किस्सा सत्यवान-सावित्री
राजा अश्वपति के घर कोई संतान नहीं थी। राजा देवी की खूब पूजा करता है। एक दिन देवी उसके सामने प्रकट हो जाती है ओर कहती की राजन मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं मांगो क्या मांगते हो। इस पर राजा अश्वपति देवी के सामने संतान की इच्छा प्रकट करते है। तो देवी खुश होकर वरदान के रूप में एक कन्या (सावित्री ) उनको दे देती है। जब वह कन्या जवान हों जाती है तो राजा को उसकी शादी की चिंता सताने लग जाती है। राजा अश्वपति उस अपनी लड़की के लिए योग्य वर ढूंढने के लिए बहुत धूमते है। लेकिन उस लड़की योग्य वर सारे संसार में नहीं मिला। आख़िरकार वह लड़की स्वयं अपनी जोड़ी का वर ढूंढने निकल पड़ती है। यहाँ से किस्सा शुरू होता है-
अरथ जुड़ा कै चाळ पड़ी कितै वर जोड़ी का पावै
उस मालिक का भजन करुं जै मेरी जोट मिलावै।
अव्वल तै मनै इतना हो ज्यूं रात भरी मै तारा
दो चीज का गुण चाहूं बेशक भूखा हो या मूजारा
एक तै सुथरी शान का और कुछ हो हर का प्यारा
मै करमाँ नै न्यूं रोती के ना मिलता करम उधारा
उस छैले की नार बणूं जो हँस कै लाड लडावै।
इसे पति तै मेल मिलै जिह्नै ऊंच नीच का डर हो
सीधी डगर चालणियां हाजिर नाजिर नर हो
महल हवेली ना चाहती चाहे टूट्या-फूट्या घर हो
दुःख त्रिया नै होया करै जै बिन सोधी का वर हो
सारी उमर ख्वार करै इसे मूर्ख तैं राम बचावै।
खोटा सत्संग बाली का था सत्संग ही मै मरग्या
खोटा सत्संग रावण का था नास कुटुम्ब का करग्या
चन्द्रमा कै स्याही लागी सत्संग का डंड भरग्या।
खोटा सत्संग करने आळा बता कुणसा पार उतरग्या
खोटे का सत्संग करे तै धर्म नष्ट हो जावै।
पड्ढण मदरसै जाया करता उमर अवस्था याणी
मुंशी जी नै डंडा मारया आख्यां में भरग्या पाणी
फेर पिता नै न्यूं सोची चाहिए हळ की कार सिखाणी
सिर बदनामी टेक लई गया सीख रागणी गाणी
मेहर सिंह इस दुनियां मै आकै क्यू लुच्चा ऊत कहवावै।
जब सावित्री चलते चलते एक जंगल में पहुच जाती है तो एक आदमी उस जंगल में लकड़ी काटता हुआ मिल जाता है। वह उसके पास जाती है और क्या कहती है-
हाथ जोड़ कै अर्ज करुं सूं सुणले बचन हमारा
मैं बूझूं सूं तनै परदेसी कित घर गाम तुम्हारा।
कित की जन्म-भूमि सै तेरी के धन्धा कर रह्या सै
घबरा कै होया दूर खड़या क्यूं ज्यादा डर रह्या सै
बुरा लबेश बदन तेरे पै किस तरियां फिर रह्या सै
के मरगी तेरी जननी भाई के बाप तेरा मर रह्या सै
के पड़री सै बखा तेरे पै ,तू किसनै करा कुपारा।
एकबै मुँह तै बोल क्यूं सिर नीचे ने गो रह्या सै
खड्या उदास बोलता कोन्या के मरहम चीज खो रह्या सै
शरीर तेरे पै खून नहीं दिन थोड़े का छोरा सै
सूख कै पंजर होया तेरा जी लिकड़ण नै हो रह्या सै
के तै खाया किसै बुरे बोल नै ,ना अन्न का रह्या निसारा।
कूण ग़नीम बणया सै तेरा ,किस नै ताह राख्या सै
किसै साहुकार ने काढ़ दिया, के कर्जा खा राख्या सै
हम को हाल बताणा चाहिए क्यूं दुःख ठा राख्या सै
एक बात तू और बता कंवारा सै अक ब्याह राख्या सै
जै मर रही हो बीर आप की तो शादी करो दुबारा।
बखत पड़े पै आदम देह नै दिल समझाणा चाहिए
जै कोए प्रेम करै आगे तैं हँस बतलाणा चाहिए
चोरी जारी जुआ जामणी ना धिंगताणा चाहिए
जो उस मालिक ने धन्धा दे दिया कर कै खाणा चाहिए
मेहर सिंह कित फिरै भोंकता इस हळ बिन नहीं गुजारा।
ये बात जब सत्यवान सुनता है तो क्या कहता है-
देही टूटी बोझ मै, मेरी आठ पहर की कार,
न्यूं पंजर सूख कै होग्या।टेक
आखीर हमारी आ ली,
काया रंज फिकर नै खाली
इस कंगाली मै गोझ मै, रुपये रहे ना दो च्यार,
न्यू पंजर सूख कै होग्या।
याद कर पाछले समय ने रोता,
मैं अपणी जिन्दगानी नै खोता,
लकड़ी ढ़ोता रोज मैं, था गद्दी का हकदार,
न्यूं पंजर सूख कै होग्या।
कद खुल ज्यांगे भाग इस नर के,
मिट ज्यांगे छेक जिगर के,
था सच्चे हर की खोज मै, मनै दीन्ही उमर गुजार,
न्यूं पंजर सूख कै होग्या।
ये लेख लिखै बेह्माता,
टुकड़ा बे अदबी का खाता,
मेहर सिंह गाणा गाता मौज मै, दिन्हा तज हल भार,
न्यूं पंजर सूख कै होग्या।
सावित्री उस सत्यवान को अपने साथ अपने घर पर ले आती है तो वहां पर बैठे हुए लोगों को देखकर सत्यवान क्या कहता है-
जित बैठी थी पंचायत, करी राम राम कर जोड़ कै।
मैं बोलूं सूं मन्दा मन्दा
कदे जगत करै ना निन्दा
पिता अन्धा और मेरी मात, ल्याया करुं लाकड़ी तोड़ कै।
किसै की ना आच्छी भूंडी सुणता,
ईब रोऐ तै के बणता,
दिन गिणता ना रात ,फिर भी टोटा फिरग्या चारों ओड़ कै।
मरहम का बोल काळजा डसग्या,
जीव किसा फन्दे कै म्हां फंसग्या,
घुण पिसग्या चणे की साथ, दिया गेर गरंड में फोड़ कै।
मेहर सिंह भाग लिखा लिया खोटा,
मनुष्य चाहे बड्डा हो या छोटा,
यो टोटा छोड़ता ना जात, प्यारे लिकड़ैं सैं मुंह मोड़ कै।
सावित्री जब अपने घर वालों को बताती है कि मैंने तो सत्यवान को अपना जीवन साथी चुन लिया है तो उसकी मां सावित्री को क्या कहती है-
हे डूब कै मरज्या तनै कंगले तै मेल किया।
पहलम तैं मनै जाण नहीं थी तनै यो के अटखेल किया।
जबतै बात सुणी तेरी ना देही में बाकी सै
इसमै म्हारा दोष नहीं खुद तेरी नालाकी सै
ईब तलक हाथां पै राखी सै, क्यूं जिन्दगी का झेल किया।
बखत पड़े पै माणस हो सै अप अपणे दा का
बेरा ना यो कद दर्द मिटैगा इस गुप्ती घा का
तूं धृत दताया सर्राह गां का,शामिल क्यूं तेल किया।
जैसे जल बिन बरवा सूकै तूं भी इस तरियां सूकैगी
बात या मामूली कोन्या जिन्दगी भर दूखैगी
हमने या दुनिया के थूकैगी, यो नंग तेरी गैल किया।
मेहर सिंह कर भजन हरि का फेर दुनियां तै जाईये
दो रोटी का काम करे जा और तनै के चाहिये
गुरु लखमीचन्द तूं साच बताईये, यो छोरा क्यूं फैल किया।
जब सावित्री उनके कहने से भी नहीं मानती तो वहा से चलने कि तैयारी कर देती है। सत्यवान के माता पिता अंधे थे और उनका राजपाट दुसरे राजा ने छीन लेते है| तो वे जंगल की एक कुटीया में रहने लग जाते है। और सत्यवान जंगल से लकड़ी काटकर और उसे बेचकर ही अपना गुजारा चलाता है। सत्यवान और सावित्री दोनों जंगल में कुटीया की तरफ चल पड़ते है। उस समय का वर्णन-
कर सारयां तै नमस्कार, हो लिया त्यार,
गेल्यां नार, फूल सी ले कै रै।।
तूं क्यूं रळै हंसनी कागां मै,
तेरी सखी सहेली जा ली बागां मै,
उठै सामण केसी ल्होर ,बोलै मोर ,रेशम डोर, झूल सी ले कै रै।।
तू मेरी गेल्यां दुख पावैगी,
फेर पाच्छै पछतावैगी,
तेरा पिंजर होज्या सूख, लागै भूख , खा गी टूक ,हूल सी ले कै रै।।
मेरै तै ठीकाणा ठोड़ नहीं ,
तेरा मेरा मिलता जोड़ नहीं ,
तेरै क्यूकर लाऊं हाथ, के करामात, करती बात कूहल सी ले कै रै।।
तेरी काया का बिगड़ज्या ढ़ग,
इतनी क्यूं पावै सै तंग,
मेहर सिंह तेरा होज्या चित उदास, कुछ ना रहै पास, काढ़ैगी सांस ,धूल सी ले कै रै।।
सत्यवान सावित्री को समझाता है की मैं बहुत गरीब आदमी मेरे संग में तेरा गुजारा बहुत मुश्किल और एक बात क द्वारा क्या कहता है-
(बहर-ए-तबील)
तेरा खोटा है लहना , पड़ज्यागा दुख सहना ,
कुटियों का रहना चौबारा नहीं है।।
क्यूं गेरै भंग रंग मै, हूं मफ्ल़िस के ढ़ग मै,
निर्धन के संग मै तेरा गुजारा नहीं है।।
तू है राजा की बेटी, मुझ कंगले तै फेटी,
सुण किस्मत की हेठी, मेरा चलता चारा नहीं है।।
दिखै कदे पैदल ना चाली ,नाहक विपता उठाली,
तू बुलबुल है काली, पर यहां गुल हजारा नहीं है।।
जिसका टोटे का घर ,उसका साथी ना हर,
इस जिंदगी का पल भर भी पितारा नही है।।
अगर हो हैरानी ,जवानी लुटानी,
तो परेशानी भी बंटानी भारा नहीं है।।
होता दुख जहाँ, मिलेगी ऐशोऐश कहाँ,
पड़ैगी मुसीबत यहाँ, कोए मित्र प्यारा नहीं है।।
फुटै किस्मत तेरी, जो ये विपता सिर पै धरी,
होगी नामूसी मेरी,फिर कोई सहारा नहीं है।।
ना फिरना करम से ,हया और शरम से,
करना धरम से किनारा नहीं है।।
जन्म बसर घर हीना, सफर कर कर के लखीना,
मेहर सिंह डर डर के जीना गंवारा नहीं है।।
सत्यवान सावित्री को समझाता है और क्या कहता है इस रागनी के माध्यम से-
घणा रंज मनै न्यूं आवै, क्यूं वृथा जिंदगी खो ली।
सावित्री तनै के सोची तू कंगले गेल्यां हो ली।।
के लेगी बणखंड़ मै मेरी गेल्यां लकड़ी ढो कै,
बोलैं शेर बघेरे तू मर ज्यागी रो रो कै,
और किसे का दोष नहीं तू आप काट ले बो कै,
तनै राजी राजी कह रहया सू कोन्या कहता छो कै,
सखी सहेली कट्ठी हो कै मारैंगी बोली।।
मात मेरी अंधियारी सै और पिता मेरा अंधियारा,
बो माणस सदा दुख भोगै जिन्है कोन्या बख्त विचारा,
तू राज घरां के रहणे आळी मेरै टूटा फूटा ढारा,
एक बात की ल्हको करी ना मतलब खोल्या सारा,
लकड़ी बेच करूं गुजारा पंद्रह सेर बिन तोली।।
अपनी जोड़ी के भरतार की खात्यर थोड़ी बाट और जोह ले,
के लेगी इस गरीब की गेल्यां किसे राजकंवर नै टोह ले,
जिस तै तेरी मुक्ति होज्या बेल अगत की बो ले,
धर्म कर्म मै ध्यान राख कदे न्यू ए पड़कै सो ले,
तू महल हवेली मांगेंगी मेरे छोटी सी घरघोली।।
इब तलक तनै देख्या कोन्या झगड़ा बारा बाट का,
मेरी गेल्यां फिरा करैगी बांध बरोटा काट का,
जंगल के म्हा छुट ज्यागा खाणा पीणा चाट का,
धरती के म्हा पड़ना होगा काम नहीं सै खाट का,
यो छंद मेहर सिंह जाट का जणूं घूंडी के म्हा कोली।।
सत्यवान सावित्री को और समझाता है और क्या कहता है-
मत गैल चालिए मेरी रै, बणखण्ड का उल्टा रासा सै,
तेरी जात बीर की तू डर र र ज्यागी। टेक
लगै उड़ै धर्मराज कै पेशी
तनै तैं काम्बल मिलै ना खेशी
या कंगलां केसी ढ़ेरी रै ,सर्दी बीच चमासा सै
कितै जाड़े कै म्हां ठ्यर र र ज्यागी।
है रै प्यास मै तू निगल्या करैगी थूक
बता तनै उड़ै कौण देवैगा टूक
तूं सूक कै पंजर होरी रै और टुकड़े तक की सासां सै
तेरा भूख काळजा चर र र ज्यागी।
है रै ना गैल ले जाणा चाहता
तेरा मेरा बीर मर्द का नाता
वा माता मेरी सासू तेरी रै ,जिन्है पुत्र वधु की आशा सै,
वा पेट पाड़ कै मर र र ज्यागी।
मेहर सिंह कहै आगै पेश ना चालै
या जिन्दगी हो सै राम हवालै
को दुश्मन घालै घेरी रै, तेरा रूप गजब का खास सै,
मेरी तेग लहू मै भर र र ज्यागी।
जब सत्यवान सावित्री को अपने धर ले जाता है तो सावित्री की सास क्या कहती है-
लाईयो हे बैठाइयो बड़े जोर की बहु
लाम्बी लाम्बी गर्दन जणू मोर की बहु।टेक
उरे सी नै हो मिलाई सास की
तेरे सुसरे का दुशाला दुलाई सास की
बहू पां दाबै सासू के हो भलाई सास की
हाथ फूल और आरसी घलाई सास की
तेरा सुसरा बाट देखै सै हे दोहर की बहू।
ख्याल करणा चाहिए सै माणस परखणीयां का
तेरी खात्यार पीढ़ा घाल दिया जड़े कणी मणीयां का
घर-घर कै म्हां दे लगटेरे बामण बणियां का
शोभा नगर की हो सै धन धणियां का
ऋषि आश्रम में सुथरी आगी बोर की बहू।
अपणी सासू प्यारी से तूं सलाह कर ले
पाणी केसा बुलबुला तूं भला कर ले
मद जोबन का कबूतर बण कै कला कर ले
देख ली भतेरी टुक पल्ला कर ले
कदे लाग ज्या नजरियां माणस ओर की बहू।
तेरी मेहरसिंह कै रसोई कई प्रकार के खाणे
थाळी थाळ परोस कै मनै घर-घर पहुंचाणे
तेरी रूप की करै सराहना सब याणे स्याणे
धोळे धोळे चमकै दांत जणुं अनार के दाणे
लागरी मेवा के सी ढेरी जणै पिशोर की बहू।
जब सावित्री घर पहुंच कर अपनी सास के चरण लेती है तो उसकी सास क्या कहती है-
पायां कै म्हां लोट गई झट सासू ने पुचकारी
आ बेटी तेरे लाड़ करूं मनै बेटे तैं भी प्यारी। टेक
लेख कर्म के टळते ना घुण गैल चणे की पिसग्या
तेरे आवण तै हे बहु म्हारा कंगल्यां का घर बसग्या
उजड़या पड़्या था ढूंढ़ म्हारा घी का दीवा चसग्या
बूढ़ सुहागिण हो बेटी तेरा प्रेम गात में फंसग्या
जबतै धरी सै पैड़ बहु नै यो वंश हुयआ सै जारी।
अपणा मारै छा मै गेरै अपणे मै रूख हो सै
गई जवानी आया बुढ़ापा बहु बेट्या का सुख हो सै
जिसके बेटा बेटी ना ब्याहे जां तै मां बापां में टुक हो सै
ऊपरले मन तै कहै कोन्या पर भीतरले में दुःख हो सै
टोटे ज्यादा दुःखी करै जै माणस हो घरबारी।
कितना ए आच्छा माणस हो पर टोटा नीच कहवादे
टोटे आळे माणस ने कोए धोरै बैठण ना दे
क्याहें जोगा छोडै कोन्यी ये टोटे तेरे कादे
जिसके घर में टोटा आ ज्या ऊन्हैं हाथ पकड़ कै ताह दे
कर्मां के अनुसार मिले सै कर्मां की गत न्यारी।
कहै मेहर सिंह आच्छा कोन्या सांग जाट का करणा
जित छोरे छारै बैठे हो उड़ै रागणियां का डर ना
भाईबन्द परिवार नार तज लिया रफळ का सरना
भूख कसूती लगै जिगर में पेट खड़ा हो भरना
मेहर सिंह खड्या बोडर पै दे ड्यूटी सरकारी।
सावित्री सत्यवान के साथ जंगल में जाने की आज्ञा लेने के लिए अपने सास ससुर के पास जाती है वहां जाकर वह चुपचाप खड़ी हो जाती है। संकोच के कारण कुछ कह नहीं पाती। इस पर उसके ससुर पूछते हैं कि बेटी तुम यहां किस काम से आई हो कहो इस में शर्माने की कोई बात नहीं तो सावित्री अपने ससुर के सामने प्रार्थना करती है-
फळ लेणे की इच्छा करकै चाल पड़्या सुत तेरा
आज बणखंड की हवा खाण नै जी कर रह्या सै मेरा।
पति चल्या जाणे का मन मैं कोए भी मलाल कर्या ना
चाह में भर कै टहल करी कदे मन्दा हाल कर्या ना
खाण पीण ओढण पहरण का मनै कुछ भी ख्याल कर्या ना
इतने दिन आई नै हो लिए कोए भी सवाल कर्या ना
आज उमंग में भर कै लागण दो म्हारा बणखंड कै म्हा डेरा।
पृथी जल और अगन बिजली साहाकार दर्शाऐ
चक्ष गिरण सोसत बााी करतब शुद्ध बणाऐ
शोडस कला प्राण पति नै निराकार गुण गाऐ
बड़े बड़े सिर मार चले गये करणी का फळ पाऐ
और किसै का दोष नहीं दिया काळ बली ने घेरा।
हवन की खातर लकड़ी लावै थारै लिए फळ ल्याता
और काम की खातिर चलता तै रोक भी लिया जाता
इस का रोकणा ठीक नहीं यो धर्म के प्रण निभाता
हाथ जोड़ कै आज्ञा ल्यूं सूं तुम दुःख सुख के दाता
इसमें मेरा दोष नहीं दिया करड़ाई नै घेरा।
राजा बोले आज बहू तूं इतणी क्यूं शरमाई
आज तलक तनै कुछ ना मांग्या जिस दिन तै तूं आई
मनै तै बहु आज्ञा दे दी तूं कर मन की चाई
मेहर सिंह ने कथा सावित्री की सोच समझ कै गाई
इतणी कह कै चाल पड़े कर दिल का दूर अंधेरा।
जब सत्यवान लकड़ी काट रहा था तो उसकी तबीयत कुछ खराब सी होती है। नारद जी की बात झूठी नहीं थी सावित्री इस बात को जानती थी। सत्यवान को इस बात का पता नहीं था। यम के दूतों ने सत्यवान को दरखत पर ही घेर लिया। तो सत्यवान कहता है-
कुछ जतन करै नै मेरी नार , हुया बेहोंश घंघेळा छावै सै।
रहया ना गात आज मेरे बस मै
किसनै जहर मिला दिया रस मै
इसमै लिए दवाई डार, सूकता कचियां केळा आवै सै।
कुछ तै जिन्दगी का फळ ले
बखत आणे पै ठीक संभळ ले
तूं मिळ ले भुजा पसार, यो मेळा बिछड़या जावै सै।
सून्नी हो रही नार धणी बिन
जैसे सून्ना शेर बणी बिन
मणी बिन सर्प मरै सिर मार ,जीणा नहीं सपेला चाहवै सै।
तेरी करणी में पड़ग्या भंग
छुट्ये जिन्दगी के ऐश उमंग
मेहर सिंह कर सोच विचार, गया बखत कित थ्यावै सै।
सत्यवान आगे क्या कहता है-
सावित्री मेरा जी घबरावै सिर गोड्यां मै धर ले
मरती बरियां प्राण पति के लाड़ आखरी कर ले। टेक
न्यूं तै मैं भी जाण गया यो सिर पै गरजै काळ मेरै
धूम्मा सा रहया उठ जिगर मै पल्ले तै कर बाळ मेरै
यम के दूत दिखाई दै सै हुया मरण सा ढाळ मेरै
दिखण तै बन्द होग्या फिरग्या आख्या आगै जाल मेरै
मेरे ओड़ तै दिल की प्यारी घूंट सबर की भर ले।
न्यूं तै मैं भी जाण गया मेरी जिन्दगी का खौ सै
साची कह रह्या सावित्री मेरा हुयआ तेरे मै मोह सै
दुनियां भरी पड़ी सै छल की जणे जणे मै धो सै
लागै तै कुछ जतन लगा तेरा बळता दीवा हो सै
कहणी हो वे सारी कहले अपणी काढ़ कसर ले।
मेरै पक्की जंचगी सावित्री मेरे जीवण की आस नहीं
सिर मैं भड़क आंख मै पाणी आता साबत सांस नहीं
इब बता के जतन करैगी कोए मनुष्य तलक तेरे पास नहीं
बियाबान तै कुटीया तक मेरी चलै तेरे तैं लाश नहीं
करके ढेठ चाल्यी जाईये कदे बण में रो रो मर ले।
एक कोरा सा घड़वा ले कै पीपळ के म्हां धरा दिये
पांच सात दिन उठ सवेरी गायत्री मंत्र फिरा दिये
कर कै संकल्प गऊमाता का मेरी क्रियाकाठी करा दिये
जै आज्या सोमारी मावस मेरे पंडारै पिंड भरा दिये
कह मेहर सिंह हंसते हंसते धर्मराज का घर ले।
सत्यवान सावित्री को आगे कहता है-
रोया करिए देख चांद, दिन चौदस के नै ,मेरी हूर परी।टेक
हम सैं पक्के पैज प्रण के
कहके उल्टे नहीं फिरण के
मेरे मरण के बाद ,इश्क के चश्के नैं ,कर दिये दूर परी।
माला लिए हरी की टेर
दिल का करदे दूर अंधेर,
दिए गेर बिना सांध,तीर कामरस के नै, रहिये हूर खरी।
इस म्हं करता नहीं ल्हको,
नहीं सै भीतर ले मैं छोह
हो जै असली की औलाद , छोड़ रोने टस के नै, नाव तिर ज्यागी तेरी।
शिक्षा गुरु लख्मी चन्द पै पा ली
रागनी जोड़ जोड़ कै गा ली,
आ ली मेहर सिंह मांदः, गाऊं सूं छंद बस के नै, सुणियों रागणी मेरी।
जवाब सावित्री का-
बोल लई कई बार नहीं मुंह खोल्या
पिया पिया करुं पिया ना बोल्या। टेक
मैं पापिण निर्भाग कर्म की हेट्ठी
निर्वंश जांगी ना कोए बेटा बेट्टी
म्हारे वंश की क्यूं पैड़ राम नै मेट्टी
एकली कैल घोट दी घेट्टी
मनै खो दिया रत्न रूप अणमोला।
प्रभु करते कोन्या ख्याल मेरी कान्ही का
मेरे संग मै कर रहे काम बेईमानी का
लिया छन मै टुकड़ा खोस ऊत जाणी का
बिन बालम जीणां के बीरबानी का
मुझ दुखिया पै दिया गेर गजब का गोळा।
कही नारद जी की एक मनै मानी ना
रहे बेमाता के लेख छानी ना
बुरी हाथ की रेख मनै जानी ना
प्रभु दुनियां मै तेरे सा को दानी ना
मेरा फूक बणा दिया आज गात का कोळा।
दो दिन का भरतार प्यार कर चाल्या
मैं न्यूं रोऊं सूं सिर मार हार कर चाल्या
थी पतिव्रता नार खवार कर चाल्या
अपनी नैया मझधार पार कर चाल्या
जाट मेहर सिंह मार रहम का झोला।
सावित्री अपने मन में क्या विचार करती है-
मैं चरण गहूंगी थारे ,लाज राख मेरे प्यारे। टेक
दिन रात तुझे रटती मैं
ना दुनियां तै मिटती मैं
म्हारे रस्ते बन्द हुऐ सारे,लाज राख मेरे प्यारे।
इस गहरे बिया बण मै
मेरै इसी आवती मन मै
डरते हैं प्राण हमारे,लाज राख मेरे प्यारे।
दिन रात तरसना तेरी
हे प्रभू लाज राखियो मेरी
हम बीर मर्द हुए न्यारे, लाज राख मेरे प्यारे।
अफसोस मुझे आता है
कथ मेहर सिंह गाता है
म्हारे मरणे के दिन आ रह्ये,लाज राख मेरे प्यारे।
सावित्री अपने मन में और क्या विचार करती है-
हाथ झाड़ कै बैठ गई नणदी के भाई
हाय हाय राम जी मेरी ना आई। टेक
क्युंकर बांधू दिल पै ढेठ
मेरे कोए ना देवर जेठ
पेट पाड़ कै बैठ गई, तेरी जननी माई।
तेरी ना रही जीवण की आस
मेरा न्यूं होग्या चित उदास
पास नाड़ कै बैठ गई ,जळी मौत बिलाई।
मनै सब क्यांहे का डर
छूटग्या देस नगर और घर
नजर काढ़ कै बैठ गई ,जाता दिया ना दिखाई।
बिगड़गे जिन्दगी के सब ठाठ
नहीं थी किसै तै घाट
मेहर सिंह जाट ताड़ कै बैठ गई,कुछ ना पार बसाई।
जब खुद यमराज उसे लेकर चल पड़ता है तो सावित्री उसके पीछे-पीछे चलती है तो यमराज उसे क्या कहता है-
तेरा पति तनै फेर मिलै ना,
मांग बेटी तूं कोए और वरदान ले। टेक
सेवा कर सास ससुर अन्धे की
तजकै तृष्णा काम गन्दे की
कुछ बन्दे की पेस चलै ना ,ज्यब काढ़ सांस भगवान ले।
तेरा पति स्वर्ग लोक नै जाता
टूट लिया घर कुणबे तै नाता
बेमाता का लेख टळै ना ,चाहे लाख जतन कर इन्सान ले।
यो सै दुःख भरया संसार
सबकी मौत का दिन सै त्यार
काल बली की मार झलै ना, ओट बूढ़ा कोण जवान ले।
सरै ना कमाए खाए बिना
कपटी मन बहलाए बिना
गाऐ बजाऐ बिना चमन खिलै ना, मेहर सिंह तू सतगुरु तै ज्ञान ले।