किस्सा पूर्णमल-सुंदरा दे

एक बार गुरु गोरख नाथ चलते चलते चीन की सीमाओं पर पहुच जाते हैं। तथा वहा अपना डेरा लगा देते हैं। वहा कि राजकुमारी सुन्द्रादे थी जो साधु को भिक्षा प्रदान करके उनका कत्ल कर देती थी।

स्यालकोट मै सुलेभान का था मैं राजदुलारा
मेरी माता इच्छरादे की आंख का तारा

जन्म होया तब ज्योतषी नै मेरे बारे फरमाया
बारह साल दूर राखो जब कटै संकट की छाया
इतणा सुण मेरे पिता नै मैं भौरे मै रखाया
मेरे खाणे पीणे शिक्षा तालीम का सब जुगत करवाया
ताऊ रूपेशाह वजीर नै मैं था ज्यान तै प्यारा

पिता जी मिलण नै घणे आतुर थे कोन्या डटी झाल
ग्यारा साल तीन महिने मै मेरे बुलावण कि करदी काल
पिता जी नै दर्श की खातर मौसी नूणादे कै दिया घाल
इश्क नशे मै आंधी होकै उसनै कर दिये गजब कमाल
मेरा हाथ पकड कै न्यू बोल्ली बण माशुक हमारा

वा बोल देती रहै गी मैं उल्टा चाल्या आया
छोह मै भरकै मौसी नै एसा खेल रचाया
तेरे पूर्ण नै मेरी आब तार ली न्यू मेरा पिता सखाया
इतणी सुण पिता नै मेरे कत्ल का हुक्म सुणाया
मेरी माता कि पेश चल्ली ना रोई दे भबकारा

हाथ पैर काट कै इस कुए मै फैंकवाया
कई बरस बीत गये तंग पागी थी काया
आवाज सुणी आपनै मेरी फेर कुए तै कढवाया
हटकै सामर्थ कर दिया धन्य है आपकी माया
कहै मेहर सिंह सारी उम्र रहूंगा दास तुम्हारा

रागनी-2

तेरी रोती होगी मात, उसनै लिये संभाल, जा पूर्ण अपणे घर नै

(यह रागनी नहीं मिली)

रागनी-3

जित हो राजा अन्याई, उडै ना पडै प्रजा की पार

(यह रागनी नहीं मिली)

रागनी-4

मतना आसानी जाणै लेणा भगमा बाणा

गर्मी मै जलते ठंड मै ठरते
हम हठ योग साधना करते
पाहडा मै कदे जंगल मै फरते, म्हारा नहि ठिकाणा

मन और इंद्री पै काबू पाते
भूखे प्यासे टेम बिताते
राख घोल कै पी जाते, कोन्या छप्पन भोग का खाणा

प्रीति नहीं इस नश्वर तन मै
नीत रहै सै हरि भजन मै
विषय वासना का मन मै, विचार नहीं ल्याणा

ना सुख तै सुखी ना दुख तै तंग
म्हारे जीवण का अलग ए ढंग
राज्जी होकै जाट मेहर सिंह, का सुणते गाणा

रागनी-5

सुणो गुरु जी बात हमारी, उस सुंदरा दे राजकुमारी,
तै लेवण भिक्षा आज, यो पूर्णमल जावैगा।।
(यह रागनीनहीं मिली)

रागनी-6

गुरू के चरण चुचकार, देली काख मै झोली, चाल्या नगर नै।।
आशीष गुरु जी का पाऊं,
भिक्षा सुंदरा दे पै ल्याऊं,
ना लाऊं घणी वार,
(यह रागनी नहीं मिली)

रागनी-7

यो लेके दो मुठी चुन चला जा इसमे तेरी भलाई
कितकी भिक्षा ले सुंदरा पै मारा जा बिन आई

बाबा जी ताने समझाऊ,
तेरी जान बचाना चाऊ
तेरे हाथ जोडू शीश झुकाऊ ,ना हट कै आइये इस राही

वा मारदे तने ड़याँण
उसने नही किसी की आण
बाबा जी तनै क्योना जाण ,वा सै तेरी करडाई

ध्यान मेरी बात में लाले
तु अपनी ज्यान बचाले
जा किते ओर मांग के खाले, क्यों दे हत्थे मै नाड भाई

समझा समझा कै होली तंग
ना लागता तेरे बचने का ढंग
हट छोड़ कै जाट मेहर सिंह, रट सिया राम रघुराई

रागनी-8

बुला थारी राजकुमारी नै, भिक्षा सुंदरा पै ल्यूं गा, या जिद्द म्हारी सै।।

नाथ की करण लगी हांसी,
तेरी मेट दयूं बदमाशी,
हो दासी भूलै कार गुजारी नै, हुक्म ओटण का तू खा, करै क्यूं मक्कारी सै।।

बेईमान पाड़ पाड़ कै खावै,
मेरे पै किसा रौब जमावै,
धमकावै नाथ पुजारी नै, रही खागड़ी ज्यूं लखा, घणी हडखारी सै।।

उसनै बुला ल्या चुपचाप,
ना दे दयूं तनै श्राप,
मै आप निपटूं बिमारी नै, बदकार तू चाल्ली जा, देखूं किसी हत्यारी सै।।

ना न्यूए सर नै धुण,
कुछ छंद प्रेम के बुण,
ले सुण बात हमारी नै, मेहर सिंह नै गावण का चाह्, पर मुश्किल लहदारी सै।।

रागनी-9

सुंदरा दे : तलै खड़या क्यूं रूक्के मारै चढ़ज्या जीने पर कै।
पूर्णमल : एक मुट्ठी मनै भिक्षा चाहिये दे ज्या तलै ऊतर कै।।

सुंदरा दे : तेरे बैठण खातर जोगी रेश्मी आसण बिछवाया,
पूर्णमल : हम कांकर रोडया मै पड़े रहवै कद्दे ना दुख पाया,
सुंदरा दे : तेरे जिम्मण खातर जोगी छप्पन भोग बणवाया,
पूर्णमल : एक मुट्ठी मनै चुन चाहिये उसै मै हो मन चाहया,
सुंदरा दे : सोने के मनै थाल परोसे तू जिम लिये मन भर कै।
पूर्णमल : चुघड़ मै राख घोळ पी ल्यां हर का नाम सुमर कै।।

सुंदरा दे : तेरे रूप का खटका मेरे मन लाग ग्या जोगी,
पूर्णमल : दिखै ताप चढ़या तेरे मगज मै जो बावली तू होगी,
सुंदरा दे : मैं तन की सुध बुध खो बैठी बणकै प्रेम रोगी,
पूर्णमल : हर का नाम सुमरया करै इब लग न्यूए जिंदगी खोगी,
सुंदरा दे : बिना पति के साथ बता कौण दिखा दे तर कै।
पूर्णमल : भक्ति के संग पार उतर ज्या शिव शिव शिव कर कै।।

सुंदरा दे : भक्ति तै भी बढकै गृहस्थ आश्रम बतावै,
पूर्णमल : होता होगा पर हम गुरू की सेवा मै समय बितावै,
सुंदरा दे : कहैं प्यार की चाहना सब नै हो सै तू क्यूँ ना ब्याह करवावै,
पूर्णमल : काम और मद नै जितां तब हम नाथ कहवावै,
सुंदरा दे : छोड़ फकीरी फेरे लेले मोड़ बांध कै सर कै।
पूर्णमल : ओड़ कर्म करकै मैं के मुंह ले ज्यांगा ईश्वर कै।।

सुंदरा दे : राज भोगिये बैठ तख्त पै मैं रहूंगी तेरी दासी,
पूर्णमल : मुझ साधू के गळ मै क्यूं घालै सै फांसी,
सुंदरा दे : दोनूं टेम मिलै सत पकवानी छोड़ दे खाणा बासी,
पूर्णमल : खुद तै पागल होरी सै मेरी भी करावै हांसी,
सुंदरा दे : के तै जा मेरी बात मान ना तनै दिखा दयूं मरकै।
पूर्णमल : जाट मेहर सिंह मानै कोन्या चाहे मार रफल भरकै।।

रागनी-10

देख तेरी सूरत भोली, सुंदरा दे तेरी होली,
फैंक कै नै झोली बाबा, भोग लिये ठाठ।।
(यह रागनी नहीं मिली)

रागनी-11

मेरा योग ना अधूरा, भगत सुं पूरा ,
के दिखुं सूं जमूरा, जाणुं सारी बातां नै।टेक

तूं सुन्दरा दे इसी बात राहण दे,
क्यूं तंग करै साधु नै जाण दे,
कितै खाण दे फल पात, म्हारी साधुआं की जात,
काटां जंगल कै म्हां रात, क्यूं सतावै नाथां नै।

घणी बोलैगी तै मिलैगा शराप,
ना तै तू बैठी रहै चुपचाप,
क्यूं पाप करै, सिर दोष धरै,
क्यूं ना दूर मरै, झाड़ै काचे फल पातां नै।

मनै करी बचपन तै भगती की कार,
गुरू का मैं रहा सूं ताबेदार,
वै पार करै बेड़ा, मत कर अलझेड़ा,
म्हारा ऊंचा खेड़ा, दे दिया दाता नै।

मेहर सिंह कह रंग लुटूंगा,
ज्ञान गुरु गोरख पै घुटूंगा,
ना टूटूंगा रेले मै, आ रहा सूं मेले मै,
रंग केले मै, भर दिया मेरी माता नै।

रागनी-12

तूं मन समझा ले हो योगी ,क्यूं चाल पड़ा मुंह फेर कै।टेक

दूजे के मन की बात समझ के बोल तै सुहाणी चाहिए,
तेरे कैसे राजा धौरै मेरे केसी राणी चाहिए
आत्मा प्रसन्न होज्या इसी मीठी बाणी चाहिए
तूं खड़ा उदास बोलता कोन्या क्यूंकर के ढंग करया सै,
संसार तै तालुक तोड़ै के जीवंता ए मर रहा सै,
ज्ञान तै त्रिया में भी हो सै तू कित ऋषियां मैं फिर रहा सै,
धरूं ताता पाणी न्हा ले हो योगी, मैं बटणा मलूं तुझ शेर कै।1।

आत्मा नै आत्मा के पास रहे तै ज्ञान हो सै,
उनकी हार हुया ना करती जिन का सच्चा ध्यान हो सै,
गलती भी हो जाया करै यो बोलता बेईमान हो सै,
मैं कोढ़ाने की कह री सूं कुछ तेरी समझ मैं आवंता ना,
तेरे मुंह की तरफ लखाऊं तू कुछ भी बतांवता ना,
बेरा ना के सोच रहा सै पलक तलक भी ठांवता ना,
एकबै मेरी तरफ लखा ले हो योगी , मैं खड़ी हुई आगा घेर कै।2।

तड़फती नै छोड़ ज्यागा बाबा जी तनै पाप होगा,
भजन तेरा बणै नहीं खंड तेरा जाप होगा,
तीन जन्म मैं भी कष्ट मिटै ना इसा मेरा शराप होगा,
इष्ट की दया तै मैं भी भगतणी भगवान की सूं,
उसी कुसी जाणिंए ना सच्चे पूरे ध्यान की सूं,
जती सती का जोड़ा हो सै तेरे ही मिजान की सूं,
अपणे पास बिठा ले हो योगी, क्यूं चाल पड़या मनै गेर कै।3।

तेरे दर्शन करकै नै जिया मेरा प्रसन्न होता,
चाल्या भी जाता तूं जै म्हारा तेरा ना दर्शन होता,
वसुदेव देवकी बिन पैदा कैसे कृष्ण होता,
बीर मर्द सै चलै सृष्टि यो ईश्वर का असूल सै,
बाबा जी तू ब्याह करवाले या तेरै मोटी भूल सै,
मेहर सिंह तै बूझ आईए जा बरोने में स्कूल सै,
हित से छाती कै लाले हो योगी ,क्यूं चाल पडया मैंनै हेर कै।4।

रागनी-13

मेरे गुरू का आदेश सुंदरा मनै प्रण पुगाणा होगा।
तेरे हाथ की भिक्षा लेकै डेरे मै जाणा होगा।।

गुरु आदेश टलै ना मूळ
तेरै लाग री सहम भूल
जिसतै खिलै तेरे चमन का फूल, वो पाणी किते और तै ल्याणा होगा।।
मैं तो नाथ ब्रह्मचारी तनै कोए और मर्द निंघाणा होगा।।

सुंदरा दे मत करै नालाकी,
तेरी सुण ना मेरी देही मै बाकी,
बदी करण मै तनै कसर ना राखी, कद तेरा शरमाणा होगा।।
सत्रहा सौ तनै साधू मारे तेरा नरक बीच ठिकाणा होगा।।

करकै याद मैं पाछली डरग्या,
फेर उसी ढाळ घिरग्या,
समय का चक्कर उल्टा फिरग्या, फेर वोहे धंगताणा होगा।
तनै मेरी मौसी आली लीख पकड़ ली मेरा फेर तै मर ज्याणा होगा।।

लाठी डंडा जो आज्या हाथ,
मार मार मेरा सुजा दे गात,
फेर पिता जी बूझै एक बात, बेटा मेहर सिंह कद स्याणा होगा।
अपणा जाट्टां का काम नहीं, कद तेरा बंद गाणा होगा।।

रागनी-14

पु:- गुरु गोरख बाट देखते होंगे सुन्दरादे डेरे में,
सु:- हो बाबा जी तनै जाने दूंना मन फंसग्या तेरे में।
पु.:- इसी बात बाबा के संग में ना होणी चाहिए,
सु.:- चन्द्रमा सी शान बाबा व्यर्था ना खोणी चाहिए,
पु.:- अगत जगत में मिलै भलाई इसी रोजी टोहणी चाहिए,
सु.:- ऋत पै केशर क्यारी सै या तनै मेवा बोणी चाहिए,
पु.:- बोवैगा जो काटैगा या श्रद्धा ना मेरे मैं,
सु.:- बाबाजी आग लगै, जब आग लगै चेहरे मैं।1।

पु.:- गुरु गोरख फिकर करेंगे मन में पूरन क्यूं ना आया,
सु.:- आज तलक इसी शक्ल ना देखी हे ईश्वर तेरी माया,
पु.:- पांच भूत पच्चीस भूतनी भिन्न-भिन्न में दर्शाया,
सु.:- ज्ञान की भूखी ना बाबा जी करदे मन का चाया,
पु.:- मैं जाण गया तूं बाबा जी नै देना चाहवै घेरे में,
सु.:- तूं बनड़ा आला ढंग बणा ले जिब लूंगी फेरे में।2।

पु.:- आज गुरु नै ज्यान मेरी कीत फंसा दई रासे में,
सु.:- साधुआं के सिर काट्या करूं तू के लेगा तमाशे में,
पु.:- तेरे केसे जीव जन्तु सौ होकै मरै चमाशे में,
सु.:- या चोपड़ सार बिछा राखी सै खेलूंगी पाशे में,
पु.:- गुरु गोरख तै शरीर सौंप दिया मनै मिलगे थे झेरे में,
सु.:- तेरी गोरख गैल बराती हौं जिब झलक लगै सेहरे में।3।

पु.:- सिद्ध साधा के सिर पै बादली तूं कड़ै गरजती आवै सै,
सु.:- बंश की खातिर दुखिया आगी थारे कोण गृहस्थी आवै सै,
पु.:- धरती ना है बुंद पड़न की तू कड़ै बरसती आवे सै,
सु.:- जिन्दगी भर तेरी टहल करै न्यूं हूर लरजती आवै सै,
पु.:- कहै मेहर सिंह रस ना लिकड़ै सूके हुए पटेरे में,
सु.:- गुरू लख्मी चन्द राजी हो ज्या जब लिकड़ै चाल बछेरे में।4।

रागनी-15

सिर ताज मिलै, यो राज मिलै,
हूर ए नाज़ मिलै , फिर क्यूं ठुकराना

(यह बहर ए तबील पूरा नहीं मिला)

रागनी-16

परवा तै पछवा बिजली ज्यूँ पाट कै चली
पश्मीने की साड़ी सुंदरा सर डाट कै चली

दुनिया के माह सोहणी लुगाई क्योना सुंदरा की टक्कर की
इश्क नशे में आंधी होगी गई लाग खटक नाथ फक्कर की
एक चम्मच दही सक्कर की वा चाट कै चली

ब्याह दे के न भेज दिये बाह्मण ओर नाई
अगड़ पड़ोसी सारे जुड़ गे गावे गीत लुगाई
मेवा और मिष्ठान मिठाई सब मैं बाट कै चली

आए गए कि सेवा करनी सबते समझा दी बात
जात जमात और देहात ले लिए सभी साथ
साधुआ पै ना ठाणा हाथ सबते नाट कै चली

हे ईश्वर महरी जोट मिला दे हर पल तनै ध्याऊँ
डेरे मै जाके गोरख के पायां मै पड़ जाऊं
मेहर सिंह नै मांग लाऊं, न्यू नंदा जाट कै चली

रागनी-17

गोरखनाथ: बालक उम्र नादान पूरण की क्यूंकर कर दूं न्यारा।
सुन्दरादे तूं राहण दे पूरन जी तै प्यारा।टेक

एक तै एक अलहा साधु आ देख मेरे डेरे में,
सप्त ऋषि और मारकंडे किसी झलक लगै चेहरे मैं,
जती लोग सब एक छांट ले दिवा दूंगा फेरे मैं,
इस पूरनमल नै दूं कोन्या मनै मिलग्या था झेरे में,
घोर अन्धेरा छा ज्यागा और उजड़ हो डेरा म्हारा।1।

सुंदरादे: साची बात कहे बिना तै मैं भी ना उकूंगी,
ये तै सारे उम्र पुरानी के सै के इन्हें फुकूंगी,
खाकै मरूं कटारी आड़ै ए पड़ी पड़ी सूकूंगी,
तनै दुनिया कह सै भला गोरख पर मैं तै तनै थूकूंगी,
पूरनमल तै जोट मिला दे हो इसकी गैल गुजारा।2।

गोरखनाथ: सतवादी साधु बहोत घणै सै ये सारे झूठे ना,
यो पूरनमल तै बालक सै इस के दांत तलक टूटे ना,
किमै भगवान सी तूं भी दिखै इसे भाग तेरे फूटे ना,
कई साधु तै सै जन्मजती कदे धुणे तै उठे ना,
घणे भाजगे तेरे तै डरतै ईब लग पड़ रहा लारा।3।

संदरादे: हाथ जोड़ कै खड़ी अगाड़ी तेरे तै अरज करूं सूं,
पूरनमल नै घायल कर दी इस की मारी मरूं सूं,
जिब तै देखी शक्ल मनै मैं भागी-भागी फिरूं सूं,
दया ले लिए मरती की चरणां में शीश धरूं सूं,
जै जाट मेहर सिंह मनै मिलज्या तै होज्या स्वर्ग किनारा।

रागनी-18

ले कै जन्म फेर आना ना बात बता दूं सारी,
जा बेटा पूरनमल घर नै बण ज्या शुभ घरबारी।टेक

सत्संग तै हो छोटा बड़ा ,सत्संग ठीक पकड़िए,
मात-पिता और गुरु कै आगै कदे भी ना अकड़िए,
गुरु आज्ञा का पालन करिए शुभ करमा पै अडिए,
गऊ ब्राह्मण अतिथी की सेवा तै तूं कदे भी ना चिड़िए,
घर आए का आदर करिए नर आवै चाहे नारी।1।

मद नै मारीए काम मरैगा रहैना जी नै रासा,
लोभ तजे तै क्रोध मरै जो तेरे खून का प्यासा,
मोह तज दे तै आनन्द छाजा, छुटै नरक तै बासा,
इन पांचां तै बच कै रहिए फिर कांहे की ना शांसा,
सत चित आनन्द ग्रहण करै तू खुद भी सै ब्रहमचारी।2।

या त्रिया बड़ी दुरंगी हो सै तनै इंच-इंच नापैगी,
सुण लिए सारी करीए मन की ना गलत जगह छापैगी,
चाहे पेट पाड़ कै दिखा दिए बेईमान नहीं धापैगी,
तूं गोरख-गोरख जपै गया तै या दूर खड़ी कांपैगी,
मनै बचन दे दिया तनै जाणा होगा ना तै या खाकै मरैगी कटारी।3।

तूं राजा या रईत सै तेरी इसका तूं मालक सै,
हित से रक्षा कर प्रजा की क्यूंकी तू पालक सै
जिवंते रहे तै फेर मिलैंगे ना तै म्हारा तेरा के तालक सै,
लखमीचन्द कहै मौज कर बैटा ईश्वर सबका खालक सै,
मेहर सिंह तू लाज राखीए बण कै आज्ञाकारी।

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