लिखित में रागनी

धर्मकौर-रघबीर (पं. लख्मीचन्द)

किस्सा धर्मकौर-रघुबीर एक समय की बात है गांव धनोरा उत्तर प्रदेश में एक संपन्न गुर्जर परिवार था। चौधरी हरी सिंह परिवार का मुखिया था। हजारों बीघे जमीन थी और कई गांवों का जागीरदार था। उसकी दो शादीयां हुई थीं। चौधरी के बुढ़ापे में एक लड़का हुआ जिसका नाम रघबीर था। जब रघबीर 5 साल का हुआ उसकी माता की मृत्यु बिमारी के कारण हो गई। पत्नी के वियोग में चौधरी की भी मृत्यु हो गई। अब मौसी और 5 साल […]

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उपदेश भजन (पं. लख्मीचन्द)

उपदेश व भजन ~~1~~ ओम भजन बिन जिन्दगी व्यर्था गई, ना रही ना रहै किसे की सदा ना रही ।।टेक।। ओम ब्रह्म निराकार की मूरती, रटे बिन ज्यान वासना मैं झुरती, जिनकी सुरति भजन मैं वा फिदा ना रही ।।1।। राजा बैणूं अधर्म से नहीं हिले थे, जिनके दुनियां मैं हुक्म पिले थे, जिनके चक्र चलैं थे, वैं अदा ना रही ।।2।। उथड़गी गढ़ कोठां की नीम, काल कै ना लगते बैद्य हकीम, राजा भीम बली की बन्दे गदा ना

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सेठ ताराचंद (पं. लख्मीचन्द)

किस्सा सेठ ताराचंद हरिराम अपने छोटे भाई ताराचंद के यश को सहन नही कर सका। उसने मन में सोचा जब तक दिल्ली में ताराचंद का नाम है, उसे कोई नही पहचानेगा। हरीराम ने पक्का निश्चय कर लिया ताराचन्द का नाम ख़त्म करूँगा करूगा। अब हरिराम अपनी पत्नी के पास आता है और मन की सारी बात बताई। अब हरिराम की पत्नी एक बात के द्वारा क्या पति हरिराम को क्या कहती है- कहै पत्नी उठ बैठ पति, नहा-धोकै अस्नान करो

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सत्यवान-सावित्री (पं. लख्मीचन्द)

किस्सा सत्यवान-सावित्री जब पाण्डवों को कौरवों ने वनवास दिया तो पांचों पाण्डव तथा उनके साथ द्रोपदी मारकण्डे ऋषि के आश्रम पर पहुंच जाते हैं। मारकण्डे ऋषि ने उनका बडा सम्मान किया तथा पांड्वो ने फिर कुछ दिन वहीं पर निवास किया। एक दिन मारकण्डे ऋषि और धर्मपुत्र युधिष्ठर बैठे आपस में बात कर रहे थे। धर्मपुत्र ने अपनी विपता के विषय में कहा कि हम तो जंगल का दुख-सुख सहन कर सकते हैं, परन्तु हमारे साथ द्रोपदी भी है, यह

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शाही लक्कड़हारा (पं. लख्मीचन्द)

किस्सा शाही लक्कड़हारा एक समय मे जोधपुर के रहने वाले जोधानाथ महाराजा थे और उसकी रानी का नाम रूपाणी था। उसकी कोई सन्तान नहीं थी। समय के साथ राजा ने काम-काज चलाने के लिए चार कर्मचारी छांट लिये। चारों को राज काज संभाल कर स्वयं तपस्या करने का विचार किया। राजा सुबह 4 बजे उठकर मन्दिर में जाकर भजन करता। दिन के 2 बजे भोजन करता था। उसके शहर में एक गरीब बणिया था। उसने तेल का व्यापार करके 500

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मेनका-शकुन्तला (पं. लख्मीचन्द)

किस्सा मेनका-शकुन्तला ऋषि विश्वामित्र की बढ़ती तपस्या से इन्द्र देव डर गया तो वह ऋषि की तपस्या खंडित करना चाहता है। इसके पश्चातत इन्द्रदेव अपने दरबार की मनोंरजन करने वाली अति सुन्दरी मेनका का सहारा लेता है। इन्द्रदेव ने मेनका को बुलावा भेजा और साजिश की सलाह करने लगा। पहले तो मेनका विश्वामित्र के सम्भावित गुस्से से डर गई, परन्तु मजबूर करने पर हॉं कर ली और बात आगे बढ़ाई। मेनका ने कहा इस कार्य में पवन देवता और काम

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राजा हरिश्चन्द्र (पं. लख्मीचन्द)

किस्सा राजा हरिश्चन्द्र एक समय की बात है कि जब अवध देश में सुर्यवंशी राजा हरिशचन्द्र राज करते थे। वे बड़े धर्मात्मा थे तथा पुन्न-दान एवं सत्य के लिए देवताओं तक उनका लोहा मानते थे। एक दिन देवराज इन्द्र की सभा मे नारद जी ने राजा हरीशचन्द्र की बड़ी प्रशंसा की। वहां विश्वामित्र इर्ष्यावश नारद जी की बात को पचा नही सके। सत्य और धर्म को भंग करने हेतू, राजा हरिश्चंद्र की परीक्षा लेने का मन बना लेते है और

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