किस्सा पद्मावत

एक समय की बात है कि रत्नपुरी नगर में राजा जसवंत सिंह राज करते थे। राजा का एक ही पुत्र था जिसका नाम रणबीर सैन था। उसी नगर में सूरजमल नाम का एक सेठ भी रहता था जिसका लड़का था चन्द्र दत्त। रणबीर सैन और चन्द्रदत्त दोनों जिगरी दोस्त थे। एक दिन दोनों जंगल में शिकार खेलने चल पड़ते हैं। वे दानों अलग-अलग मृगों का पीछा करते हुए दोनों साथी वन में बिछड़ जाते हैं। राजकुमार एक सुन्दर बाग में पहुंच जाता है ।उस बाग में अन्दर एक आलीशान महल और सुन्दर जल से भरा हुआ तालाब था। रणबीर सैन उस महल में पहुंच जाता है और एक कमरे के सामने जाकर सोचता है और क्या कहता है-

देखी साकल खोल कै, लगे कमरे के म्ह
ठाठ, भीतर बैठ ग्या जा कै। टेक

कमरा मेरी निगाह में आग्या,
सब सौदा मन भाग्या,
लाग्या देखण डोल कै, घले मूढे कुर्सी खाट,
कोए तकिया छोड़ग्या ला कै।

काम कर राक्खे इसे इसे ,
इसकै बहोत लगा दिए पीसे,
शिशे भर दिए तोल कै, कमरा ना महल तैं घाट,
झांकी छोड़ दी म्हां कै।

लगे थे बर्फ के हण्डे,
झारी मै जल भरे ठण्डे,
दो पौण्डे धर दिये छोल कै, पत्ते पै धरी चाट,
जरा सी देख ल्यूं खा कै।

काया के कटज्यां फंद,
भोग लिए ऐश आनन्द,
छंद धरै सै छंद टटोल कै, कह मेहरसिंह जाट,
छोहरां म्हं गा कै।।

उस बंगले में तरह तरह के फोटो लगे हुए थे कवि ने क्या वर्णन किया है-

देख सजावट अंदर की मन भटक रहे बंगले के मां
तरह तरह के फोटो नक्शे लटक रहे बंगले के मां ।।

पहला फोटो दरवाजे पर हाथी चार खड़े देखे
दूजा फोटो जका महू का छतरी बाहर खड़े देखें
तीजा फोटो महाराणा का रण में त्यार खड़े देखे
चौथा फोटो कैरों का जो करकै हार खड़े देखें
पांचवा फोटो पांचो पांडव अटक रहे बंगले के मां।।

छट्टा फोटो गोपनिया का सब दर्शन की आस करें
सातवां फोटो मथुरा गोकुल जहां कृष्ण जी वास करें
आठवां फोटो केकई का जो रामचंद्र को बनवास करें
नोमा फोटो दोनों भाई सीता ने तलाश करें
दसवां फोटो दशरथ का सर पटक रहे बंगले के मां।।

ग्याहरवां फोटो लंका का जो सोने की घड़ी हुई
बारहवां फोटो उस बगीची का जहां जानकी पड़ी हुई
तेरहवा फोटो उस गुठी का जो राम नाम में जड़ी हुई
चौदहवां फोटो मै हनुमान मै देख कै सीता हुई खड़ी
पंद्रहवां फोटो अंगद का जो पद झटक रहे बंगले के मां।।

आगै फोटो उस बंगले का जहां बीच में स्तंभ खड़े
सात ढ़ाल के रंग मखमली न्यारे न्यारे फर्श पड़े
बीच के म्हा तख्त हजारी जिसके हीरे पन्ने लाल जड़े
चौगरदे ने मुंढ़े कुर्सी आगे सी दो मोर लड़े
जाट मेहर सिंह का भी फोटो जो खटक रहे बंगले की मां।।

उधर कर्नाटक के राजा दतसैन की पुत्री जिसका नाम पदमावत था। उसकी सखी सहेली उसे बाग़ में झूलने चलने के लिए बोलती है-

झूलण चालांगे दोनूं साथ, क्यूं मुखड़ा फेर कै खड़ी रै,
कूणसी सलाह सै तेरी।टेक

रंग का बाजा खूब बजा ले,
बेरा ना कद मार कजा ले
सजा ले अपणी दो मोहरां की नाथ, असल कारीगर की घड़ी रै
जुणसी डिब्बे में धरी।

जिन्दगी के लूट लिए सब जहूरे,
आनन्द होंगे भर पूरे
तेरे भूरे भूरे हाथ, लगण दे छन कंगण की झड़ी रै
तबीयत राजी हो मेरी।

तेरै मद जवानी का गमर,
ले नै हरि नाम नै समर
तेरी पतली कमर गौरा गात, राहण दे चोटी ढूंगे पै पड़ी रै
सिर पै चूंदड़ी हरी।

मेहर सिंह रटै जा हर नै,
कूण समझै दुसरा पराऐ घर नै
तेरी आखर नै सै बीर की जात, गहना पहर कै एक घड़ी रै
बणज्या हूर की परी।

पदमावत अपनी माँ को क्या कहती है -

सामण आया हे माँ मेरी रंग भरे री,
किसी छाई चौगरदै हरीयाल , झूलण चाल्ली सखी बाग़ मै।।

(बीच की कलि नहीं मिली)

जमींदार देखे बरसण की बाट
तीज्जा नै होरे किसे रंग ठाट
जाट मेहर सिंह के छंद खरे री ,
पिता नै बहोत कराई टाल, पर गाना लिख्या था भाग मै।।

बाग़ में पद्मावत अपनी सखियों के साथ झूल रही होती है-

सामण झोंका जोर का, हे सखी सै रै रै रै।टेक

देख मेरे ईश्क रूप का पर्चा
देखण मै लगै ना कोए खर्चा
चीरै तिरछा दुधारा तौर का, हे सखी कै रै रै रै।

रंग में बाग बगीचा भरा
देख होया पुल्कित मन मेरा
उड़ारी लेरा जोड़ा मोर का, हे सखी फै रै रै रै।

झूल रेशम की डाला बड़ का
रहया ना किसे चीज का धड़का
होरया खुड़का बादल घोर का, हे सखी घै रै रै रै।

मेहर सिंह का साथी हर सै
मनै ना किसै बात का डर सै
यो बरसै मुसलधार भोर का, हे सखी तै रै रै रै।

बाग़ में पद्मावत और रणबीर एक दुसरेको देखते है तो पद्मावत के मन में ख्याल आता है-

जाणूं झल लिकड़ै है आग मै, सूरज की उनिहार
सुथरी शान का छोरा।टेक

हरदम परदेसी का ख्याल
उठै सौ सौ मण की झाल
रंगलाल पान की लाग मै, घिट्टी तक एकसार
चमकै पीक का डोरा।

इसी श्यान कदे देखी ना सूणी
म्हारी दोनुआं की रहै जोट बणी
जणू मणी चमकती नाग मै, सारे कै चमकार
कित लग चान्दणा होरया।

मनै देख अचंभा आया
उन बीरां का भाग सवाया
जिन्हें लिखाया पति इसा भाग में,सदा सुखी वे नार
पतला गाभरू गोरा।

या दुनिया सै सब ढंग की,
पर संगत आच्छी हो सत्संग की
मेहरसिंह की रलै रागनी राग में,गुंज उठया गुलजार
इसे छन्द नै कड़ै ल्हकोरया।

दोनों एक दुसरे पर मोहित हो जाते हैं। और रणबीर पद्मावत से क्या कहता है-

राखिए आदर मान रै, मैं देख्या चाहूं था तेरी श्यान रै।
गया लुट-पिट झटपट घूंघट खोलिए रै।टेक

तूं बिजली सी साजती,
बादल की तरियां गाजती,
तेरी पायल इसी बाजती
छम-छम रिमझिम छनन करके, मोह लिये रै

आंख रह्या था मैं मींच रै,
खुलते ग्या सुरग के बीच रै,
तनै कहया हरामी नीच रै,
कर-कर, मर-मर सिर धर डले ढो लिये रै।

क्यूं क्रोध शरीर म्हं छा रह्या,
बोल कालजे नै खा रह्या,
जणुं कोए पक्षी शोर मचा रह्या,
सर-सर, फर-फर, चर-चर हंस कै तू बोलिए रै।

कहै मेहर सिंह जाट रै,
झाल ईश्क की डाट रै,
आड़ै बिछैगी खाट रै,
न्यूं हिलकै, सलकै, घलकै मंजी पै सो लिए रै।

रणबीर वापिस चल पड़ता है और अपने दोस्त से मिलता है। दोनों एक दुसरे से पूछते है की जंगल में किसने क्या देखा तो रणबीर क्या बताता है-

चन्द्रदत्त के जिक्र करुं वे झूल घल री बड़ मैं
दो झूलैं दो झोटे देरी और खड़ी थी जड़ मैं।टेक

हाथां कै म्हां हाथ घल री पायां पड़या पंझाला
जोर जोर तै झोटे दे री गैल लरजता डाहला
एक तै बढकै एक हूर जिनका ढंग निराला
पर पदमावत के रूप हुस्न पै कटरया मोटा चाला
शीशें की जूं पलके लागैं उसके भूरे भूरे धड़ मैं।

देशी छोरी अंग्रेजी फैंसन पट्टी मांग जमाई
गोल गोल मुंह बटवा सा घली आख्यां कै म्हां स्याई
कंठी गलश्री मोहनमाला गल मैं खुब सजाई
कानां कै म्हां डांडें बाली माथै बिन्दी लाई
जणू चील हार नै टांगें ले ज्या और मोती चमकै लड़ मैं।

सोडा वाटर मद जोबन पै कोए भागां आला पी ले
जिस कै लागै खटक ईश्क की वो माणस कै दिन जी ले
भूख लगै ना प्यास लगै उसके सुण सुण बोल रसीले
दिल के पंछी नै घायल करदें उके पैने नयन कटीले
पतली कमर मैं लचके लागै गाड़ी केसी फड़ मैं

गुरू लखमीचन्द कह दुःख दर्दां के दो हों सै बोल भतेरे
अपणा मरणा जगत की हांसी न्यूँ कहगें बड़े बड़ेरे
तू मेरे लेखै राम बरोबर ल्या चरण चूम ल्यूं तेरे
कह सुण कै नै करवा दें उस छोरी गैल्या फेरे
जाट मेहर सिंह रोग कटै जब छम छ्म हो बगड़ मैं।

रणबीर आगे बताता है-

(बहरे तबील)

जैसे नाचै उर्वशी राजा इन्द्र की सभा मैं न्यू हंस हंस के ताली बजाने लगी।
आपस मैं मिला के हाथ परी मुस्करा कर गाना गाने लगी।

हुस्न देवी ज्यूं रम्भा, ऐसा देख्या अचम्भा
चिकना गात जैसे हो केले का खम्भा
नाक सूये की चोंच थी ना छोटा ना लम्बा
साबुन लगाकर तला में नहाने लगी।

मैं आजीज बनता रहा सिर धुनता रहा
वो गुनगुनाती रही और मैं गुनता रहा
वो कुछ कहती रही और मैं सुनता रहा
परी मेरा ही जिक्र चलाने लगी।

एक नहाती रही दुजी साबुन लगाती रही
एक लचक कै मेरी तरफ आती रही
अपने जोबन की झलक मुझको दिखाती रही
मुझे लुच्चा हरामी बताने लगी।

ईश्क की भर मारी गोली थी रत्न जड़ाऊ चोली
कहै मेहर सिंह बोली थी कोयल केसी बोली
याद आती है मुझ को वो सूरत भोली भोली
जादू पढ़ पढ़ कै फूलों को बगाने लगी।

चन्द्र दत्त अपने दोस्त रणबीर को समझाता है-

प्रीत करी वो नर हारया सै, इन रास्यां मैं दुख भारया सै,
बड़े बड़यां ने सिर मारया, सै इन बीरा तै बतलावण मैं।टेक

जिन नैं इन तै करी प्रीत
उनकी रही ना ठिकाणै नीत
जिसनै रीत पकड़ ली या ओली, इश्क रूप की गोली,
बता कुण कुणसा भर लेग्या झोली इनतै आंख मिलावण मैं।

जो नर बीज बिघन का बोग्या
वो ना छोड़़्या क्याहें जोगा
जो होग्या इनके बल मैं, मोह का जाल गेर दें गल मैं
प्यारी बण कै दे लें छल मैं तिरछे नयन चलावण मैं।

ईब न्यूं रोवै सै रणबीर
मेरी नहीं बंधाई धीर
दुख का तीर कालजे लाग्या,मीठा बोल कालजा खाग्या
पापण पदमावत के थ्याग्या, झूठे हाथ हिलावण मैं।

तन पै पड़ज्या उसी ऐ सह सै
ज्यान किसी फंदे बीच फह सै
यो देश कह सै सांगी हो ले,मेरा बाप कह सै कितै नाक डुबो ले
मेहर सिंह किसे माचे रोले इन रागनियां के गावण मैं।

उधर पद्मावत को उसकी सखियां चिढाती है तो पद्मावत क्या कहती है-

मत दुखिया नै घणी सताओ हुई पड़ी सूं घायल
मरुंगी मेरी आश नहीं सै जीण की।टेक

टूट कै कली पड़ी सै काची
मेरी तुम बात जणियो ल्यो साची
आछी चाहे बुरी बताओं, रहया ना ऊंच नीच का ख्याल
गई अक्ल बिगड़ मती हीण की।

कर दयो दूर मेरी बेबसी नै
और के सुख हो थारा मेरे केसी नै
प्रदेशी नै फेर बुलाओ , हो रहया सै बुरा हाल
दवाई दे ज्यागा मनै पीणा की।

टालो दुःख टाले तै टल जा तै
बहाण थारी जै को पेश चल जा तै
मिल जा तै कोए नाथ ले आओ , लेगा मनैं संभाल
लय सुणा कै बीन की।

म्हारे तै सतगुरु लखमी चन्द
मेहर सिंह ज्ञान बिना मती मन्द
छन्द के कितने बोर रताओ, रहे दमा दम चाल
फैर जणु गन मशीन की।

पद्मावत अपनि सखियों से कहती है की मुझे उस प्रदेशी से मिलना है। तुम कोई जुगत लगाओ की उस प्रदेशी से फिर से मुलाकात हो-

उस प्रदेसी तै मिली दो हे सखी जो काल मिलाया बाग मै।।

उसतै मिलना चाहूं फेर कै
मारी जले नै आड़ै घेर कै
मैं कैसे बुझाऊं जल गैर कै जलूं बिरह की आग मैं

वो छैला मेरे मन मैं बस ग्या
रोग लगा कै कड़ै डिगरग्या
वो प्रदेशी हद करग्या मैं तडफू उसके बैराग मैं।

मैं उसकी वो मेरा साजन होगा
दो शरीरों का एक मन होगा
जणुं वो कूणसा दिन होगा जब होली खेलूं फाग मैं

गुरु लखमीचन्द मेट कसर दे
ईश्वर इच्छा पूरी कर दे
मेहर सिंह छन्द धर दे जणुं फूल टांग दिया पाग मैं।

पद्मावत रणबीर को याद करती हुयी अपनी सखियों से क्या कहती है-

आदर मान सब घटवा दिन्हां नाम हमारा मिटवा दिन्हां
परदेशी नै छुटवा दिन्हां खेलणा और खाणा री।टेक

न्यूं मेरै क्रोध शरीर म्हं जागै
यो दिल पक्षी की तरियां भागै,
थारै आगै ईब ल्हको ना,मेरी बातां मैं छोहना,
सुपने म्हं बी सुख कोन्या, जो आधीन बिराणा री।

मैं के किसे पै श्यान टेकूं सूं,
मैं तो अपणी गुप्त चोट सेकूं सूं,
देखूं सूं जब हंसया रहै सै,ईश्क रूप मैं धंसया रहै सै,
मेरे मन मैं बसया रहै सै, वो परदेसी मर ज्याणा री।

मनैं तो ना चाल चली अवगुन की,
या तकदीर फूटी निर्धन की,
मैं तो नागन की सी छड़ी रहूं सूं, घर कुणबै तैं लड़ी रहूं सूं,
धरती के म्हां पड़ी रहूं सूं, तज पलंग सिराह्णा री।

आज होग्या दुख नया
जीव किस फंदे बीच फहया,
वो चल्या गया ध्यान डिगा कै,काया के म्हां ईश्क जगा कै,
सुण ले कान लगाकै, यो मेहर सिंह का गाणा री।

पद्मावत की बढती दीवानगी देख कर सखिया उसे डराती हुयी समझती हैं-

हे पदमावत तेरे नाम के कुऐ जोहड़ रहे ना।
खो दे ज्यान कुऐ मैं पड़कै के चारो ओड़ रहे ना।टेक

इतनी अग्नि ना चाहिए थी जो लाग रही याणी कै
अकल का तेरै खोज नहीं सै कोड़ बड़ी स्याणी कै
पिता नै कह कै ब्याह करवा ले के देश भरा पाणी कै
माता पिता का ख्याल नहीं तेरै जिसी ऊत जाणी कै
के तेरे नाम के इस दुनियां मैं बांधणियां मोड़ रहे ना।

मात पिता के सिर मैं मारै इसी जूती थारै
मर्द मार कै सती बाणो इसी नपुती थारै
हाथां लाओ पायां बुझाओ इसी कसूती थारै
अम्बर कै म्हां लाओ थेंगली इसीदूती थारै
थारे राज मै लुकमा छिपामा खावणियां कोड़ रहे ना।

छोटे बड़े दिल कै म्हां ख्याल भी रह्या करै सै
गिणतैं गिणतै मन कै म्हां किमै छाल भी रह्या करै सै
पटका और कटार साथ मैं रूमाल भी रह्या करै सै
मोहर अशरफी हीरे पन्ने लाल भी रह्या करै सै
जै लाल भी धोरै ना हो तै किमत नौ करोड़ रहे ना।

भरे समन्दर चौगरदे नै के जोहड़ और लेट करैं सैं
धन माया के जहाज जगत मैं ये तरते सेठ फिरैं सैं
ज्ञान बिना रैह पशु बराबर भरते पेट फिरैं सै
छाप काट कै लालची लोभी करते ढेठ फिरैं सैं
कह मेहर सिंह लखमीचन्द केसै ब्राहमण गोड़ रहे ना।

परन्तु पद्मावती पर इसका जरा भी असर नहीं होता है। वह क्या कहती है-

गुप्ति घाव जिगर में होरे,मिलती नही दवाई
तीन रोज की तड़फ रही,मैं कुछ ना खेली खाई

पड़ी रहूं सूं ऐकली मैं,सांस सब्र के भरया करूं
कदे इधर नै कदे उधर नै,मैं भाजी भाजी फिरया करूं
रात अंधेरी महल बीच में,ऐकली मैं डरया करूं
जब भी देखूं सेज नै,याद परदेशी नै करया करूं
हँस के देखा ठिणक कै देख्या,उकी भूल पड़ण ना पाई
तीन रोज की तड़फ रही,मैं कुछ ना खेली खाई

मदजोबन की डीक बळै,जणूं तेल आग पै छिडकै
कदे तै नाड़ी मंद पडज्या,कदे ह्रदय ज़ोर त धड़कै
आवै याद परदेशी की,रोऊं भीतर बड़कै
कई बै सोचूं जिंदगी खोदयूं,तळै महल तै पड़कै
मछली की ज्यूँ लोच रही,सही जाती नही जुदाई
तीन रोज की तड़फ रही,मैं कुछ ना खेली खाई

ठारा बरस की होली मेरी,मद में भरी जवानी
केशर क्यारी सुखण लागी,कोन्या मिल रया पानी
परदेशी की शान देखकै,होई फिरूं सूं दीवानी
बिन बालम के गौरी की,हो विरथा जिंदगानी
जोबन खूनी डटता कोन्या,होती नही समाई
तीन रोज की तड़फ रही,मैं कुछ ना खेली खाई

जब तै देख्या परदेशी मेरी,काबू में काया कोन्या
घायल करकै छोड़ देई,मेरा दर्द मिटाया कोन्या
मेरे मन तन की बुझणिया,कोए भी पाया कोन्या
माँ आगै शर्मागी मैंनै,जिक्र चलाया कोन्या
जाट मेहर सिंह मरज्याणे,तनै क्यूं मैं मोस बिठाई
तीन रोज की तड़फ रही,मैं कुछ ना खेली खाई

पद्मावत जब सखियों से ज्यादा जिद्द करती है तो सखियां उसे फिर से बाग़ में ले कर आती हैं। बाग़ में आ कर पद्मावत रणबीर को याद करती हुयी क्या कहती है-

मने तडफा कै चल्या गया कुछ तै तरस खाइये
हो परदेशी प्यारे हटके बाग मै आइये

(यह रागनी नही मिली)

उधर रणबीर भी पद्मावत से मिलने के लिए बैचैन हो रहा होता है। वह भी अपने मित्र चन्द्र दत्त को ले कर उसी बाग़ में पहुँच जाता है। वह पर मौजूद पद्मावत और उसकी सखियों को देख कर रणबीर अपनी मित्र चन्द्र दत्त से क्या कहता है-

जिन्दगी खोकै मरणा होगा मेरा अन्न जल हटरया सै
न्यून लखा कै देख यार किसा चाला सा कटरया सै।टेक

छम छम छनननन करती चालै फली सिरस की होरी
दूर खड़ै नै फूकैगी किसी आग करस की होरी
एक बै मेरे तैं बोल गई ईब चास दरस की होरी
ईब लग बी ब्याही कोन्या या बीस बरस की होरी
आंवते ज्यात्यां नै दे काट गंडासा अहरण पै चंट रह्या सै।

भागा आला मृग चरैगा केसर क्यारी दिखै
भौंरा बणकै ल्यूं खसबोई यो फूल हजारी दिखै
सो हूरां म्हं खड़ी करें तैं एक या न्यारी दिखै
ईब तलक बी ब्याही कोन्या कती कंवारी दिखै
इस त्रिया की काया का सही मेला सा लुट रह्या से।

इस तरियां परी पडै भूल म्हं जणूं मृग चौकड़ी चुक्कै
हट कै काम बणै वारी जो सही टेम नै उक्कै
काम देव की ऐसी माया चोट जिगर म्हं दूखै
उस त्रिया का के जीणा जो पीहर के म्हां सूखै
मरद मिलै वा आनन्द लूटै सही जोबन छंट रह्या सै।

भूरे-भूरे मुख पै लागूं गर्द बण्या चाहूं सूं
कामदेव नै बस मैं करूं ईसा जर्द बण्या चाहूं सूं
उसकी अग्नि तुरत बुझाउं पाणी शर्द बण्या चाहू सूं
या छोरी मेरी बहु बणै तै इका मर्द बणया चाहूं सूं
कहै मेहरसिंह मिलण की खातर न्यू माला रट रह्या सै।

रणबीर को अपने सामने देख कर पद्मावत के हल का कवि ने कैसे जिक्र किया है-

देख सामने पदमावत गौरी ईश्क नींद मैं सोगी
शान देख कै राज कंवर की सीली काया होगी।टेक

सुथरी श्यान गाबरु छोरा आग्या मेरी नजर मैं
रूप ईसा खिलरया सै जणुं चढ़रया भान शिखर मैं
मन मोह लिया मेरा लड़के नै होगें छेक जिगर मैं
थर थर लाग्या गात कांपने और होगी घणे फिकर मैं
तन की सुध बुध भूल गई जणुं कई जन्म की रोगी।

इसे मर्द तै मेल करुं मेरी होज्या सफल जवानी
यो भरे खेत की दूब हरी मैं फूंस पटेरा पाहनी
काढ़े तै भी ना लिकड़ै हुई इसके बस मैं प्रानी
यो मजनूं होया मेरै लेखै मैं लैला बणी दिवानी
भोली भाली श्यान जलै की मनै दीन दूनी तै खोगी।

ईसा रूप ना दई देवता और मनुष्य फक्कर मैं
मैं हिरनी फंसगी सादी भोली ईश्क जाल चक्कर मैं
इसका मेरा मेल इसा ज्यूं घी घल्यागा शक्कर मैं
आज मिल्या भरतार मनै मेरी जोड़ी की टक्कर मैं
कर कै दर्श पति प्यारे के वा दाग जिगर के धोगी।

कह मेहर सिंह फेर पदमावत नै एक इशारा आया
एक फूल तोड़ कै फूलवाड़ी तै फेर कानां सेती लाया
फेर चूम कै ला छाती कै वो पायां तलै दबाया
फेर दातां तै चबा कै उसनै सिर उपर कै बगाया
डोरी दिखा शिशा चमका कै वा बीज प्रेम का बोगी।

पद्मावत फूल के द्वारा रणबीर को इशारा करके वह से चली जाती है। रणबीर अपने मित्र चन्द्र दत्त से उस इशारे का मतलब पूछता है। तो चन्द्र दत्त उसे बताता है कि वह कर्नाटक की रहने वाली है। उसके पिता का नाम दंत सैन है और उसका नाम पद्मावत है और वह आपसे मिलना चाहती है। सारी बात सुन कर रणबीर चन्द्र दत्त से कहता है-

खटका लाग्या हूर का, कर सोलहा सिंगार,
मारया रै, चंद्रदत ना जिया जा

मेरी तै बींध दी नश नश,
ना रहया आपे के बस ,
कद रस लेल्यूं गौरे से नूर का , छैल छबीली नार,
सारा रै, ऋतु दान कर दिया जा

कुछ बदनाम्मी तै डरिये,
मतना फंदे बीच घरिये,
कुछ करिये काम सहूर का, बच्चेपण मै सै प्यार ,
म्हारा रै, कदे टूट बेल तै घिया जा

कदे बात बणै अपयश की,
जो रहै ना बस की,
उसकी पैनी घूर का, सै निशाना यार,
थारा रै , क्यूकर बच हिया जा

करया बेकुफ दिल नै तंग,
मेरै चढया आशिकी का रंग,
मेहर सिंह महबूब हजूर का, रहैगा ताब्बेदार,
भारया रै, बेसक रूसवा किया जा

पद्मावत के किये इशारे समझ कर रणबीर रात में उस से मिलने उसके महल के कमरे में पहुँच जाता है। पद्मावत सो रही होती है तो उस समय रणबीर के मन का हाल कैसे बताया है-

के सोवै सै डायण अटारी महं, मेरा दम लिकड़ण नै हो रह्या
गये घर की बैठी हो लिए रै।टेक

सुती पागी तै आग्यी नजा,
मुझ बन्दे की गई लाग कजा,
के मजा मिल्या तेरी यारी म्हं तेरे कारण जिंदगी खो रह्या
गये घर की दिन मैं सो लिए रै।

ओढ कै सोगी धोली साड़ी,
भीतरली लई मूंद किबाड़ी
थारी फुलवारी की क्यारी म्हं यो आणा चाहावै था भौंरा,
गये घर की कहै थी खुशबो लिए रै।

कदे तो लोग कहैं थे भूप,
ईब हो लिया पक्का बेकूफ,
रुप जणु पड़ रहया तेल अंगारी म्हं तेरा चन्दन कैसा पौरा,
गये घर की मिठ्ठी बोल भलो लिए रै।

कर लिया नशा के पी रही भंगा,
कदे कोए सुण कै आज्या दंगा,
मेहर सिंह थारी गंगा महतारी म्हं एक बामण जाटी आला बोरया
गए घर की बो प्रेम के जौ लिए रै।

आवाज़ सुनकर पहरेदार आ जाते हैं और रणबीर को पकड़ लेते हैं। तो रणबीर क्या सोचता है-

पहलम तै मनै जाण नहीं थी तनै बीज विघ्न का बोया
घली हथकड़ी हाथां कै म्हां सिर धुण कै नै रोया।टेक

तेरे कारण पदमावत मेरी लाई कजा घेर कै
मौके पै बेइमान डूबगी सोगी पीठ फेर कै
पहरेदारां नै जुल्म करै मेरे फिरगे चारों हेर कै
जग परलो मैं के कसर रहै जिब घलज्या नाथ शेर कै
तेरी छाती पर कै हाथ गैर कै डायण कदे ना सोया।

भली समझूं था पदमावत तूं लिकड़ी नमक हरामी
मेरी आख्यां तै दुर डिगरज्या क्यूं बैठी सै साहमी
सब बातां के ठाठ राखे ना एक चीज की खामी
मनै न्यूं सुण राखी थी पदमावत की कदे बोई भी ना जामी
मेरे सिर बदनामी धरी डायण मनै सिर नीचे नै गोया।

जिस माणस के खोटे लागैं सब राह्यां तै चूकै
मेरी आख्यां तै दूर डिगरज्या क्यूं छाती नै फूकै
मेरी छाती में घा होरे सैं रोऊं सूं घा दूखै
जब माणस की करड़ाई लागै जल मैं दरखत सूखै
यो संसार मनै थूकै किसा मौत बहाना टोहया।

मर्द जाम कोए सुणता हो तै मत बीरां तै बतलाईयों
बच्या जा तै बचकै रहियो मतना आंख लड़ाईयो
कहै मेहरसिंह समझाकै मतना ईश्क कमाईयों
मेरे केसी हालत होज्या जाट जाम ना रागनि गाईयो
पदमावत तूं निर्वंश जाईयो सब राह्यां तै खोया।

राजा के सामने सारा दोष पद्मावत पर लगता हुआ रंबीक क्या कहता है-

पकड़ लिया हाथ, देख ली जात, तेरी साथ,
दो बात, करी थी बागां मैं।टेक

रूप देख कै पागल बण्या
करुं था के मैं एक जणा
था घणा सुखी, हुया किसा दुखी किसी लिखी धरी थी
भागां मैं।

दगाबाज धोखे की भरी
तनै मेरे संग मिलकै किसी करी
थी मेरी तेरी जोड़, जै निभावै ओड, कद मोड, बंधैंगें
पागां मैं।

बंजड़ खेत में मृग के चरै
आशकी करै तै इंसान के डरै
के मरै लागते दंश, मिटा दिया वंश,फिरै हंस
काले कागां मैं।

मेहर सिंह नाम हरी का टोह
जिस तै तरा गुजारा हो
यो के करया, नाश जा तेरा,किसा आण मरया
थारी जागां में।