किस्सा सरवर-नीर

अमृतसर में राजा अम्ब राज किया करते थे। उनकी रानी का नाम अम्बली तथा दो पुत्रों के नाम सरवर और नीर थे। राजा अत्यन्त सत्यवादी और धर्मात्मा पुरुष थे। उनकी परीक्षा लेने के लिए एक दिन स्वयं भगवान साधु का वेश धारण कर राजा अम्ब के दरबार में अलख जगाते हैं-

राजा के दरबार मैं भूखा खड़या सै फकीर
भिक्षा घाल दे मेरै। टेक

दुःख की घड़ी बीत रही आज
मेरे दुख का करो ईलाज
मोहताज फिरुं सूं बेकार मैं, दिये दुख की काट जंजीर
जै कुछ रहम हो तेरै।

मै निरभाग कर्म का मुआ
यो सै पेट नरक का कुआ
हुआ सब तरिया लाचार मैं, मेरी ले लिए दया अमीर
भूख्यां नै आसरा दे रै।

मेरी माल्यक नै अक्ल हड़ी
पाच्छली रेख कर्म की अड़ी
मेरी नाव पड़ी मझधार म्हं, गई डुबो मेरी तकदीर
पटकी पड़ गी के रै।

हो लिया सब तरिया तै तंग
ईब ना रह्या जीणे का ढंग
मेहर सिंह संसार मैं, स्थिर रह ना शरीर,
ला भगवान मैं नेह रै।

साधु भिक्षा लेने से पहले राजा अम्ब से तीन वचन ले लेते हैं और साधु वचनों में बंधे राजा का राजपाट ले लेते हैं और उसे अमृतसर राज की सीमा से बाहर निकल जाने का आदेश देते हैं। राजा अम्ब अपना सब कुछ साधु को भिक्षा में दान कर के रानी अम्बली के पास जाते हैं और क्या कहते हैं-

लिए दिल नै डाट, कदे जा ना नाट
म्हारा राजपाट ले लिया फकीर नै। टेक

हो लिए सब तरिया तै तंग
परी कर ले चलणे का ढंग
तज रंग महल, करो वन की सैल
ले लिए गैल, सरवर और नीर नै।

तबीयत डाटी नहीं डटी
ईज्जत सब तरियां तै घटी
मिटे कर्म रेख, होणी के लेख
लिए बहुत देख , आराम शरीर नै।

म्हारी होगी जिन्दगी पैमाल
साधु ने कर दिये घणे कमाल
हाल ना रहे सुखी, सुण सूरज मुखी
कर दिये दुखी बैरण तकदीर नै।

अपणे साच बतादे दिल की
मैं देखूं था किसी अकल की
पल की ना बाट, छौडकै चल ठाट,
मेहर सिंह जाट, खार करया तासीर नै।

इतनी बात सुनकर रानी अम्बली क्या कहती है-

चोखा समझण जोगा स्याणा सै ऊंच नीच का ध्यान नहीं
वे दुनिया मैं दुःख पावैंगे पिया जिन के पास ईमान नहीं। टेक

नजर फला कै देख लिए नित पेड़ धर्म का फलता है
सत का तेल घलै दीपक मैं तो ज्ञान उजाला जलता है
धर्म के फंदे मैं फंस कै मन नहीं हिलाया हिलता है
अच्छी शोभत वाले को पिया अच्छा ही फल मिलता है
सत्संग से हो बुद्धी चेतन गुरु बिन मिलता ज्ञान नहीं।

एक त्रिशंकु का जाया सुण्या हो धूम मची जग सारे मै
राजपाट धन दौलत सब दे दिया एक इसारे मै
मत आसानी बात सोचिए ज्यान ठोकणी आरे मै
लड़का राणी बेच दिए खुद बिक्या धर्म के बारे मै
भंगी के घर नीर भरया के कह्या गया इन्सान नहीं।

साची बात कहुं तेरे तै कर साची को मंजूर पिया
हाथ जोड़ कै खड़ी सामने सत की बांधी हूर पिया
पणमेसर तै मिलता जुलता जती सती का नूर पिया
सच्चाई पै चलना चाहिए सच्चाई के घर दूर पिया
सच्चा सौदा बेच लिए तेरी झूठ की चलै दुकान नहीं।

वो माणस ना किसै काम का ओम नाम पै सिर धुणता ना
दुःख सुख की घड़ियां नै मेहर सिंह आंगलियां पै गिणता ना
वो माणस सदा सुख पावै जो बात गैर की सुणता ना
इतना हमणे सुण राख्या सै सांग जाट का बणता ना
जो जाट हो कै नै सांग करै वो असली की सन्तान नहीं।

राजा अम्ब अमृतसर राज को छोड़कर अपनी रानी अम्बली और पुत्रों सरवर-नीर के साथ चल पड़ते हैं। वे अपने अन्तर्मन में क्या विचार करते हैं-

लिकड़ चले थे जहान म्हं सब मालक टुकड़ा देगा। टेक

जिन की रहती नीत ठिकाणै सब बातां के होज्यां ठाठ
धर्म कर्म पै अड़्या रहै तै कोन्या रह किसै तै घाट
आपस कै म्हां रह् एकता घर कुणबे मैं ना हो पाट
जिनकै ना हो फर्क ईमान म्हं भुला सारा ऐ दुखड़ा देगा।

उस ईश्वर की अद्भूत माया एक पल मैं करै निहाल
डुबते का वही सहारा देता मार रहम की झाल
धनपत को कंगाल बणा दे निर्धन नै करै माला माल
सौदा भरया दुकान म्हं भर धन का छकड़ा देगा।

घर आए की सेवा करणी मीठी मीठी बोले बाणी
हाजर खिदमतदार रहै हंस हंस चाहिए टहल बजाणी
घालण जा जब आधीनी से गलती चाहिए माफ कराणी
अमृत भरया रहै जबान म्हं कर दिल को तगड़ा देगा।

जीव हिंसा से डरणा चाहिए सबतै राखो ठीक व्यवहार
नेम धर्म पै अटल रहै तो ईश्वर करदे बेड़ा पार
एक दिन मौत निमाणी आवै कर दे सब तरियां लाचार
मेहर सिंह मृत्यु के मैदान म्हं तेरे जीव को पकड़ा देगा।

चारों प्राणी भूख प्यास से व्याकुल जंगल में भटक रहे थे तो उस समय रानी अम्बली क्या कहती है-

चलते चलते हार गये विश्राम ले ले नै।
रोटी लता चालज्या इसा काम ले ले नै। टेक

पिया हम दुखी करे गर्दिश नै
क्यूकर ओटैं भूख और तिस नै
हम जिसनै पैदा करे उसी का नाम ले ले नै।

हम दिखावैं कड़ै टोटे मैं श्यान नै
यो दुःख दे दिया म्हारे भगवान नै
म्हारी दुखिया की ज्यान नै मेरे राम ले ले नै।

एक दिन होगा न्याय ईश्वर कै
पिछली करणी का डंड भर कै
किसै भागवान कै धंधा करकै किमै दाम ले ले नै।

ईश्वर पार करैंगे खेवा
वो ही सब सुख दुःख का देवा
मेहर सिंह करकै गुरु की सेवा, वो धाम ले ले नै।

भुख से व्याकुल दोनों बच्चे अपने पिता से कहते हैं-

हम चलते चलते हारे पिता जी बियाबान मै।

जाडडे का ताप कसाई चढग्या , माता म्हारी डरती कै
पाहयां के म्हां छाले पड़गे, बियाबान मै फिरती कै,
हम धरती कै दे मारे, इस चोडे से मैदान मै ।।

कदे कदे तै आज्या सै म्हारै, इसी इसी मन मै,
ठाल्ली बैठे रौवैं सै जब, लाग्गै भूख बदन मै,
आज दिन मै दीक्खैं तारे, इस नीले से असमान मै।।

पैसा धेल्ला पास नहीं , कपड़े म्हारे झीरम झीर,
या तै म्हारै पक्की जरगी, फूटगी म्हारी तकदीर,
कित सरवर नीर बिचारे, आ गे जगह अंजान मै ।।

देख लिया दुनिया के मै , होगे बिल्कुल बारा बाट,
हौणी के बस मै पिता जी घर गये ना रहे घाट,
छंद कहै जाट मेहर सिंह प्यारे, रसीली सी जबान मै ।।

वो चलते चलतज उज्जैन शहर में पहुँच जाते हैं । वहाँ एक सराय पर जाकर भठियारी से कहते हैं-

बीर मरद हम , दो बालक, सैं भूक्खे और तिसाये ।
लिये डाट सरां मै भठियारी , तेरी आशा करकै आये ।।

आठ पहर चौबीस घंटे, खेल्हैं थे माया जर मै,
भीड़ पड़ी मै भठियारी, हम आगे तेरे नगर मै,
भोजन तक की शरधा कोन्या, लागी भूख जगर मै,
गात का पिंजर होया सूख कै, दिन और रात फिकर मै,
खाण पीण की शर्म किसी, हम कहते ना शर्माये ।।

दोन्नूं बालक रोवण लागे, खाण पीण का राह करदे,
नादान उमर सै ग्यान नहीं , म्हारा पेट टुक तै भरदे,
जो माणस पुन दान करै, उसनै ईश्वर धन जर दे,
कुछ दिन ठहरण खात्यर भठियारी, आड़ै रहण नै घर दे,
हम जाणैं म्हारा राम जाणता, दुख नै घणे सताये ।।

करे खाये बिन क्यूकर सरज्या हम भी काम करैंगे,
अपणी राक्खां नीत ठीकाणै, ना खोट्टा नाम करैंगे,
खरचण बरतण की खात्यर हम अपणे दाम करैंगे,
पणमेस्सर का दिया याद हम सुबह और शाम करैंगे,
दुख विप्ता मै फिरैं भटकते , हुये आधीन पराये ।।

च्यारों भूखे मरण लाग रहे, प्राण तजण की त्यारी,
म्हारे नाम की इस दुनिया मै आती नहीं बिमारी,
जिसतै पेट गुजारा चालै इसा काम बता भठियारी,
ओर किसे का दोष नहीं म्हारी अक्ल राम नै मारी,
मेहर सिंह ईश्वर की आश करे जा , कर दे मन के चाहे ।।

रानी अम्बली सराय की भठियारी को क्या कहती है-

हेरी भागवान तेरे साथ , म्हारा कट ज्यागा बख्त आराम तै। टेक

पहलम आगे की ना सूझी ,
या दुनिया दारूण दुख दूजी,
किसे नै ना बूझी म्हारी बात, यो बखत आ लिया शाम तै।

दुःखी कर दिये भाग खोटे नै,
क्युकर ओटां दुःख मोटे नै,
म्हारी टोटे ने तार ली जात, काढ दिये घर गाम तै।

भूख मैं होग्या म्हारा बुरा दीन
अन्न और जल तै चलै मशीन
वोहे तीन लोक का नाथ, जिसनै हाड़ मिला दिए चाम तै।

होणी नै कर दिये बारा बाट,
म्हारे बिगड़ गये रंग ठाठ,
मेहर सिंह जाट दिन रात, डरै सै बदनामी के काम तै।

भठियारी उन्हें अपनीसराय में शरण दे देती है तथा उनको अलग अलग काम बांट देती है। राजा अम्ब को पत्ते लाने का , रानी अम्बली को सराय में खाना पकाने तथा बर्तन चौका करने का और सरवर नीर को अपनी भेड़ बकरियां चराने के काम में लगा देती है। एक रोजा राजा अम्ब जंगल से पत्ते लेकर चलता है तो वह अपने मन में क्या विचार करता है-

गहरी चिन्ता हुई गात मैं धड़ धड़ हृदया धड़कै।
पत्ते ले कै चल्या राव जब, शहर लिया मर पड़कै। टेक

आलकस नींद सतावण लागी ,आवण लगी जम्हाई,
आग्गे सी नै पैड़ धरी एक रोती मिली लुगाई,
नजर उठाकै देखण लाग्या साहमी खड़ी बिलाई,
गादड़ नै भी घुरकी घाली सर्प काटग्या राही,
रस्ते कै म्हां मिल्या कुंजड़ा ,जो बाट बांध रह्या कड़कै।

चील झपटे मारण लागी सिर उपर फिर फिर कै,
एक दरवाजे पै खड़ी लुगाई रीती दोघड़ धर कै,
एक ऊत नै छींक मारदी मुंह के साहमी करकै,
होगे सोण कसोण कंवर ईब पैंडा छुटै मर कै,
मेरी दहणी ओर तीतर बोल्या, बांई आंख कसूती फड़कै।

बणी बणी के सब होज्यां ना समझै भीड़ पड़ी नै,
इसा कसूता सौण लिया एक सारस जोट खड़ी नै,
हिरणां नै भी बुकल खोली कर लिए सौंण चिड़ी नै,
ईब चाल कै पछताया मैं चाल्या इसी घड़ी मैं,
मेरे रहगे सरवर नीर रोवंते ,मैं सहम लिकड़ग्या जड़कै।।

जाटां का तै हो जमीदारां के धंधा ठा रह्या सै,
किते बैठ कै ओम रटै न क्युं धक्के खा रह्या सै,
कोए कहै चोखी गावै कोए कह लह सुर मैं गा रह्या सै,
कोए कहै यो के जाणै वृथा मुंह बा रह्या सै,
जाट मेहर सिंह इब बता, किस किस तै मरैगा लड़कै।

राजा अम्ब जब जंगल से पत्ते लेने गया हुआ था तो पीछे से एक सौदागर पन्नालाल भठियारी की सराय में आ जाता है। वह रानी अम्बली की सुन्दरता पर मोहित हो जाता है। वह भठियारी को रिश्वत देकर रानी अम्बली को उसके पास भेजने के लिए मना लेता है। भठियारी रानी अम्बली को सौदागर का खाना जहाज में पहुंचाने के लिए कहती है तो अम्बली उसे क्या जवाब देती है-

हाथ जोड़ कै अरज़ सूं, एकसुणिये बात हमारी।
बिना सनन्द के माणस धोरै,मनै मत भेजै भठियारी।।

बिना सनन्द के माणस धोरै मेरा जाणा बणता कोन्या,
हक ना हक की बातां का दुःख ठाणा बणता कोन्या,
तिरया का टोटे मैं, इतराणा बणता कोन्या,
जो तुं कहरी सै इन बातां मैं धिंगताणा बणता कोन्या,
एक हाथ मैं भोजन लेज्या, दुजे कै म्हां झारी।

तेरे कड़वै बोल क्रोध के सुण कै ,थर-थर गात करै सै,
मैं भोली सूं भोले घरां की, तू छल तै बात करै सै,
सौदागर तै मिलकै नै तू क्यूं उत्पात करै सै,
लोभ के बस हो धर्म नष्ट मेरा, नाहक बदजात करै सै,
हम तेरी सराय मैं आ ठहरे ,म्हारी ईश्वर नै मत मारी।।

सुदेशना नै नार द्रोपद ,किचक धौरे घाली,
के बिगड़ी का मोल द्रोपदी, फेर रोवंती चाली,
हाथ पकड़ के किचक बोल्या, बणज्या नै घरआली,
वा बोली मेरा सांस सबर का, कदे ना जागा खाली,
उड़ै सारे किचक नष्ट हुए, न्यूजाणै दुनियां सारी।

अमृतसर तै चलकै आए, लिया तेरा शरणा सै,
हाजर खिदमतदार रहूं, तेरे आगे कै फिरणा सै,
मेहर सिंह दे हुकम मनै, फिलहाल वही करणा सै,
मेहनत करकै दुनियां के म्हां, पेट खढ़ा भरणा सै,
कोए मत करियो कार पराई, सै मुश्किल ताबेदारी।।

अम्बली भठियारी की नौकर थी। अतः उसे उसका कहना मानना ही पड़ता है। अम्बली खाना लेकर जहाज में जाती है तो सौदागर उसका हाथ पकड़ लेता है और जहाज का लंगर खोल दिया जाता है तब रानी अम्बली सौदागर को क्या कहती है-

जहाज रोक दे रे सौदागर, कती चलावै मतना
मेरी आत्मा दुःख पारी, मेरा लहू जलावै मतना।।

और किसे का दोष नहीं, मैं सूं कर्मां की हारी,
टके की मोहताज फिरूं सूं, हो री सै लाचारी,
सौदागर तेरे जहाज मै आगी, बणकै रूटिहारी,
छल का खेल खेल्याह खागड़ी, तेरै कीड़े पज़ो भठियारी,
छोट्टे छोट्टे दो बच्चयां नै, और सतावै मतना ।।

औरां का के दोष बतावैं, खुद राम रूसग्या म्हारा,
भूक्खे प्यासे फिरैं भटकते, करते पेट गुजारा,
पत्ते लेण बालकां का पिता ,जंगल के म्हा जा रह्या,
ओली सोली झाल लागती , दीक्खै ना कंठारा,
बिन माता के कर बेटयां नै, टुकटेर कहावै मतना ।।

सौदागर मनै तलै तार दे, ना टक्कर मार मरूंगी,
तेरे जहाज मै शोर मचा दयूं, जल के बीच गिरूंगी,
मेरे पै किसा रौब जमावै, मैं बिल्कुल नहीं डरूंगी,
घणे दुख मै परिवार मेरा, मैं उनकी गैल फिरूंगी,
दुख विपता की झाल मेरे पै, दुष्ट गिरावै मतना ।।

बीर पराई लेज्या हांग्गै, या बात नहीं सै छोट्टी,
इसमै दोष नहीं किसे का, मैं सूं करमां की खोट्टी,
जै होती मैं राजमहल मै, ऊत तेरी के पोट्टी,
वापिस सरां मै जाण दिये, पकड़ अपनी ये रोट्टी,
जाट मेहर सिंह भरी सभा मै, गंदा गावै मतना ।।

सौदागर अंबली के पास आने की कोशिश करता है, तो अंबली क्या कहती है-

हटज्या रे पापी, मत धमकावै ।।

ज्यान दुख विपत्या मै पिसी,
मेरे पै धौंस जमावै किसी,
इसी अंबली ना, डर ज्यावै ।।

ऊटती नहीं नीच बात तेरी,
समझा लिया मनै कै फेरी,
मेरी इज्जत नै, क्यूं खिंढावै ।।

तू करै घणा नीच काम,
इसका ब्होत बुरा हो अंजाम,
राम करै तू, नरक जावै ।।

म्हारे छुट गये रंग ठाट,
करे होणी नै बारा बाट,
जाट मेहरसिंह अनूठे, छंद गावै ।।

इस पर सौदागर रानी अम्बली को क्या कहता है-

क्यू पारी सै काल चाल म्हारे मौज करया करिए रै।

शीशों कै सैं महल च्यार उनमैं हवा खाया करिए
रेशमी साड़ी के उपरी कलप सुनहरी लाया करिए
खुशबोई का साबण त्यार मल मल कै नहाया करिए
वासलीन की शीशी ल्यादूं पट्टी मांग जमाया करिए
झांझर और रमझोल पहर कै मेरे मन को रिझाया करिए
काम करण कै लेखै परी पायां नै मत ठाया करिए
ल्या द्यूंगा हरा रूमाल घाल गोज मैं फिरया करिए रै ।।

जगहां जगहां पै कोठी म्हारी दो दो महीने ठहरया करिए
बम्बई कलकत्ता और जापान रूस बसरे का सहरा करिए
उंची ऐडी के बूंट बिलाती शाम सवेरे पहरया करिए
वेस्टन वाच तेरी घड़ी मंगा द्यूं कलाई पै जंचाया करिए
मुरादाबादी मैहंदी ल्या द्यूं हाथां पै रचाया करिए
सजा कै सारी टूम धूम मेरे महलों को मचाया करिए
हो ज्यांगा तेरे पै नहाल पायल पहर पैड धरया करिए रै।।

हरमुनी पेटी ल्यादूं, कमरे मैं बजाया करिए,
कुर्सी मूढ़े घाल कै मन, मेरा भी रिझाया करिए,
पलंग निवारी पड़े रहैं उड़ै, गलीचे सजाया करिए,
सोड़ा वाटर बोतल ल्यादूं ,बर्फ रला कै पीया करिए,
नौकरां नै तन्खाह गौरी ,अपणे हाथां दीया करिए
मैं तनैं देख कै राजी हूंगा ,तूं मनै देख कै जीया करिए
हो ज्यागा अजब कमाल लाल रंग मांग मै भरया करिए रै।

शीश फूल कोडडी जूड़ा, कर्ण फूल मुंह का साज,
वेसर बुलाक झूमर न्यारी, सुनारां के तै ल्यादूं आज,
जुगनी की दो कंठी माला ,उपर जागा घूंघट बाज,
सारा सिंगार करकै त्यार फेर माथै ऊपर टीका करिए,
पणवासी का बती रहूंगा, चन्द्रमा सी दिख्या करिए
गाणा और बजाणा गौरी मेहर सिंह पै सिख्या करिए
तरी मुर्गाई सी चाल, ताल म्हारै धन के तरया करिए रै।

उधर अम्बली को सौदागार ले जाता है। इधर जब पत्ते लेकर राजा अम्ब सराय में आता है तो भठियारी से क्या पूछता है-

साच बतादे भठियारी , इन बालकां की मां कित सै।।

ईब यो देख्या दुःख नया
जीव किसा फंदे बीच फह्या
तेरै दया नहीं सै हत्यारी, म्हारा जाण नै राह कित सै।

बेरा ना ईश्वर कद सम्भालै
बंधगे जनम मरण कै पालै
अधम बिचालै डूबगी म्हारी, बता कंठारे पै ना कित सै।

ईब या क्युकर बात बणै
जाणै कद ईश्वर टेर सुणै
म्हारी तनै सै आबरो तारी, यो घर मालक कै न्याय कित सै।

म्हारी करणी मैं पड़ग्या भंग
डूब ना रहया जीवण का ढंग
मेहर सिंह करले खेती क्यारी, फेर गावण का चा कित सै।

रानी अम्बली जहाज में बैठी हुई क्या विचार करती है-

म्हारी माट्टी पिटगी हो , इस भठियारी कै आण कै।।

ईब या विप्त पड़गी भारी
न्यू घणी होरी सै लाचारी
म्हारी इज्जत घटगी हो, यो दुःख ले लिया जाण कै।।

ईश्वर की हुई सख्त निगाह
ईब बता नै म्हारा के राह
मैं धोखे म्हा लुटगी हो, चाली ना बखत पछाण कै।

ईब म्हारी बिगड़ गई हैसीत
होणी कदे ना होण दे जीत
इस की नीत पलटगी हो , दया नहीं अन्याण कै।

कहै मेहर सिंह ज्यान त्यागणी
जणुं लहरे पै मरै नागणी
रागनी लय सुर मैं घुटगी हो, कवियां मैं ज्ञान बखाण कै।।

भठियारी रानी अम्बली पर ही आरोप लगाती है तथा राजा अम्ब और सरवर नीर को भी सराय से निकाल देती है तब कवि उनकी मनःस्थिति का क्या चित्रण करता है-

आल्हा तै हम अदना होंगे होणी नै घर घाले।
बाप और बेटा छोड़ सरा नै फेर रोंवते चाले।।

अमृतसर तै चाले पच्छै , धूप गिणी ना छाया,
दुख विपता नै घेर लिये, ना सोधी मैं काया,
थोड़ी दूर चाल बच्चयां नै , मां का जिकर चलाया,
उसका तम ख्याल छोड़ दयो, सबर करो मेरी माया,
दोनूं भाई रोवण लागे , कुण कुण से नै समझाले।।

लड़क्यां कान्ही देख देख, मेरी आंख नीर तै भरगी,
जुल्म करे उस पापण नैं, जो तम नै छोड़ डिगरगी,
मझधार मैं छोड़ , म्हारी रे रे माटी करगी,
अंबली का दयो ख्याल छोड़, वा थारे लेखै मरगी,
नौ नौ महीने राख पेट मैं, फेर लाड लडा कै पाले।

दुःख विपता मैं आवै तवाला शरीर रहै ना सौंधी मैं
तमनै छोड़ कै जा नहीं सकता, सूं थारा मोदी मैं,
अपणा माणस कोण पड़ैं बता, औरां की खोदी मैं,
सरवर की लई पकड़ आंगली, नीर लिया गोदी मैं,
ताता रेत जेठ का महीना, पड़ पड़ फुटैं छाले।।

जाटां का के काम मेहर सिंह ,गावण का हो सै,
छोरे छारे बैठे हों ,दिल बहलावण का हो सै,
छूटे पाछे बखत फेर के, थ्यावण का हो सै,
राजा का के कामभला, पत्ते ल्यावण का हो सै,
इसतै आछा हे माल्यक , म्हारी माटी नै संगवाले।।

राजा अम्ब सरवर और नीर को लेकर चम्बल दरिया के किनारे पहुंच जाते हैं। जब वे सरवर नीर को लेकर दरिया के दूसरे किनारे पहुंचाते हैं और नीर को लेने वापिस आते हैं तो विचार करते हैं-

अम्ब जब वापिस धाया, कदम आगै बढ़ाया
बीच दरिया के आया, तो कजा शीश छाई।
ऐ मेरे लख्ते जिगर, हो किसके मुन्तजर
तुम्हारा मरता पिदर, कुछ ना पार बसाई।।

घर में था मालो खजाना, जिस का कुछ ना ठिकाना,
एक साधु का बाना, अलख आ जगाई।
साज सारा लिया, ताज न्यारा लिया
राज म्हारा लिया, हम को दे दी गदाई।।

ज्यान आ गई कहर मैं, पिता चम्बल की लहर मैं
उज्जैन शहर मैं , करी थी कमाई।।
भठियारी हत्यारी , ने कर दी खवारी ,
महतारी तुम्हारी, से हो गई जुदाई।।

मेरे नयनों के तारे , दे धरती कै मारे,
रहोगे किसके सहारे , वाली वारिस ना भाई।।
मत हो हिजर बिसर मै , दुःख भरना उम्र भर मै
क्या ईश्वर के घर मै, ना होगी सुनाई।।

छन्द का गाना , है मुश्किल बनाना,
बहर का चलाना , जुबां की सफाई।।
मेहर सिंह छन्द धरना ना कच्चा, हर समरना है सच्चा,
काम करना है अच्छा, होगी जग मैं भलाई।।

वक्त फिर करवट बदलता है राजा अम्ब सरवर को दरिया के दूसरे किनारे पर छोड़कर नीर को लेने आता है तो दरिया में बह जाता है। एक किनारे पर सरवर और दूसरे किनारे पर नीर खड़े रह जाते हैं। नीर छोटा था वह रुदन करने लगता है तो सरवर उसे समझाता हुआ क्या कहता है-

छोड़ दे मात पिता का ख्याल, जा बैठ सबर करकै नै ।।

तेरे चेहरे का नूर झड़या सै,
कोये पाछला करम अड़या सै,
पड़या सै तृष्णा का जाल, पैंडा छुट्टैगा मरकै नै।।

हम साधू नै घणे सताये,
भठियारी नै भी जुल्म कमाये,
माँ के जाये होंश संभाल, जिंदगी कटैगी कष्ट भरकै नै ।।

जिसनै सच्चा हर टेरया ना,
मिटया शरीर का अंधेरा ना,
बेरा ना किसकी काहल्य, भजन कर मन बैट्ठै घिरकै नै ।।

हम होणी नै कर दिये तंग,
म्हारे सब छुटगे ऐश उमंग,
मेहर सिंह सीख लिये सुर ताल, ध्यान पणमेस्सर का धरकै नै ।।

सरवर आगे क्या कहता है

मां बाप का ख्याल, छोड़ दे भाई रै।।

जिन्है सच्चा हर टेरया ना
उन का मिट्या शरीर का अन्धेरा ना
बेरा ना किसकी काहल्य, या मृत्यु सबकी आई रै।।

ये दुःख जाते ना सहे,
जीव किसे फन्दे बीच फहे,
म्हारे वे रहे ना सरवर ताल ,जड़ै तरती मुरगाई रै।।

तेरे चेहरे का नूर झड़या
पाच्छला करतब आण अड़या
पड़या सै तृष्णा का जाल, कर्म मैं नहीं भलाई रै।।

म्हारी करणी मैं पड़ग्या भंग,
न्यू बिगडग्या काया का ढंग,
मेहर सिंह सोच समझ कै चाल ,सुरग की सीधी राही रै।।

सरवर फिर समझाता है-

मां के जाए बीर ,विप्त मैं रोया ना करते,
ये दिन सब मैं आवैं सैं।।

हम बैठे थे अपणे भरम पै
पटकी पड़गी म्हारे कर्म पै
धर्म पै दे दी जन्म जागीर, करकै खोया ना करते,
वै नर भले कहावैं सैं।।

या हो सै लाग नेक कै,
बैठज्या गुप्त जख्म सेक कै,
देख कै ओरां की खीर, नीत डुबोया ना करते ,
बेशक टुक मर पड़कै थ्यावैं सैं।।

रह बदनामी तै डर कै,
कदे ना चालै चाल उभर कै,
कर कैं प्यारयां सेती सीर, आंख चुराया ना करते,
ना लोग बेईमान बतावैं सैं।।

मेहर सिंह तन पै पड़ी उसी सहली
ज्यान किसी फंदे कै म्हां फह ली
पहली गावण तै समझै थे एक शरीर, कदे छोया ना करते,
आज मनै मरया मनावैं सैं।

सरवर और नीर को एक धोबी-धोबिन एक किनारे पर इकट्ठा कर देते हैं तथा अपने धर्म के बेटे बना कर उन का पालन पोषण करते हैं। धोबी-धोबिन जब उनसे उनके बारे में जानना चाहते हैं तो सरवर-नीर क्या जवाब देते हैं-

के बुझोगे दर्द मर्ज की ना जाती विपता रोई।
बाप डूबग्या दरिया के म्हां मां जननी गई खोई। टेक

हम दुखियारे जतन बता द्यो दुःख भागै किस तरिय,
माता पिता और खोई जागीर का मोह त्यागै किस तरियां,
बच्चेपण मैं दुःख देख्या जी लागै किस तरियां,
तकदीरां का बेरा कोन्या हो आगै किस तरियां,
भूखे प्यासे फिरैं भरमते देगा कोण रसोई।।

दो दिन होगे रंज फिकर मै रोटी खाई कोन्या,
भूख प्यास नै शरीर सूखग्या गात समाई कोन्या,
राजघरां मै जन्म लिया तकदीर लिखाई कोन्या,
पणमेशर भी रूस गया कोये खसम गोसाई कोन्या,
गोती नाती मित्र प्यारे, सबनै आंख चुरोई।।

जो लागी भीतरले मैं वा चोट बैठ कै सहगे,
नादान उम्र थी ना पार बसाई खड़े देखते रहगे,
छोड़ नीर नै पिता वापिस आए धार बीच मै बहगे,
एक बात तो सुणाने लायक मरते मरते कहगे,
बणी बणी के यार तीन सौ, बिगड़ी का ना कोई।।

इस दुनियां के मै कहलाणा इन्सान भाग मै ना सै
कर्म करे का फल मिलता बेइमान भाग मै ना सै
पैसा धेला पास नहीं पुन्य दान भाग मै ना सै
सारे कै ठोकर खा लि पर ज्ञान भाग मै ना सै
जाट मेहर सिंह निरगुणियां आगै वृथा जीभ बिलोई।।

उधर रानी अम्बली सौदागर के जहाज में है। सौदागर रानी अम्बली पर अपना वासना का जाल फेंकना चाहता है उसे नये नये प्रलोभन देता हुआ क्या कहता है-

दुःख नै छोड़ रैह नै सुख मैं बणज्या मेरी सेठाणी ।
दूध और भोजन मिलै खाण नै नहाण नै ताता पाणी।।

दस ग्यारहा दासी ल्या दयूं टहल बजाणे आली
सांग तमासें फिलम दिखा दयूं रण्डी गाणे आली
हंस खेल मन रिझाणे आली बोलै रसीली बाणी।।

एक एक मन मैं इसी आवै जणुं के के चीज खुवादयूं,
तेरी हाजर रहै ज्यान मेरी तेरा जी चाहवै वो मंगवादयूं,
नई नई पोशाक सिमादयूं दिये साड़ी गेर पुराणी।।

किसै किस्म की काली ना ला दयूंगा जी तेरा
ओढ़ पहर जब सिंगरैगी जी उमंगैगा मेरा
तूं सेठाणी मैं पिया तेरा, लिए बणा अदा कटखाणी।।

के ल्याया के लेज्यागा कोए दिन की चन्दगी हो सै
मेहर सिंह की हाथ जोड़ कै हर तै बन्दगी हो सै
थोड़े दिन की जिन्दगी हो सै ,समय आवणी जाणी।।

जवाब रानी अम्बली का-

सौदागर तेरै कीड़े पड़ियो दुखिया बीर सताई
बेईमान कै दिन की खातिर ले कै चलल्या बुराई।

कोए कर्म तै राज करै सै, कोए दलै सै दाणा,
कोए इन हाथां दान करै , कहीं मोहताज मांग रह्या खाणा,
अपणे मतलब का ना होता, धन और रूप बिराणा,
सोच समझ कै चाल दुष्ट, सै धर्मराज घर जाणा,
ऊंच नीच का ख्याल नहीं, तूं लाग्या करण अंघाई।।

पाप धर्म तोलण की खातर, धर्मराज घर नर जा,
कितै धर्म तुलै कितै पाप तुलै, सै न्यारा न्यारा दरजा,
जित धर्म तुलै उड़ै सुरग मिलै , तुलै पाप नरक मैं गिरज्या,
जै इतनी कहे की भी ना मानै तै, नाक डुबो कै मरज्या,
मैं लागूं सूं बहाण तेरी, तूं मेरा धर्म का भाई।।

भले आदमी शुभ कर्मा तै भव सागर तर ज्यांगें,
बुरे आदमी बेईमानी मै सिर बदनामी धर ज्यांगें,
दो बालक मेरे याणे याणे रो रो कै मर ज्यांगें
भठियारी जै धमका दे सहम बात डर ज्यांगें
तूं जहाज रोक दे मैं तलै उतरज्यां, बहुत घणी दुःख पाई।।

ढके ढकाए ढोल म्हारे, ये नहीं उघड़ने चाहिए,
बीर मर्द म्हारे दोनूं बेटे ,नहीं बिछड़ने चाहिए,
पतिभ्रता के बोल क्रोध के, पार लिकड़ने चाहिए,
भठियारी कै और तेरै पापी, कीड़े पड़ने चाहिए,
मेहर सिंह कैह चुपका होज्या ,मरले परै कसाई।।

जवाब सौदागर का-

जिसा विधवा बीर का इसा हाल तेरा सै।
खेलिए और खाईये यो धन माल तेरा सै।।

एक भठियारी चन्डाल कै, तूं बणकै दासी रहती,
चन्द्रमा सी शान कै , क्यूं ला कै फांसी रहती,
आड़ै मोहन भोग मिलै खाण नै उड़ै भूखी प्यासी रहती,
कदे मिल ज्या खाण नै,कदे तूं निरणा बासी रहती,
जिसकी गैल फिरै वो पति कंगाल तेरा सै।।

सेठां के घर सेठाणी ,वो तेरे केसी हों सैं,
उंच नीच नै कुछ ना जाणी, वो तेरे केसी हों सैं,
दुनियां के म्हां धक्के खाणी,वो तेरे केसी हों सैं,
जो प्यासे नै ना प्यावै पाणी, वो तेरे केसी हों सैं,
तू मेरी तरफ देख इब ,कित ख्याल तेरा सै।।

कोये बेशर्मी की कार बण, कित नाक डुबोवैगी,
अगली पिछली बिचली जचली सारी खोवैगी,
तेरी नहीं नाड़ मोड़ी मुड़ती ,फेर कित ज्यान ल्हकोवैगी,
इब तो ठल्ला जाणैं सै, फेर पाच्छै रोवैगी,
द्रोपद आला गुप्त तेरहवां यो साल तेरा सै।।

बेहमाता नै जुल्म करे , तेरा तारया रूप अधर तै,
मै तेरी शान देख कै पागल होग्या, जणू उतरया चांद शिखर तै,
साज बाज नै सुण सुण कै ,मेरै ऊट्ठै लौर जिगर तै,
रागनिया के गावण नै मेहर सिंह ,काढ दिया घर तै,
लखमीचन्द नै भी नहीं सुण्या, जो सवाल तेरा सै।।

जवाब रानी अम्बली का-

धोखे तै लई बिठा जहाज मैं के सोची बेइमान तनै।
अपणे मुंह तै माता कहकै, आज डिगालिया ध्यान तनै।।

ज्यादा बैठग्या दुःख पाकै
इस काया की तरफ लखाकै
उड़ै मीठी मीठी बात लगा कै, मेरे काट लिए कान तनै।।

ईब के कैहण लग्या अन गोड्डे
आज किसे भरण लागग्या ओड्डे
हम आंख बांध कै आड़ै ल्या छोड्डे, बस मैं करे प्राण तनै।।

दया धर्म की नहीं खबर सै
पन्नालाल तेरै नहीं सबर सै
पाप रूप बलवान जबर सै ,न्यूं करवादे कुर्बान तनै।।

मेहर सिंह उलट गई तकदीर
मेरी आख्यां तै बहण लग्या नीर
दिया मार मालजे मैं तीर ,लाकै सही निशान तनै।।

रानी अम्बली जब सौदागर को ठीक रास्ते पर लाने में अपने को असमर्थ पाती है तो वह उससे समय मांग लेती है क्योंकि उसे अपने पतिव्रता धर्म पर विश्वास था कि एक दिन उसका पति उसे अवश्य मिल जायेगा। उसका पति अगर न मिला तो वह उस की सेठानी बन जाएगी।
उधर राजा अम्ब को मछुआरे दरिया से निकाल लेते हैं। जब उसे होश आता है तो उससे उसके बारे में पूछते हैं तो राजा अम्ब क्या जवाब देते हैं-

के बुझोगे बात राहण दो मन की।
पणमेशर ने रात बणा दी दिन की। टेक

एक साधू नै लिया राजरंगीला मेरा
घर तै कर दिया बाहर कबिला मेरा
होणी नै करया माजना ढीला मेरा
भठियारी नै लिया खोस वसीला मेरा
दुःख विपता मैं खाक राख हुई तन की।

पापण भठियारी घणी धोखे तै बतलाई,
करे जुल्म डायण नै मेरी कुछ ना पार बसाई,
उज्जैन शहर मै हम लूट लिए मेरे भाई
रानी अम्बली टोहे तै भी ना पाई
सौदागर नै ली छघन बिजली घन की।

छोड़ नीर नै जिब मैं उल्टा आया
दिया जल नै जोर मन्नै भी बहा ल्याया
मैं अपणे मन की बात कैहण ना पाया
मेरी कंठारे पै रही रोंवती दो माया
बिछड़ गई दो चिड़ी रहणिया थी बण की।।

कंठारे पै उन्हैं क्यूकर सरली होगी
मेरी बदनामी सारे कै फिरली होगी
मेरे बालकां की माँ रो रो मरली होगी,
सरवर नीर कै मेरे मरे की जरली होगी
मेहर सिंह कर ख्याल काहल्य के बेरा किन्ह की।।

राजा अम्ब अपना परिचय करवाता है कि भाई मैं क्या था और आज क्या बणग्या। एक बात के द्वारा कवि ने क्या कहा-

होगी कुणबा घाणी, कित राजा कित राणी,
कित सरवर कित नीर, कित बन्दे की ज्यान सै।।

कदे म्हारा कुणबा था बहुत घणा,
आज मैं रैहग्या एक जणा,
मंगता बणया घर घर का, उस म्हारे अमृतसर का,
एक कर रह्या राज फकीर, हे मालक तेरी शान सै।।

हम बियाबान के बीच फिरे
म्हारे एकल्यां के प्राण डरे
वे मेरे सरवर नीर बिचारे, फिरै मां बापां के मारे,
कितै खो देंगे शरीर, बालकां की उम्र नादान सै।।

मत लावै अणदोषी कै दोष,
मैं रह्या सकल आत्मा मोस,
मेरै रोश बदन मैं जागै, के कहूं आपकै आगै,
है सच्चे रघुवीर, थोड़ा सा अनुमान सै।।

मेरी कुछ ना बसाई पार,
हुया सब तरियां लाचार,
या कार बड़े स्याणे की, मेहर सिंह जाट तेरे गाणे की,
दुनियां पीट रही लकीर ,गुरु लखमीचन्द का ज्ञान सै।।

उधर सौदार रानी को रिझाने का हर संभव प्रयास करता है, क्या कहता है-

फूटे मुंह तै बोल, तेरा पाटता ना तोल,
लागैं झोल, रै अणमोल,घुंघट खोलिए परी।।

क्यूं करै दीवे तलै अन्धेरा,
मनै तेरा पाट्या कोन्या बेरा
तेरा मेरा होवै प्यार, या सै तेरै एखतार,
जै करती हो इन्कार, मार मेरी घेटी मैं छुरी।।

इतनी क्यूं आंख कुसेरी,
मेरी जलकै होगी ढ़ेरी
तेरी इतनी सुथरी शान, जणुं चमक रहया भान,
मेरी ज्यान मनै सत्यवान मान तूं सावित्री।।

जै तू मेरी बहू बणै,
दयूं मन चाहया सुख तनै,
मनै देख प्रेम मै भरिये, मतना किसे बात तै डरिये,
करिये मौज महल मै जाकै लाकै गींडवे दरी ।।

मतना मेरी बात नै नाट,
ला दयूंगा हर तरियां के ठाट,
जाट मेहर सिंह गाम बरोणा, समसपुर मै शादी गौणा,
इब छौड़ रोणा धोणा आंख क्यू तलै नै करी ।।

जवाब रानी अम्बली का-

मत और तरहां बतलाईये रे पापी ,तेरी बहाण बराबर लागूं सूं।।

एक दिन न्याय होगा ईश्वर कै
पिछली करणी का डंड भर कै
टूक सीला करकै खाईये रे पापी, के मैं तेरे आगे तै भागूं सूं।।

पतिभरता की गैल्यां बांधै बैर
मतना समझिये ज्यान की खैर
मत गैर नजर लखाईये रे पापी , मैं बुरे कर्मां नै त्यागूं सूं।।

तूं सुणता कोन्या मेरी बात
दुःख पा रहया मेरा कोमल गात
टुक हाथ ठहर कै लाईये रे पापी, मैं सूती नाग बिड़े की जागूं सूं।।

म्हारी करणी मैं पड़ग्या भंग
न्यू बिगड़ग्या काया का ढंग
मेहर सिंह जैसा गाणा गाईये रे पापी, मैं ईश्वरजी के गुण रागूं सूं।।

जवाब सौदागर का-

ल्यादूं तरहां तरहां की चीज परी ,आड़ै क्यूं भुगतै टोट्टे मैं,
मेरे कमरे मैं चालिए गौरी।।

समय हो सै आवणी जाणी,
सदा रहना हुस्न जवानी,
मनै पाणी पाईये रीझ परी ,सोने चांदी के लोटे मैं,
बूरा बर्फ मिला लिए गौरी।।

चीज कहै जुणसी मंगवादयू,
सेवा में सौ बान्दी ल्यादयूं,
सिमवा दयूं हरा कमीज परी, तील चतया दूंगा घोटे मैं,
पट्टी मांग जमा लिए गौरी।।

रूप तेरा चन्द्रमा सा दरसै,
आशक दरस करण नै तरसै,
बरसै इंद्र रही भीज परी , आ चाल्य खड़ी हो कोठे मै,
टपकै तै मनै बुला लिए गौरी।।

कहै मेहर सिंह छंद घड़कै ,
बोल मेरी छाती के म्हां रड़कै,
तड़कै सामण दिन तीज परी, रंग आज्या सरले झोटे मै,
दो गीत झूल पै गा लिए गौरी।।

जवाब अम्बली का-

न्यूं तै मैं भी जाण गई ढंग ढाल बिगड़ लिया तेरा।
रे सौदागर बैरी एक दम करया क्यूं अंधेरा।।

अंधेरे तै भौर होग्या ढल सा दिखाई दिया,
अपणे मन में राजी हुई तल सा दिखाई दिया,
खिड़की के म्हां देख्या थल सा दिखाई दिया,
करकै नै विचार राणी सोच के म्हां घिरणे लागी,
ऊँच नीच देख कै नै ,आबरो बारै डरणे लागी,
ईश्वर कै अरदास करी आह किनारै भरणे लागी
कुछ धूंआ सा चढ़या मगज मै, जी घबराग्या मेरा।।

न्यू बोल्या तूं रोवै मतना, रौब सा जमावण लाग्या
पागल की ढाल वो ,आंख पाड़ कै लखावण लाग्या,
मिंठी मिंठी बातां गैल्या, मन मेरा बहलावण लाग्या,
पन्नालाल माता जी के, बयान करकै भूल गया,
धर्म ने पिछाणै क्यूं ना ज्ञान करकै भूल गया
देख कै नै माया को अभिमान करकै भूल गया,
मेरी ज्यान का तूं बण्या शिकारी , लाकै हेराफेरा।।

दिखती ना सराय घणी दूर का बिचाला होग्या,
मानगी बहकाई राणी कैसा मोटा चाला होग्या,
हे सच्चे करतार मेरी जिन्दगी का घाला होग्या,
बाल अवस्था बेटे मेरे कित कित धक्के खाणें होगें,
नया दाणा नया पाणी बखत नये पुराणें होगें,
विपता के दिन आज आंख मींच कै लंघाणें होगें,
पक्षी तक भी राखैं आलणा ना म्हारे कर्मां मैं डेरा।।

हर सुमरया हाथ जोड़ राणी जी न्यू कहणे लागी,
सहम हंस रोवै आंसू आख्यां के म्हां बहणे लागी,
जैसी हवा चलै वैसी आत्मा पै सहणे लागी,
बैठकै पछताई राणी सत मंजले जहाज कै म्हां,
पतिभरता नै रहणा पड़ै हरदम घुटकै लिहाज कै म्हां
ईश्वर जी पहुंचा दियो मेरे पिया जी के राज कै म्हां
कहै मेहर सिंह दूसरे के मन का किसनै पाटै बेरा।।

उधर राजा अम्ब वहां से चल पड़ते हैं और एक शहर में पहुंच जाते हैं। उस शहर के राजा धर्म सिंह की वसीयत थी कि जब भी उसकी मृत्यु हो और इस शहर से बाहर का जो व्यक्ति उसकी अर्थी के सामने आए उसे ही राजा बना दिया जाए। विधि का विधान जिस समय राजा अम्ब शहर की ओर आ रहे थे उसी समय राजा धर्म सिंह की अर्थी लाई जा रही थी। राजा अम्ब को वहां का राजा बना दिया गया। कुछ समय बाद सरवर और नीर भी उसी राजा की सेना में सिपाही भर्ती हो गये। व्यापार करता हुआ पन्नालाल सौदागर भी अपने जहाज की सुरक्षा के लिए वे सिपाही मांगता है, संयोगवश सौदागर के जहाज पर सरवर और नीर की ड्यूटी लग जाती है। रात को नीर कहता है कि कोई बात सुनाओ ताकि रात कट जाए। सरवर आप बीती कहानी उसे सुनाता है और क्या कहता है-

अम्ब पिता और अम्बली माता, जिनकी हम दो आस,
छुटग्या अमृतसर का बास।।

दरबारां म्हं साधु आया भिक्षा का सवाल किया
आप राजा बण गये पिता को कंगाल किया
लते कपड़े तरवा लिए ऐसा बुरा हाल किया
राज घरां के रहण आले भिक्षा के हकदार करे
माता पिता दोनूं भाई धक्के दे कै बाहर करे
पहलां बचन भरा लिए हम सब तरियां लाचार करे
धोखे तैं म्हारा राज ले लिया, तेरा जाईयो साधू नाश।।

फेर उज्जैन शहर मैं आए बड़ा भारी अन्देश हुया
एक भठियारी कै नौकर लागे ऐसा बुरा भेष हुया
पिता जी पात्यां नै गये पाच्छे तै एक केश हुया
भठियारी नै जुल्म करे सौदागर तै कर ली बात
बन्दरगाह पै रोटी ले कै माता जी गई थी साथ
जहाज कै म्हां माता चढ़गी, भठियारी हिलागी हाथ
जहाज चालता कर दिया, मां रही सौदागर के पास।।

आण कै पिता जी बोले कहां गई बच्चों की मां
छोह मैं आ भठियारी बोली लिकड़ मेरी सराय तै जा
चम्बल उपर पहुंचे भाई अधम बिचालै डुबी ना
एक किनारै मैं रैहग्या और दूसरे किनारै नीर
न्यारे न्यारे पाड़ दिये फूट गई म्हारी तकदीर
बच्चेपन मैं बड़े दुःख देखे रोवण लागे दोनूं बीर
फेर दरिया कै म्हां झाल लाग कै बहगी पिता की लाश।।

फेर धोबी धोबण आए पुचकारे और बूझी बात
धोबी बोल्या मैं पिता हूं धोबण है तुम्हारी मात
रोटी लता ईश्वर देगा चालो बेटा म्हारी साथ
उस भयंकर जंगल मैं तै धोबी धोबण ल्याए भाई
अपणें केसी मेर करकै पढ़ाऐ लिखाए भाई
दोनूं फेर जवान होगे हम टुकड़े सर करवाऐ भाई
उनका गुण के भूलां जा सै, रहांगे चरणां के दास।।

जितणे हैं इन्सान भाई सबका भाग न्यारा न्यारा
बच्चेपन मैं बड़े दुख देखे हमने बरस बिता दिये बारा
पीली पाटी दिन लिकड़ग्या जब किस्सा खत्म हुआ सारा
छोह मैं आ पिता जी बोले जुबां को चलाओ मत
मैं थारी सुणना नहीं चाहता सी बणाओ मत
लाठी लैके मारण भाज्या जाट होकै गाओ मत
जाट मेहर सिंह मेरे पिता कै सै झूठा विश्वास।।

सरवर नीर की इस कहानी को रानी अम्बली भी सुनती है। वह समझ जाती है कि सरवर और नीर हैं। वे दोनों सैनिक ड्यूटी दे कर चले जाते हैं। रानी अम्बली कुछ सामान दरिया में फेंक देती है और बाकी सामान को अस्त व्यस्त कर देती है। जब सौदागर आता है रानी अम्बली कहती है कि जो सैनिक ड्यूटी पर थे शायद वे चोरी कर ले गये आप राजा को इतला करो। रानी अम्बली को यह भी ज्ञान हो चुका था कि इस नगरी का राजा अम्ब है। जब सैनिक दोनों भाई सरवर और नीर को पकड़ कर दरबार की तरफ चलते हैं तो दोनो भाई आपस में क्या कहते हैं सुनिए-

घाल हथकड़ी आगै कर लिए भाग फूटगे म्हारे।
इस दुनिया मै दुःख देखण नै सरवर नीर उतारे।।

म्हारी तै के पोट्टी सै
खुद हरनै घिटी घोट्टी सै
या म्हारी किस्मत खोट्टी सै , ढंग दुनिया तै न्यारे।।

कोए बणै ना दुखां का साथी
अपणे बिना बणै ना हिमाती
भीड़ पड़ी मैं गोती नाती, धोरा धरगे प्यारे।

आ लिया बखत आखीर भाई
म्हारी फूट गई तकदीर भाई
क्यूं रावै सै नीर भाई, रस्ते बन्द हुए सारे।

कहै मेहर सिंह ज्यान त्यागणी
जणुं लहरे पै मरै नागणी
गुरु लखमीचन्द की सीख रागणी ये ऊत बहुत से गारे।।

दोनों भाईयों को दरबार में पेश किया जाता है तो दोनों भाई राजा के सामने क्या अर्ज करते हैं

हम दुखियारे गरीब बेचारे इतना जुल्म कमाया क्यूं
हाथ हथकड़ी पांया बेड़ी गले मैं चोप गिराया क्यूं। टेक

सौदागर के माल ताल का हमने चार्ज जा लिया
चुस्ती और होशयारी से फिर पहरा सारी रात दिया
पिच्छत्तर रौंद घले पेटी मैं चारजर ओवर लोढ़ किया
फिक्स बैनट कर राईफल उपर बज्र केसा करया था हिया
इतने काम करे थे हमने फिर भी ब्रहम दुखाया क्यूं।।

दिन लिकड़या और पीली पाटी हम दोनूं भाई चाल दिये
सब हथियार करे कब्जे मैं रौंद ठिकाणैं घाल दिये
सौदागर को जगा दिया ज्यूं का त्यूं धन माल लिये
हम अपणें घरनै जां सां तू अपणा जहाज सम्भाल लिये
फेर बेइमान उस सौदागर नै झूठा पलमा लाया क्यूं।।

एक पहर के पाच्छै आ धमके तेरे सिपाही,
मारण पीटण धमकावण लागे, म्हारी कुछ ना पार बसाई,
हाथ जोड़ कै बूझां सां हम दोनूं दुखयारे भाई,
के चोरया सौदागर का चीज कौण सी ठाई,
हम निरभाग निरदोषां का मुल्जम का भेष बणाया क्यूं ।।

तकदीरां तै बात बणै इसमैं क्या पछताणा है
ये तो हमनै जाण लिया मतलब के साथ जमाना है
हाड मांस का बण्या पुतला मिट्टि मैं मिल जाणा है
उस ईश्वर के भजन बिना व्यर्था ही जन्म गवाणा है
मेहर सिंह इस दुनियां मैं आ कै इतना तूं गर्भाया क्यूं।।

सज्जनों रानी अम्बली कहती है कि महाराज ये दोनूं भाई कल रात जो बतलावै थे वो के बतलावैं थे, इन से पूछो तो दोनो भाई क्या जवाब देते हैं-

अम्बली रानी माता म्हारी अम्ब राजा बाबुल था।
हम दोनूं भाई ईब सुणादें जुणसा जिक्र कल था। टेक

दरवाजे पै आकै नै सिर सवाल धरा साधू नै
म्हारे पिता पै राज मांग लिया बचन भरा साधू नै
लत्ते कपड़े टूम ठेकरी लिए तरा साधू नै
अमृतसर के खास तखत पै राज करा साधू नै
धक्के दे कै बाहर काढ़ दिये उसका पत्थर कैसा दिल था।।

अमृतसर तै चाल पड़े उज्जैन शहर की त्यारी रै
भठियारी कै नौकर लागे ओटी ताबेदारी रै
कुछ दिन होगे रहते सहते आग्या एक व्यापारी रै
सेर चून का लोभ दिखा उड़ै भेज दई मां म्हारी रै
म्हारी मां नै सौदागर लेग्या उस भठियारी का छल था।।

फेर पिता बूझण लाग्या एक गठड़ी पत्ते ल्या कै
छो मैं आ भठियारी बोली हाथ मैं जूता ठा कै
धक्के देकै बाहर काढ़ दिये बैठ गये गम खा कै
पार होण की सोचां थे हम चम्बल उपर आकै
अधम बिचालै म्हारा बाप डुबग्या उड़ै बहै जोर का जल था।।

एक उरे ने एक परे नै यो दुःख भारया होग्या रै
पणमेशर की करणी तो कुणबा न्यारा न्यारा होग्या रै
धोबी धोबिन आऐ घाट पै कुछ प्रेम हमारा होग्या रै
मेहर सिंह नै लखमीचन्द का बहुत सहारा होग्या रै
सतगुरु जी की टहल करे तैं युं कर्म करे का फल था।

राजा सोचता है ये तो मेरे परिवार के साथ बीती घटना है इन्हें कैसे पता कहीं ये मेरे बच्चे तो नहीं उन से पूछता है कि भाई तुम कौन हो, दोनों भाई और इस शहर में कैसे आये-

अमृतसर था गाम राम नै काढ़ दिये घर तै। टेक

अम्ब पिता अम्बली माता जिन के हम दो सरवर नीर
जोगीया लबेस करकै दरबारां मैं आया फकीर
भिक्षा का सवाल किया मांग लई जागीर
साधु जी नै चालै कर दिये लते कपड़े लिए तार
फिर ईश्वर की सख्त निगाह हुई हम दिये धरती कै मार
चार प्राणी अमृतसर तै बिल्कुल कर दिये बाहर
मांग लिया म्हारा राज ताज पिता नै तार दिया सिर तै।

चार प्राणी अमृतसर मै भूखे और तिसाऐ थे
एक महीना सात पहर मै उज्जैन शहर मैं आऐ थे
भठियारी नै दया कर कै अपणै नौकर लाए थे
माता को डिगाणा चाहा सौदागर आया था एक
इस औरत नै साथ करदे थेलियां की लाद्यूं ठेक
भठियारी से कहने लाग्या तुम ही राखो मेरी टेक
भठियारी नै करली थाप आप घर भर लिया धन जर तै।।

पत्ते लेकै आया पिता कैसी बुरी बणी पाई
भठियारी से कहणे लाग्या कहां गई बच्चों की माई
मात का जब नाम सुण्या रोवण लागे दोनूं भाई
भठियारी ने धक्के दे कै सरा से निकाल दिये
फेर हम चम्बल उपर आगे, उसनै रोप कमाल दिये,
छोड़ नीर नै चाले वापिस पिता बैह कै चाल दिये,
राखैंगे आदर मान ध्यान फेर लगा दिया हर तै।।

फेर ईश्वर की निगाह फिरगी आदमी जो भेजे खास
एक किनारै कटठे कर लिये होगी थी जीवन की आस
धोबी धोबिण बूझण लागे हम बोले हुआ सत्यानाश
दोनूआं नै गोदी ठा कै धोबी धोबिन ल्याऐ थे
अपणे केसी मेर कर कै पढ़ाए लिखाऐ थे
समझण जोगे जवान हुए जब टुकड़ै सिर करवाऐ थे
जो कुछ बीती म्हारी साथ बात बता दी धुर तै।।

ईब आपकी गुलामी कर कै नौकरी करैं सुबह शाम
जिन्दगी का गुजारा करते दो रोटी का करते काम
इस तरियां हम लागे नौकर खरी मजूरी चोखे दाम
जहाज पै सन्तरी थे बता कुण सी गलती म्हारी थी
जहाज पर तै आए वापिस जब तक माया सारी थी
ईब दरबारां मैं मारे ज्यागें या कर्मां मैं हारी थी
कह मेहर सिंह जाट घाट ना बात कैह लय सुरतै ।।

दोनो भाई कहते हैं कि महाराज हम चोर उच्चके नहीं हैं और एक बात के द्वारा क्या कहते हैं-

म्हारे केसा इस दुनियां मैं कोए गम गीर नहीं सै।
चोर जार बदमाश लुटेरे सरवर नीर नहीं सैं।।

रोज सवेरे बिठा कार मैं सैर कराया करते
गर्म सर्द पानी में कई कई बार नहवाया करते
न्हवा धवा कै चा मैं भर कै लाड लडाया करते
खाण पीण ओढण पहरण की तरकीब बताया करते
अमृतसर मैं खाया करते वे हलवे खीर नहीं सैं।।

एक समय की बात सुणाऊं अम्बली नै मलवे पोए
हमनै भी मेहनत करकै आले सूखे पत्ते ढोए
सौदागर तै रकम गिणली हम भठियारी नै खोए
मां धका कै जहाज मैं गेर दी हम दोनूं भाई रोए
इतने कड़वे बोल कहे इतने कड़वे तीर नहीं सैं।।

दोनूं भाईयां नै ठा गोदी मै न्यू समझावण लाग्या
होणी के चक्कर में फंस कै दरिया उपर आग्या
धोती टांग बड़्या दरिया मै पार लगावण लाग्या
एक दो बर तो दिख्या था फेर बेरा ना के खाग्या
मात पिता के दर्शन कर लें इसी म्हारी तकदीर नहीं सै।।

करमां करकै दोनूं भाई घाट के उपर आगे
बेटा कर कै राख लिए एक धोबी कै मन भागे
दो आने के लोभ मैं आकै हम फेर सन्तरी लागे
सेठाणी तो पड़कै सोगी हम दोनूं भाई जागे
कहै मेहर सिंह अम्ब राजा के लड़के हम ठाऊगीर नहीं सैं।।

राजा अम्ब रानी अम्बली और सरवर नीर एक दूसरे को पहचान लेते हैं। सौदागर को फांसी की सजा दी जाती है। उधर साधू के भेष में भगवान जिस ने अम्ब का राज लिया था वह भी आ जाता है और राज वापिस राजा अम्ब को देता है। राजा अम्ब एक शहर का राजा सरवर को दूसरे का नीर को बनाता है। यह किस्सा यही समाप्त होता है।

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