल्या बिस्तर मै।

तूं तो कहे थी पतिवरता सूं के योहे मूंह सै तेरा
वैश्या का घर बणा दिया तनै रजपूता का डेरा
उठ मुसाफिर चाल्य पड़े बस हो लिया रैन बसेरा
बोलण तक की सरधा कोन्या घा दुखै सै मेरा
शेरखान नै दरबारां में गाडे सेल जिग मैं।

पहले दिन तै पता हनीं था जो तेरे गुप्त बिमारी
बेईमान डूबकै मरजा थुकै दुनियां सारी
अपणी कह दी तेरी सुण ली ईब लिए नमस्ते म्हारी
खुल्ले मुखैरे फिर्या करेगी शेरखान की प्यारी
मैं फांसी के तख्ते पै चढ़ग्या बैरण तेरे फिकर मैं।

धरम करम नैं छोड़ पाप की बेल फैलाणे आळी
मुसलमान नै रजपूतां की सेज सुलाणे आळी
दो दिन का जीणा दुनियां में या जिन्दगी जाणे आळी
कहै मेहरसिंह मिलै नतीजा ईश्क कमाणे आळी
धर्म कर्म नै छोड़ फंसी इस काम देव चक्कर मैं।

चाप सिंह आगे क्या कहता है -

धौला बाणा बांस हाथ में मनै काग उड़ाणी कर दी
तनै रजपुतां के बट्टा ला दिया अमर कहाणी कर दी। टेक

हंस हंस काग उड़ाया करिऐ ले कै हाथ में लाठी
मिसरी तैं भी मिठी थी आज होगी कड़वी खाटी
कामदेव के बस में हो कै झाल गई ना डाटी
मुसलमान संग ईश्क कमाया बण कै नै दा घाटी
तनै चापसिंह की गर्दन काटी या मोटी हाणी कर दी।

मेरी मां सी मरगी दरबारां में वो हुयआ फूल कै डोडा
प्राण त्यागणा चाहूं सूं पर क्यांह का ल्यूं मैं ओडा
मेरे माणस मरे किसा दर्द गात में तनै किस पै पहरा ओढ़ा
मेरी काया में दर्द घणा मैं चालूं कोड्डा कोड्डा
तनै बोलण जोगा छोडया कोन्या कती बन्द बाणी कर दी।

गुप्ती घा जिगर मैं सै मेरे कोन्या असर दवाई का
ईब मनै बेरा पाट्या बैरण तेरी सुलह सफाई का
मुसलमान संग ईश्क कमाया तनै कर दिया काम हंसाई का
ना तै के गुन्जायस काटड़े की जो खाज्या घास कसाई का
तनै धब्बा ला दिया स्याही का मेरै खास निशानी कर दी।

मेरी दरबारां में हार हुई जीत हुई शेरखान की
तड़कै फांसी टूटूंगा मेरी बाजी लगरी ज्यान की
छुट्टी ले कै आया सूं तेरी देखण शक्ल डायण की
मेहरसिंह का जन्म जाट घर कोन्या कार गाण की
तूं करिए टहल पठान की मनै गैल पठाणी कर दी।

चापसिंह अपने महल में सोमवती से मिलने के पश्चात वापिस दरबार में हाजिर होता है तो उसे जेल में बंद कर दिया जाता है। उस समय चापसिंह अपने मन में क्या सोचता है-

जेळ के अन्दर बन्द चापसिंह शेर तैं गादड़ बण कै
फांसी का दिया हुक्म सुणा सही दिन और तारिख गिण कै। टेक

सोमवती का ख्याल यू दिल पै आवै सै कई कई बै
फेर मर्द पछतावण लाग्या पिछली बात गई पै
झूठे सीधे नेम करै ना आवै बात सही पै
कोए ना करीयो एतबार बीर का सुथरी शान नई पै
खसम तैं मिलता नाम धरैं ये पूत बिराणा जण कै।

अली झली और विपता जालिम कितनी पड़ती नर पै
पेट खड्डा आटण की खातिर पड़ै औटणी सिर पै
दुनिया ताने दिया करैगी लागैं बोल जिगर पै
एक चापसिंह फांसी टूंट्या या बीर छोड़ कै घर पैं
मेरी नाड तळे नै करवा दी कदे चाल्या करुथा तण कै

कर्मा नै तै न्यूं रोऊं सूं मैं मार्या करम गति नै
जिसकै साहरै जिआ करूं था डोबया उसै सती नै
सोने तै दिया राग बणा मैं डस लिया तेज रति नै
बोलण जोगा छोड़्या ना इस पापिण सोमवती नै
वो सांप मर्या फण मार आज जो रहै था भरोसै मण कै

करमां पै तै न्यूं रोऊं मेरी काया मैं दुःख गहरा
गौरमैंट की करूं नोकरी द्यूं सरहद पै पहरा
फौज में भर्ती ओ हुइओ जो बिन ब्याहा रहरया
फौजियां तै बूझ लियो जै गलत मेहरसिंह कह रह्या
खाकी तम्बू धरती मैं बिस्तर उड़ै कोण महल दे चिण कै।

सज्जनों सोमवती पतिव्रता नारी थी वह हिम्मत नहीं हारती। वह बंजारों की एक टोली में शामिल हो कर दरबार में नृत्य करती है। बादशाह शाहजहां उस का नृत्य देखकर प्रसन्न होते हैं और उसे ईनाम मांगने की कहते हैं तो सोमवती कहती है कि उन के दरबार में उसका चोर है। वह शेरखान का नाम लेती है शेरखान कुरान पर हाथ रखकर कसम उठाता है कि उसने उस औरत की कभी शक्ल भी नहीं देखी है तब सोमवती क्या कहती है-

तनै दुनियां में बदनाम करी बेईमान जगत में पाया तूं
शान तलक भी ना देखी ये चीज कहां से लाया तूं। टेक

दुनिया में गई बांस उठ निरभाग करम की हाणी सूं
कदे खुद मुख्त्यार रहया करती आज मोहताज बिराणी सूं
होणी ने मेरी मत खो राखी अक्लमंद घणी स्याणी सूं
पतिवरता का धर्म योहे मैं चापसिंह की राणी सूं
खुद मुनसिफ बैठे अदल करण नै मुलजिम बणया बणाया तूं।

तेरे जिसे बेईमान का हर में ध्यान नहीं होता
वेद शास्त्र पढ़े लिखे बिना पूरण ज्ञान नहीं होता
इस योनि में कर्म तजै वो फिर इंसान नहीं होता
धर्मराज कै जाकै पापी आदर मान नहीं होता
तनै धरम छोड़ कै कुरान उठा ली कती नहीं शरमाया तूं।

अपणे घर में ले कै बड़ग्या काळ कीमती जौहरी का
खुद मालिक मुलज्यिम बणा दिया नकब लगे की मोरी का
जाण्य बूझ कै ध्यान डिगाया रजपूतां की छोरी का
ये दोनूं चीज धरी तिरी जड़ में बणया मुकदमा चोरी का
दखै इसै जुल्म में मारया जागा चोर पाड़ पै थ्याया तूं।

जुणसी तरै बिमारी थी वा मिलगी आज दवाई रे
दया धर्म का त्याग कर कै दिल का बण्या कसाई रे
गैर समझ कै छेड़या था तनै कती शरम ना आई रे
मेरे पति के बदले में तूं फांसी चढ़ज्या भाई रे
मेहरसिंह गया बखत लिकड़ ईब कर मलकै पछताया तूं।

सारा भेद खुल जाता है चाप सिंह को रिहा कर दिया जाता है | चापसिंह सोमवती से मिलता है तो क्या कहता है-

बोलिए मुंह खोलिए हो लिए उरै नै गौरी
लाड़ करूं तेरे रै। टेक

तूं ना लिकड़ी एक बात में भी फिक्की
माथै ला ली रोळी टीकी
नाचणा गाणा किस पै सिखी
आ गी फिरकै, झोळी भरकै करमां कर कै
म्हारे तेरे फेरे मिलेंगे चेहरे रै।

तनै कर दिया शान मेरे पै
जणू चढ़ रहा चमन हरे पै
मेरी ब्याही नजर तेरे पै
टेक कै घा सेक कै देख कै नै रूप गौरी
आऐ होगे मेरे रै।

इस बात में के लहको सै
बीर मर्द का दुःख सुख शामिल हो सै
मेरा एक चीज में मोह सै
बात में, पंचायत में, हाथ में ले हाथ गौरी
साथ लिए फेरे रै।

मेहरसिंह माळा रट हर की
बीर तै शोभा हो सै घर की
तूं ना थी भूखी धन माया जर की
बरकी लहाज, बाज धर्मराज कै आज म्हारै
लागणे थे डेरे रै।